विज्ञापन की दुनिया बड़ी अज़ीब है। यहां किसी ख़ास ब्रांड का सूट, जीन्स, बनियान और यहां तक कि अंडरवियर पहनने से भी लडकियां मक्खियों की तरह लड़कों के इर्दगिर्द मंडराती हैं। किसी ख़ास ब्रांड के परफ्यूम या डियो लगाने वाले मर्दों के पीछे वे भुक्खड़ों की तरह भागती हैं। किसी ख़ास कंपनी की बाइक अगर आपके पास है तो लिफ्ट मांग कर सरेराह आपसे लिपट जाने वाली लड़कियों की भी यहां कोई कमी नहीं। यह भी कि अगर आपके घर का बाथरूम किसी ख़ास कंपनी के उपकरणों से सुसज्जित है तो कोई अनजान लड़की भी आपके बाथरूम में प्रवेश कर आपके लिए सेक्सी नृत्य भी करने लग सकती हैं। यहां पुरुष के अंतर्वस्त्र धोते-धोते चरम सुख का अहसास करने वाली लड़कियां भी हैं।
टेलीविज़न और अखबारों में आने वाले ऐसे विज्ञापनों को देखकर सर पीट लेने का मन करता है। हैरत भी होती है कि क्या हमारे देश की लडकियां सचमुच ही इतनी खाली दिमाग, मूर्ख और कामातुर हैं ? अगर नहीं तो फिर देश के किसी भी कोने से ऐसे अश्लील, विकृत और अपमानजनक विज्ञापनों के खिलाफ कोई आवाज़ क्यों नहीं उठती ? स्त्रियों की अस्मिता या स्वाभिमान को ललकारते ऐसे फूहड़ विज्ञापनों के विरुद्ध कहीं मुकदमें क्यों नहीं दायर होते ? देश और तमाम प्रदेशों में भी स्त्रियों की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए महिला आयोग मौज़ूद हैं। आजतक किसी भी महिला आयोग ने ऐसे विज्ञापन बनानेवाली कंपनियों, उन्हें दिखाने वाले टीवी चैनलों, अखबारों और पत्रिकाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की ?
देश की सभी जागरूक और स्त्रीवादी महिलाओं से एक सवाल – क्या आपको ऐसे विज्ञापन देखकर गुस्सा नहीं आता ? आता है तो महिला आयोग तक अपनी शिकायत पहुंचाएं। न्यायालय के दरवाजें खटखटाएं। यह भी नहीं तो कम से कम यहां सोशल मीडिया पर ऐसे विज्ञापनों के विरुद्ध जनचेतना जगाने के लिए एक आंदोलन तो खड़ा किया ही जा सकता है !
ध्रुव गुप्त
लेखक भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी तथा कवि एवं कथाकार हैं। सम्पर्क +919934990254, dhruva.n.gupta@gmail.com
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जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
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