कोरोना काल में बिहार की अर्थव्यवस्था
- अनूप कुमार
यह लगभग तय है कि दुनिया कोरोना काल के पश्चात पूर्व की भांति नहीं रह पाएगी। बिहार की अर्थव्यवस्था पर भी उसका व्यापक प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। इस प्रदेश की अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्रों के पचास प्रतिशत परिवार का कोई न कोई राज्य के बाहर पलायन कर गया है। ऐसे में इन प्रवासी मजदूर में से बड़ी संख्या में बिहार वापस लौट रहे हैं। तब ग्रामीण अर्थव्यवस्था का स्वरूप क्या होगा, यह सोचनीय विषय है।
सबसे पहले प्रवासी मजदूरो द्वारा भेजे जाने वाली राशि लगभग शून्य हो जाएगी और व्यापक गरीबी का सामना होगा। यह एक चिन्ताजनक अवस्था होगी। कृषि क्षेत्र की बड़ी समस्या यह है कि खेतीहर मजदूरों का अभाव है और अब, जब प्रवासी मजदूर वापस लौट रहे हैं और निकट भविष्य में वापस पलायन की सम्भावना भी कम है यह समस्या दूर हो सकती है। लेकिन सस्ते मजदूरों की उपलब्धता बढ़ने पर न्यूनतम मजदूरी कानून का पालन कराना होगा। ऐसे में राज्य सरकार पर बड़ी जिम्मेदारी होगी।
गौरतलब है कि सरकार के पास एक सुनहरा अवसर है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश के द्वारा इसे पुर्नजीवित करे। बड़े पैमाने पर खाद्य प्रसंस्करण, वानिकी, मछली पालन और पशुपालन तथा सामाजिक-आर्थिक पूँजी के निर्माण से कृषि क्षेत्र को पुर्नजीवित करें। इतना ही नहीं सड़क भण्डारण गृह, बाजार, एवं साख की उपलब्धता बढ़ा कर ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली लायी जा सकती है।
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इतना ही नहीं कम ब्याज और कृषि ऋण की सुलभ उपलब्धता को बढ़ा कर किसानों की स्थिति सुधारी जा सकती है। कृषि क्षेत्रों में स्थायी निवेश के द्वारा पूँजी निर्माण किया जा सकता है। यह सरकार ही कर सकती है। यहाँ पर राज्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी। क्योंकि निजी निवेश का माहौल नहीं है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़े निवेश का असर शहरी क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। बाजार बढ़ेगा और लाभ बढ़ेगा और माँग में बढ़ोत्तरी होगी। ऐसे में शहरी क्षेत्रों में विनिर्माण रीयल स्टेट आदि में व्यापक विकास होगा और इस क्षेत्र पर भी असर पड़ेगा। खुशहाल गाँव और विकसित शहरी क्षेत्र सम्पूर्ण बिहार की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाएगा।
स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बढ़े निवेश की आवश्यकता है। चिकित्सकों की कमी और स्वास्थ्य उपकरणों की कमी को अतिशीघ्र दूर करने की आवश्यकता है। इसमें बड़े निवेश से कोरोना काल के बाद भी स्वास्थ्य सेवाएँ सुधरेंगी। इस महामारी के बहाने ही सही स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित हुआ है। यह कोरोना काल के बाद भी जारी रहना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों और स्वास्थ्य उपकरणों की भारी किल्लत है। नगरों में भी सुविधा सीमित है। इसे दूर करने पर विशेष बल होना चाहिए। स्वास्थ्य के प्रति आम जागरूकता छुपा हुआ वरदान है। इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तन होगा। इलेक्ट्रानिक सुविधाएँ एवं प्रशिक्षण से शिक्षा क्षेत्र में बदलाव आया है। बिहार में खासकर परम्परागत उच्च शिक्षा संस्थाओं में छात्रों की उपस्थिति बहुत कम हो गयी थी। अब जब इलेक्ट्रॉनिक एवं ऑन-लाईन शिक्षा का विकास हो रहा है। इस प्रवृति में कमी होगी। उससे शिक्षा का व्यापक प्रचार प्रसार सम्भव है और इससे सैक्षिणक संस्थानों में नयी उर्जा का संचार हुआ है। यह संजिवनी का काम करेगा।
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प्राथमिक शिक्षा के लिए भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की उपलब्धता और प्रयोग के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। शहरों के निजी विद्यालय इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी सरकार को आगे आना होगा। इस क्षेत्र में भी गहन विचार मन्थन होना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक परिवर्तन होना चाहिए। कम से कम कोरोना के बहाने ही सही सबको खाद्य सामाग्री उपलब्ध करायी जा रही है। आगे इस अनुभव का लाभ मिलना चाहिए। सरकारी मशीनरी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही है। पुलिस से लेकर आम कर्मचारी इसमें लगाए गये हैं। अब यह पूर्वाभ्यास भविष्य में प्रयोग के लिए उदाहरण बनेगा।
आम आदमी तक सरकारी मदद पहुँचाने में ‘‘जन-धन खाता‘‘ और आधार कार्ड बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। अतः भष्ट्राचार को दूर करने के लिए लोगों में जागरूकता आएगी और सरकारी योजनाओं की टारगेटिंग बढ़िया हो सकेगी। पहले बिहार में सरकारी योजनाओं की आपूर्ति में व्यापक भष्ट्राचार देखने में आया है। इस पर रोक लगेगी और सुशासन का उद्देश्य पूरा होगा। प्रयोगधर्मिता बढ़ेगी और भष्ट्राचार कम होगा।
सस्ते मजदूर और बाजार के विस्तार के साथ सुशासन और बेहतर कानून व्यवस्था से निवेश आकर्षित होगा इसमें आम आदमी को ज्यादा लाभ होगा। रोजगार बढ़ेगा और प्रभावी माँग में बढ़ोत्तरी होगी जिसके द्वारा मन्दी से उबरा जा सकेगा। यह तय है कि लॉकडाउन और सामाजिक दूरी से आनेवाली मन्दी से उबरने के लिए और रिकवरी के लिए राज्य द्वारा निवेश ही एक मात्र उपाय है। यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए।
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तीसा की महामन्दी से निकलने के लिए विश्व अर्थव्यवस्था में किये गये उपक्रम प्रयोग और सैद्धान्तिक व्यावहारिक अध्ययन से लाभ उठाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में जे.एम. कीम्स के विचार बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे निवेश द्वारा व्यय योग्य आय बढ़ेगी मन्दी भी समाप्त होगी। रोजगार जाने और माँग कम होने से बाजार का आकार घटेगा और निवेश नहीं होगा। निजी निवेश की सम्भावना कम होगी ऐसे में राज्य द्वारा निवेश ही एक मात्र उपाय है।
एक सम्भावना यह भी है कि लॉकडाउन खुलने के पश्चात दबी हुई माँग बाहर आएगी और निवेश का महौल बनेगा। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो सरकार को वैकल्पिक कार्यक्रम तैयार रखना चाहिए अन्यथा भारी बेरोजगारी की समस्या बनेगी।
कोरोना महामारी के लम्बे समय तक बने रहने की सम्भावना है। एसे में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भरता कम होनी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय निवेश भी कम होगा। चीन के प्रति उभरे व्यापक आक्रोश का लाभ भी भारतीय अर्थव्यवस्था को हो सकता है। इसके लिए कूटनीतिक प्रयास तेज होना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय (बहुराष्ट्रीय) कम्पनियाँ चीन से अपना निवेश हटा देगी तो भारत उनके लिए एक लाभप्रद क्षेत्र हो सकता है। इसके लिए आर्थिक फोरम और राजनीतिक फोरम दोनों पर प्रयास होने चाहिए।
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यह महामारी जहाँ विश्व के लिए जिसमें भारत भी सम्मिलित है एक अभिशाप बन कर आया है, वहीं यह भारत के लिए विकास के सुनहरे अवसरों को भी लाने वाला है। इसलिए इसे नहीं चूकना चाहिए। जब विदेशी निवेश भारत आएगा तब राज्यों में उसे अपने यहाँ ले जाने के लिए जबरदस्त प्रतियोगिता होगी। बिहार इसमें पिछड़ न जाए इसके लिए हर सम्भव प्रयत्न और योजनाबद्ध प्रयास आवश्यक होगा ही, राजनीतिक स्तर पर भी सचेत रहने की जरूरत होगी।
हाल के वर्षों में भौतिक,आर्थिक और मानवीय पूँजी तैयार करने के लिए किये गये प्रयासों का लाभ उठाने का सही समय अभी है। नियति ने अवसर दिया है उसका उचित लाभ उठाना या न उठाना हमारे उपर निर्भर करता है। मैं समझता हूँ कि शासन और सरकार के लोग इन बातों को समझते होंगे और नीति निर्धारकों द्वारा इसपर मन्थन भी चल रहा होगा। इसमें जितनी गम्भीरता और तत्परता बरती जाएगी उतना ही हमारे विकास की सम्भवना प्रबल होगी।
लेखक जे.आर.एस.कॉलेज, जमालपुर (मुंगेर विश्वविद्यालय) में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर है।
सम्पर्क- +919430005251
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