सामयिक

कोरोना का विश्वव्यापी प्रभाव

 

कोरोना संक्रमण से सम्बन्धित भयावह दृश्य जब वुहान से आने शुरू हुए, हम भयभीत तो हुए, किन्तु प्रथमदृष्टया सभी ने यही सोच अपनायी कि अभी तो दिल्ली दूर है! पर बहुत जल्द ही ढेरों महत्त्वपूर्ण समाचारों को परे खिसकाकर वुहान लाल सुर्खियाँ समेटकर मीडिया में जमकर बैठ गया। जमीन पर इधर-उधर पड़े रोते-कलपते-तड़पते लोग। घरों को पाटियों से सीलबन्द करते चीखते-चिल्लाते नागरिकों को जबरन घरों में ठूँसते कर्मचारी। संक्रमितों-सन्दिग्धों को घसीट-घसीटकर एम्बुलेंस में बिठाती पुलिस। मारक इबोला के दृश्य पुनर्जीवित हुए जा रहे थे। यह कैसी आपदा है भाई ? मरीज से तो सहृदयता, संवेदना, सहानुभूति के साथ पेश आना चाहिए, इसके उलट ऐसी बर्बरता? वुहान शहर की वह लाल-लाल सेटेलाइट की तस्वीर भी आयी, जिसमें हजारों शवों को एक साथ जलाए जाने की अपुष्ट खबरें भी वायरल हो रही थीं। चीन ने वायरस की प्रथम सूचना देने वाले डॉक्टर  को प्रतिबन्धित किया, पत्रकारों को गायब किया, किन्तु सोशल मीडिया के माध्यम से वुहान की डरावनी सच्चाई बाहर आती गयी  और देखते ही देखते वायरस भी चीन की हदें तोड़कर सम्पूर्ण  विश्व में जा पहुँचा।

China Research Anti viral drug Favipiravir effective in treating ...

महाशक्तिशाली देश अमेरिका, जापान, जर्मनी, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन से लेकर भारत तक। सर्वत्र हाहाकार। वायरस बड़ा समदर्शी है, यह भेदभाव नहीं जानता। इससे रिक्शेवाला संक्रमित होता है तो ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री  भी स्वयं को बचा नहीं पाते। अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, बलशाली-शक्तिहीन, बच्चे-बड़े-बूढ़े – कोई क्राइटेरिया नहीं। उसका दिल जिस पर आएगा, उसके फेफड़े पर वह कब्जा जमाएगा। इतिहास गवाह है कि हर सदी एक महामारी झेलती ही है। अभी, कोरोना के अवतरण की वजहें चाहे जो हों, विस्तारवादी चीन की बदनीयती, लैब से फिसलकर भागा भस्मासुर अथवा चीनियों की सर्वभक्षी घिनौनी खाद्य-आदतें। करनी किसी की, भुगत रहा है सम्पूर्ण  विश्वग्राम। परमाणु बम का भय बौना हो गया है, नन्हा वायरस सबकी जान पर बन आया है।

मैं अब समस्या पर नहीं, समाधान पर बात करना चाहूँगी। चूँकि कोरोना नवागत है, दवा आने में वक्त लगेगा। ऐसे में सारे देश अपने-अपने तरीके से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। आज सबसे ज्यादा त्रस्त अमेरिका है, वहाँ  लाखों के संक्रमित होने की आशंका है। अमेरिका की भर्त्सना  हो रही है कि उसने समय रहते सार्थक कदम नहीं उठाये।  ट्रम्प अपनी आर्थिक उन्नति ही साधते रहे, मामले को हल्के में लेते रहे। परिणाम सामने है। स्वीडन लॉकडाउन न लगाने पर अड़ा है, यहाँ  संक्रमितों की संख्या 10 हजार पार कर गयी है, ट्रम्प ने चेताया तो कहा कि -‘हम निपट लेंगे।’स्वीडन ‘हर्ड कम्युनिटी’ पर भरोसा करता है।Sweden adopts a hard line: 80,000 refugees will be repatriated ...

हर्ड कम्युनिटी का सिद्धान्त  यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों में वायरस फैलने से लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और वायरस कमजोर पड़ता जाता है, उनके मुताबिक वहाँ  सार्स से इसी तरह लड़कर, उसे पराजित किया गया था। भारत जैसे जनसंख्या और गरीब बहुल देश में इस प्रकार के उपाय तो कारगर हो ही नहीं सकते और जिस देश में गरीबी-भुखमरी-कुपोषण चरम पर हो, इम्यूनिटी पॉवर की अपेक्षा ही व्यर्थ है। ऐसे में भारत ने चाइना मॉडल को ही अपनाया और लॉकडाउन किया। हालाँकि यह भी खेद की बात है कि इसमें देर की गयी। विदेश से आने वाले शख्स साक्षात् कोरोना-अवतार बनकर देश के कोने-कोने तक पहुँच चुके थे। दूसरी तरफ रात्रि 8 बजे बिना किसी पूर्व-सूचना, अवधि की छूट दिये बगैर किया गया लॉकडाउन श्रमवीरों-गरीबों-वंचितों पर बहुत भारी पड़ गया। सर पर सन्दूक, हाथों में पोटली, गोद में नन्हें बच्चे और चिलचिलाती धूप में बिलखता पैदल चलता परिवार। घर जाने की मजबूरी।महानगरों और महाराष्ट्र के कई शहरों ...

1947 ने मानों सड़कों पर पुनर्जन्म ले लिया हो। अत्यन्त हृदय विदारक दृश्य। जब मीडिया ने इन्हें आवाज दी, सरकार जागी। वाहनों की व्यवस्था की गयी, माचिसों की तीलियों की तरह बसों में ठूँसा गया। हम सोशल-डिस्टेंसिंग, फिजिकल डिस्टेंसिंग को शब्दशः मानते हुए घर में बैठे रहे और ये? कोरोना-प्रूफ है न! इन्हें क्या आवश्यकता सुरक्षा की। पर व्यवस्था को यह समझना होगा कि वायरस अभय है, वह यदि इन गरीबों तक पहुँचा  तो सिंहासन तक भी सहजता से पहुँचेगा। कई देशों के मन्त्री , नेता, अभिनेता, खिलाड़ी आदि आ तो चुके हैं चपेट में। सबसे ज्यादा जरूरी है गाँव -गाँव  तक टेस्टिंग की। टेस्ट निःशुल्क हो। लॉकडाउन में सबसे बड़ी समस्या धनहीन वर्ग की ही है। देश में तालाबन्दी  से हम कुछ हजार आदमियों को बचा लेंगे पर भुखमरी कहीं लाखों को न निगल जाए।

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सरकार को अपना अनाज भण्डार खोलना चाहिये। हमारे पास अनाज अकूत है। हर वर्ष टनों अनाज की बोरियाँ पहाड़ की शक्ल में खुले मैदानों में दिखती हैं। क्या होता है उनका? अपर्याप्त गोदाम और वर्ष भर गाहे-बगाहे होने वाली बारिश इन्हें नष्ट कर ही देती है। वोट के लिए सरकारें जब दो रूपये में एक किलो चावल उपलब्ध करवा सकती हैं, आपदा के वक्त निस्वार्थ सेवा क्यों नहीं? गरीब नारायणों की अनदेखी भारी पड़ सकती है। सूरत कपड़ा मिल के मजदूरों ने जो आगजनी की, वह तो नमूना मात्र है। जिनके पेट खाली हों, उनसे आप व्यवस्था-सिद्धान्त  पालने की उम्मीद करें, इससे बड़ी मूर्खता और कुछ नहीं। सरकार राहत पैकेज दे रही है, यह जिस भी शक्ल में हो, मॉनिटरिंग अनिवार्य है। भारत जितना उदार है, कठोरता में भी कम नहीं। यहाँ  अकाल, सूखा, बाढ़ सिर्फ मौत नहीं लाते, कइयों के लिए यह बिन माँगे ‘उत्सव’ हैं। अवसर हैं। मालामाल होने के।Coronavirus : Minister Thomas Schaefer Commits Suicide In Germany ...

एक मार्के की बात यह कहना है कि हमारा देश अपने बजट में स्वास्थ्य को निचले पायदान पर रखता है। कोरोना जैसी महामारी से स्वास्थ्य-व्यवस्थाओं, संसाधनों की पोल खुलती है। खुदा न खास्ता, भारत में यदि वुहान जैसी स्थिति पैदा होती, हम कैसे निपटते ? न अस्पताल, न डॉक्टर, न नर्स। संसाधनों की भारी कमी। कोरोना से पहले इबोला, सार्स, मर्स, जीका, एड्स जैसे मारक वायरस आ चुके। कोरोना अन्तिम  नहीं है। यह सिलसिला जारी रहने वाला है। हमारी तैयारी क्या हो ? निःसन्देह सरकार को अब हेल्थ में ज्यादा बजट आबंटित करना चाहिये। चिकित्सा- संसाधनों में इतनी बढ़ोतरी की जाए कि हम आपदा से निपट सकें।

Health Care Sector Is Untouched In Budget 2019 - Budget 2019 ...

डिफेंस, सरकार की सूची में ज्यादा महत्त्व पाता रहा है, मिलना भी चाहिए, किन्तु मानकर चलिए कि हाल के बरसों में अब युद्ध तो होने से रहे, सीमाएँ लाँघने  की बजाय, आक्रमण की बजाय अभी तो सबको आत्म-रक्षा की चिन्ता  है। सीरिया में फूटने वाले बम शान्त हैं। आतंकी हमले हैं। स्मगलिंग स्वयं ठप्प हो गयी   है। अण्डरवल्र्ड में बेचैन चुप्पी है। लूटमार, हत्या, डकैती, बलात्कार, लॉ एण्ड  आर्डर में हलाकान पुलिस सिर्फ कोरोना से निपट रही है, माइक पकड़कर गीत गाकर, कविताएँ सुनाकर ‘फ्रैंडली’ हो गयी   है। मतलब यह कि हमें प्राथमिकता अभी हेल्थ को देने की है। छोटे से देश भूटान ने कोरोना को हराने के सभी सार्थक कदम उठाए, वहाँ  वैसे भी स्वास्थ्य और शिक्षा शीर्ष पर है। अभी भी कोरोना टेस्टिंग की संख्या बढ़ाकर और निशुल्क टेस्टिंग करवाकर उसने अपने नागरिकों को सुरक्षित कर लिया है।

भारत आध्यात्मिक और मन्दिरप्रधान देश है। यहाँ  के कई मन्दिर खरबपति हैं। दिल खोलकर लोग दान करते हैं। यह समय माँग करता है कि मन्दिरों के सामने झोली फैलाई जाए, कई मन्दिरों के द्वारा राहत कोष में पैसे देने की खबर है, पर वह नाकाफी है। सरकारें तो आवश्यकता पड़ने पर सबकुछ राजसात कर लेती हैं, मन्दिरों के धन राजसात भले न किये जाएँ, किन्तु परोपकार के लिए उनसे मांगा तो जा ही सकता है। अब एक बड़ी बात मरकज की। इस्लाम अथवा मुस्लिम से परहेज न करने वाले उदार हृदय भारतीयों के मानस भी इनके नये कारनामों से आक्रोशित हैं, उद्वेलित हैं। ‘लव जिहाद’ की तर्ज पर बेहद नकारात्मक शब्द ‘कोरोना जिहाद’ मीडिया में चल पड़ा है।

निःसन्देह मुस्लिम समुदाय को इससे आपत्ति होनी चाहिये। चीन को भी हुई थी जब ट्रम्प ने कोविड-19 को ‘चायना वायरस’ कहा था। किन्तु मेरा प्रश्न यह है कि आप नर्सों के सामने नंगा नाचो, अश्लील भद्दे इशारे करो, डॉक्टरों   पर थूको, हंगामा करो तो इससे बेहतर उपाधि तो मुझे भी नहीं सूझती। आपका मकसद क्या है ? आप कोरोना संक्रमित आत्मघाती दस्ते हैं। तथाकथित धर्म के नाम पर खुद को कुर्बान करना चाहते हैं। अपने धर्म और सम्प्रदाय   का विस्तार करना चाहते हैं, इनके पास ‘ब्रेन’ भी है या नहीं, मुझे शक है। क्योंकि कहा जाता है कि ये ऐसे लोग हैं जिनका ब्रेनवॉश किया गया है, ये धर्मान्ध  हैं। मैं तो इन्हें मानवता के नाम पर कलंक मानती हूँ , जो स्वयं अपने पवित्र धर्म को कलंकित करने से बाज नहीं आते।

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बड़े ही अफसोस की बात है कि वह भारत जो संक्रमण- नियन्त्रण  में शीर्ष पर गिना जा रहा था, इन मरकजियों, जमातियों, तबलीगियों की वजह से देश के कई हिस्सों को हॉटस्पॉट  में बदल रहा है। इधर पटियाला से निहंग द्वारा पुलिसकर्मी का हाथ काटने की सूचना आयी। पुलिस और डॉक्टर -नर्स-स्टाफ यदि इस वक्त अपनी सुरक्षा की माँग को लेकर हड़ताल पर बैठ जाएँ तो क्या हो ? सरकार से आग्रह है कि ऐसे तमाम विघ्नसन्तोषियों से सख्ती से निपटा जाए, इन पर रहम करने की जरूरत नहीं। ये सिर्फ हत्यारे हैं, इन पर 307 नहीं, उससे भी ऊपर की धारा लगाने की आवश्यकता है।Coronavirus Covid 19 Effect On World Economy China Overtake ...

कोरोना ने हमें भयभीत किया है, कई जिन्दगी  छीन चुका है। हम आतंकित हैं। घरों में दुबके हैं। न जाने कितने अभी काल के ग्रास बनेंगे। कोरोना ने हमसे हमारा सुख-चैन छीना है, पर याद रखिए कि सिक्के के दो पहलू तो होते ही हैं। इस नासपीटे कोरोना ने हमसे बहुत कुछ छीना जरूर है किन्तु दिया भी कम नहीं। हमारी आपाधापी रूक गयी   है। चिमनियों ने धुआँ उगलना रोक दिया है। गन्दे  नाले धाराओं में नहीं गिर रहे। जल-थल-नभ साफ-सुथरा हो गया है। अरे, परम-पुनीता गंगा पचास प्रतिशत साफ हो गयी  है।

जो काम मन्त्रालय  और अरबों रूपये न कर सके, प्रकृति ने स्वयं कर लिया। बदबू मारती काली जमुना नीली दिखाई देने लगी है। चिड़ियों का मोहक संगीत गूंजने लगा है। कई शहरों में कौव्वे लौट आये  हैं। आसमान नीला और चाँद-तारे चटख हो गये  हैं। यह आपदा दैहिक है, दैवीय या भौतिक; प्रकृति अपना सन्तुलन  साधना जानती है। लय और प्रलय शाश्वत सत्य हैं। हम मनुष्य अपनी औकात भूल गये  थे, परिणति ‘मनु’ में हुई। भौतिकतावादी-भोगवादी-अतिवादी संस्कृति का अन्त  इति में होता ही है। ‘कामायनी’ इस वक्त जीवन्त   हो उठी है, संसार चित्रपटी है।Manusmriti Says Never Refuse To Take These Things | मनु ...

हम सभी ‘मनु’ हैं। यह वक्त चिन्ता  का नहीं, चिन्तन का है। हम मानव ‘देह’ से थे, मानवता तो हमसे कोसों दूर जा चुकी थी। हम हाँफ रहे थे – सुख-सुविधाओं का ढेर इकट्ठा करने। कोरोना ने समझाया कि सच में जीवन क्षणभंगुर है। पलक झपकते सब समाप्त। तो, जीना सीखो। मनुष्य बनो। मनुष्यता के गुणों को पुनर्जीवित करो। एक न एक दिन हमें कोविड-19 की दवा मिल जाएगी, लॉकडाउन भी बन्द हो जाएगा, पर मानकर चलिए सबकुछ बहाल होने पर भी हालात पूर्वानुसार नहीं रहेंगे। हमारी जीवनशैली बदलेगी। कार्य पद्धति बदलेगी। हमारी सोच बदलेगी। कोरोना ने समझा दिया कि रोग-प्रतिरोधक क्षमता जिनमें होगी, वही बचेंगे। लोगों को ‘पकी-पकाई दवा’ की बजाय अब योगाभ्यास-प्राणायाम-व्यायाम का सबक याद रहेगा। खान-पान की शैली बदलेगी। इन तमाम वजहों के लिए, तुम्हें लाख कोसने के बावजूद मैं तुम्हें धन्यवाद कहूँगी कोरोना!

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सुभद्रा राठौर

लेखिका संस्कृतिकर्मी और प्राध्यापक हैं। सम्पर्क +919425525248, subhadrarathore44@gmail.com 
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