भाजपा के ‘कल्याण’ और सियासत के ‘सिंह’
उत्तर भारत की राजनीति में जन नायक, हिन्दू युवा सम्राट, मजबूत संकल्प वाले कुशल प्रशासक, कड़ा निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री और बाबरी विध्वंस की जिम्मेदारी खुद पर लेकर सत्ता को ठुकरा देने वाले कल्याण सिंह। कल्याण सिंह एक और उनकी अलग अलग भूमिकाएं अनेक। यूं ही कोई कल्याण सिंह नहीं बन जाता। कल्याण सिंह बनने के लिए बहुत बड़ा और मजबूत जिगरा चाहिए। मंच पर तुकबंदी और मजबूत तर्क वाले भाषण पर हथेली लाल हो जाने तक तालियां बजवाकर, श्रोताओं को लहालोट करने वाले कल्याण सिंह, गांव, कस्बा – वार्ड और जिला-प्रदेश तक मजबूत कार्यकर्ता तैयार करने वाले कल्याण सिंह।
सायकिल-पोस्ट कार्ड युग में रातभर कार्यकर्ताओं के संग जागते – मेहनत करते पार्टी की मजबूत व्यूह रचना करते कल्याण सिंह। भाजपा को मजबूत किला बनाने में खुद को खपा देने वाले कल्याण सिंह। राम मंदिर आंदोलन में कारसेवा के दौरान बतौर मुख्यमंत्री खुद को नींव के ईंट की माफिक खपा देने और सत्ता को हंसी – खुशी अलविदा कह देने वाले कल्याण सिंह। जन नायक और हिन्दू हृदय सम्राट तक उपाधि हासिल करने वाले रामभक्त कल्याण सिंह। बाबरी ढांचा विध्वंस के ज्यादातर आरोपी नेताओं के बरी होने और एकमात्र सजायाफ्ता कल्याण सिंह। एक कल्याण सिंह की अनेक अलग-अलग भूमिकाएं।
नौ बार विधायक, तीन बार मुख्यमंत्री, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे दिग्गज नेता कल्याण सिंह का 21 अगस्त की रात करीब नौ बजे लखनऊ अस्पताल में आखिरकार निधन हो गया। वे पिछले दो महीने से अस्पताल में भर्ती थे। कल्याण सिंह के निधन पर राज्य में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है। भाजपा ही नहीं, सियासत के क्षेत्र में कल्याण सिंह सरीखा नेता जल्दी खोजे नहीं मिलेगा।
छह जनवरी 1932 को अलीगढ़ जिले के एक साधारण गांव में जन्मे कल्याण सिंह 1967 में पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। खुद को लोकप्रिय और सफल नेता साबित किया। नौ बार विधायक और तीन बार मुख्यमंत्री बने। जनसंघ से लेकर भाजपा तक के लम्बे सियासी सफर में कल्याण सिंह की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में भाजपा विधायक रहे राष्ट्रीय परिषद सदस्य प्रभा शंकर पाण्डेय बताते हैं कल्याण सिंह के साथ रहकर कई बार ऐसा लगा कि उनमें कार्य करने का गजब का जज्बा है, लगातार मेहनत करते कल्याण सिंह को थकते और विषम परिस्थितियों में भी निराश होते कभी नहीं देखा गया। राम जन्मभूमि आंदोलन में कल्याण सिंह के साथ गिरफ्तार होकर जेल जा चुके पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी प्रभारी समेत पार्टी संगठन में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रभा शंकर पाण्डेय बताते हैं कि 1989 के आसपास जब उत्तर प्रदेश में भाजपा का विस्तार होने लगा था, तो कल्याण सिंह प्रदेश की राजनीति के केंद्र में आ गए।
भाजपा के लिए ये वह दौर था, जब पार्टी बनिया – ब्राम्हण व शहरी क्षेत्र से बाहर निकल अपना विस्तार पाने की ओर अग्रसर थी। कलराज मिश्रा और कल्याण सिंह की जोड़ी यूपी की भाजपा में मुकम्मल जगह बना चुकी थी। पोस्टकार्ड और साइकिल युग में पार्टी को मजबूती के साथ खड़ा किया। वे अटूट मेहनत करते। भाजपा को बनिया ब्राह्मण और शहरी क्षेत्र की पार्टी के बजाय उसे विस्तारित करके सर्वग्राही बनाने की कोशिश में जमकर मेहनत किया। कल्याण सिंह कार्यकर्ताओं को पोस्टकार्ड बहुत लिखते थे। तब फोन, मोबाइल, कंप्यूटर जैसे संचार संसाधन नहीं थे। हर जिले में महज कुछ ही दर्जन गिने-चुने स्थानीय नेता -समर्थक हुआ करते।
उस समय एक गीत भी कार्यकर्ता – समर्थकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ – देश की खुशहाली का रास्ता गांव गली गलियारों से… यह गीत नारे की तरह गाया जाता। व्यूह रचना और मेहनत का असर दिखने लगा था। पढ़े-लिखे शहरी लोगों के अलावा किसान- मजदूर, मध्यम वर्ग के लोग भाजपा से जुड़ने लगे थे। कल्याण सिंह ने गांव, मोहल्ला और कस्बाई क्षेत्रों का दौरा- बैठक तेज किया। विधानसभा क्षेत्र को सेक्टरों में बांटकर कार्य किया। कार्यकर्ताओं के बीच डायरी, पेन और पत्रक संस्कृति को असरदायक बनाकर भाजपा को मजबूत दल बनाने में अप्रतिम योगदान दिया। यूपी में पहली बार 1991 में भाजपा सरकार बनी तो प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव कल्याण सिंह को हासिल हुआ।
सख्त प्रशासन और बेबाक निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री की पहचान बनी। परीक्षा में अधाधुंध नकल पर अंकुश लगाने के लिए नकल अध्यादेश लाए। एक – एक करके चार विधायकों को गिरफ्तार कराके जेल भेजने की घटना ने लोगों को चौंका दिया। नकल अध्यादेश संबंधित आदेश को लागू करने में चालबाजी दिखाने वाले एक मंत्री को बर्खास्त करके सुर्खियों में आ गए। जोड़ तोड़ के सियासी दौर में ऐसा रिस्क कल्याण सिंह जैसे मजबूत संकल्प और इरादा रखने वाले लोग ही ले सकते थे। मौत तो ध्रुव सत्य है, उसका आना भी तय है, पर सवाल यह है कि कल्याण सिंह सरीखे सियासी हैसियत वाले नेता को हम सब कहां से लाएंगे। इस खालीपन को किस तरह से भरा जा सकेगा?