जमालपुर रेल कारखाना या तो होगा बन्द या जाएगा निजी हाथों में
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इरमी को यहाँ से हटाने की बात सुनते ही बिदक गये बिहार के लोग
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अब कारखाना को बचाने की लड़ाई हुई तेज, 10 हजार कर्मियों को बहाल करने की उठी माँग
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कुली गाड़ी पहले ही की जा चुकी है बन्द
जमालपुर एक बार फिर चर्चा में है। जमालपुर में वर्षों से चल रही श्रमिक ट्रेन जिसे स्थानीय लोग कुली गाड़ी कहते हैं जब बन्द कर दी गयी तो जमालपुर को बड़ा धक्का लगा। शहर की रौनक ही छीन ली गयी। यह ट्रेन मजदूरों को लेकर जमालपुर आती थी। इससे रेलवे के अलावा अन्य मजदूर भी आते थे। कुछ दिन पहले जमालपुर में इंजीनियरों को कई तरह के कोर्स कराने वाली संस्था के यहाँ से लखनऊ जाने की खबर आई। पूर्व केन्द्रीय मन्त्री यशवंत सिन्हा ने यहाँ से इरमी को लखनऊ ट्रांसफर किए जाने का आरोप लगाते हुए बिहार वासियों को इसके लिए लड़ना होगा। इससे जुड़ा एक पत्र भी वायरल हुआ जो इरमी के डायरेक्टर को लिखा गया था। लेकिन कहा यह भी कहा जाता रहा कि उन्हें टेक्टनिकल सपोर्ट के लिए पत्र लिखा गया।
पूर्व केन्द्रीय मन्त्री यशवंत सिन्हा और बिहार सरकार के मन्त्री संजय कुमार झा का बयान आया और उन्होंने इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इरमी को लखनऊ ले जान का विरोध किया। बिहार के उपमुख्यमन्त्री सुशील कुमार मोदी ने का भी बयान आया कि इसे लखनऊ जाने नहीं दिया जाएगा। यशवंत सिन्हा हों सजंय झा हों या सुशील मोदी हों तीनों परिपक्व व गंभीर नेता हैं। तीनों ने कहा तो सच्चाई रही ही होगी। लेकिन 7 मई को सुशील कुमार मोदी ने कहा कि यह खबर भ्रामक है और बेबुनियाद है कि इरमी को जमालपुर से लखनऊ ले जाया जा रहा है।
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अब सवाल यह है कि टक्निकल सपोर्ट के लिए जमालपुर से कुछ अफसरों को स्थायी रुप से लखनऊ भेजा जाएगा या कुछ समय के लिए। इस सब के बीच जमालपुर में तैनात अफसर अखबारों में खबर पढ़ते रहे। कोई बयान नहीं दिया। खुद नहीं दिया तो सीपीआरओ से बयान दिलवाते। हद यह कि दो दिन बाद रेल मंत्रालय की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि बिहार के जमालपुर से भारतीय रेल प्रशिक्षण संस्थान इरमी को लखनऊ स्थानांतरित करने की कोई योजना नहीं है। रोष को शांत करने के लिए रेलवे ने यहाँ एक नया डिप्लोमा कोर्स शुरू करने का भी प्रलोभन लगे हाथ दे दिया। स्थानीय लोग कहते हैं कि पूर्व केन्द्रीय मन्त्री यशवंत सिन्हा के ट्वीट, बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के मन्त्री संजय झा और कांग्रेस नेताओं के बयानों का असर दिखा।
यहाँ इंडियन रेलवे इस्टीट्यूट ऑफ मैकेनिकल एंड इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग (इरमी) की स्थापना 8 फरवरी 1862 को की गयी। इरमी की शुरुआत 1905 में जमालपुर कारखाना से जुड़ी एक तकनीकी स्कूल के रुप में हुई। यहाँ सपेशल क्लास रेलवे अपरेंटिस का प्रशिक्षण 1927 से शुरू हुआ। देश भर के रेलवे में यहाँ के इंजीनियर उच्च पदों पर सेवारत हैं। स्पेशल क्लास अपरेंटिस की परीक्षा अब यूपीएससी लेता है। इरमी में इसको छोड़ बाकी टेक्निकल कोर्स, ट्रेनिंग आदि चल रहे हैं।
कारखाने को लेकर पूरे बिहार के लोग सहमे हुए हैं
सच्चाई यह है कि जमालपुर रेल कारखाना को लेकर जमालपुर सहित पूरे बिहार के लोग इसलिए सहमे हुए हैं कि यह कारखाना घाटे में चल रहा है और रेलवे कभी भी इसे बन्द कर सकता है। एक दौर था यहाँ 15- 20 हजार के लगभग कर्मी कार्यरत थे। अंग्रेजों ने जमालपुर काली पहाड़ क किनारे काफी मनोरम स्थान पर इस कारखाने की स्थापना की। गंगा यहाँ से आठ किमी. दूरी पर है। पहाड़ हो, हरियाली हो, गंगा हो, मैदानी इलाका हो ऐसी जगह पूर देश में अंग्रेजों को यहीं मिली। कुशल कारीगर भी मिले। जलमार्ग से लेकर रेलमार्ग तक से जुड़ा शहर कम है। अभी इस कारखाने को इस तरह से रसातल में पहुंचा दिया गया है कि यहाँ मुश्किल से चार-पाँच हजार कर्मी होंगे।
इधर के 10-15 वर्षों में जो रेल मन्त्री बिहार से हुए मसलन रामविलास पासवान, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने भी इस कारखाना को निर्माण कारखाना घोषित नहीं करवाया। इन वर्षों में बिहार से पलायन तेज हुए तो जिम्मेदारी इनकी भी बनती है। जब यह कारखाना शुरू हुआ था तब वाष्प इंजन का युग था। बाद में इसे डीजल इंजन और फिर बॉक्स बैगन का काम मिला। 140 टन क्षमत का क्रेन भी यहाँ बना। लेकिन समय के चलाने की बड़ी कोशिश नहीं हुई। इसे इलेक्ट्रिक इंजन से जुड़ा बड़ा काम नहीं मिला। निर्माण कारखाना घोषित करने की माँग स्थानीय स्तर पर होती रही। मुंगेर जिले के सांसदों ने दमदार आवाज संसद में नहीं उठाई।
जमालपुर रेल कारखना भाप के इंजन और इंजन बॉयलर का प्रथम निर्माता
8 फरवरी 1862 को स्थापित इस कारखाने का क्षेत्रफल काफी बड़ा है। यह 5,74,654 स्क्वायरटर में फैला है। अगर रेलवे यहाँ रेल इंजन या अन्य किसी तरह का कारखाना नहीं चला सकता तो इसके एक हिस्से में अन्य प्लांट भी लगा सकता है। लेकिन रेलवे में बेईमान अफसरों की फौज बढ़ती गयी और रेलवे कमजोर होता चला गया। कुछ साल पहले यहाँ बॉक्स बैगन का मामला गरमाया था। इससे पहले भी इस कारखाने में घोटाले उजागर हुए। लोहा चोरों ने इसे जो लूटा वह तो अलग कहानी है। बाकी प्रबन्धनों की तरह जमालपुर कारखाना के मजदूर यूनियन को जमालपुर रेल कारखाना के प्रबन्धन ने कमजोर कर दिया।
नहीं तो यह वही कारखाना है जहाँ बिहार में मजदूरों की पहल हड़ताल हुई थी। प्रसन्न कुमार चौधरी और श्री कांत ने अपनी किताब बिहार में सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम, में लिखा है- जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार के अवसर पर रलवे ने अपने कर्मचारियों को पंद्रह दिनों के वेतन के बराबर बोनस दिया था। लेकिन ठेकेदारों के अधीन काम करनेवाले ईस्टर्न इण्डिया रेलवे वर्कशॉप जमालपुर के कुलियों को मात्र तीन दिन के वेतन का बोनस दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ 1 मार्च 1912 को कुलियों ने हड़ताल कर दी और वर्कशॉप का काम ठप करने की कोशिश की। कुछ झड़पें भी हुईं। यह बिहार में मजदूरों के हड़ताल की संभवतः पहली घटना थी।
पीयूष गोयल इस कारखाने को चीता वाली तेज गति दे सकते हैं। आश्चर्य है यहाँ के स्थानीय सांसद ललन सिंह क्यों कुछ नहीं बोल रहे। जमालपुर विधान सभा के विधायक शैलेश कुमार को कारखाना की कितनी चिन्ता है वह दिखाना चाहिए। यहाँ कामगारों की संख्या पहले की तरह 15-20 हजार किए बिना इसे बचा पाना संभव नहीं है। या तो यह बन्द हो जाएगा या निजी हाथों में जाएगा।
कुछ खास बातें-
- जमालपुर रेल कारखना भाप के इंजन और इंजन बॉयलर का प्रथम निर्माता था।
- 1870 में देश भर में पहली बार यहाँ रॉलिंग मिल स्थापित हुआ।
- 1893 में रेलवे की पहली ढलाईशाला स्थापित हुई।
- 1961 में अपने देशी ज्ञान की बदौलत देश में रेल क्रेन का प्रथम निर्माता बना। अभी यहाँ 140 टन क्षमता वाले क्रेन तैयार हो रहे हैं।
- टिकट गिनने, टिकट में छेद करने, टिकट काटने, टिकट की छपाई करने वाली मशीनें देश में पहले पहल यहीं बनीं।
- रेलवे का अस्पताल और रेलवे के स्कूल यहाँ स्थापित किए गए। यहाँ नेट्रोडेम एकेडमी और सेन्ट्रल स्कूल भी हैं।
- समय के साथ भाप इंजनों की उपयोगिता समाप्त होती गयी और सरकारों ने इसे समय के साथ नहीं चलने दिया।
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