भारत: 4 जून 2024 के बाद
अठारहवें लोकसभा चुनाव के परिणाम पर सब की आँखें टिकी हुई है। यह चुनाव कई अर्थों में पहले के सभी चुनावों से कहीं अधिक विशिष्ट है। 4 जून को परिणाम घोषित होगा। कई संभावनाएं है। क्या भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त होगा और नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री होंगे? क्या ‘इंडिया’ गठबंधन बहुमत प्राप्त कर केन्द्र में सरकार बनाएगा? क्या भाजपा और ‘इंडिया’ गठबंधन को बहुमत प्राप्त नहीं होगा? क्या त्रिशंकु की स्थिति रहेगी और सांसद लोभ और भय के कारण भाजपा और नरेन्द्र मोदी का साथ देंगे? ऐसा भारत विपक्ष मुक्त होकर तानाशाही (मोदी शाही) की ओर बढ़ेगा? 4 जून 2024 के बाद का भारत एक बदला हुआ भारत होगा। इस चुनाव में लोकतंत्र और संविधान बचाने की जो बात कही जा रही है, वह बचेगा या नहीं, 4 जून के बाद तय होगा। भारतीय लोकतंत्र एवं भारतीय संविधान के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। अभी अधिसंख्य लोगों में लोकतंत्र एवं संविधान की समाप्ति का भय है। 4 जून के बाद भारतीय समाज भयमुक्त होगा या भयग्रस्त? सत्य और न्याय की रक्षा होगी या झूठ और अन्याय हावी होगा? लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाएँ बचेंगी या उनकी केवल ठठरियां रहेंगी? भारत मोदी का भारत होगा या जनता का? आज जो कुछ थोड़ा बहुत सुरक्षित है, क्या वह बचा रहेगा? 4 जून 2024 के बाद के भारत का हम फिलहाल एक अनुमान कर सकते हैं। चुनाव-परिणाम जो हो, यह निश्चित है कि चीजें पूर्ववत नहीं रहेंगी।
आज का भारत कई अर्थों में मोदी का भारत है। 2014 के बाद का भारत 2014 के पहले के भारत से भिन्न है। क्रिस्टोफे जैफरलॉ ने ‘मोदीज इंडिया: हिन्दू नेशनलिज्म एंड द राइज ऑफ एथनिक डेमोक्रेसी’ (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 2021) में विस्तार से हिन्दू राष्ट्रवाद को ‘भारत का एक भिन्न आइडिया’ कहा है। मोदी उनके अनुसार आर एस एस के प्योर प्रोडक्ट हैं। पुस्तक की भूमिका में उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के तीन चरणों की बात कही है। भारतीय लोकतंत्र को जिन कुछ विश्लेषणों से अलंकृत किया जाता रहा है, वे विशेषण पिछले कुछ वर्षों में बदल चुके हैं और भारत रूढ़ीवादी लोकतंत्र (कंजरवेटिव डेमोकेसी) से लोकतंत्र के अलोकतंत्रीकरण की ओर बढ़ कर अब जातीय लोकतंत्र (एथनिक डेमोकेसी) की एक प्रकार की खोज कर रहा है। पचास के दशक में नेहरू के समय, भारतीय लोकतंत्र का जो रूप-स्वरूप था, अब इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में मोदी के समय वह नहीं है। मोदी बदलाव के पक्ष में हैं और यह बदलाव उनके कॉरपोरेटों के पक्ष में है, न कि उस भारतीय जनता के पक्ष में, जिसे सरकार पाँच किलो अनाज दे रही है। 2019 के बाद भारत चुनावी अधिनायकवाद (इलेक्टोरल औथोरिटैरियनिज़्म) की ओर बढ़ चुका है। चुनावी अधिनायकवाद या चुनावी निरंकुशता वह मिश्रित शासन व्यवस्था है, जिसमें लोकतांत्रिक संस्थाएं सत्तावादी तरीकों का पालन करती हैं, अनुकरणशील होती हैं, उनकी अपनी स्वतंत्रता-स्वायत्ता नहीं होती। स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लोकतांत्रिक मानक वहाँ नहीं होते। 2021 में ही वी-डेम (स्वीडिश पॉलिटिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट वेरायटीज़ ऑफ डेमोक्रेसी) ने भारत का लोकतांत्रिक देशों में रैंक त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र से नीचे कर चुनावी निरंकुशता में रखा है। क्या भारत 4 जून 2024 के बाद इस निरंकुशता और अधिनायकवाद से मुक्त होगा अथवा उस दिशा में कई कदम आगे बढ़कर तानाशाही (डिक्टेटरशिप) की ओर उन्मुख होगा?
भारत में अधिनायकवादी/निरंकुश निगरानी राज्य का निर्माण जारी है, संसद के भीतर और बाहर राजनीतिक विरोधियों से अन्य साधनों से लड़ाई लड़ी जा रही है, असहमति एवं विरोध से लड़ते हुए बहुसंख्यकवादी राज्य का निर्माण हो रहा है और पुलिस निगरानी कर रही है। विरोधी ‘अर्बन नक्सल’ हैं और वे राजनीतिक बंदी हैं। भारत आज देश से कहीं अधिक एक ‘बंदी गृह’ की तरह है। इसलिए यह चुनाव कहीं अधिक मानी रखता है कि अगर भाजपा को बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी पुन: प्रधानमंत्री बने तो इस देश का क्या होगा? मोदी-मार्ग बदल नहीं सकता और इसका दूर-दूर से गांधी-मार्ग, नेहरू-मार्ग और अंबेडकर-मार्ग से कोई संबंध नहीं है। 4 जून के बाद भारत की छवि की चिंता जिन्हें है, वे राज्यवार सीटों की बढ़त-घटत के अनुमान में लगे हैं। चार चरण के चुनाव के बाद गृह मंत्री अमित शाह बोल रहे हैं कि भाजपा 379 में से 270 पर आ चुकी है, चुनाव परिणामों के संबंध में सब के अनुमान अलग-अलग हैं। मोदी शाह के अलावा प्राय: सभी भाजपाई 400 पार का नारा लगा रहे हैं। राहुल गांधी की मानें तो भाजपा 150 से नीचे रहेगी। ममता बनर्जी 200 तक भी भाजपा के न पहुँचने की बात कर रही हैं। विपक्ष के द्वारा भाजपा के 150, 190, 200 सीटों पर सिमट जाने की बात कही जा रही है। यह कहा जा रहा है कि 4 जून को भाजपा और राजग को बहुमत प्राप्त नहीं होगा, उनकी सरकार नहीं बनेगी और न मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे। विपक्ष कहता रहे, मोदी यह कह रहे हैं कि 13 से 15 जून तक जो 50वां जी7 सम्मेलन हो रहा है, उसमें वे जा रहे हैं, उन्हें सितम्बर में पुतिन रूस बुला रहे हैं। विपक्ष जो भी कहे, मोदी के अनुसार दुनिया यह मान रही है कि वे आ रहे हैं। मोदी का यह आत्मविश्वास कैसे है? कहां से है? सभी संस्थाएं उनके अधीन हैं। वे स्वयं सर्वोपरि संस्था हैं। देश का पर्याय भी हैं। ऐसी स्थिति में कोई भी संस्था कितनी बड़ी क्यों न हो, उसका कोई अर्थ नहीं है।
पिछले दस वर्ष में मोदी के अधीन सबकुछ आ चुका है। वे सर्वशक्तिमान हैं। कभी वे आर एस एस के प्रचारक थे। अब उन पर आर एस एस का कोई बंधन नहीं है। भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, जो अब मोदी के अधीन है, संस्थाए उनके मातहत हैं। संस्थानों की स्वायत्ता-स्वतंत्रता समाप्त की जा चुकी है। न्यायपालिका पर अभी पूर्णतः कब्जा नहीं हो सका है, पर सत्ता में पुनः वापसी के बाद शायद ही उसकी स्वतंत्रता-निष्पक्षता बची रहे। नरेन्द्र मोदी को सत्ता प्रिय है, पर उनका कहना यह है कि काँग्रेस के लिए लोकतंत्र का मतलब उनका सत्ता में होना है। मीडिया घुटने टेक चुका है, पर प्रधानमंत्री कहते हैं, मीडिया हाउस गलत नैरेटिव को बल देता है। ‘आज तक’ चैनल का एक एंकर उनसे कहता है आपकी छवि गरीब मसीहाओं की छवि है। प्रधानमंत्री को असहमति और विरोध के स्वर अच्छे नहीं लगते। वे स्वयं नेरेटिव बनाते और बदलते हैं। किसान आन्दोलन के समय 700 से अधिक किसान मरे, उन्होंने सहानुभूति में एक शब्द नहीं कहा। मुम्बई के घाटकोपर में एशिया की सबसे बड़ी 120 फीट ऊँची होर्डिग के 13 मई की आंधी में गिरने से 16 लोग मरे, 70 से अधिक लोग घायल हुए, पर नरेन्द्र मोदी ने इस हादसे का कोई जिक नहीं किया, न सान्त्वना के दो शब्द कहे और न अपना रोड शो स्थगित किया। उनके बारे में जो भी धारणाएँ बनी हैं, वे बेवजह नहीं हैं। उनके बारे में धारणा (परसेप्शन) बनने के कारण हैं, पर शहनवाज़ हुसैन उनके बारे में ‘परसेप्शन’ बदलने को कह रहे हैं।
अगर 4 जून के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार बनी, जिसकी संभावना बहुत कम है, तो स्थिति क्या सचमुच बेहतर हो जाएगी? क्या प्रधानमंत्री पद को लेकर दलों के बीच मतैक्य होगा? क्या काँग्रेस पर क्षेत्रीय दल हावी नहीं होंगे? ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन के साथ होने और उसकी सरकार बनने पर उसे बाहर से समर्थन देने की बात कही है। वे पहले इंडिया गठबंधन के साथ थीं, ‘इंडिया’ गठबंधन का नामकरण उन्होंने किया था, बीच में दूरी बढ़ी और अब फिर निकटता। पश्चिम बंगाल में तृणमूल काँग्रेस भाजपा के विरुद्ध ही नहीं, इंडिया गठबंधन (काँग्रेस, माकपा) के विरुद्ध भी लड़ रही हैं। आप पार्टी दिल्ली में इंडिया गठबंधन के साथ है और पंजाब में वह काँग्रेस के विरुद्ध लड़ रही है। माकपा पश्चिम बंगाल में काँग्रेस के साथ है और केरल में दोनों एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रही हैं । क्षेत्रीय दलों के साथ सबसे बड़ा संकट उनके अपने दल की रक्षा का है। उनके लिए उनका राज्य पहले है, देश बाद में। उनमें वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव भी है। 4 जून के बाद क्षेत्रीय दलों के रूख पर कुछ कहा नहीं जा सकता। राहुल गांधी ने निरन्तर जिस प्रकार आर एस एस की विचारधारा और कॉरपोरेटों पर हमला किया है, वैसा किसी भी नेता ने नहीं। काँग्रेस के भीतर भी ऐसे स्पष्ट स्वर सुनाई नहीं देते। क्षेत्रीय दलों की चिंताएं अपने-अपने राज्यों तक सीमित हैं। पहले राज्य, फिर देश। विरोधी दलों की एकजुटता किसी भी बड़े मुद्दे पर सदैव कायम नहीं रहती। उनकी अस्थिरता ने भाजपा और मोदी को स्थिरता प्रदान की है।
चुनाव के नतीजे ही भारत का भविष्य तय करेंगे। भारत के भविष्य का अर्थ है देश की जनता का, किसानों- मजदूरों का, दलितों-अल्पसंख्यकों का, महिलाओं और गरीबों-वंचितों का भविष्य, लोकतंत्र और संविधान का भविष्य, असहमति, विरोध-प्रतिरोध, धरना-प्रदर्शन और आन्दोलन-जनान्दोलन का भविष्य। 4 जून के बाद भाजपा की सरकार बनने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश जिस मार्ग पर बढ़ेगा, क्या वह आज के मार्ग से भिन्न होगा? क्या संघ, भाजपा और मोदी के विचार बदलेंगे? क्या विरोधियों की बात सुनी जाएगी? अभिव्यक्ति के खतरे बढ़ेंगे या समाप्त होंगे? शंकराचार्य देश में जिस डर का माहौल बता रहे हैं, वह समाप्त होगा या बढ़ेगा? प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज 21 अप्रैल को बांसवाड़ा में मोदी के दिये भाषण को मुसलमानों के विरोध में बता रहे हैं, वे चुनाव में मोदी हटाने का पर्चा बाँट रहे हैं। कह रहे हैं- लोकतंत्र को बचाना है। 4 जून के परिणाम यह तय करेंगे कि भारत में लोकतंत्र बचेगा या नहीं? भारत लोकतांत्रिक देश बना रहेगा या नहीं? 4 जून के बाद चुनाव लड़ने वाले सभी दलों पर विचार किया जाएगा कि वे लोकतंत्र के पक्ष में थे या लोकतंत्र के विरुद्ध। दस साल के भाजपा के शासन काल में लोकतंत्र को जिस तरह क्षत-विक्षत, लहू-लुहान किया गया है। 4 जून के बाद विचार किया जाएगा कि किन-किन दलों ने भाजपा का साथ दिया है, उनका समर्थन किया है। भाजपा के साथ होना लोकतंत्र के साथ होना है या उसके विरुद्ध? चुनाव लोकतंत्र की रक्षा करता है और लोकतंत्र के गर्भ से फासिस्ट भी पैदा करता है। हिटलर चुनाव जीत कर ही सत्ता में आया था। स्टीवेन लेवित्सकी एवं डैनिअल जिबलैट ने अपनी पुस्तक ‘हाउ डेमोक्रेसीज डाई: व्हाट हिस्ट्री रिवील्स अबाउट आवर फ्यूचर’ (2018) में लिखा है कि शीतयुद्ध के बाद अनेक देशों में लोकतंत्र जनरल्स एवं सिपाहियों के द्वारा समाप्त नहीं किए गये । निर्वाचित सरकारों ने उसे समाप्त किया। वेनेजुएला के शावेज की तरह निर्वाचित नेताओं ने जार्जिया, हंगरी, निकारागुआ, पेरू, पोलैंड, रूस, श्रीलंका, टर्की (तुर्की) और यूक्रेन में लोकतांत्रिक संस्थाओं को विकृत किया। क्या भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं विकृत नहीं की गयी हैं? प्रधानमंत्री ने ‘आज तक’ से की गयी एक बातचीत में चुनाव आयोग के अब पूर्ण स्वतंत्र होने की बात कही है। उनके कार्यकाल में लोकतंत्र कहीं अधिक रुग्ण हुआ है, पर वे लोकतंत्र के लिए उदासीनता अच्छी नहीं मानते। “देश का लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए” कथन उस व्यक्ति का है जिसने लोकतंत्र को कहीं अधिक कमजोर किया है।
4 जून एक निर्णायक तिथि है। इस तारीख को यह निश्चित हो जाएगा कि भारत में लोकतंत्र बचेगा या नहीं? सत्य और न्याय के लिए इस देश में जगह बचेगी या नहीं? बुद्धिजीवियों, कवियों, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, जेन्युइन पत्रकारों के लिए यह देश रहेगा या चापलूसों-चाटूकारों का देश बनेगा ? जिस बेचैनी और छटपटाहट से देश गुजर रहा है, वह बेचैनी और छटपटाहट समाप्त होगी या बढ़ेगी? 4 जून 2024 के बाद का भारत या तो तानाशाही की ओर जाएगा या लोकशाही की ओर? बड़ी आसानी से एकाध उदाहरण देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह बताते हैं कि सबसे पहले संविधान से खिलवाड़ नेहरू ने किया, फिर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने, और अब शहजादे (राहुल गांधी) भी। एक ही परिवार के चार-चार लोगों ने समय-समय पर धज्जियां उड़ा दीं। वे देश को शिक्षित करने की बात करते हैं और जिला की राजधानी बताने को भी कहते हैं। उनके अनुसार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अब काम कर रहा है। पहले के लोगों का निकम्मापन था। चुनाव आयोग के सदस्य उनकी मर्जी से बनते हैं और वे कहते हैं चुनाव आयोग विश्व के लिए अजूबा है। वे सुविधा वाली दुनिया में रहते हैं, पर कहते हैं कम्फर्ट वाली दुनिया मुझे मंजूर नहीं है। जनता जनार्दन का दर्शन करना, उनकी भावनाओं को समझना मेरी प्राण शक्ति है। 2047 के लिए वे 5 साल से कार्य कर रहे हैं। उन्होंने ‘मैप’ बना रखा है। प्रधानमंत्री मुद्दों को ‘डायवर्ट’ करते हैं, पर कहते हैं हम मुद्दों को ‘डायवर्ट’ नहीं करते। उनके कार्यकाल में गैरकानूनी कार्य कम नहीं नहीं हुए हैं। ‘न्यूज क्लिक’ के संस्थापक सम्पादक प्रवीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी मानकर उनकी रिहाई का आदेश दिया है। दस वर्ष के कार्यकाल के प्राय: सभी क्षेत्र के अनगिनत उदाहरण हैं। सत्ता में नरेंद्र मोदी के पुन: आगमन को लेकर विपक्षी दल, संविधान और लोकतंत्र के प्रति निष्ठावान भारतीय अधिक चिंतित हैं। मतदान के अभी तीन चरण बाकी हैं और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा की सीट किन राज्यों में घटेगी और इंडिया की सीट कितने राज्यों में बढ़ेगी?
पन्द्रहवें लोकसभा चुनाव (2009) में यूपीए को 262 और एनडीए को 159 सीटें आई थी। इस चुनाव में इसके दोहराए जाने की संभावना नहीं है। 2014 में भाजपा को 282 और 2019 में 303 सीटें आई थी। इस बार उसे कितने सीटों की संभावना है? कयास लगाए जा रहे हैं। दक्षिण के पाँच राज्यों और पुडुचेरी की कुल 130 सीट है। पिछले चुनाव में भाजपा को यहां से कुल 29 सीट मिली थी। कर्नाटक से 25 और तेलंगाना से 4। इस बार आंध्र प्रदेश से चन्द्रबाबू नायडू की पार्टी तेदेपा से गठबंधन के कारण उसे कुछ सीटें मिल सकती है। कर्नाटक में उसकी सीट घटेगी। अमित शाह दक्षिण में भाजपा के ‘बहुत बड़ा प्रवेश’ की बात कह रहे हैं। पाँच दक्षिण राज्यों में सबसे अधिक भाजपा सीट जीतेगी। दिल्ली सहित दस हिन्दी प्रदेश की कुल 225 सीट है, जिसमें भाजपा की सीट कम होगी। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ में उनकी सीटें घट सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार भाजपा सरकार बना लेगी और नरेंद्र मोदी पुन: प्रधानमंत्री होंगे। अभी जो गर्भ में है, उसके संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि सत्ता में भाजपा और नरेंद्र मोदी के पुन: आगमन से स्थितियां और अधिक बदतर होंगी, जो किसी भी दृष्टि से देश, लोकतंत्र, संविधान और भारतीय नागरिकों के लिए शुभ नहीं होगा। यह कोई ज्योतिषी ही बता सकता है कि 4 जून के बाद भारत किस शुभ-अशुभ ग्रह में प्रवेश करेगा। हम अनुमान भर कर सकते हैं कि भाजपा और मोदी का पुन: सत्ता में आगमन शुभ नहीं है।
(यह लेख अठहरवीं लोक सभा के चौथे चरण के चुनाव के तुरत बाद लिखा गया है।)