उत्तरप्रदेश

अब विकास दुबे के प्रेमी-गैंग की बाढ़

 

 लॉ एंड आर्डर के लिए चुनौती बने कुख्यात माफिया के एनकाउंटर के बाद समूचे गिरोह पर नकेल कसने की घोषणा होते ही विकास दुबे के प्रेमी-गैंग अचानक सक्रिय हो गये हैं। इनके तेज हमलों ने पिछले दिनों ‘टिड्डी-दल’ हमले की याद दिला दी। उत्तर प्रदेश में शायद यह पहला और अपने आप में अनोखा मामला है। कुख्यात अपराधी के ‘शुभ-चिन्तकों’ की बाढ़ हतप्रभ करने वाली है। इसके अलग-अलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। नयी तरह की बहस छिड़ी है। हार्डकोर पेशेवर बदमाश, समानान्तर सत्ता के संवाहक माफिया और उनके सिंडिकेट्स की कमर तोड़ने को शासन के कठोर कदम से डरे सहमे लोग हितैषी की भीड़ जुटाने लगे हैं।

 उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल व पश्चिमी इलाके में गैंगवार, कत्लेआम। आमजन में दहशत से लेकर खाज में कोढ़ बने खाकी-खादी का कॉकटेल जग जाहिर है। कुख्यात माफिया विकास दुबे भी उसी पैटर्न पर काम कर रहा था। जिस खादी-खाकी से पोषित हुआ उसी का जानलेवा बना। राज्यमन्त्री दर्जा प्राप्त भाजपा नेता संतोष शुक्ला को थाने में गोलियों से छलनी किया। कोई गवाह नहीं, लचर पैरवी के नाते कोर्ट से रिहा हुआ। कॉलेज प्रबन्धक को लबेरोड दिनदहाड़े मार डाला। ऑन ड्यूटी दरोगा को सरेआम थप्पड़ मारा।

आश्चर्यजनक यह कि पुलिस के कतिपय भ्रष्ट अफसरों और नेताओं का संरक्षण पाता रहा। हर दल के नेताओं का खास बनकर कानून व्यवस्था की छाती पर मूंग दलता रहा। शासन-प्रशासन मूकदर्शक और आमजन सबकुछ चुपचाप देखते रहे। दो-तीन जुलाई की रात तो गजब हो गया। नौ घन्टे पहले पुलिस को ईंट से ईंट बजा देने का खुला चैलेंज देकर डिप्टी एसपी, तीन दरोगा समेत आठ पुलिस वालों को मौत के घाट उतार दिया। उनके असलहे छीन ले गये। यह किसी ‘आतंकी’ हमले से कम नहीं था। पूरा देश हिल गया। जीरो टॉलरेंस का नारा देने वाली योगी सरकार और लॉ एंड आर्डर के मुँह पर तमाचा से कम नहीं था।

पाँच लाख के ईनामी और साठ गम्भीर अपराध के मुकदमे वाले मनबढ़ माफिया विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया। पीड़ितों ने थोड़ा राहत की सांस ली। घर वालों ने विकास से रिश्ता तोड़ने का ऐलान कर उसका चेहरा तक देखने से इंकार कर दिया। मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने एसआईटी का गठन कर मामले की जाँच के साथ ही उसके समूचे गिरोह, मददगारों को खोज निकालने के आदेश दिये हैं। स्वाभाविक है, इतने बड़े माफिया का ‘मायाजाल’ सैकड़ों लोगों के सहयोग से ही दूर-दूर तक फैला। शासन के कड़े रूख से ज्यादातर डॉन-माफियाओं के नये ‘रंगरूटों’ से लेकर खाकी-खादी में छिपे ‘घड़ियालों’ में खलबली मची है। चर्चा छिड़ने पर पत्रकार मोहम्मद अखलाक और रवि पटवा कहते हैं- यूपी में अपराधियों के कई ‘बड़े-ठीहे’ हैं। सख्ती पर बौखलाहट स्वाभाविक है। वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र कहते हैं- जाति-धर्म से जोड़कर दुर्दांत अपराधी के लिए माहौल बनाने का यह गलत प्रयास है।

 बेचारा ब्राह्मण, असुरक्षित ब्राह्मण, लगातार हत्याओं का शिकार बनता ब्राह्मण जैसी तमाम जुमलेबाजी अचानक बढ़ी है। सोशल मीडिया के नये-नये ‘क्रान्ति-वीर’ पैदा हो गये हैं। गौरतलब है कि विकास दुबे पर 30 में 28 कत्ल केवल ब्राम्हणों के करने का आरोप है। आठ पुलिस वालों की हत्या में भी कई ब्राह्मण रहे। गुंडई के बल पर विकास दुबे लोगों की जमीन जबरन कब्जाता रहा। आठ बीघे से दो सौ बीघे जमीन, मामूली मकान की जगह आलीशान महलनुमा कोठी, कई फैशनेबल गाड़ियों का मालिक। अस्सी करोड़ से लेकर एक सौ करोड़ रूपए का काला धंधा। दुबई, बैंकाक तक फैला सहयोगियों का नेटवर्क। हनक के बल पर प्रधान, जिला पंचायत सदस्य बनने-बनाने लगा। आसपास के गाँवों में मर्जी पर प्रधान, बीडीसी चुने जाते रहे।

जानकारों का कहना है कि इसके इशारे पर ही इलाके से सांसद और विधायक तक बनने लगे। ऐसे में तकरीबन सभी दल के नेता इसके करीबी बने। ये इसकी लोकप्रियता नहीं, दबंगई और आतंक का ‘प्रताप’ रहा। 1990 से 2020 करीब तीस साल विकास दुबे लगातार अपराध दर अपराध करता रहा, पवित्र खाकी-खादी में छिपे कतिपय ‘घड़ियाल’ इसे मदद करते रहे। दो जुलाई की रात दबिश के प्लान की सूचना थाने से देकर किसने गद्दारी की? सीओ देवेंद्र मिश्र ने 14 अप्रैल को तत्कालीन एसएसपी को चिट्ठी लिखकर कुछ पुलिसकर्मियों की इस माफिया के लिए कार्य करने और उसे मदद पहुँचाने की शिकायत की थी। एक्शन छोड़िए, वो चिट्ठी ही एसएसपी ऑफिस से गुम हो गयी। इसकी भी जाँच शुरू है। किसकी करतूत से दुर्दांत विकास दुबे को सरकारी गनर मिला रहा?

 पुलिस सूत्रों की मानें तो जाँच के दायरे में कई दलों के नेता, कई जिलों के हिस्ट्रीशीटर, पेशेवर बदमाश जाँच के दायरे में हैं। और यह भी कि, शासन के कड़े रूख के चलते कई बदमाश पकड़े जा रहे हैं। कई एनकाउंटर में ढेर हो रहे हैं। कानून के लिए चुनौती बने इन दरिंदों के लिए सहानुभूति दिखाने वाले अचानक सक्रिय हो गये हैं। ये शायद भूल गये कि अपराधियों की कोई जाति नहीं होती। कोर्ट में पेशी, मुकदमों की दुहाई देने वाले ये मत भूलिए कि पेशी, गवाही और सजा के चक्कर में कितने गुण्डे संसद-विधानसभा के माननीय बन गये।

मंचों पर माला, जिन्दाबाद, पुलिस सिक्योरिटी, उनको अजेय और समाज का हीरो बना गये। जेल में बन्द कई ‘बाहुबली’ वहीं से ‘साम्राज्य’ चला रहे हैं। अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह सरीखे दर्जनों बाहुबली नजीर हैं। ये पकड़े गये, जेल भी गये। पर, कौन सा राज उगलवा कर पहाड़ उलट दिया। कितनी सरकारें पलट गयीं? नाम न छापने की शर्त पर प्रदेश के एक पूर्व डीजीपी कहते हैं- ये माफिया-डॉन के पकड़े या मुठभेड़ में मारे जाने पर बिरादरी के बहाने समर्थन जुटाने का नये ढंग का ‘अराजक-प्रयोग’ है। लोग सवाल उठाने लगे हैं-ये गुण्डे-बदमाशों का साथ देकर उनके जैसे लोगों को बढ़ावा देना तो नहीं?    

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शिवा शंकर पाण्डेय

लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और नेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट आथर एंड मीडिया के प्रदेश महामंत्री हैं। +918840338705, shivas_pandey@rediffmail.com
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