या तो चुनाव पांच राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में था, लेकिन देश की नजर तीन राज्यों के चुनाव पर लगी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अश्वमेघ के घोड़े पूरे देश में दौड़ रहे थे और उनकी लगाम कोई पकड़ नहीं पा रहा था। यों बिहार, दिल्ली, पंजाब और कर्नाटक में झटके लगे थे पर उन झटकों की परवाह किसे थी? घोड़े बड़े-बड़े राज्यों में दौड़ रहे थे। चैनल,भक्तगण और बुद्धिजीवी जयकारा लगा रहे थे। यहां तक कि आदित्यनाथ सिंह उर्फ योगी जी और उसके उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपनी-अपनी लोकसभा सीट भी बचा नहीं पाए लेकिन आत्ममुग्ध तथाकथित हिन्दू नेता जनता की कराह और आह सुन नहीं पा रहे थे। युवाओं को नौकरियों के रूप में प्रधानमंत्री ‘पकौड़ा रोजगार’ उपलब्ध करवा रहे थे और नाले की गैस से चाय बनाने की तकनीक ईजाद से उनके कार्यकर्ता धन्य धन्य हो रहे थे।
वैसे अहंकार में डूबे नेता तीन राज्यों की चुनावी हार को बहुत गंभीरता से लेंगे यह उम्मीद ना के बराबर है। वे 2014 के चुनावी वादे पूरे नहीं कर सकते, लेकिन जादूगरी तो करनी थी, वरना सत्ता कैसे मिलती। नरेंद्र मोदी की सफलता में कांग्रेसियों की असफलता और भ्रष्टाचार का जितना हाथ था उससे ज्यादा हाथ ‘हिंदूवाद’ का था। गुजरात के दंगों के बीच नरेंद्र मोदी की छवि ‘हिन्दू सम्राट’ वाली हो रही थी। वर्षों से हिंदुओं के मन में ग्रंथी पल रही रही थी, जिसका विस्फोट बाबरी मस्जिद तोड़ने में हुआ और नरेंद्र मोदी के पीछे भी यह भाव पूरे उफान पर था।
भाजपा नेता फिर चाहते हैं कि हिन्दू ग्रन्थि को हवा दी जाए। अयोध्या में यह कोशिश भी हुई लेकिन तीनों राज्य की जनता इस सच को जानने समझने लगी थी, इसलिए उस पर असर ना के बराबर पड़ा। आगे भी वे कोशिश करेंगे, लेकिन काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ेगी। राम तो सर्वव्याप्त हैं,उन्हें मंदिरों में कैद नहीं किया जा सकता। मंदिर बनाने वाले तर्क देते हैं कि राम मंदिर अयोध्या में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा? यानी वे मानते हैं कि राम अयोध्या के दायरे में ही रहेंगे और उनके प्रभुत्व की सीमा यही तक है। कुछ लोग ‘प्रभु’ की सीमा तय कर रहे हैं। अगर वे होंगे तो वह भी उनका तमाशा देख रहे हैं और इसके लिए ऐसे लोगों को वे दंडित जरुर करेंगे।
वैसे तीन राज्यों के चुनावी परिणाम बहुत कुछ कह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जादूगरी नीचे उतर रही है और बेहतर होगा कि बचे समय में अपने वादे पूरे नहीं करने के लिए देश से क्षमा मांगने और पश्चाताप करें। ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे के पीछे उन्होंने जो ‘सबका साथ और कुछ का विकास’ का गोरख धंधा किया है, उसे राष्ट्र याद रखेगा। ‘राष्ट्रभक्ति’ की आड़ में राष्ट्र की दुर्दशा करने वाले बहुत कम ऐसे विरले होते हैं। 2019 के चुनाव में वह किसी तरह जीत नहीं सकते चाहे वे जितने खेल तमाशे कर लें।
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योगेन्द्र
लेखक वरिष्ठ प्राध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रखर टिप्पणीकार हैं। सम्पर्क yogendratnb@gmail.com
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