कितनी सजीव होती हैं प्रवासी महिला सहायिकाएँ
- सलिल सरोज
हर साल, महिलाओं सहित बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक श्रमिक के रूप में, विदेशों में रोजगार के उद्देश्य से जाते हैं। विदेश मंत्रालय के अनुसार लगभग 3.91 लाख श्रमिकों ने 2017 में भारत से निर्वासन किया। इनमें से कई निवासी कम शिक्षित हैं, विशेष रूप से खाड़ी देशों में रोजगार के लिए जाने वाले निर्माण श्रमिक, नौकरानियाँ,नर्स आदि। ऐसे कई मामले हैं जिनमें ऐसे अशिक्षित / अर्ध-शिक्षित लोगों को अपंजीकृत / बेईमान एजेंट पर्यटक और ऐसे अन्य वीजा पर विदेश भेजते हैं और आकर्षक रोजगार के अवसरों का वादा करके मनचाही रकम ऐंठते हैं एवं कानूनी कार्य वीजा / परमिट रद्द करने की धमकी भी देते हैं।
तत्पश्चात, इन कारगारों को महिलाओं सहित निजी नियोक्ताओं की दया पर विदेशी धरती पे छोड़ दिया जाता है। ऐसे हजारों कार्यकर्ता को गैरकानूनी एजेंटों द्वारा विदेशी नौकरियों के नाम पर लालच दिया जाता है और विदेशों में शोषण किया जाता है तथा उनकी मदद के लिए कोई सन्निकट उपाय भी नहीं किया जाता है। महिला कार्यकर्ता सहित विदेशी श्रमिकों की कुछ प्रमुख शिकायतें हैं- वेतन का भुगतान न करना, वैध को अस्वीकार करना श्रम अधिकार, लम्बे समय तक काम करने का समय, चिकित्सा का गैर प्रावधान और बीमा सुविधाएँ, नौकरानियों को छोड़ना आदि।
वर्तमान में, विदेश मंत्रालय का ई-माइग्रेट पोर्टल (एमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड ) पासपोर्ट, 18 देशों (अफगानिस्तान, बहरीन, इंडोनेशिया, इराक, जॉर्डन, कुवैत,लेबनान, लीबिया, मलेशिया, ओमान, कतर, सऊदी अरब, दक्षिण सूडान, सूडान,सीरिया, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन) में जाने वाले भारतीयों के लिए रोजगार के सम्बन्ध में डेटा जमा करता है। ईसीआर देशों में जाने वाले श्रमिक उत्पीड़न ,शोषण और दुरुपयोग के मामलों में महिलाएँ अधिक असुरक्षित पाई गई हैं। इसलिए, ईसीआर देशों में भारतीय महिला का कल्याण और संरक्षण विदेश मंत्रालय के फोकस क्षेत्रों में से एक हैं।
भारतीय महिलाएं मुख्य रूप ईसीआर देशों में या तो घरेलू सेवा श्रमिकों या नर्स के रूप में से कार्यरत हैं। वे यह भी जानते हैं कि महिला घरेलू कामगार हैं और इन देशों में शोषण के लिए विशेष रूप से कमजोर है जहां कल्याणऔर प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा आमतौर पर कमजोर होती है। मानव तस्करी, विशेषकर महिलाओं के संबंध में शिकायते के कई उदाहरण हैं। एक वर्ष में ऐसे 58 मामलों को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को भेजा गया है क्योंकि यह मानव तस्करी की जांच करने वाली अनिवार्य एजेंसी है।
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इन कमजोर महिला श्रमिकों की सुरक्षा और सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए एजेंट पर्यटक वीज़ा / ईसीएनआर के मार्ग का उपयोग करते हैं। अपने प्रयास में, इन 18 ईसीआर देशों के कांसुलर सेक्शन से वे मौन सहायता प्राप्त करने में भी सफल रहे हैं। इस स्थिति ने दोहरे वीजा के अजीब उपयोग को चलायमान बनाया है। भारत से प्रस्थान करते समय, प्रवासी श्रमिकों को उनके पर्यटक वीज़ा पर प्रवासियों के अधिकारियों द्वारा और गंतव्य पर उनके आगमन पर मुहर लगाई जाती है। रोजगार के उद्देश्य से वहां पहुंचने से पहले वे अपने पड़ोसी देश के रोजगार वीजा को चिपकाते हैं। हालाँकि, जब उन्हें उनके नियोक्ताओं द्वारा किसी भी शोषण या दुर्व्यवहार / उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तब वे कहीं जा नहीं सकते और किसी मदद की आशा भी नहीं कर सकते।
इन विषम परिस्थियों से उभारने के लिए भारत सरकार कई स्कीम चला रही है जैसे कि संयुक्त कार्य समूह जिसका उद्देश्य है श्रम और जनशक्ति के तहत संयुक्त कार्य समूह की स्थापना और सहयोग समझौता ज्ञापन / समझौते श्रम कल्याण की समीक्षा करने के लिए और और रोजगार से संबंधित मुद्दे के लिए एक तंत्र प्रदान करना। इसके अलावा, श्रम और जनशक्ति अधिकारियों के साथ भारतीय मिशनों / Psosts के बीच नियमित सहयोग है। इस तरह से मदद पोर्टल, इ-माइग्रेट, भारतीय समुदाय कल्याण कोष , प्रवासी श्रमिक संसाधन केन्द्र , प्रवासी संसाधन केन्द्र, भारतीय कामगार संसाधन केन्द्र, प्रवासी भारतीय बीमा योजना आदि सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं।
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महिला श्रमिकों के लिए आश्रय स्कीम के तहत आश्रय गृह कल्याण के लिए स्थापित किए गए हैं जहाँ आश्रय (बोर्डिंग और लॉज) प्रदान किया जाता है, पलायन के मुद्दे को निपटाने, गृह क्लेश संकट को निपटाने, चिकित्सा उपचार, स्वदेश वापसी की व्यवस्था की जाती है। संकट में फंसी महिला कार्यकर्ता इन से सम्पर्क कर सकती हैं और तदैव भारत को प्रत्यावर्तित किए जाने तक सभी सुविधाएँ प्रदान की जाती है।
सरकार की इन कोशिशों की सराहना अवश्य होनी चाहिए। लेकिन ये सुवधाएं केवल उन तक सीमित हैं जिन देशों में इनके रिकार्ड्स मौजूद है या जो जो देश हमारे साथ दोस्ती और सहयोग की अपेक्षा रखते है। कई मामलों में समस्याएँ दो से तीन देशों के बीच का हो जाता है जहाँ सभी संलग्न देशों से समन्वय करना एक दुरूह कार्य होता है। कितनी ही महिलाएँ मानसिक प्रताड़नाओं, दैहिक व्याभिचार और शारीरिक रूप से शोषित करके मार दी जाती हैं जिनके सम्बन्ध में पर्याप्त डेटा नहीं होता और जिसके एवज में उनके परिवार जन देश और विदेश दोनों जगह असाहय महसूस करते हैं। इस महिलाओं की सशक्तिकरण का रास्ता शैक्षणिक एवं आर्थिक प्रगतिवाद के माध्यम से ही निकल पाएगा।
कोई ऐसी व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए जिससे हर वक़्त उनके स्थिति की सही जानकारी मिलती रहे ताकि उन्हें किसी भी विषम परिस्थति से निकाला जा सके। एक महिला जो विदेश में काम करती है हमारे देश को पहचान देती है एवं देश की पहचान अक्षुण्ण रखने हेतु इनकी सुरक्षा किसी भी सरकार की नीतियों में प्रथम पंक्तियों में दर्ज की जानी चाहिए।
लेखक संसद भवन, नई दिल्ली में कार्यकारी अधिकारी हैं|
सम्पर्क- +919968638267, salilmumtaz@gmail.com
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