इस्लाम में बेहतरीन चैरिटी सिस्टम – अब्दुल ग़फ़्फ़ार
- अब्दुल ग़फ़्फ़ार
समाज में आर्थिक बराबरी के लिए कु़रान में करीब 32 जगहों पर नमाज़ के साथ ज़कात का ज़िक्र आया है। ज़कात इस्लाम के पांच स्तम्भों में से एक स्तम्भ है। कुरान के सूराः अल-बकर की आयत नं. 177 में कहा गया है –
“नेकी यह नहीं है कि तुम अपने मुंह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो, बल्कि नेकी तो यह है कि ईमान लाओ अल्लाह पर और क़यामत के दिन पर और फरिश्तों पर, आसमानी किताबों पर और पैगम्बरों पर। अपने कमाए हुए धन से मोह होते हुए भी उसमें से अल्लाह के प्रेम में – रिश्तेदारों, अनाथों, मुहताजों और मुसाफ़िरों को और मांगनेवालों पर ख़र्च करो और (क़र्ज़दारों के) गर्दन छुड़ाने में मदद करो। नमाज़ स्थापित करो और ज़कात दो। जब कोई वादा करो, तो पूरा करो। मुश्किल समय में, कष्ट, विपत्ति और युद्ध के समय में सब्र करो। यही लोग हैं, जो सच्चे निकले और यही लोग डर रखने वाले हैं।”
इस आयत में साफ़ -साफ़ लिखा है कि जो मजबूर और ग़रीब हैं उन्हें दान दो। साथ ही यहाँ गर्दन छुड़ाने से मतलब कर्ज़ में डूबे हुए लोगों को कर्ज़ चुकाने में मदद करने से है, जो अपनी सीमित आमदनी में कर्ज़ चुका पाने में सक्षम नहीं हैं।
हदीस के मुताबिक़ ज़कात उन मुसलामनों पर फर्ज़ है जिनके पास साढ़े सात तोला सोना (75 ग्राम सोना) या साढ़े 52 तोला चाँदी या उसकी क़ीमत के बराबर सालाना बचत हो, तो अपनी कुल बचत का 2.5 फीसदी ज़कात के तौर पर हर साल देना अनिवार्य है। मतलब पूरे एक साल तक कमाने खाने के बाद किसी के पास एक लाख रुपये की सेविंग हो, तो उस शख्स को इस एक लाख का 2.5% मतलब 2500 रुपये ज़कात के तौर पर ग़रीबों में हर साल दान करना अनिवार्य है।
ज़कात की तरह फ़ितरा भी एक तरह का दान है जो ईद से पहले (रमज़ान में) देना होता है। भारत में प्रति व्यक्ति पौने दो किलो अनाज या उसकी क़ीमत जोड़ कर ग़रीबों, मजबूरों, अनाथों, विधवाओं में ईद से पहले बाँट देना है। बता दें कि फ़ितरा हर वो आदमी या औरत दे सकती है जो ग़रीबी रेखा से ऊपर है। इसमें ज़कात की तरह साल भर की सेविंग का चक्कर नहीं है।
ज़कात और फ़ितरा के अतिरिक्त सदक़ा भी एक तरह का दान है। इस्लाम में सदक़ा के लिए कोई ख़ास फिक्स्ड रक़म नहीं है। सदक़ा के तौर पर आप किसी को दो रुपये भी दान कर सकते हैं और चाहें तो 2 करोड़ भी दान कर सकते हैं। ये रमज़ान के महीने में ही देना ज़रूरी नहीं है ये पूरे साल में जब चाहें दे सकते हैं।
लेकिन इन तमाम तरह के दान का हक़ तभी अदा होगा जब दान लेने वाले व्यक्ति की सही पहचान करके दान दिया जाए अन्यथा फ़र्ज़ी दान लेने वालों की रमज़ान के महीने में बाढ़ सी आई रहती है। बेहतर है कि अपने ज़रूरतमंद रिश्तेदारों और पड़ोसियों को ज़कात, फ़ितरात और सदक़ात की रक़म पहले दी जाए बाद में अनाथालय और मदरसों वग़ैरह को अदा किया जाए।
अफ़सोस की बात यह है कि इस्लाम में इतना बेहतरीन चैरिटी सिस्टम होने के बावजूद भी सबसे अधिक ग़रीबी मुसलमानों में ही है। इसका सबसे बड़ा कारण मुस्लिम समाज में आत्मचिन्तन की कमी और इस चैरिटी सिस्टम का सिस्टेमेटिक मतलब व्यवस्थित ढंग से अदा नही करना है।