उत्तरप्रदेश

यूपी में इंडिया बनाम एनडीए क्या गुल खिलाएगा

 

साल नहीं, महज कुछ महीने ही अंगुलियों में गिनने को समय शेष है। लोकसभा 2024 का चुनाव सन्निकट देख, उत्तर प्रदेश फुल सियासी मोड पर है। राजनीतिक दल पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं। हर हाल में चुनाव जीतकर संसद में दाखिल होने और सरकार बना लेने की मन में हुलस है। प्रकृति में तो थोड़ी नमी आ चुकी है, पर सियासी तापमान ने उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल गरमा दिया है। एनडीए के मुक़ाबिल ‘इंडिया’ ने माहौल में गर्माहट पैदा कर रखा है। सियासी पंडित कहते हैं कि सत्ता के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की ऐसी कवायद को हल्के में लेना सच्चाई से मुंह मोड़ना है।

 बहरहाल, सभी दलों की तैयारियां तेज हैं। कुछ तैयारियां सामने दिख रहीं हैं, तो कुछ परदे के पीछे हैं। तू डाल- डाल तो मैं पात- पात की कहावत किस कदर चरितार्थ हो रही है इसे समझने के लिए बस इस उदाहरण को ही समझना काफी होगा।

 15 जुलाई को तेजी से खबर फैली कि समाजवादी पार्टी प्रयागराज से सिने स्टार अभिषेक बच्चन को प्रत्याशी बनाने जा रही है। समाजवादी पार्टी (सपा) इसके जरिए प्रयागराज समेत आसपास के कई जिलों को अपने पक्ष में मजबूत करना चाह रही है। तर्क दिया गया कि सपा यह दाँव चलकर तीन दशक पहले वाला इतिहास दुहराना चाहती है। कांग्रेस ने फिल्मी पर्दे के नटवरलाल कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन को यहां से प्रत्याशी बनाकर राजनीति के ‘नटवरलाल’ माने जाने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा को जोरदार पटकनी दी थी। बहुगुणा राजनीति के ‘मंझे खिलाड़ी’ और बड़े कद के नेता थे। एक गैर राजनीतिक आदमी से मिली बुरी हार ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि बहुगुणा राजनीति में दुबारा स्टैंड नहीं कर सके।

इलाहाबाद अब नए नाम प्रयागराज से जाना जाता है। यहां की मौजूदा सांसद हेमवती नंदन बहुगुणा की ही बेटी प्रोo रीता बहुगुणा जोशी हैं। अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन के जरिए हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी प्रोo रीता बहुगुणा जोशी को ‘ढेर’ करने का इसे दूरगामी सियासी दाँव बताया गया। मजे की बात यह कि अभिषेक बच्चन और रीता बहुगुणा जोशी का मसला चल ही रहा था कि उधर, सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर दूसरे दिन 16 जुलाई को दिल्ली पहुंचे। अमित शाह से मिले और भाजपा से गठबंधन कर लिया। ऐलान किया कि साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। सियासी क्षेत्र में यह नहले पर दहला दाँव माना गया। 

  गौरतलब है कि दस दिन पहले तक सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर भाजपा को लेकर ‘अगिया-बैताल’ बने पूरे राज्य में डोल रहे थे। उनकी भाजपा के प्रति नफरत का अचानक गलबहियां में बदलता देख लोग हतप्रभ हैं। अमित शाह को राजनीति का ‘चाणक्य’ वैसे ही नहीं कहा जाता। दो दिन के भीतर दारा सिंह चौहान भी भगवा चोले में आ गए। भाजपा सरकार में मंत्री रहे दारा सिंह पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगावत कर सपा में चले गए थे। सुभासपा से गठबंधन के दो दिन बाद ही दारा सिंह चौहान की ‘घर वापसी’ हुई। इतना ही नहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य को भी भाजपा में वापस बुलाने की बात अंदरखाने में चल रही है। इसमें कुछ ‘खास’ नेताओं को लगाया गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा अभी भी भाजपा की सांसद हैं। भाजपा और सपा में अलग अलग रहने के बावजूद बेटी संघमित्रा और पिता स्वामी प्रसाद मौर्य का लगाव कमजोर नहीं है।

 तेजी से बदलते घटनाक्रम की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी यह भी कि भाजपा से लड़ने के लिए विपक्षी दल एक हो रहे हैं। पटना के बाद बैंगलोर में हुई विपक्षी दलों की बैठक कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। एकसाथ 26 दल एक मंच पर आए। उधर, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ऐलान किया कि विपक्षी एकता के मद्देनजर एनडीए 38 दलों को एक साथ लेकर जल्द ही रणनीति तैयार करने जा रहा है।बहरहाल, सभी दलों के अपने अलग अलग दाँव- पेंच और हथकंडे हैं। एक तरफ दाँव है तो दूसरी तरफ उसकी काट भी खोज ली जा रही है।

बात सुभासपा और भाजपा के गठबंधन की करें, तो इसी बहाने भाजपा ने पूर्वांचल को साधने का प्रयास किया है। राजभर के नेतृत्व वाली सुभासपा भाजपा के एनडीए का हिस्सा बन गई। दोनों दल अब मिलकर चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में एनडीए को पिछड़ी जातियों के वोटबैंक का लाभ मिलेगा। पिछड़ी जातियां पर्याप्त संख्या में हैं। यूपी के पूर्वी हिस्से यानी पूर्वांचल में लोकसभा की 26 सीटें हैं। यहां अपनादल (एस) और निषाद पार्टी का पहले से ही एनडीए के साथ गठबंधन है। सुभासपा, अनुप्रिया पटेल वाला अपनादल (एस) और निषाद पार्टी, इन तीनों दलों की पिछड़ी बिरादरी में अच्छी पैठ है। यह सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू पश्चिमी यूपी है। भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी उतना मजबूत नहीं है। यहां जयंत चौधरी पर आकर मामला टिका है।

जयंत भाजपा के साथ आने को तैयार नहीं हैं। जबकि भाजपा हर हाल में जयंत चौधरी को साधने में जुटी है। पश्चिमी यूपी में लोकसभा की 27 सीटें हैं। 2014 में बीजेपी ने यहां 24 सीटें जीती थी,जबकि  2019 में यहां 19 सीटें जीत सकी। उसे आठ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। मुरादाबाद मंडल की सारी सीटें सपा बसपा ने जीती। इस गठबंधन में रालोद की भी हिस्सेदारी थी। ऐसे में अगर जयंत चौधरी अभी विपक्षी खेमे के साथ रहते हैं तो यूपी के पश्चिम जिलों में बीजेपी का गणित गड़बड़ाना तय माना जा रहा है। पश्चिमी यूपी को जाटलैंड कहा जाता है। यहां जयंत चौधरी और उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का असर है।

बहरहाल, उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक घटनाक्रम बड़ी तेजी से बदलते जा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भाजपा से बगावत करके सपा में शामिल होने वाले दारा सिंह चौहान दो दिन पहले फिर भाजपाई बन गए। भाजपा को पानी पीकर दिन रात कोसने वाले ओम प्रकाश राजभर भाजपाई बन ही चुके हैं। वो दिन दूर नहीं जब दोनों को मंत्री पद से नवाज दिया जायेगा। तैयारी तेज चल रही है। तैयारी तो स्वामी प्रसाद मौर्य को भी दुबारा भाजपाई बनाने की चल रही है। विपक्ष हर हाल में इस बार देश को मोदी सरकार से निजात दिलाने की बात अलग ही ललकार रहा है। इन सबके बीच 19 जुलाई को बसपा मुखिया मायावती ने विपक्षी एकता वाले कुनबे से बसपा को बाहर रखने का ऐलान कर दिया है। उत्तर प्रदेश में बसपा को एकदम से इग्नोर भी नहीं किया जा सकता। बहरहाल, रोजाना नई-नई ‘कहानी’ सामने आ रही है। एक गुट के साथ 26 दल हैं तो सामने वाला 38 दलों को साथ रखने का दावा कर रहा है। अपनी- अपनी ‘फौज’ बढ़ाने और मजबूत करने के दोनों गुट के अपने अपने दावे हैं। इन सबके बीच शह-मात के इस खेल में उत्तर प्रदेश का आवाम इंडिया बनाम एनडीए का सियासी वजन तौल रहा है। क्या उत्तर प्रदेश इस बार सियासत की नई पटकथा लिखने जा रहा है? क्या एनडीए के मुक़ाबिल इंडिया नामक नया गठजोड़ इस बार नया गुल खिलाएगा? इन तमाम ‘सियासी-चौकड़ियों’ के बीच सियासी परिणाम का ऊंट किस करवट बैठेगा, फिलहाल ये भविष्य के गर्भ में है

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शिवा शंकर पाण्डेय

लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और नेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट आथर एंड मीडिया के प्रदेश महामंत्री हैं। +918840338705, shivas_pandey@rediffmail.com
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