- राजेन्द्र रवि
भारत और दुनिया के एक बड़े भूभाग में ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के लिए आई थी। आगे चलकर उसी के गर्भ से इन देशों में ब्रिटिश हुकूमत का उदय हुआ। उस काल-खण्ड में ब्रिटिश हुक्मरान अपने द्वारा विकसित किए जा रहे ढाँचागत निर्माण और विकास को स्थानीय लोगों और समाज की उन्नति के लिए अपना योगदान ही कहते थे। उस वक्त की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार अपनी योजनाओं की घोषणा, निर्माण और अमल की सूचनाएँ और जानकारियाँ सार्वजनिक तौर पर टुकड़े-टुकड़े में साझा करती थी ताकि इसके तात्कालिक और दूरगामी परिणामों एवं प्रभावों के बारे में कोई एकीकृत तथा सामूहिक आकलन कर पाना मुश्किल हो और तथाकथित विकास की इन योजनाओं के खिलाफ कोई मुखर प्रतिरोध शुरू न हो जाए। इसके बावजूद धीरे-धीरे अंग्रेजों की यह रणनीति जग-जाहिर होने लगी और इसका संगठित विरोध भी होने लगा। कालांतर में यही विरोध गुलामी से मुक्ति का आन्दोलन बना। उस समय इस आन्दोलन में भारतीय उद्योगपतियों और व्यापारियों का भी खुला सहयोग और समर्थन था।
लेकिन जनता के साथ उनके सहयोग और समर्थन का यह काल बहुत लम्बा नहीं चला। आजादी की एक शताब्दी पूरा होने के पहले ही यहाँ के पूँजीपतियों ने सामूहिक रूप से अपने को ईस्ट इंडिया कंपनी के चाल-चरित्र में रंग लिया ।
इसमें उन्हें देश के शासक और प्रभु वर्ग का भरपूर समर्थन हासिल हुआ। वैश्वीकरण और निजीकरण के इस दौर में नवउदारवादी राज्य ने सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय अन्याय को चरम पर ला दिया है। हर पूँजीपति की एक सी कहानी है, सिर्फ नाम और खानदान अलग-अलग हो सकते हैं । हम यहाँ झारखण्ड के संदर्भ में एक ख़ास पूँजीपति और उसके सपनों की परियोजना का आकलन करते हुए बात करेंगे। उस पूँजीपति का नाम है गौतम अडानी। इनके पास कम्पनियों का अंबार है, इनकी कम्पनियों का जाल-संजाल विस्तृत है। हर काम के हकदार सिद्ध कर लेते हैं ये। ये हैं भारत के वैश्विक पूँजीपति।
दुनिया के हर उस इलाके में दखल है जहाँ से संसाधनों को लूटा-खसोटा जा सकता है। ऐसी ही लूट-खसोट वाली मेहनत की कमाई से जमा अकूत संपत्ति के कारण इन्हें दुनिया के दस संपत्तिशाली लोगों में गिना जाता है। इन्होंने ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खदान को येन-केन-प्रकारेण हथियाया है। इसे हथियाने में भारत के प्रमुख सेवक ने अपनी सेवा दी है। इन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अगले 60 वर्ष तक 2.6 बिलियन टन कोयला खनन का अधिकार प्राप्त किया है। यह ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ दुनिया का नंबर एक ख़नन-क्षेत्र माना जाता है। अडानी यहाँ से कोयला निकाल कर दुनिया के दूसरे हिस्से के साथ-साथ भारत भी लाएँगे। इन्होंने कोयले की आवाजाही सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध बन्दरगाह को अपने अधिकार में लिया है, जो निर्बाध रूप से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है। यह भी सुनिश्चित किया गया है कि ऑस्ट्रेलिया से आने वाला अधिकांश कोयला भारत में आए। इसकी तैयारी के लिए इन्होंने भारत के कई राज्यों के पुराने बन्दरगाहों पर कब्जा किया है या नए बन्दरगाहों के निर्माण का अधिकार प्राप्त किया है । इन राज्यों में गोवा, गुजरात, आंध्रप्रदेश, केरल और झारखण्ड शामिल हैं। आयातित कोयले का ज्यादा इस्तेमाल वह खुद अपने पॉवर प्लांटों में करेंगे और बाकी दूसरी कम्पनियों को बेचेंगे।
आज दुनिया में कोल खनन और कोयले से पैदा होने वाली ऊर्जा का विरोध हो रहा है और कई देश इसके उपयोग को बन्द कर रहे हैं या प्रतिबंधित कर रहे हैं, क्योंकि इससे पर्यावरणीय ऊष्मा बढ़ती है और जलवायु-परिवर्तन की समस्या पैदा होती है। ऑस्ट्रेलिया कंजर्वेशन फाउंडेशन ने अडानी के कोल खनन को कानूनी चुनौती भी दी है। अडानी का गोड्डा पॉवर प्लांट इसी वैश्विक पूँजीनिवेश और संसाधन लूट की कड़ी का हिस्सा है और साहेबगंज पोर्ट उस तक पहुंचने का सुगम मार्ग। अडानी की इन दोनों परियोजनाओं का स्थानीय स्तर पर कड़ा प्रतिरोध हो रहा है।
लेकिन झारखण्डी जनता द्वारा चुनी गई सरकार अडानी के आगे-पीछे खड़ी है और उनकी रक्षा में सशस्त्र बल और प्रशासन का पूरा तन्त्र खड़ा है। यही वजह है कि निहत्थी जनता लड़ते हुए अपने को अकेला पाती है। अभी-अभी अडानी के गोड्डा पॉवर प्लांट को झारखण्ड सरकार ने ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ के रूप में मंजूरी दी है। इस विशेष क्षेत्र को मंजूरी देते हुए सरकार ने बहुत ही गर्वपूर्वक कहा, “इस सेज से उत्पादित होने वाली संपूर्ण बिजली का निर्यात पड़ोसी देश बांग्लादेश में किया जाएगा, जिससे इस पूरे इलाके का विकास होगा।” उसने आगे कहा, “अडानी पॉवर प्लांट के विशेष आर्थिक क्षेत्र बनने से अन्य उद्योगों का मार्ग खुलेगा। साथ ही साथ विशेष आर्थिक क्षेत्र के अन्दर लगने वाले सभी उद्योगों पर अगले कुछ सालों के लिए सभी प्रकार के टैक्सों पर छूट होगी और सभी प्रकार की सरकारी सहायता पूर्ववत जारी रहेगी।”
आज झारखण्ड की सरकार देश और दुनिया के पूँजीपतियों के लिए ‘मोमेंटम झारखण्ड” का मेला लगाती है जहाँ झारखण्ड के संसाधनों की लूट के लिए बोली लगवाई जाती है और जो लोग इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित करके जेलों में बन्द कर दिया जाता है। दूसरी ओर आदिवासियों के लिए सुरक्षा कवच बने कानूनों को भी पूँजीनिवेश के नाम पर पूँजीपतियों के हित में बदला जा रहा है।
चौथे ‘मोमेंटम झारखण्ड’ के लिए पूरे राज्य के साथ-साथ देश के कई दूसरे इलाकों में ऐसा प्रचार-प्रसार किया गया, मानो इससे झारखण्ड के जन-समुदाय का कायाकल्प होने वाला है। राँची की सड़कों को दुल्हन की तरह सजाया और सँवारा गया। ऐसे ही समिट में अडानी ग्रुप ने गोड्डा में 1600 मेगावाट कोयला-आधारित अल्ट्रा-मेगा-सुपर क्रिटिकल पॉवर प्लांट और साहेबगंज में गंगा नदी पर पोर्ट स्थापित करने की घोषणा की। झारखण्ड में लगाई जा रही अडानी की दोनों परियोजनाओं से स्थानीय समुदायों को रत्तीभर भी फायदा नहीं है, जबकि दोनों परियोजनाएँ उन्हीं की धरती पर और उनके ही संसाधनों पर कब्जा कर लगाई जा रही हैं। ये दोनों परियोजनाएँ वैश्विक स्तर पर निगमीकरण का हिस्सा हैं, जिनमें स्थानीय और दूसरे मुल्कों के संसाधनों का दोहन होगा और कार्पोरेट को फायदा ही फायदा|
लेखक इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड सस्टेनेबिलिटी (आईडीएस) के निदेशक और जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के संयोजक हैं|
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