सामयिक

एक बार और लड़नी होगी आजादी की सच्ची लड़ाई

 

    भारतीय जनता में अंग्रेज शासकों के प्रति विद्रोह उनके आगमन के साथ ही शुरू हो गया था। आजादी के सभी मतवाले अपनी मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराना चाहते थे। इनमें सवर्ण भी थे और दलित भी। आदिवासियों की भूमिका भी कुछ कम नहीं थी। आजादी की लड़ाई में मजदूर, किसान, जमींदार और व्यापारी सभी ने अपना-अपना योगदान दिया था। इसमें शहरी जनता ने ही भाग नहीं लिया बल्कि दूर-दराज के बिहड़ों में बसने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने भी पूरे जन-मन से अपना सहयोग दिया था।

आजादी की लड़ाई में देश के साहित्यकारों ने भी अपनी कलम से शंखनाद किया था। माखन लाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, दिनकर, बच्चन, मैथिलीशरण गुप्त, नेपाली जैसे कितने ही रचनाकारों ने आजादी का अलख जगाया था। इनकी कविताओं में देश भक्ति कूट-कूट कर भरी है। इनकी कविताएं सचमुच सोये हुए लोगों को जगा देती थी। गाँधी जी के आह्वान पर कितने ही युवक अपनी पढ़ाई छोड़ कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।

सर सैयद अहमद खाँ, ज्योतिबा फुले, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, जगदीश चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण, अरविन्द घोष, मो. अली जिन्ना, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खाँ, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, मौलाना आजाद, डा. भीमराव अम्बेडकर, ऐनी बेंसेट एवं सरोजिनी नायडू जैसे महान सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ कर आजादी दिलायी। ऐसे अनेकों वीर सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगायी थी भारत को आजाद कराने में।

   उन दिनों अहिंसा के रास्ते पर गाँधी जी और उनके साथ अन्य लोग सत्याग्रह का संकल्प लेकर मर मिटने को तैयार थे। आजाद हिन्द फौज के माध्यम से सुभाष चन्द्र बोस ने जो कुछ किया वह इतिहास में अमर हो गया। तिलक का ‘‘स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’’ का नारा कितनों को प्रभावित किया और वे स्वराज्य के लिए मर मिटने को तैयार हो गये। अफ्रिका में जिस मशाल को गाँधी जी ने जलाकर रोशनी पैदा की उससे संपूर्ण भारत का एक-एक कोना प्रकाशित हो गया। ऐसे हजारों-लाखों वीर सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगा दी स्वतन्त्रता हासिल करने में।

 

    यह बात किसी के जेहन में क्यों नहीं समाती है कि देश को आजादी कैसे मिली? आजादी किसी ने हमें सौगात के रूप में नहीं दिया है। सत्य के पुजारी गाँधी जी के साथ ही राजनीति की ईमानदारी भी क्यों विदा हो गयी? आजादी दिलाने वाले आज वैसे मनीषियों को हम कहाँ खो बैठे हैं? आजादी के पूर्व नेताओं में जो देश भक्ति भरी पड़ी थी, अब नदारत हो गये हैं। राष्ट्र भक्ति से लवरेज नेताओं की अखबारों में छपने वाली खबरों के रूप क्यों बदल गये? आजकल के नेताओं के घोटाले, भ्रष्टाचार, गिरफ्तारी और फिर रिहा होने की नाटकीय खबर से हमारी मानसिकता शर्म से आहत होते होते आज पूरी तरह से शर्म प्रूफ हो गयी है।

   आज नेता जी मन्त्री पद को अपना बपौती अकूत खजाना मानते हैं। कुर्सी की इस अपरंपार लीला से आज के मन्त्री भला क्यों महरूम रहना चाहेगा। मानों उन्हें आजादी जीने के लिए नहीं बल्कि घोटाला और रिश्वत लेने के लिए मिली हो। आजादी की आग में जिन शहीदों ने अपनी कुर्बानियाँ दी थी, उसका लाभ आज के नेतागण, सूद-समेत ले रहे हैं। यह सब बातें तो पुरानी हो चुकी है। किस घोटाले में किस नेता पर सीबीआई का शिकंजा कसा है, यह भी सभी जानते हैं, परन्तु क्या घोटालेबाजों को फांसी पर लटका दिया गया? जब न्याय दिलाने वाले विभाग में भी भ्रष्टाचार प्रवेश कर गया हो तो फिर आम – आवाम बेचारा क्या करे? संसद का चुनाव हो अथवा राज्य का, सबमें भ्रष्टाचार पांव जमा चुकी है। घोटालों में फंसे विधायक और सांसद भी सरकार में मन्त्री पद को सुशोभित कर रहे हैं। इनकी गिरफ्तारी और रिहा का नाटक चलता रहेगा। क्योंकि देश को आजादी जो मिली है!

     विभिन्न योजनाओं के मद में मन्त्री कमीशन खाते हैं। इंजिनियर का रिश्वत प्रतिशत में तय है। क्या हमारी सरकार यह बात नहीं जानती है। कौन ऐसा विभाग है जहाँ भ्रष्टाचार का नंगा नाच नहीं होता है। सुशासन का शोर खूब होता रहता है, परन्तु रिश्वत टेबुल के नीचे से नहीं बल्कि हाथ में रखा जाता है। आखिर यह सब क्या है? आजादी हमें किस ओर ले जा रही है? न जाने इससे भी वीभत्स दृष्य आगे क्या देखना पड़ेगा?

    कभी हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री नेहरू जी ने कहा था कि रिश्वत लेने वाले को बिजली के खम्भे पर लटका देना चाहिए। आज के मन्त्री ही जब स्वयं वैसा करते हैं तो किसको फांसी पर लटकाने की सलाह देंगे। आखिर किसी के जेहन में क्यों नहीं समाती है कि देश की आजादी का यह सब मतलब नहीं है?

    आज देश के भीतर कम खतरनाक लोग नहीं है। क्षेत्रवाद, जातिवाद व भाषावाद से आगे गोत्रवाद तक देश टुकड़े-टुकड़े में बंट गया है। तिलांगना अलग राज्य हो अथवा गोरखालैण्ड सब इसी की देन है। एक ओर सरकारी कर्मचारियों की मांग अलग है। अहम मुद्दा को छोड़कर सरकार जो-सो करती रहती है। आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात जो करे वह बेवकूफ! गरीबी रेखा की सीमा तय भी होती है तो अमीरों के पक्ष में। आखिर गरीब जाये तो कहाँ जाये? सरकार 28 और 33 रूपये में एक परिवार को चलाने की बाते करती है। क्या ऐसा संभव है? जब 990 रूपये माह में एक परिवार का जिविकोपार्जन संभव है तो डाक्टरों, प्रोफेसरों, शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन 80 हजार, 60 हजार और 40 हजार क्यों है? क्या सिर्फ इन्हें ही आजादी प्राप्त है। यह सवाल शून्य काल में भी पूछने वाला कोई है?

   आज जब देश की शान राष्ट्रीय तिरंगा फहरता है तो, इसी देश के दिग्भ्रमित युवकों ‘नक्सली और आतंकी’ के रूप में उस त्याग के प्रतीक को जलाने तथा हत्या, लूट इत्यादि में शरीक हो जाते हैं। सरकार बात-चीत के द्वारा इस समस्या का समाधान न कर ऊल-जलूल तरीके अपनाते है, जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय सम्पत्ति का नाश हो रहा है। भले आज देश स्वतन्त्रता की 67वीं वर्षगांठ मना रही है, परन्तु जल, जंगल और जमीन की लड़ाई अभी जारी है।

आंध्र प्रदेश को विभाजित कर तेलंगाना राज्य बनाने के एलान से वहाँ बगावत का बिगुल बज गया है। विभिन्न राजनीतिक दल राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जबरदस्त प्रदर्शन कर रहे हैं। कई इलाकों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए। जिसके चलते एक होम गार्ड सहित कई लोगों ने आत्महत्या कर ली। राज्य में कानून व्यवस्था छत विछत हो गयी है। तेलंगाना के तर्ज पर बोडोलैण्ड पीपुल्स फ्रंट, गोरखालैण्ड जनमुक्ति मोर्चा एवं बुंदेलखण्ड जैसे कई राज्यों की मांग का आन्दोलन तेज हो गया है। राज्य प्राप्त करने की यह कैसी आजादी जो देश में हिंसा पैदा कर दे। खण्ड-खण्ड विभक्त होकर भी सुख-शांति नसीब नहीं। क्या इसी आजादी का सपना बुना था हमारे पूर्वजों ने?

आज भी ऐसे घमासान के बीच अपनी कर्तव्य निष्ठा बनाये रखने वालों की देश में कमी नहीं है; नोएडा में भ्रष्ट रेत माफिया से मोर्चा लेने वाली आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को वहाँ की सरकार ने निलंबित कर दिया। इसके बावजूद इनके जज्बे और हौसले में कमी नहीं आई। ऐसे ही आईएएस और आईपीएस में अशोक खेमका, विकास कुमार, संजीव चतुर्वेदी, मुग्धा सिन्हा, समित शर्मा, उमाशंकर एवं दमयंती सेन जैसे अनेकों ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी भरे पड़े हैं जो देश में आजादी का सच्चा मतलब बताते हैं। देश की रीढ़ को कमजोर करने वाले खतरनाक तत्वों से निजाद दिलाने हेतु अब स्वामी विवेकानंद का या भगत सिंह तो नहीं आयेंगे। परन्तु उनके विचारों के प्रेरणा स्रोत ऐसे लोगों के जेहन में धधकती भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्षरत होकर एक बार और लड़नी होगी आजादी की सच्ची लड़ाई

.

Show More

कैलाश केशरी

लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं। सम्पर्क +919470105764, kailashkeshridumka@gmail.com
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x