राजेश कुमार
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Jul- 2022 -5 Julyतीसरी घंटी
लोक नाटकों में दलित अभिव्यक्ति
नाटक चाहे शास्त्रीय हो या लोक आज अगर इसमें दलित अभिव्यक्ति को ढूंढा जा रहा है तो किसी को भी शंका हो सकती है कि क्या पूर्व में इसको नजरअंदाज किया गया है? नजरअंदाज भी किया गया है तो…
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May- 2022 -21 Mayतीसरी घंटी
नुक्कड़ पर ‘अस्मिता’ की दस्तक
आज के समय में सत्ता के दुर्ग द्वार के सम्मुख जहां रंगकर्मियों की एक बड़ी फौज लगभग आत्मसमर्पण कर चुकी है … रंगकर्मियों का एक ऐसा भी ग्रुप है, जो रोज नियम से अपने घरों से निकलकर, बसों –…
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Apr- 2022 -17 Aprilतीसरी घंटी
साहित्य अकादमी का मंगलाचरण
(संदर्भ : सम्राट अशोक) साहित्य अकादमी द्वारा हिन्दी नाटक ‘सम्राट अशोक’ के लिए वर्ष 2021 का ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ देने की घोषणा के बाद नाटककार दया प्रकाश सिन्हा ने दिल्ली के एक अखबार में इंटरव्यू देते हुए कहा…
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Apr- 2021 -20 Aprilरंगमंच
सोहन गुरु के बोल जन-जन गावे
गीत के कुछ बोल होते हैं जिसे लिखनेवाला खुद गाता है और खुद सुनता है। लेकिन कुछ ऐसे बोल भी होते हैं जिसे लिखनेवाला तो गाता ही है, साथ में और लोग भी गाते हैं। औरतें खेत में जब…
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Mar- 2021 -26 Marchरंगमंच
रंगमंच की कुछ नयी जमीन तोड़ते अमृत राय के नाटक
अमृत राय हिन्दी साहित्य के लिए आज भी कोई नया नाम नहीं है, न उनका लिखा साहित्य अतीत के दायरे तक सीमित है। गद्य विधा में जो उनका काम है, आज भी याद और पढ़ने योग्य है। प्रेमचंद पर…
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Feb- 2021 -8 Februaryतीसरी घंटी
दलित रंगमंच पर गुस्सा क्यों
पिछले कुछ दिनों या वर्षों से जब भी कोई सोशल मीडिया पर ‘दलित रंगमंच’ की चर्चा छेड़ देता है तो पता नहीं रंगकर्मियों की एक बड़ी सी भीड़ न जाने कहाँ-कहाँ से अचानक भरभराकर निकलती है और उस पर…
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Jan- 2021 -19 Januaryतीसरी घंटी
ब्रेष्टियन शैली में राजनीतिक रंग दृष्टि
ब्रेष्ट के समय जर्मन में हिटलर राष्ट्रवाद की ओट में जिस तरह यहूदियों पर दमन कर रहा था, आर्यन जाति को श्रेष्ठ साबित कर अल्पसंख्यकों पर यातनाएं ढा रहा था, विरोध करनेवालों पर राष्ट्रद्रोह का आरोप मढ़ कर जेल…
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Jun- 2019 -16 Juneनाटक
नक्सलबाड़ी आन्दोलन और नुक्कड़ नाटक
नुक्कड़ नाटक जो पर्याय है संघर्ष का, व्यवस्था के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने का, समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कदाचार, धार्मिक कट्ठरता, साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने का… वह अचानक आसमान से टपककर रंगजगत में नहीं आ गया है, न…
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May- 2019 -14 Mayतीसरी घंटी
दलित रंगमंच का आदर्श वर्णवादी-व्यवस्था नहीं
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र मे कहा गया है कि प्रेक्षागृह में यदि चारों वर्ण मसलन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र उपस्थित न हों तो नाट्य की प्राथमिक शर्त पूरी नहीं होगी। नाटक में वर्णवादी व्यवस्था के इस स्वरुप को हिन्दी…
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