इस असाधारण जीत के बाद
सत्रहवीं लोक सभा के लिए हुए चुनाव के नतीजों ने देश और दुनिया को चौंका दिया है। आठवीं लोक सभा के लिए 1984 में हुए आम चुनाव में 2 सीटों से अपनी संसदीय यात्रा की शुरूआत करने वाली भारतीय जनता पार्टी 2019 के चुनाव में 300 से ज्यादा सीटें हासिल कर इस देश की ही नहीं दुनिया की भी एक बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। दूसरी तरफ वह कॉंग्रेस जो आजादी की लड़ाई के समय से इस देश की प्रमुख पार्टी रही है,लोक सभा के 52 सीटों में सिमटकर रह गयी है और 18 राज्यों में उसका खाता तक नहीं खुला। यह राजनीतिक बदलाव किसी चमत्कार से कम नहीं है।
2014 के चुनावी अभियान में भाजपा की तरफ से नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह के जितने वायदे किये थे,चाहे वे रोजगार देने का मामला हो या विदेशों से काले धन की वापसी का, राम मन्दिर के निर्माण की बात हो या कश्मीर समस्या की, महँगाई कम करने की बात हो या भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण की, उनमें से अधिकाँश अब तक अनुत्तरित हैं। जीएसटी और नोटबन्दी के दौर में आम जनता जिस तरह से अकुलाई हुई दिख रही थी, तब लग रहा था कि जनता का यह गुस्सा 2019 के चुनाव में मोदी के खिलाफ फूटेगा| लेकिन बात उलटी हो गयी। विश्व मीडिया और राजनीति के धुरन्धर पण्डितों के उन आकलनों और अनुमानों की जिनमें कहा जा रहा था कि नरेन्द्र मोदी इस चुनाव में अपनी सत्ता गवां भी सकते हैं, मोदी की आँधी ने ऐसी तैसी कर दी। इस तरह से लगातार दूसरी बार बहुमत प्राप्त करने वाले नरेन्द्र मोदी जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गाँधी के बाद तीसरे और पहले गैरकॉंग्रेसी प्रधान मन्त्री बन गये हैं|
एक वर्ष पहले विधान सभा चुनाव में जिन राज्यों ( मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान) में कॉंग्रेस ने भाजपा को हराया,उन्हीं राज्यों के लोक सभा चुनाव में कॉंग्रेस भाजपा से बुरी तरह हार गयी| कर्नाटक में लोक सभा के 28 सीटों में से भाजपा ने 25 सीटों पर दमदार जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके ठीक बाद हुए स्थानीय निकाय चुनावों में कॉंग्रेस भाजपा से बहुत आगे निकल गयी है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार 56 शहरी स्थानीय निकायों में कुल 1221 वार्डों में से कॉंग्रेस ने 509 वार्डों पर जीत दर्ज की है,जबकि भाजपा को 366 वार्डों पर जीत मिली है।
इसलिए यह कहना उचित होगा कि सभी चुनाव एक नियम और एक गणित से निर्धारित नहीं होते, अलग अलग चुनाव में अलग अलग मुद्दे निर्णयकारी भूमिका में होते हैं। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव का एक मात्र मुद्दा मोदी था। भारत की चुनावी राजनीति के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ होगा जब पूरा चुनाव एक व्यक्ति के नाम पर लड़ा गया। विपक्ष मोदी को हटाने के नाम पर एकजुट होना चाहता था और सत्ता पक्ष ‘अबकी बार मोदी सरकार’ पर अडिग था। विपक्ष का मुकाबला सभी 542 सीटों पर मोदी से ही था, क्योंकि सभी सीटों पर भाजपा और एनडीए की तरफ से मोदी ही चुनाव लड़ रहे थे।
इस पूरे चुनाव अभियान में नरेन्द्र मोदी अकेले ऐसे नेता दिख रहे थे जिनका अखिल भारतीय स्तर पर जनता पर प्रभाव था। अपनी तमाम कमियों, खामियों और लफ्फाजियों के बावजूद वह जनता को यह समझाने में कामयाब रहे कि इस वक्त देश को प्रधान मन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की ही जरूरत है। फिर एक सैद्धान्तिक बात भी भाजपा के पक्ष में गयी कि पिछले पाँच वर्षों के शासन के दौरान भाजपा (राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की सरकार) उन्हीं विचारों और कार्यकलापों को बढ़ाती रही जो इसके पहले कॉंग्रेस (संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन) करती रही थी। अर्थनीति,शिक्षा नीति, विदेश नीति, उद्योग, व्यापार, पर्यावरण किसी मुद्दे पर भाजपा कॉंग्रेस से अलग नहीं है।
भाजपा के उग्र हिन्दुत्व और साम्प्रदायिक राजनीति तथा कॉंग्रेस की (छद्म) धर्मनिरपेक्षता को छोड़ दें तो कॉंग्रेस और भाजपा में कोई असमानता नहीं है। क्या यह सच नहीं है कि दोनों दलों के नेताओं की आवाजाही दोनों दलों में पिछले बीस वर्षों से जारी है? राजीव गाँधी कॉंग्रेस के ही प्रधान मन्त्री थे जिन्होंने शाहबानो के मामले में नया कानून बनाकर मुस्लिम कट्टरता के सामने घुटने टेके थे। फिर हिन्दुओं को तुष्ट करने के लिए उसी राजीव गाँधी ने राम मन्दिर का ताला खोलवाया था। एक ने राजनीतिक फायदे के लिए ताला खुलवाया तो किसी और ने राजनीतिक फायदे के लिए बाबरी मस्जिद को ही ध्वस्त कर दिया। इसलिए कॉंग्रेस के पास नैतिक अधिकार नहीं है कि वह किसी और को धर्म निरपेक्षता का पाठ पढ़ाए|
जनता देख रही है कि दोनों ही दल एक जैसा है, दोनों के ही शासन में भ्रष्टाचार है,दोनों ही दल अपराधियों को टिकट बाँट रहे हैं, फिर वह एक ऐसे नेता को क्यों नहीं चुन ले जो उनकी राष्ट्रीय भावना को तुष्ट करते हुए पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर दहाड़ सके और उसे घुसकर मार सके। पुलवामा बड़ा हमला था,परन्तु आतंकवादियों की करतूत तो लगातार जारी रही| लेकिन बालाकोट जैसे पलटवार का समय सरकार ने ऐसा चुना जिसका राजनीतिक फायदा मिलना ही मिलना था। इस लोक सभा चुनाव में राहुल गाँधी,अखिलेश यादव,तेजस्वी यादव, ममता,मायावती,चन्द्रबाबू नायडू जैसे दिग्गज नेता की मौजूदगी के बावजूद विपक्ष सत्ता के सामने ढेर हो गया तो इसलिए कि विपक्ष के पास शासन की वैकल्पिक योजना का कोई प्रस्ताव नहीं था, वह जनता को यह समझाने में बिलकुल विफल रहा कि मोदी को क्यों हटाया जाए और मोदी से बेहतर हमारा शासन कैसे होगा?
निःसन्देह नरेन्द्र मोदी की यह बड़ी जीत है, बेहतर होता यह जीत भाजपा या राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की हुई होती।
नरेन्द्र मोदी के सामने दोनों विकल्प खुले हुए हैं- वह चाहें तो निरंकुश होकर तानाशाही तरीके से सरकार को चला सकते हैं,उन्हें कोई नहीं रोक सकता। दूसरा विकल्प है भारतीय लोक की परवाह करते हुए तन्त्र और देश को वह मजबूत बनाएँ। भारत की जनता ने तो जनादेश मोदी को दे दिया, अब बारी मोदी की है वह देश को क्या देते हैं?
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