उपभोक्ताओं पर मंडराता ठगी का जाल
सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में मोबाइल जीवन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, जिसके बिना एक पल भी रहना लोगों को मुश्किल लगने लगा है। यदि यह कहें कि मोबाइल के बिना जीवन की कल्पना असम्भव प्रतीत होने लगी है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस कोरोना काल और उसके बाद मोबाइल के बिना जीवन का संचालित होना तो कमोबेश नामुमकिन ही होगा। अब तो ऑनलाईन कक्षाएँ, वर्क फ्रॉम होम अधिकांश मोबाइल पर ही निर्भर है। मोबाइल पर लोगों की बढ़ती निर्भरता और बेहिसाब खपत के कारण ऑनलाईन भ्रामकता और ठगी का जाल भी निरन्तर मंडराता रहता है। इन कमजोरियों और आदतों को देखते हुए फोन सेवा प्रदाता कम्पनियाँ भी इसका भरपूर फायदा उठाती है।
ये फोन सेवा प्रदाता कम्पनियाँ मुख्यत: निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ हैं जो अपने उपभोक्ताओं को लगातार बेवकूफ बनाकर लाभ (पूँजी) एकत्रित कर रही हैं। इन निजी कम्पनियों में, उपभोक्ताओं को लूटने वाली कम्पनियों में कई नाम शुमार हैं। कुछ समय पहले ‘एयरटेल’ भी उनमें से एक रही है। एक समय ‘एयरटेल’ भारत में निजी कम्पनियों में सबसे लोकप्रिय और अग्रणी कम्पनी थी। इसका मुख्य कारण था, इसके नेटवर्क का सभी जगह मौजूद होना, जिसका फायदा ‘एयरटेल’ ने खूब उठाया। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों ‘जियो’ का हो गया है। पहले इस कम्पनी ने सस्ते पैकेज और फ्री पैकेज से सभी के मोबाइल पर कब्जा जमा लिया। अधिकांश लोगों को खासतौर पर युवाओं को फ्री नेट के जाल में उलझाकर गलत चीजों की लत डाल दी, जिससे युवा पोर्न जैसी चीजों के आदी हो गये। फिर सस्ते पैकेज को अचानक से अप्रत्याशित रूप से महंगा कर दिया।
किन्तु अधिकांश लोगों के मोबाइल पर ‘जियो’ का कब्जा होने के कारण इस महंगे पैकेज को भी स्वीकार करना पड़ा। इस महंगे पैकेज से भी बात नहीं बनी तो ‘जियो’ से अन्य नेटवर्क पर कॉल को सीमित कर दिया गया और सीमित सीमा से बाहर कॉल करने पर चार्ज लगाना शुरू कर दिया गया। यहाँ भी लूट खत्म नहीं हुई। एक दिन में जितना जीबी एक उपभोक्ता को उपलब्ध कराया जाता है, उसका 50 प्रतिशत भी खत्म हो जाता है तो तुरन्त कम्पनी द्वारा संदेश भेज दिया जाता है कि आपने अपने खाते का 50 प्रतिशत डाटा प्रयोग कर लिया है। इसके तत्काल बाद कम्पनी द्वारा स्पीड को कम कर दिया जाता है।
अधिकांशत: ऐसा होता है कि हम उपलब्ध डाटा का प्रयोग बहुत कम ही करते हैं, किन्तु उस दौरान प्रयोग किए गये डाटा और शेष डाटा का ब्यौरा कभी नहीं बताया जाता है। इस तरह उपभोक्ताओं से अघोषित लूट का सिलसिला निरन्तर जारी है। शायद ऐसी ही योजनाओं की वजह से इस कम्पनी के मालिक लॉकडाउन में भी अपनी संपत्ति में निरन्तर वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। साथ ही इनके दो बच्चों को ‘फॉर्च्यून पत्रिका’ द्वारा इस साल (2020), देश के सर्वश्रेष्ठ 40 युवाओं की सूची में शामिल किया गया है, जिन्होंने तकनीक में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जब देश का जीडीपी 40 साल के न्यूनतम स्तर पर है, तब इस कम्पनी के मालिक की संपत्ति उच्चतम स्तर पर है, जो उपभोक्ताओं की ऐसी अघोषित लूट के बिना शायद ही सम्भव हो सकता है।
एक समय में एयरटेल लगातार अपने उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर लूटा करती थी, जैसे- अक्सर उपभोक्ताओं को संदेश और फोन कॉल्स भेजे जाते थे कि आप लकी विजेता बन गये हैं। आपके नम्बर को हमारी कम्पनी के तरफ से चुना गया है और आप $2500 जीत गये हैं। विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए +38977148611 पर तुरन्त कॉल करें। कॉल करने के बाद घंटों फोन पर झूठी जानकारियाँ दी जाती थी और फोन में उपलब्ध राशि (बैलेंस) समाप्त हो जाती थी। कई बार ऐसे नम्बर विदेशों के भी होते थे। एक बार मेरे मित्र को कुछ ऐसा ही संदेश आया। जब उन्होंने उस फोन नम्बर पर कॉल किया तो वह फोन पाकिस्तान में लग गया और फिर तब तक उस नम्बर पर राशि लेने के नुस्खे को बताया जाता रहा, जब तक कि फोन का सारा पैसा समाप्त नहीं हो गया।
एक अन्य मित्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उस मित्र से यह कहा गया था कि- हमारी कम्पनी में आपके नम्बर का चयन किया गया है। आप राशि कैसे लेना पसन्द करेंगें? नकद (हाथों-हाथ), कुरियर से, डीडी के द्वारा या फिर अकाउंट में ट्रांसफर करवा दूं? मित्र ने कहा आप मेरे घर पर कुरियर से भिजवा दीजिए। फिर मित्र से कस्टमर केयर वाले ने पता लिया और कहा कि तीन दिनों के अंदर पैसा आपके घर पर पहुँच जाएगा। इतनी लम्बी बातचीत के दौरान मित्र को अच्छा खासा चूना भी लगा दिया गया और तथाकथित जीती गयी राशि भी आजतक उनके घर नहीं पहुँची।
फोन उपभोक्ताओं के भोलेपन का निरन्तर फायदा उठाया जाता है। उपभोक्ता इतनी बड़ी-बड़ी रकमों को पाने के लिए लालच में आकर तुरन्त फोन पर बात कर लेते हैं और अपना नुकसान करते हैं। इसी तरह कई अन्य ऐसे कॉल भी आते हैं, जिन्हें सेवा के रूप में बिल्कुल मुफ्त प्रदान करने की बात कही जाती है। लेकिन सब्सक्राइब करते ही पैसा काट लिया जाता है। इस तरह अपने उपभोक्ताओं को मूर्ख बनाकर पूँजी इकट्ठा करना निजी क्षेत्र की कम्पनियों ने अपना धंधा बना लिया है।
इन पैसों से वे कार्पोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी का दावा करते हुए, अपनी कम्पनी के मुफ्त में ब्रांड का प्रसार भी कर लेते हैं। इस प्रकार उपभोक्ताओं के खून-पसीने की कमाई, गरीबों के उद्धार के नाम पर अप्रत्यक्ष रूप से अपने उद्धार में ही लगाते हैं। साथ ही कॉमन वेल्थ जैसे बड़े आयोजनों में भागीदारी कर भी अपना नाम कमाते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता निरन्तर ‘बली का बकरा’ बनने को मजबूर हैं। लेकिन शोषित उपभोक्ता किसके पास इनकी शिकायत करें? कहाँ गुहार लगाए? ऐसा लगता है कि इन कम्पनियों ने उपभोक्ता कोर्ट को भी खरीद रखा है।
इन कम्पनियों के अलावा ऑनलाईन ठगी के लिए एक बड़ा गिरोह भी सक्रिय है, जो लगातार लोगों को ठगी का शिकार बना रहा है। ई-पेपर दैनिक भास्कर के चंडीगढ़ संस्करण के अनुसार लॉकडाउन के दौरान की गयी ऑनलाइन शॉपिंग का फायदा सबसे ज्यादा साइबर ठगों ने उठाया है। पंजाब में पिछले सवा 2 महीने (लॉकडाउन के दौरान) में ही ठगों ने 2700 लोगों से 90 लाख से ज्यादा रूपए उड़ाए हैं। इसमें एटीएम कार्ड क्लोनिंग के मामले भी शामिल हैं। ठगी मामले में मोहाली आगे है। यहाँ 2 माह में 293 शिकायतें आई हैं और करीब 27 लाख रुपए ठगे गये हैं। सिर्फ कार्ड क्लोनिंग से ही 23 लाख की ठगी हुई। लुधियाना में 16 से ज्यादा मामलों में साढ़े 8 लाख की ठगी की गयी है। वहीं, 10% ऐसे मामले भी हैं, जिनके फोन या कम्प्यूटर हैक कर ब्लैकमेल किया गया। 20% लोगों ने सिर्फ शिकायतें कर छोड़ दीं। इससे पहले हर माह करीब 800 शिकायतें आती थीं। वजह लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर नए लोग ऑनलाइन शॉपिंग साइटों पर गये, जो सतर्कता की कमी के कारण ठगों के शिकार हो गये।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जब एक तरफ देश की सरकार जनता को कैशलेश लेन-देन करने पर जोर दे रही है, ऐसी स्थिति में ऑनलाईन ठगी से सुरक्षा के कोई ठोस उपाय और नियम उपलब्ध नहीं है। डिजिटलाईजेशन के इस दौर में ऑनलाईन से होने वाली ऐसी घटनाएँ दुखद है। साथ ही लोगों को अवांछित शॉपिंग आदि की भी आदतें डाली जाती है। सोशल मीडिया पर भी लोगों को कई तरह के असामाजिक तत्वों का शिकार बनाया जाता है। अत: इन सबसे बचने के लिए सरकार को कठोर-से-कठोर नियम बनाना चाहिए और सिर्फ बनाना ही नहीं चाहिए बल्कि उसका कठोरता से व्यावहारिक तौर पर अमल में भी लाना चाहिए। वैसी निजी कम्पनियाँ जो मनमाने तरीके से उपभोक्ताओं को लूटती है, उन्हें भी सजा के दायरे में लाना चाहिए। शायद तभी ऐसी अप्रत्याशित लूट अथवा घटनाओं से मुक्ति मिल सकती है।
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