Kishan kaljayee

  • हत्या का कोई तर्क नहीं होता – दीपक भास्कर

    दीपक भास्कर  आज 30 जनवरी है। आज के दिन फिर से एक बार, “ब्राह्मणवाद” ने अपनी सबसे क्रूरतम लक्षण का प्रदर्शन किया था। “महात्मा गांधी” की हत्या, एक  हिन्दू-ब्राह्मण नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी। और अब हत्यारे नाथूराम गोडसे…

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  • अंतरराष्ट्रीयराजदीप दासगुप्त

    राजनीति से हटकर

      हर बात को राजनीति मं घसीटकर देखना आज के वातावरण में आम बात हो गयी है। इसका प्रसार पिछले पाँच साल में हुआ है जबसे यह तर्क दिया जाने लगा है कि ‘क्या पहले ऐसा नहीं होता था क्या?’…

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  • आरक्षण से आगे 

       विजय कुमार फिर लगभग 30 साल का कोर्स पूरा हुआ कि पूरा भारतीय समाज खास कर युवा वर्ग आरक्षण समर्थन और आरक्षण विरोध की चक्की में पिसता रहा| हालात यह हो गई की समर्थन और विरोध करने वाले आपस में दुश्मनी…

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  • जनान्दोलन और महिलाओं की भागीदारी

     अंजलि दलाल अंतर्राष्ट्रीय शासन के सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के अनुसार, लिंग समानता और पर्यावरण स्थिरता 21 शताब्दी के बहुत ही महत्वपूर्ण एवं अंतःसम्बन्धित लक्ष्य हैं। इसी दौरान, बहुत से पर्यावरण-आंदोलनों, जैसे चिपको आंदोलन, प्लाचीमाड़ा आंदोलन, ग्रीनबेल्ट आंदोलन (कीनिया), नर्मदा बचाओ…

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  • मासूमों को कैसे न्याय मिले

      निवेदिता यह कहना मुश्किल है कि बिहार के बालिका गृह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले के बावजूद बच्चियों को न्याय मिल पायेगा। जिस अपराध में सरकार और सरकारी मिशनरी ही शामिल हो उससे न्याय की उम्मीद…

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  • साहित्य

    भारत माता ग्रामवासिनी!

      इण्टर के विद्यार्थियों को वर्षों से कवि सुमित्रानन्दन की कविता ‘भारत माता ग्रामवासिनी’ पढ़ाते हुए इस बार अर्थ के कुछ और आयाम उद्भासित हुए और साथ ही कुछ सवाल भी। भारत माता ग्रामवासिनी कविता स्वतन्त्रता संघर्ष के दौर की…

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  • विकास और अस्तित्व का संघर्ष

      महेन्द्र यादव तथाकथित विकास के विनाशकारी रूप, भ्रष्टाचार, सरकारी अफसरशाही के निकम्मेपन, नेताओं के दावे और हकीकत के फासले, अपने लोगों की बातें अनसुनी करने वाली चुनी सरकार का नमूना एक साथ देखना हो तो बिहार का कोशी क्षेत्र…

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  • मुनादी

    जनान्दोलन ऐसा जो राजनीति बदल दे

      व्यवस्था में परिवर्तन की चाह से आम जन द्वारा किये गये राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों को ही जनान्दोलन कहा जा सकता है। भारत सैकड़ों वर्षों तक गुलाम बना रहा।उस गुलामी की जकड़ से भारतवासियों  के मुक्त होने की छटपटाहट…

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  • हाशिये के समाज का रंगमंच

    राजेश कुमार हाशिये के लोगों पर चाहे उसके साहित्य पर बातचीत हो या संस्कृति पर, घुमा फिरा कर बहस का कोई न कोई मुद्दा आ ही जाता है। आखिर ये हाशिया है क्या? लोगों को इस शब्द से पाला स्कूल…

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  • छत्तीसगढ़

    समृद्ध लोकजीवन के सपने देखने वाले का जाना…

    पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी की याद में…   भरोसा नहीं होता कि पद्मश्री से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार- साहित्यकार पं.श्यामलाल चतुर्वेदी नहीं रहे।  शुक्रवार सुबह ( 7 दिसंबर, 2018) उनके निधन की सूचना ने बहुत सारे चित्र और स्मृतियां सामने ला…

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