लोकसभा चुनाव की तिथि का एलान अब किसी भी समय बज सकता है. चुनाव आते ही सर्वे का दौर शुरू हो जाता है सर्वे के मुताबिक लोकसभा चुनाव में एनडीए को 291 सीटें मिल सकती हैं, जो कि बहुमत से 19 ज्यादा हैं। हालांकि इसमें भी पेंच है। उत्तर प्रदेश में बुआ और बबुआ साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने की स्थिति में केन्द्र में त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति बन सकती है।
यूपी में दोनों दल मिलकर लड़ने पर सीधा नुकसान एनडीए को होगा। इस स्थिति में एनडीए 247 सीटों तक सिमट सकता है, जो कि बहुमत से 25 सीटें दूर है। फिर भी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. सियासत के नए समीकरण बन रहे हैं और तमाम छोटे दल एक दूसरे से गठबंधन कर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हैं. हर तरफ यही सवाल है कि 2019 में किसकी बनेगी सरकार और किसकी होगी हार.सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 2014 के मुकाबले 2019 में वोटों के मामले में बहुत अंतर आया है ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा त्रिशंकु होगी जिसमें किसी भी दल या गठबंधन को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलने जा रहा है।
भाजपा अपने साथियों से मिल रहा है जो उनके ख़िलाफ़ बोल रहे हैं जैसे की शिवसेना। उनकी नाराज़गी के जो भी कारण हों लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के समर्थन के बिना चुनावी गणित में बहुत कुछ बदल सकता है। ख़ास करके दक्षिण भारत में जहाँ उनका ख़ुद का संगठन मज़बूत नहीं है।
2019 का रास्ता मोदी जी के लिए पहले के मुक़ाबले कहीं कठिन हो गया है।
राजनितिक परिदृश्य देखे तो आपको लगेगा की विपक्ष अभी भी बहुत ताकतवर नहीं है । कांग्रेस पार्टी एकजुट तो लग रही है लेकिन अभी तक वो जतना के बीच अपना खोया हुआ विश्वास नहीं प्राप्त कर पायी है । कांग्रेस अब कुछ ही राज्यों में सिमट गयी है. अगर आप उत्तर पूर्व के राज्यों को छोड़ दे तो आप पाएगे की कांग्रेस की पाकर केवल हरयाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्णाटक, गुजरात और तेलंगाना में ही टॉप 2 की पार्टी है. कांग्रेस अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु में लगभग अपना वजूद खो चुकी है। राहुल गाँधी अभी भी लोकप्रियता में मोदी से बहुत पीछे है।
2019 में किसकी सरकार बनेगी, क्या मोदी जी फिर कामयाब होंगे? ये बहुत बड़ा प्रश्न है इसका जबाब सिर्फ और सिर्फ जनता के पास है
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जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
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