जिन्दगी और इन्स्टालमेंट कहानी का ‘चौधरी’
वर्तमान समय में अधिकांश मनुष्य भौतिकवादी जीवन जीने का आदी हो चुके हैं। इन भौतिक सुख-सुविधाओं के अभाव में एक कदम भी चलना, ऐसा प्रतीत होने लगा है, जैसे पहाड़ काटकर रास्ता निकालना। आधुनिक जीवन शैली कुछ हद तक सिनेमाई पर्दे से प्रभावित है तो कुछ हद तक उच्च वर्ग के लोगों के रहन-सहन से, जो कहीं न कहीं पश्चिमी सभ्यता से भी प्रभावित हो रही है। गाँव से लेकर शहर तक के लोग ऐसी ही जीवनशैली को अपनाना चाहते हैं।
परिणामस्वरूप अपने आय का निर्धारण संयमित और व्यवस्थित रूप से नहीं कर पाते हैं, जिस कारणवश जीवन में बिखर सा जाता है। भारतीय समाज का एक अहम् पक्ष यह रहा है कि वे अपने आय के अनुरूप बजट तैयार करते रहे हैं। यही कारण है कि वे अपने जीवन को सुचारू रूप से संचालित करते थें। भारत में यह बुजुर्गों की यह मान्यता भी रही है कि “तेते पाँव पसारिये, जेतो लांबी सौर”। परन्तु भारतीय परम्परा की यह मान्यता आज दरकिनार किया जा रहा है।
बिना अक्ल के नकल करना ठीक वैसे ही है, जैसे घोड़े के देखादेखी मेढक का नाल ठोकवाना। आज समाज में मध्यवर्ग की स्थिति भी कुछ ऐसी ही प्रतीत होती है। इस लालसा और भोग-विलासी जीवन के मोह में उन्हें तमाम तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है। यह वर्ग प्राय: उच्चवर्ग की जीवनशैली का अनुसरण करने में लगा रहता है। आज अधिकांश चीजें बाजार से ही प्रभावित दिखती है। यहाँ तक की पति-पत्नी भी एक-दूसरे को बाजार में फीट देखना चाहते हैं। इस बाजारवाद की होड़ में वह एक ऐसे सोशल स्टेटस को अपना लेते हैं कि खुद के स्टेटस (स्तर) को भूल जाते हैं। इस स्टेटस की आग में घी डालने का काम विज्ञापन भी बखूबी करता है। त्योहारों के समय एक रूपया या बिल्कुल मुफ्त में कोई भी समान घर ले जाने का विज्ञापन लोगों का जेब खाली करने का सबसे बड़ा हथकंडा बनता जा रहा है।
कई बार जिस वस्तु को कर्ज (लोन) में लिया जाता है, उस वस्तु का समय पर इन्स्टालमेंट नहीं चुकाने की स्थिति में उस वस्तु के साथ-साथ अन्य सम्पत्ति की भी जब्ती हो जाती है। इस बात को जानते हुए भी मध्य वर्ग अक्सर इस जाल में फंस जाते हैं। इस समसामयिक दौर तथा ऐसी ज्वलंत समस्याओं के बीच में भगवतीचरण वर्मा की कहानी ‘इन्स्टालमेंट’ बेहद प्रासंगिक और वर्तमान समाज के अत्यन्त करीब प्रतीत होता है।
‘इन्स्टालमेंट’ कहानी का नायक चौधरी विश्वम्भर सहाय अपने एक मित्र के घर पार्टी करने के लिए टाँगे से जाते हैं और टाँगा को वापस भेजकर देर रात तक पार्टी मनाते हैं। सुबह एक काम से कहीं जाना पड़ता है, तब किसी से कहकर टाँगा मंगवाने के लिए कहते हैं। लेकिन किसी कारणवश टाँगा नहीं मिल पाता है। इस समय बारिश का मौसम तो था किन्तु धूप कड़ी और चिलचिलाती हुई थी। ऐसा लग रहा था मानो धूप चूभ रही हो। धूप के कारण चौधरी साहब ज्यादा थकान महसूस कर रहे थे। इसलिए एक कदम भी पैदल चल पाने में असमर्थ थें। यहाँ से घर दो मील की दूरी पर था। इस रास्ते से बहुत से टाँगें गुजर रहे थे, लेकिन कोई खाली नहीं था। इसलिए कोई टाँगें वाले नहीं रूक रहे थे।
खड़े-खड़े चौधरी साहब अत्यन्त व्याकुल और परेशान हो गये थें। लम्बी प्रतीक्षा करने के बाद भी जब टाँगा नहीं मिला तो वे अतत: पैदल ही घर जाने का मन बना लेते हैं। जैसे ही पैदल निकलते हैं तो देखते हैं कि एक खाली टाँगा वाला आ रहा है। नजदीक आने पर चौधरी साहब देखते हैं कि जो टाँगा आ रहा है, उसका एक-एक पुर्जा जर्जर स्थिति में है। इस टाँगे के घोड़े का भी हर एक अस्थी–पंजी दिखाई दे रहा था। टाँगा वाला भी 70 की आयु का वृद्ध रहा होगा। टाँगे का प्रत्येक पुर्जा हिल-डोल रहा था। टाँगा की जर्जर स्थिति को देखकर चौधरी साहब इस टाँगे में नहीं बैठना चाह रहे थें। लेकिन अपनी मजबूरी को देखते हुए जैसे ही टाँगा आया वे उस पर उचककर बैठ गये।
जैसे ही चौधरी साहब टाँगा में बैठे घोड़ा ठिठककर रूक गया। कुछ देर पश्चात किसी तरह इक्केवान अपने चाबुक की सहायता से टाँगे को आगे बढ़ाता है। बड़ी धीमी गति से टाँगा चल रहा था। इस बीच कई सारे टाँगे वाले चौधरी साहब के टाँगे से आगे निकल जाते हैं। तभी चौधरी साहब पीछे से आ रहे एक टाँगे पर नजर दौड़ाते हुए देखते हैं कि उनके साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ी प्रभा और कमला आ रही है। दोनों को आते देखकर चौधरी साहब लज्जित होने लगते हैं, इसलिए अपनी पहचान को छुपाने का भरसक प्रयास करने लगते हैं। लेकिन इस जर्जर टाँगे में अकेले बैठे होने के कारण अपनी पहचान नहीं छूपा पाते हैं। उस जर्जर टाँगे में बैठे चौधरी साहब पर प्रभा और कमला की नजर पड़ जाती है, जिसके कारण प्रभा और कमला उनका मजाक उड़ाती है।
चौधरी साहब अपना मजाक उड़ता देखकर अत्यन्त लज्जित और क्रोधित होते हैं और उनके मुख का रंग उड़ जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी भी इतना अपमानित महसूस नहीं किया था, जितना की आज कर रहे थे। इस अपमान के कारण उनके ह्रृदय में तरह-तरह के ख्याल आने लगते हैं। अतत: अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने एक नयी कार खरीदने का निर्णय लिया और इन्स्टालमेंट में एक नयी चमचमाती कार खरीद लेते हैं।
चौधरी साहब ने सोचा कि प्रभा और कमला को दिखा दूँगा कि मेरे पास नयी कार है, जिसके सामने टाँगे का कोई मूल्य नहीं है। इस नयी कार को दिखाने के लिए चौधरी साहब पिछले कई महीनों से प्रभा और कमला के घर के आगे-पीछे और उनके आने-जाने वाले मार्गों पर कार से चक्कर लगाते हैं, किन्तु वे दोनों उन्हें नहीं देखती हैं। इस दिखावे के चक्कर में कार खरीदी के दिन से लेकर अब तक कार का इन्स्टालमेंट चुकाने में चौधरी साहब परेशान हो गये। चौधरी साहब को लगा कि दोनों (प्रभा और कमला) मुझे एक बार कार में बैठेकर घुमते हुए सिर्फ देख ले तो मेरे अपमान का बदला पूरा हो जायेगा, उसके बाद कार बेच दूँगा। लेकिन अपमान का बदला लेने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया।
चौधरी साहब अपनी पूरी वस्तुस्थिति और मंशा को अपने मित्र भुवन को बताकर, उसी से कार के इन्सटालमेंट के लिए कर्ज लेते हैं तथा इस बात की चर्चा किसी अन्य व्यक्ति से नहीं करने की गुजारिश करते हैं क्योंकि इससे उन्हें इज्जत जाने का खतरा था।
यह कहानी सिर्फ चौधरी विश्वम्भर सहाय नाम पात्र की नहीं है। बल्कि वर्तमान समाज में चौधरी जैसे तमाम लोगों की कहानी है जो दिखावा भरा जीवन जीने के लिए बाध्य हैं। ऐसे दिखावे के जीवन की वजह से नयी पीढ़ी भी प्रभावित हो रही है। ऐसे लोग फिल्मों और उच्चवर्ग का रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा आदि को देखकर इनकी तरह जीवन जीने के लिए प्रेरित होते हैं। इस जीवनशैली को जीने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती है, उन वस्तुओं को ये लोग इन्स्टालमेंट के जरिये खरीद लेते हैं।
कई बार इन्स्टालमेंट से सम्बधित नियमों को ठीक से जाँचे परखे बिना ही खरीद लेते हैं जिसके कारण इन लोगों को कई सारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इन्स्टालमेंट के कारण इन लोगों की जिन्दगी कर्ज की बुनियाद पर टीक जाती है। समय पर इन्स्टालमेंट नहीं दे पाने के कारण इन लोगों के घर-परिवार की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ जाती है। इस बिगड़ी हुई जिन्दगी को पटरी पर लाने के लिए कई बार चोरी-बेईमानी और अन्य अपराध करने से भी नहीं झिझकते हैं।
बाजारवाद ने वर्तमान पीढ़ी को इतना अधिक प्रभावित किया है कि अधिकांश युवा वर्ग चार-छह महींने में मोबाईल, गाड़ी, लैपटॉप जैसी वस्तुओं को बदलते रहना चाहते हैं और सम्भवत: बदलते भी हैं। ऐसे लोग नये डिजाईन और मॉडल के पीछे इतने अधिक आकर्षित है कि आमदानी अठन्नी और खर्चा रूपया के तर्ज पर जीवन गुजारने गलते हैं।
वर्तमान समय में समाज के अन्दर यह चेतना आना अति आवश्यक है कि जरूरी वस्तुओं को ही इन्स्टालमेंट में खरीदना चाहिए। अनावश्यक वस्तुओं के प्रति रूझान तब लेना चाहिए जब स्वयं समर्थ हों। आज चौधरी साहब जैसी मनोवृत्ति से बचने की आवश्यकता है। ऐसे जीवन से बचने के लिए चौधरी विश्वम्भर सहाय से सीख लेने की आवश्यकता है। हमें कोरोना के इस काल से भी सीख लेनी चाहिए कि कभी ऐसी महामारी अथवा किसी अन्य कारण से यदि रोजी-रोटी ठप्प हो जाये तो इन्सटालमेंट चुकाने की जो दिक्कतें सामने आ रही है, उन दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस कोरोना काल में काम न होने की स्थिति में इन्स्टालमेंट की समस्या से अधिकांश वर्ग जूझ रहे हैं। अत: यह कहानी वर्तमान परिपेक्ष्य में हम सभी के लिए किसी प्रेरणा और सीख से कम नहीं है।
लेखक शिक्षाविद् एवं स्वतन्त्र लेखक हैं|
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