पुस्तक-समीक्षा

सकारात्मक और सामाजिक बदलाव की मूर्धन्य कहानियाँ

 

एक समयान्तराल के बाद मानवीय संवेदनाओं और पारिवारिक भावनाओं को छूने वाला तीन कहानी संग्रहों का संकलन ‘मेरी प्रारंभिक कहानियाँ’ पढ़ने को मिला। यह कहानी संग्रह माननीय केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा लिखित औऱ डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल द्वारा सम्पादित वर्ष 2020 में संपादित हुआ है। आज भी इस संग्रह की हर कहानी प्रासंगिक ही नहीं बल्कि समाज के कटु सत्य को बयां करती है। इस संकलन में ‘निशंक’ जी की प्रारंभिक तीन कहानी संग्रहों ‘बस एक ही इच्छा’, ‘क्या नहीं हो सकता’ और ‘भीड़ साक्षी है’ में संकलित क्रमशः दस, ग्यारह और दस कहानियों को स्थान दिया गया है।

हर कहानी मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ती है। हर कहानी को पढ़कर लगता है मानो हमारे आसपास ही यह सब आज भी घटित हो रहा। साधारण और आम बोलचाल (यही उनके लेखन की उपलब्धि भी है) की भाषा-शैली में लिखे ये तीनों कहानी संग्रह हिन्दी कथा साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। हिन्दी साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर ‘निशंक’ जी की प्रारंभिक कहानियों को इस प्रकार सहेजकर उनको आम पाठकों तक पहुंचाना, निश्चय ही एक महती कार्य है, जिसका सम्पूर्ण श्रेय ‘डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल जी’ को जाता है। इसके लिए उनका धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ कि ‘निशंक’ जी की प्रारंभिक 31 कहानियों को उन्होंने एक ही स्थान पर पाठकों और शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध करा दिया।

राजनीति के उच्च शिखर को पा लेने के बाद भी साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय रहना स्वयं में किसी महान उपलब्धि से कम नहीं है। साथ ही उनका लेखन इस बात का भी द्योतक है कि ‘निशंक’ जी राजनीति जैसे कठिन और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के बाद भी साहित्य के संवेदनशील और हृदयी मार्ग को उन्होंने नहीं छोड़ा। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि उन्होंने हमेशा अपनी लेखन शैली से कइयों के जीवन के दुष्कर रास्तों को अपनी लेखन की क्षमता द्वारा सरल बनाया होगा।

‘निशंक’ जी का सम्पूर्ण साहित्य पर यदि नज़र डाली जाए तो आप देखेंगे कि उनका साहित्य सपनों की ऊंची उड़ान भरता प्रतीत नहीं होता बल्कि उनकी लेखनी सत्य की भूमि पर विचरण करती महसूस होती है। उनके साहित्य को पढ़कर एक आशावादी और आदर्शवादी साहित्यकार के दर्शन होते हैं, जो इस साहित्यिक और गैर-साहित्यिक विकटकाल में सहज प्राप्य नहीं है। उनका साहित्य सच की जमीन से फुटकर फिर वृहद वृक्ष बन जाता है।

कहानियों पर संक्षेप में प्रकाश डालते हैं। सबसे पहले उनका पहला कहानी संग्रह बस एक ही इच्छा में प्रकाशित कहानियों पर चर्चा करेंगे। वैसे तो हर कहानी पढ़कर पाठक को लगेगा कि यह कहानी लेखक के इर्द-गिर्द घूम रही है। काफी हद तक इसमें सच्चाई भी है क्योंकि लेखक यानी स्वयं ‘निशंक’ जी ने जीवन को बड़ी बारीकी और संवेदनशीलता से जिया है।

इस संकलन की पहली कहानी ‘बस एक ही इच्छा’ के नाम पर ही एक संकलन का नाम भी रखा गया है। यह कहानी उस पहाड़ी बालक विक्रम की है, जो घर की खराब आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए नीचे मैदान के एक होटल में काम करता है। पलायन की समस्या भी इस कहानी में देखी जा सकती है। 1985 में लेखक ने जो चिंता इस कहानी के माध्यम से दर्शायी थी, वह आज भी बनी हुई है। कहानी का पात्र विक्रम को गरीबी के कारण खुद न पढ़-लिख पाने का अफसोस जरूर है, परन्तु वह इस अफसोस को अपने छोटे भाई-बहन को पढ़ाकर दूर करना चाहता है। उसकी एकमात्र इच्छा भी यही है कि उसके भाई-बहन खूब पढ़-लिखकर बड़े आदमी बने। इसके लिए वह दिन रात जीतोड़ मेहनत भी करता गया। उसके मुख से निकला वाक्य आज भी अनेकों के मुख से निकला वाक्य है, जो गरीबी और लाचारी के चलते चाहते हुए भी पढ़-लिख नहीं पाए। वह कहता है ‘हम अभागों की किस्मत में कहाँ है पढ़ना-लिखना बाबू जी।’

इस संग्रह की अगली कहानी ‘मैं और तुम’ है जो एक अधूरे प्रेम की अधूरी कहानी है। और इस अधूरेपन के कई कारण लेखक ने दिखाएं हैं, जिनमें दहेज, जातीय संकीर्णता, क्षेत्रवाद और अमीरी-गरीबी के बीच की खाई जैसी गम्भीर समस्याओं को प्रमुखता से उठाया है। दीप्ति और शशांक का प्रेम इन्ही सामाजिक कुरूतियों के चलते अधूरा रह जाता है। हालांकि शशांक अपने प्रेम को पाने के लिए संघर्षरत है। वह अपने ही क्षेत्र एवं जाति का झूठा आवरण छोड़कर, परिवार से निष्कासित हो जाता है, परन्तु दीप्ति अपने परिवार को न तो मना पाती है और न ही शशांक की भांति समाज के झूठे आदर्शों के विरुद्ध जाकर अपने प्रेम को पाने का प्रयास करती है। इतना ही नहीं इस कहानी के अंत में शशांक के एक संवाद ने कहानी का उद्देश्य प्रकट दिया वह दीप्ति से कहता है ‘दीप्ति! तुम तो खुद भी पढ़ी-लिखी हो, समाज के प्रबुद्ध वर्ग में गिनी जाती हो, फिर क्या शिक्षा का वैभव व विकास इन सब बातों की पुनरावृत्ति हेतु ही है? धनलोलुप भावनाएं बनी रहें, साथ ने यह कोरे आदर्श की सजातीय अनिवार्य है।’ बाद में अपने प्रेम में समाज के सामने वह उपहास का पात्र न बन जाये इसके लिए वह दीप्ति से आग्रह भी करता है। परन्तु दीप्ति अपना निर्णय पहले ही बता चुकी होती है।

तीसरी कहानी ‘कितना संघर्ष और’ एक मेधावी लड़की ‘श्वेता’ के कठिन मेहनत और संघर्षों की कथा है। श्वेता का परिवार बड़ा है और गरीबी-लाचार है ऊपर से उसका पिता शराबी है, जो दिन-रात शराब में डूबा रहता है। इतना ही नहीं उसका पिता घर में सभी के साथ मार पिटाई करता है। वह भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण सारी जिम्मेदारी उसने अपने कंधों पर उठा ली। श्वेता जैसी नायिका होने की ज़रूरत है आज की युवतियों को। उसने इतना संघर्ष होने के बाद भी निराशा को अपने पास फटकने तक नहीं दिया। लेकिन नौकरी न मिलने कारण वह टूटती जा रही थी, उसकी हिम्मत साथ छोड़ रही थी। वह रमेश को चिट्ठी में लिखती भी है ‘ मैं पूछती हूँ कि आखिर कितना संघर्ष करूँ? कहीं सफलता मिलने से पहले ही यह संघर्ष हमको ही न मिटा डाले!’ इतना होने पर भी श्वेता का प्रथम आना, अपने आप में बेहतरीन उदाहरण था, क्योंकि इतने संघर्षों में आदमी जीना तक छोड़ देते हैं, ऐसे में पढ़ाई करना, किसी अजूबे से कम नहीं हो सकता। श्वेता कहानी की ऐसी पात्र है जिससे है युवती प्रेरणा पाकर जीवन में एक मुकाम हासिल कर सकती है, बशर्त उसकी तरह संघर्ष करना न छोड़े। हालांकि कहानी के अंत मंय सारे परिवार की जिम्मेदारी उठाते उठाते वह चारपाई पकड़ लेती है।

संकलन की चौथी कहानी ‘संकल्प’ है, जो विशुद्ध देशभक्ति कैसी होनी चाहिए, उस पर आधारित है। ‘निशीथ’ नाम का युवक अपनी शादी के प्रस्ताव को लेकर व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठने की बात कहता हुआ अपनी माँ से कहता है ”माँ’ ऐसी किसी लड़की से मेरी शादी करा सकती है जो व्यक्तिगत स्वार्थों में ना पढ़कर आम व्यक्ति के हितों की बात कर सके? शोषितों के लिए जूझ सके?’ निशीथ का यह वाक्य हमारे सामने कई सवाल खड़ा करता है। इस कहानी का प्रतिपाद्य यह है कि हमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर जितना संभव हो आम लोगों के जन जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए, साथ ही अपनी जन्मभूमि की खातिर जितना त्याग और समर्पण हो सके करना चाहिए। अपने व्यक्तिगत जीवन से इतर भी अनेक समस्याएं हैं, जिन पर हम कभी ध्यान नहीं देते हैं, ‘निशीथ’ भारत माता की फिक्र करता है, जिसे हिंसा वैमनस्य अलगाववाद और उचित राजनीति की जैसे सर्प लगातार डस रहे हैं। इस युवक की चिंता आज भी जस की तस बनी हुई है। जिसको कहानी के माध्यम से लेखक ने बखूबी बताने का प्रयास किया है।

इस संकलन की अगली कहानी ‘याद रखूंगा’ एक चुटीलापन  लिए हुए है। इस कहानी की व्यंग्यात्मकता में बहुत गहरा संदेश छिपा है। कहानी में एक युवक जो अपनी पत्नी की शिकायत लेकर आया है और अखबार में अपनी पत्नी के खिलाफ नोटिस छपवाना चाहता है। जिसका आग्रह वह लेखक से करता है। यही युवक अपने वक्तव्य में उसके द्वारा की जा रही है घरेलू हिंसा को सही ठहराया जाता है। लेकिन बाद में ‘साब’ उसे समझाते हैं कि यदि उसने अपने पत्नी के खिलाफ कुछ भी किया तो भविष्य में वह भी कुछ न कुछ अवश्य करेगी जिससे आपको मुश्किल उठानी पड़ सकती है। ‘साब’ की बातों को समझ कर वह युवक साहब को धन्यवाद देकर वहां से चला जाता है। एक पारिवारिक समस्या को कहानीकार ने कितनी खूबसूरती और हल्के से सरल कर दिया, यही कहानीकार की सफलता है। उस युवक को सबक भी मिलता है और ‘साब’ की बात को याद रखूंगा कहकर चला जाता है।

संकलन की अगली कहानी ‘गंतव्य की ओर’ हमें प्रेरणा देती है कि स्थिति चाहे जो भी हो यदि मातृभूमि की रक्षा की बात हो तो जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। किस कहानी का पात्र विनय इस बात को प्रमाणित करता है  कि राष्ट्र की सुरक्षा से परे कुछ नहीं हो सकता। कहानी में आप देखेंगे की विनय को अपने देश के सामने अपने भाई का संबंध भी बोना नजर आने लगता है। इतना ही नहीं विनय को देखकर वे शराबी भी देश की फिक्र करते हैं और अंत में कहते हैं- ‘इसमें उपकार की क्या बात है यह देश भाई पैसे ने ने हमें अंधा बना दिया तो क्या! यह तो हमारा भी फर्ज बनता है। प्राणों को हथेली पर रखकर देश की रक्षा के लिए समर्पित तुम जैसे युवाओं से तो हमें सीख लेनी चाहिए’। कहकर उन्होंने तेजी से गाड़ी मोड़ी और बिना अपने गंतव्य की ओर चल दिया।

‘नई जिन्दगी’ नामक कहानी इस संकलन की ऐसी कहानी प्रतीत हुई, जिसे पढ़कर क्रूर से क्रूर दंभी व्यक्ति का भी हृदय परिवर्तन हो जाए। इस कहानी का पात्र ‘दुष्यंत’ ऐसा ही एक पात्र है, जो अपने अय्याशीपन के कारण जीवन को खराब कर रहा था लेकिन एकाएक उसकी मुलाकात ‘अमीरदास’ नाम के एक दरिद्र व्यक्ति से होती है। जिसके पास पहले सब कुछ था लेकिन समय का चक्र कुछ ऐसा घूमा कि आज वह अपने दो बच्चों के साथ भीख माँगने पर मजबूर है। ‘अमीरदास’ से मिलने के बाद ‘दुष्यंत’ का हृदय परिवर्तन होता है और वह परिवर्तन कुछ ऐसा होता है कि वह अमीरदास और उसके दोनों बच्चों को अपने घर में आश्रय देता है। अमीरदास को अपने विभाग में सरकारी सेवा पर लगाता है और उसके दोनों बच्चों को अच्छे विद्यालयों में पढ़ाता है। बदले में अमीरदास भी दुष्यंत के प्रति वफादार और कर्तव्य परायण रहता है। इस कहानी से मन में यह प्रश्न भी कौंधा कि यदि किस देश का हर धनाढ्य व्यक्ति दुष्यंत की तरह किसी गरीब मजबूर का हाथ पकड़ ले, तो देश-समाज से अमीरी गरीबी का यह फासला एक दिन अवश्य कम हो जाएगा।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि यदि स्त्री परिवार को जोड़ भी सकती है और बिखेर भी सकती है। ऐसी ही कहानी है ‘राधा’। ‘राधा’ अपने पति ‘राघव’ से बहुत प्रेम करती हैं। लेकिन कुछ समय से ‘राघव’ ‘राधा’ से खिंचा-खिंचा सा और परेशान रहता है। लेकिन ‘राधा’ इसका कारण नहीं जान पाती। लेकिन एक दिन वह अपने मन की पीड़ा राधा के सामने प्रकट कर ही देता है। उसके मन की पीड़ा आज के हर उस युवक की पीड़ा है जिसका परिवार उसकी पत्नी के कारण या तो टूट गया है या बिछड़ गया है। राघव की पीड़ा है कि वह चाह कर भी अपनी विधवा माँ और अपने छोटे भाई किशोर को अपने साथ शहर में नहीं रख सकता। क्योंकि राधा यह नहीं चाहती लेकिन कहानी में एक ऐसा मोड़ आता है, जब राघव की तकलीफ सुनकर राधा का हृदय परिवर्तन होता है। हालांकि ऐसा हृदय परिवर्तन बहुत कम देखने यह सुनने को मिलता है। राघव के भाव और उसकी पीड़ा को समझते हुए, वह राघव की अनुपस्थिति में बिना उसे बताएं उसके गांव पहुँच जाती है और अपनी सासू माँ और किशोर को किसी तरह समझा कर, जिद और अधिकार से अपने घर शहर में ले आती है। राघव जब कई दिनों बाद घर आता है और घर पर अपनी माँ और छोटे भाई को देखता है, तो उसका हृदय भर आता है। उसके लिए यह किसी दिवास्वप्न जैसा था। जब माँ ने पूरी बात राघव को बताई तो राधा के प्रति उसके हृदय में पहले से कई गुना अधिक प्यार उमड़ पड़ा वह। इतना भावुक हुआ  कि अपनी आंखों में आते हुए आंसुओं की धारा को नहीं रोक सका। उसे लगा कि कोई नई जिन्दगी मिल गयी है, जिसे पाने के लिए वह कब से तड़प रहा था। यदि महिलाएं घर को एकजुट रखने के लिए अपना झूठा अभिमान छोड़ दें, तो निश्चय ही प्रत्येक परिवार स्वर्ग बन जाएगा। पारिवारिक विघटन से बचने का रास्ता इस कहानी से होकर गुजरता है, ऐसा कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा

अगली कहानी ‘सुख दु:ख’ लेखक की ऐसी कहानी है जिसे बाद में उन्होंने विस्तार प्रदान कर उपन्यास ‘मेजर निराला’ का रूप दिया। इस कहानी का पात्र भावावेश में एक ऐसा विवेक हीन कार्य कर देता है जिसके लिए वह पूरी उम्र खुद को माफ़ नहीं कर पाता। 15 वर्ष जेल में सजा काटने के बाद वह दोबारा अपना जीवन शुरु करता है। जीवन के दो पहलू हैं सुख और दु:ख, परन्तु यह कभी नहीं कहा जा सकता कि आखिर सब सुख के पल बदलकर दु:ख के हो जाएं। यही इस कहानी का उद्देश्य भी है कि इस समय बहुत बलवान है कब क्या रूप इस जीवन का हमें देखने को मिले कोई नहीं जानता।

इस संकलन की अन्तिम कहानी का शीर्षक है ‘अपना पराया’। कहानी के पात्र ‘मृदुला’ और उसके देवर ‘राहुल’ के इर्द-गिर्द घूमती है। एक परिवार के ताने-बाने से बनी यह कहानी ‘राहुल’ के रूप में ऐसे पात्र से पाठक का परिचय कराती है, जो हमेशा दूसरों की मदद करता है और उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए हमेशा संघर्षरत रहता है। और   अपनों के दु:खों को दूर करने के लिए सीमा से बाहर जाकर सहयोग करता है। कहानी का एक अन्य पात्र इंजीनियर खरें हैं, जो राहुल के बोस हैं। राहुल को सहयोग के लिए हर संभव मदद करते हैं। वह कहते हैं, इस भीड़ भरी दुनिया में किसे फुर्सत है कि किसी के बारे में सोचें तक करना तो बहुत दूर की बात रही। कहानी के अंत में राहुल की एक इच्छा शेष रह जाती है कि वह ‘शरद’ जो कि उसका भतीजा है, उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा बनाना है। इसके बाद वह सदा के लिए मुक्त हो जाएगा। यही उसका लक्ष्य है और यही है उसके जीवन की अन्तिम अभिलाषा।

सत्य, करुणा, प्रेम, न्याय, सद्भाव इत्यादि अनेक जीवन मूल्यों की पक्षधरता लिए निशंक जी की इस संकलन की कहानियाँ हैं। इन कहानियों में सीख है कि निराशा, हताशा और संघर्ष की स्थिति में अपने भीतर एक गहन आस्था और विश्वास को बनाए रखें। अजेय बने रहने की प्रेरणा इन कहानियों से हमें मिलती है। सकारात्मक जीवन दृष्टि के मूर्धन्य साहित्यकार निशंक जी का साहित्य इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने अपने साहित्य में उन सामाजिक जीवन मूल्यों को स्थान दिया है, जो राष्ट्र की पहचान है, शाश्वत है और हर युग में समाज की निमित्त के प्रतिमान सिद्ध होंगे। इनकी कहानियों की भाषा-शैली एकदम सहज सरल और आम बोलचाल की है। इसी कारण पाठक बड़े चाव से इन कहानियों को एक बैठक में आनंद विभोर होकर पड़ जाता है। निश्चय ही लेखक का यह शुरुआती लेखन हो, लेकिन आज भी समाज को रचनात्मक दिशा की ओर ले जाने के लिए सक्षम है। इसके अगले भाग में उनकी कहानी संकलन क्या नहीं हो सकता कि 11 कहानियों की समीक्षा आप सभी जन पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

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राम भरोसे

लेखक युवा साहित्यकार तथा राजकीय महाविद्यालय पोखरी (क्वीली) टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में असिस्टेंट प्रोफेसर (हिन्दी) हैं। सम्पर्क +919045602061, ramharidwar33@gmail.com
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