‘द व्हाइट टाइगर’ वर्ग संघर्ष को जीती एक कहानी
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स्टार कास्ट – आदर्श गौरव, प्रियंका चोपड़ा जोनास, राजकुमार राव, नलनीश आदि
निर्देशक – रामिन बहरानी
अपनी रेटिंग – 3 स्टार (एक अतिरिक्त स्टार आदर्श गौरव के अभिनय के लिए)
ग्रामीण परिवेश पर हमारे यहाँ प्रेमचंद , फणीश्वरनाथ रेणु आदि जैसे साहित्यकारों से लेकर वर्तमान में संजीव के फांस उपन्यास तक में रचनाएँ-कथाएँ रची बुनी गई हैं। ग्रामीण परिवेश का चित्रण जितना अच्छा प्रेमचंद ने किया है उतना तो शायद ही कोई कर पाए। खैर साल 2008 में अरविंद अडिगा का उपन्यास आया ‘द व्हाइट टाइगर’ जिसे पचास हजार डॉलर की राशि वाला चालीसवाँ ‘मैन बुकर पुरुस्कार’ भी दिया गया। मैन बुकर से नवाजी गई इस किताब को लेकर अब फ़िल्म बनाई है इसी नाम से रामिन बहरानी ने।
मुंबई से होती हुई इस फ़िल्म की कहानी अमेरिका तक भी चक्कर लगाती है। अमीर और गरीब के बीच के वर्ग संघर्ष को इस फ़िल्म में मुख्य आधार बनाया गया है। हाल ही में आई गली बॉय जैसी फिल्मों से भी इस फ़िल्म की तुलना की जा सकती है तथा स्लमडॉग मिलेनियर जैसी सी इसकी कहानी लगती है। बावजूद इसके जमीन आसमान का अंतर है दोनों में लेकिन गरीबी के स्तर पर उतर कर देखें तो उससे तुलना की जा सकती है। फ़िल्म की शुरुआत भी अजीब सी नजर आती है जहाँ एक गाड़ी दिल्ली की सड़क पर रात के समय दौड़ रही है। उसमें एक पंजाबी साउंडट्रैक बज रहा है और फिर वह अचानक ठहराव आता है। यह कहानी शुरू करने का तरीका कोई नया नहीं है।
खैर कहानी के केंद्र में जो विलेन है आदर्श गौरव यानी बलराम हलवाई वे अपनी कहानी सुना रहे हैं। वह बताता है कि वह गरीब घर की पैदाईश है और दुकान पर काम करके, कूड़ा-कचरा उठाकर करके अपना पेट पाल रहा है लेकिन एक दिन उसकी जिन्दगी में बदलाव आता है या कहें उसकी जिन्दगी का निर्णायक मोड़ जहाँ उसकी नजर पड़ती है जवान एनआरआई बिजनेसमैन अशोक यानी राजकुमार राव पर। बलराम हलवाई अंदाज़ लगाता है कि यही वो शख्स है जिसके साथ रहने से उसकी किस्मत बदल सकती है। फिर क्या वो अशोक के घर पहुंचता है और ड्राइवर की नौकरी मांग लेता है। अशोक उसे अपने वहाँ नौकरी पर रख भी लेता है।
वहीं पर बलराम की मुलाकात अशोक की पत्नी पिंकी यानी प्रियंका चोपड़ा से होती है। पिंकी एक आजाद ख्याल और समानता में विश्वास रखने वाली औरत है। वह भारतीय समाज के ऊंच-नीच के और भेदभाव के ख्याल से अनजान है इसलिए बलराम के साथ उसका व्यवहार काफ़ी खुला हुआ या कह सकते हैं आधुनिक विचार वाला है। बलराम भी पिंकी के साथ खुश है। अब विलेन हीरोइन के साथ खुश है यह तो हम हमेशा देखते ही हैं लेकिन हीरोइन भी विलेन के साथ खुश है यह देखना लाजवाब पल है। लेकिन यह पल भी ज्यादा देर तक नहीं बने रहते आखरी हीरोइन तो हीरो के साथ ही जाएगी ना भाई लोगों। तो सब कुछ ठीक चल रहा होता है कि तभी एक हादसा हो जाता है। अशोक और पिंकी किसी प्रोग्राम से घर वापस लौट रहे होते हैं और रास्ते में पिंकी जिद करती है कि वह कार चलाएगी। अब जो ऊपर मैंने कहा था कि यह फ़िल्म शुरू करने का तरीका कोई नया नहीं है उसकी कहानी आप यहाँ समझ सकते हैं। दरअसल फ़िल्म फ्लैश बैक के साथ रिलीज़ हुई थी।
ख़ैर फ़िल्म की कहानी सुनिए उपन्यास तो अपनों ने पढ़ा नहीं तो फ़िल्म को मोटा मोटी कहानी पर वापस लौटते हैं – पिंकी कार ड्राइव करने लगती है। उसके बगल में अशोक बैठा है। ड्राइवर बलराम को पीछे की सीट पर बैठा दिया जाता है। तभी एक बड़ा हादसा हो जाता है, जिसमें एक बच्चे की जान चली जाती है। इस हादसे से बलराम, अशोक और पिंकी की ज़िंदगी बदल जाती है। जैसा कि हमारे समाज में अक्सर ऐसा होता है कि कमजोर को ही फंसा दिया जाता है, वैसा ही फिल्म में भी कुछ घटित होता है। अशोक का पिता बलराम को इस हादसे का जिम्मेदार बना देता है और उसे सजा हो जाती है। लेकिन इसके बाद बलराम अपना विलेन वाला रूप दिखाता है और पूरी कहानी को ही पलटकर रख देता है। अब कहानी का ऊँट किस करवट बैठेगा ये देखने के लिए उपन्यास को पढ़ें या फिर मेरी तरह फ़िल्म को ही देख लें। उपन्यास कभी मिले तो पढ़ लेंगे टाइप।
फ़िल्म पूरी तरह आदर्श की फ़िल्म कही जानी चाहिए। इसके अलावा उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। उनके आगे प्रियंका और राजकुमार सरीखे कलाकार भी फीके पड़ते हैं। इसके अलावा नलनीश ने भी अपना अभिनय सधा हुआ किया है। इस फ़िल्म के साथ नलनीश ने हॉलीवुड फिल्मों में भी अपना डेब्यू / पदार्पण किया है। हालांकि उनके पास करने को ज्यादा कुछ था नहीं लेकिन जब भी स्क्रीन पर दिखे स्वाभाविक लगे। इसके अलावा गरीब बलराम जिसे अपराध में फंसाया गया वह कैसे धनवान बन गया? यह कहानी आपको बताएगी।
फिल्म द व्हाइट टाइगर’ में भारतीय समाज के ऊंच-नीच, गरीब-अमीर, सामाजिक भेदभाव को दिखाया गया है। फ़िल्म का मेन मोटो गरीबी, जाति, धर्म, राजनीति और भ्रष्टाचार को दर्शाना है। इस फ़िल्म में शानदार अभिनय से लोगों का दिल जीतने वाले आदर्श गौरव एक्टर होने के साथ-साथ सॉन्ग राइटर यानी गीतकार भी हैं। उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म माई नेम इज खान से अपने करियर की शुरुआत की थी जो करण जौहर निर्देशित फिल्म थी। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि फिल्म ‘द व्हाइट टाइगर’ मिलने से पहले आदर्श गुमनामी के अंधेरों में जी रहे थे। इस फ़िल्म के रोल के साथ इंसाफ करने के नजरिये को लिए आदर्श कई महीनों तक झारखंड के एक गांव में भी रहे।
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फिल्म ‘द व्हाइट टाइगर’ को रामिन बहरानी ने लिखा है और निर्देशित भी किया है। इस फिल्म में पहली बार प्रियंका चोपड़ा और राजकुमार राव साथ में काम कर रहे हैं। जिस उपन्यास पर यह फ़िल्म बनी है उसकी कहानी गरीबी, असमानता और विद्रोह के विषय व ताने बाने को लेकर बुनी गई है। लेकिन फ़िल्म बनाते समय इस उपन्यास की रचनात्मकता तथा कथा शैली को ठीक से भुनाया नहीं गया है। जितना इस उपन्यास की तारीफों में पन्ने रंगे गए थे उतने पन्ने यह फ़िल्म न रंग पाएगी। इस उपन्यास की कहानी साल 2007 और 2010 के बीच खत्म हो जाती है। लेकिन इसे पर्दे पर उतरने में एक दशक से अधिक का वक्त लग जाता है जो शायद इस फ़िल्म के हित में नहीं है।
फिल्म का वॉयस ओवर भी परले दर्जे का बना है। जिसमें सुधार किया जा सकता था। इसके अलावा गीत- संगीत ठीक ठाक है। लोकेशन और सेट कहीं कहीं प्रभावी बन पड़े हैं।