sablog.in डेस्क- सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब पति, पत्नी और ‘वो’ का रिश्ता अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी यानी विवाहेतर संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 में विवाहेतर संबंध को अपराध बनाने वाले नियम को अंसवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस इंदु मल्होत्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिम चंद्रचूड़ ने एकसाथ यह फैसला सुनाया है। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि अडल्टरी के आधार पर तालाक लिया जा सकता है। जबकि इसके तहत खुदकुशी के लिए उकसाने पर केस भी दर्ज किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं की गरिमा को सर्वोपरि बताते हुए साफ किया कि उनकी इच्छा, अधिकार और सम्मान से किसी प्रकार का समझौता बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। महिला के शरीर का पति उसका मालिक नहीं होता है।
‘अब यह कहने का समय आ गया है कि पति महिला का मालिक नहीं होता है। अडल्टरी कानून मनमाना है। यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। अडल्टरी कानून महिला की सेक्सुअल चॉइस को रोकता है और इसलिए यह असंवैधानिक है। महिला को शादी के बाद सेक्सुअल चॉइस से वंचित नहीं किया जा सकता है।‘
– जस्टिस चंद्रचूड़
अडल्टरी से तबाह होता है परिवार और विवाह- केंद्र सरकार
इसके पहले मामले की सुनवाई के दौरान 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र से सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अडल्टरी अपराध है और इससे परिवार से लेकर विवाह तक तबाह होता है। अब तक आईपीसी की धारा 497 के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है, जबकि महिला पीड़िता। हालांकि, एक धारा के प्रावधान के तहत पति की मर्जी के बाद महिला गैर मर्द से संबंध बना सकती है। इसे सुप्रीम कोर्ट ने महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला करार देते हुए कहा कि महिला के शरीर पर पुरुष का अधिकार है। पार्टनर को लेकर उसकी मर्जी ही सर्वमान्य है। वह अपने हिसाब से पार्टनर चुनने के साथ सेक्सुअल संबंध बना सकती है।