होली के कृत्रिम रंग बन सकते हैं, अस्थमा अटैक का कारण
- मोनिका अग्रवाल
खुशियों, भाईचारे का त्योहार होली फिर से लौट आया है। जहां एक ओर ज़्यादातर लोगों को यह त्योहार खूब लुभाता है, वहीं दूसरी ओर इस मौके पर अक्सर कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कई बार अस्थमा का कारण बन सकते हैं। परम्परा की बात करें तो हाली दहन के अगले दिन रंगों का त्योहार होता है, होली की पूर्व संध्या पर लोग एक दूसरे से मिलते हैं और होलिका दहन करते हैं, जिससे वातावरण में धुंए की मात्रा बढ़ जाती है। रात भर यह आग जलती रहती है, जिसके चलते हमारे आस-पासहवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और धुएं के कण सांस के साथ हमारे फेफड़ों में चले जाते हैं। अगले दिन होली पर इस्तेमाल किए जाने वाले कृत्रिम रंग कभी कभी त्वचा और आंखों के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं। आइए जानते हैंं क्यों जरूरी है इन कृत्रिम रंगों से दूरी।
कृत्रिम रंगों से अस्थमा अटैक होने का कारण
होली के रंग अस्थमा के मरीज़ों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इन रंगों से एलर्जी के कारण मरीज़ को अस्थमा का गंभीर दौरा आ सकता है। इसलिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान दें-
अपनी बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाएं, अपनी जांच करवाएं। अस्थमा अटैक की संभावना को देखते हुए अपनी दवा और एमरजेन्सी उपचार तैयार रखें। होली के कृत्रिम रंगों से दूर रहें| होली के लिए आमतौर पर सिंथेटिक कलर्स इस्तेमाल किए जाते हैं। इनमें से ज़्यादातर रंग बुरी गुणवत्ता के होते हैं। इनमें संदूषक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है। इनके कारण सांस की बीमारियों की संभावना की रोकथाम तथा सार्वजनिक सुरक्षा के लिए कोई विनियम मौजूद नहीं हैं। होली के सभी रंगों में 40 फीसदी से अधिक कण ऐसे होते हैं जो सांस के साथ भीतर चले जाते हैं। इससे अस्थमा का मरीज़ असहज महसूस कर सकता है या उसे अस्थमा का दौरा आ सकता है। इस समस्या से बचने के लिए अस्थमा के मरीज़ को होली के कृत्रिम रंगों से बचना चाहिए।
त्वचा की समस्याओं से बचने के लिए सतर्कता बरतें
होली केे रंगों के कारण त्वचा की कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे त्वचा पर रैश, एलर्जी, खुजली, खुश्की, जलन आदि। त्वचा रोग विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों को एटोपी या एलर्जिक र्हाइनिटिस की समस्या होती है, उनमें यह संभावना और भी अधिक होती है। ऐसे लोगों को हाइपोएलर्जिक कलर इस्तेमाल करने चाहिए और नीचे दिए गए सुझावों को ध्यान में रखना चाहिए।
अपनी दवा की अनदेखी न करें, इन्हेलर अपने पास रखें। अस्थमा के मरीज़ सूखे गुलाल से दूर रहें। इसके बजाए घर में बने रंगों का इस्तेमाल करें। पानी के गुब्बारे, सूखे रंग आदि से अपने आप को बचाएं। फेस मास्क पहनें और नाक एवं मुंह को ढक लें।
वे लोग जो बहुत अधिक संवेदनशील हों, उन्हें हाइपोएलर्जिंक या पीपीडी रहित रंगों का उपयोग करना चाहिए। ऐसे लोगों को अपनी त्वचा या बालों में सरसों का तेल नहीं लगाना चाहिए। नहाने के लिए पीएच संतुलित बाॅडी एवं स्कैल्प वाॅश का उपयोग करें। रंगों को एक ही बार में निकालने के लिए स्क्रब नव लगाएं, इससे त्वचा को ज़्यादा नुकसान पहुंच सकता है। होली खेलने के बाद कुछ सप्ताहों तक त्वचा पर खुशबु रहित प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करें। खास तौर बाहर जाने से पहले अच्छी सनस्क्रीन लगाना न भूलें।
अस्थमा के मरीज़ों को अपने पास इन्हेलर ज़रूर रखना चाहिए। अन्त में, अगर कोई परेशानी हो जाए तो नज़दीकी अस्पताल के एमरजेन्सी विभाग में तुरंत संपर्क करें।
डॉक्टर कर्नल विजय दत्ता, इंटरनल मेडिसिन एंड रेस्पिरेट्री मेडिसिन, इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर से बातचीत पर आधारित
लेखिका स्वतन्त्र पत्रकार हैं|
सम्पर्क- +919568741931, monikagarwal22jan@gmail.com