यूपी में मजाक सियासी गठजोड़
उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों का गठजोड़, महज सियासी चुटकुला बनकर रह गया है। प्यार, इकरार, मंच पर गलबहियां, सिर पर साफा, मंचों पर लहराते तलवार – गदे, साथ जिएंगे -साथ मरेंगे का अलाप, कुछ महीने बाद ही बाय- बाय, टाटा …। ये सब इतनी ज्यादा बार और इतनी जल्दी – जल्दी होने लगे हैं, जो किसी सिनेमा के दृश्य सरीखे लगने लगे हैं। ‘गठजोड़ के नाम पर विपक्षी दलों का मिलना-बिछड़ना हाई प्रोफाइल पब्लिसिटी स्टंट लगने लगा है, इसे अब लोग ज्यादा सीरियसली लेते ही नहीं ‘ – लखनऊ में विधान भवन की सीढ़ियां उतरते वेस्टर्न यूपी के वरिष्ठ पत्रकार मनोज रावत मुस्कराते हुए जब यह कहते हैं तो बगल खड़े छात्रनेता सूर्यप्रकाश स्वीकृति में मंद मंद गर्दन हिलाते नजर आते हैं।
देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाला राज्य है उत्तर प्रदेश। इसी उत्तर प्रदेश की सियासत में विपक्ष दिनोंदिन कमजोर होता जा रहा है। प्रमुख विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी है पर इसकी दशा भी पतली है। पार्टी संगठन की सभी कार्यकारिणी और फ्रंटल खत्म कर दिए गए हैं। चार अगस्त को विधान परिषद के लिए सपा ने एकमात्र प्रत्याशी कीर्ति कोल को मैदान में उतारा पर उनका पर्चा इसलिए अवैध घोषित कर खारिज किया गया कि पर्चे में प्रत्याशी की उम्र 28 साल दर्ज की गई थी, जबकि विधान परिषद सदस्य के लिए तीस साल उम्र का होना अनिवार्य है। सपा को इधर लगातार लगने वाले झटकों में यह बड़ा झटका है। गौरतलब है कि पर्चा दाखिल करते समय प्रदेश अध्यक्ष व विधान परिषद सदस्य नरेश उत्तम पटेल, सपा विधान मंडल दल सचेतक मनोज पांडेय समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
पिछले विधानसभा चुनाव के शुरुआती दौर में समाजवादी पार्टी ने थोड़ा मजबूत दिखने की कोशिश की। भाजपा में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बेटे को टिकट न मिलने पर पार्टी से बगावत कर दी। एक झटके में चौदह विधायकों को साथ लेकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। ओम प्रकाश राजभर ने भी सपा गठबंधन का दामन थाम लिया। इसके बाद धड़ाधड़ कई दल समाजवादी पार्टी के साथ आ गए। इससे सियासी गलियारों में ‘भूचाल’ आ गया। समाजवादी पार्टी यानी सपा की अगुवाई में कई दलों का गठजोड़ बन गया। मंचों से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के कई गर्वोक्ति पूर्ण बयानों ने माहौल बदलने की नाकाम कोशिश शुरू की। उधर, भाजपा में मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर ने भी समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया।
अरसे से समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज चल रहे उनके चाचा शिवपाल यादव भी अपनी पार्टी समेत अखिलेश के साथ आ गए। इसी बीच भाजपा के रणनीतिकारों ने जबरदस्त सेंध लगाई। मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव को भाजपाई बनाकर एक ही झटके में हिसाब -किताब बराबर कर लिया। भाजपा राजनीतिक संदेश देने में सफल रही कि तुम पार्टी तोड़ोगे, हम परिवार तोड़ेंगे। बहरहाल, पिछला विधानसभा चुनाव शानदार तरीके से जीतकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य में सरकार बना ली। उधर, बा- मुश्किल तीन महीने भी न बीते थे कि समाजवादी पार्टी का कुनबा बिखरने लगा। कुछ महीने पहले कई सार्वजनिक मंचों पर साथ जिएंगे, साथ मरेंगे की जुगलबंदी करने वाले चाचा शिवपाल सिंह यादव, ओम प्रकाश राजभर ने न सिर्फ पुराना ढर्रा पकड़ लिया बल्कि तीखी बयानबाजी कर विपक्षी एकता की छीछालेदर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए विभिन्न दलों का गठजोड़ हुआ। अक्तूबर 21 में इसकी शुरुआत हुई। सुभाष पटेल, ओमप्रकाश राजभर ने 27 अक्टूबर को सपा के साथ गठबंधन में शामिल होने का ऐलान किया। इसके बाद महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने समाजवादी दफ्तर में अखिलेश यादव की अध्यक्षता में सम्मेलन किया। जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय चौहान, अपना दल कमेरावादी की अध्यक्ष कृष्णा पटेल, रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी, प्रसपा संस्थापक शिवपाल सिंह यादव समेत अन्य कई छुटपुट दल समाजवादी पार्टी के साथ आ गए।
माह दिसंबर के अंतिम सप्ताह से 10 मार्च तक महज तीन महीने तक एक साथ रहे। गठबंधन ने फिजा बदली। मंच पर एक दूसरे की आलोचना करने वाले परस्पर विरोधी ये नेता गलबहियां करते एक दूसरे की तारीफ करते देख जाने लगे। भाजपा को मिटा दूंगा …जड़ से खत्म कर दूंगा से लेकर नागनाथ-सांपनाथ, नेवलानाथ तक का बड़बोलापन विधानसभा चुनाव तक खूब जोर शोर से चला। 10 मार्च को आए चुनाव परिणाम ने इन सबकी बोलती बंद कर दी। इनके सुर बदल गए। हार का ठीकरा एक दूसरे के सिर फोड़ने की कवायद अभी भी जारी है।
हांफती सपा, बिखरता कुनबा :
तिनका-तिनका जोड़ गठबंधन का पहाड़ खड़ा करने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को सपने में भी यह अंदाज न रहा होगा इतनी जल्दी सब कुछ बिखर जाएगा। महज तीन महीने में गठबंधन के सभी दलों ने सपा से किनारा कर लिया। अब सपा के पास केवल रालोद बचा है। थके- हारे अखिलेश यादव ने भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को छोड़कर पार्टी की पूरी कार्यकारिणी और सभी फ्रंटलों को भंग कर दिया। सपा संगठन के एक बड़े पूर्व पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चुनाव के समय साथ आए दलों ने जबरन दबाव बनाना शुरू कर दिया था। दबाव की राजनीति से अब सपा मुक्त हो गई है।
गठबंधन बनी तबाही
गठबंधन ने सपा के साथ ही साथ बाकी दलों को भी कम तबाह नहीं किया। समाजवादी पार्टी यानी सपा के साथ अब केवल रालोद ही बचा है। सपा की सभी कार्यकारिणी भंग कर दी गई हैं।
प्रसपा : प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने विधानसभा की 80 सीटों पर उम्मीदवार लड़ाने की तैयारी शुरू की थी। गठबंधन बाद उनको सिर्फ एक सीट चुनाव लड़ने को दी गई। यह शिवपाल जैसे कद्दावर नेता के लिए अवाक कर देने वाला मामला था। सपा के कभी कद्दावर नेता के रूप में पहचान रखने वाले शिवपाल सिंह यादव ने अपमान का घूंट पीकर इसे भी स्वीकार किया। बाद में शिवपाल सिंह यादव ने कई बार सार्वजनिक बयान दिया कि गठबंधन में उनका सम्मान नहीं किया जा रहा है। सलाह मशवरा तो दूर, उनको बैठक तक में नहीं बुलाया जाता। शिवपाल यादव के कई बार आ रहे बयानों पर अखिलेश यादव का बयान आया- ‘चाचा शिवपाल स्वतंत्र हैं, जहां उनको सम्मान मिले, जा सकते हैं।’ तल्खी भरे इन सार्वजनिक बयानों के बाद शिवपाल सिंह यादव ने गठबंधन को अलविदा कह दिया। इन सबके बीच ही अगस्त माह के पहले सप्ताह में सपा के ‘थिंक- टैंक’ कहे जाने वाले रामगोपाल यादव की भाजपा के प्रमुख नेताओं से ‘मुलाकात’ ने फिर से राजनीतिक चर्चाओं को तेज कर दिया।
सुभासपा : गठबंधन के दूसरे प्रमुख किरदार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर। बेलौंस अंदाज और बड़बोलापन के लिए जाने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन में रहकर राजभर ने बयान दिया – इस चुनाव में बीजेपी की विदाई होना तय है, 10 मार्च को मतगणना के दिन 10 बजे पहला गाना बजेगा – मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है, इसके बाद दोपहर में गाना बजेगा – चल संन्यासी मंदिर में। गठबंधन में शामिल राजभर की पार्टी चौदह पर चुनाव लड़ी पर जीती छः सीट। विधान परिषद के लिए एक सीट मांगी पर साफ मना कर दिया गया। राष्ट्रपति चुनाव के समय गठबंधन दलों की बैठक में इनको बुलाया तक नहीं गया, जबकि भाजपा ने इनको आमंत्रित कर सधी चाल चल दी। एक बार फिर ओम प्रकाश राजभर ‘दुर्वासा’ बन अखिलेश यादव पर बयानों के गोले छोड़ना शुरू किया। अखिलेश यादव वाले गठबंधन से तलाक, तलाक, तलाक बोलने के बाद राजभर ने बड़ी उम्मीदों के साथ बसपा की ओर निहारा पर बसपा की तरफ से दो टूक जवाब मिल गया। राजभर ने भाजपा की ओर कदम बढ़ाए पर वहां भी नो -एंट्री। बहरहाल, सपा, बसपा भाजपा तीनों से नकारे जाने के बाद ओम प्रकाश राजभर समेत गठबंधन के ‘तीन -त्रिदेव’ शिवपाल यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य और ओम प्रकाश राजभर के सियासत की नांव इनदिनों मंझधार में फंसी है।