चर्चा में

एनआईए की साख का सवाल

 

       भारत में जाँच एजेंसियों का चेहरा हमेशा से ही दागदार रहा है। इसमें सबसे बदनाम राज्यों की पुलिस की जाँच एजेंसियां रहीं हैं जो किसी को किसी भी मामले में फंसाने के आरोपों से हमेशा दो चार होती रहती है। केन्द्रीय स्तर के जाँच एजेंसयों की बात करें तो याद कीजिए 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘सरकार का तोता’ तक कह डाला था। यानि सरकार के मनमुताबिक जाँच एजेंसियों का कार्य करना कोई नई बात नहीं है।

       बहरहाल ताजा मामला एनआईए यानि राष्ट्रीय जाँच एजेंसी से जुड़ा है। असम के जाने-माने सामाजिक व आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई ने असम की जनता के नाम चिट्ठी लिखकर एनआईए पर सरकार व भाजपा के लिए काम करने व प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। गोगोई फिलहाल असम में विधानसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं। गौरतलब है कि भोपाल के सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने भी लोकसभा चुनाव 2019 के समय चुनाव लड़ते हुए मुंबई हमले में शहीद हेमंत करकरे पर जेल में प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था जिस पर उस समय काफी बवाल हुआ था।     

       दरअसल जेल में बंद आरटीआई कार्यकर्ता और नवगठित राइजोर दल के अध्यक्ष अखिल गोगोई ने बीते दिनों जनता के नाम चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया कि उन्हें राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानि एनआईए द्वारा 20 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गयी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने दबाव डाला गया। गौरतलब है कि गोगोई नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध प्रदर्शन में उनकी भूमिका के लिए दिसम्बर 2019 से जेल में बंद हैं। गोगोई ने आरोप लगाया है कि पूछताछ के नाम पर एनआईए के अधिकारियों ने उन्हें राजनीतिक व्याख्यान दिया। उन्हें बताया गया था कि कैसे मुसलमान देश को नष्ट कर रहे थे और सीएए से कैसे राष्ट्र को बचेगी। चिट्ठी में कहा गया है कि एनआईए के अधिकारियों ने उन्हें बताया कि सीएए का विरोध करना मुसलमानों का समर्थन करने और बदले में राष्ट्र विरोधी होने जैसा था।

अखिल गोगोई

       चिट्ठी में गोगाई ने आरोप लगाया कि पहले मुझे हिंदुत्व के बारे में बताया गया और फिर अभद्रता की गयी। मुझे बताया गया कि अगर मैं आरएसएस में शामिल हो गया, तो मुझे तुरंत जमानत मिल जाएगी। इससे इनकार करने पर मुझे भाजपा में शामिल होने का प्रलोभन दिया गया। उन्होंने कहा कि मैं एक खाली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकता हूं और असम में भाजपा सरकार में मन्त्री बन सकता हूं। इसके साथ ही गोगोई ने कहा है कि मुझे उनके अनुसार अपनी ‘राष्ट्र-विरोधी‘ गतिविधियों को छोड़ने और बड़े नदी बांधों के निर्माण के विरोध को खत्म करने को कहा गया था। मुझे सीएए के विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने और विशेष रूप से जापानी प्रधानमन्त्री की गुवाहाटी यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शनों के लिए माफी मांगने के लिए भी कहा गया।

       इतना ही नहीं गोगोई ने कहा कि उन्हें कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) छोड़ने के लिए कहा गया। साथ ही ईसाई धर्म के लोगों के धर्म परिवर्तन का विरोध करने वाले एक गैर सरकारी संगठन को शुरू करने के लिए कहा गया था जिसके लिए उन्हें 20 करोड़ रुपये का वादा किया गया था। उन्होंने आगे चिट्ठी में बताया है कि जब उन्होंने इन सभी प्रस्तावों से इनकार कर दिया, तो मुझे असम के मुख्यमन्त्री और एक प्रभावशाली मन्त्री के साथ बैठक तय करने का आश्वासन दिया गया जिसे उन्होंने पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि उन्हें 10 साल के लिए कारावास की धमकी सहित प्रस्तावों से इनकार करने के लिए गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गयी थी। इसके साथ ही उन्होंने एनआईए मुख्यालय में उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किये जाने का भी आरोप लगाया है। 

       बहरहाल एनआईए दिसम्बर 2008 को भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी विधेयक 2008 के लागू होने के साथ अस्तित्व में आई थी। वर्ष 2019 में इस विधेयक को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से एनआईए बिल को संशोधित किया गया जिस पर भी विपक्ष द्वारा संसद में विरोध किया गया था। इस संशोधन बिल के तहत एनआईए को जाँच के साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया भी पूरी करने की जिम्मेवारी दी गयी है। बिल पर बहस के दौरान संसद में गृह मन्त्री अमित शाह के दिये गये आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2019 के मध्य तक एनआईए ने 195 केस दर्ज किये जिनमें 41 केसों में सजा हुई और 3 मामले निरस्त कर दिये गये। हालांकि 129 मामलों में चार्जशीट दायर की जा चुकी है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि एनआईए विधेयक के संशोधन के बाद इसके कंवीक्शन रेट में इजाफा हुआ है।

       दरअसल जाँच एजेंसी पर आरोप लगाने का यह कोई पहला मामला नहीं है। पहले भी जाँच एजेंसियों पर विपक्ष द्वारा सरकार के दबाव में काम करने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन किसी आरोपी द्वारा जाँच एजेंसी पर किसी पार्टी विशेष का सदस्य बनने का दबाव देने का शायद यह इकलौता मामला है। गोगोई द्वारा लगाये गये आरोप सीधे सीधे एनआईए की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। ऐसे में सवाल बहुतेरे हैं। मसलन क्या गोगोई के द्वारा लगाये आरोप में कोई सच्चाई है या यह केवल चुनावी स्टंट है? और यदि यह चिट्ठी एक चुनावी स्टंट है तो क्या अपने चुनावी फायदे के लिए कोई भी किसी भी जाँच एजेंसी पर झूठे आरोप लगा सकता है? यदि ऐसा है तो एनआईए या सरकार ने गोगोई के खिलाफ कोई कदम क्यों नहीं उठाया? बहरहाल ताज्जुब बात यह कि न तो एनआईए और न ही भाजपा सरकार द्वारा  इन आरोपों का कोई विरोध किया गया हो या इसके खिलाफ कोई कार्रवाई की गयी है। तो क्या यह माना जा सकता है कि गोगोई के आरोपों में सच्चाई है? सच जो भी लेकिन ऐसी चिट्ठी से एनआईए की साख तो सवालों के घेरे में आ ही गयी है। जानकार चिंतित हैं कि एनआईए पर लगे ये आरोप एनआईए का सरकारी तोते में तब्दील होने की प्रक्रिया की पराकाष्ठा तो नहीं है?

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विश्वजीत राहा

लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं। सम्पर्क +918789945606, braha.dmk01@gmail.com
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