‘सुन्दर लाल बहुगुणा’ एक ऐसा शब्द और व्यक्तित्व नाम है जिसके पर्यायवाची शब्दों में बहुत से शब्द हैं यथा चिपको आन्दोलन, वृक्षों के रक्षक या वृक्षमित्र, शराब के खिलाफ लड़नेवाला अप्रतिम योद्धा, टिहरी राजशाही के कटु विरोधी, टिहरी बाँध से होनेवाले पर्यावरण की अपूरणीय क्षति के सजग उद्घोषक, पर्यावरण के प्रति देश भर के युवाओं के पथप्रदर्शक आदि-आदि । पर्यावरण संरक्षण के प्रति आजीवन अथक जागरूकता और जनजागृति करनेवाला महान मनीषी 21-5-2021 को इस दुनिया को सदा के लिए छोड़कर चला गया।
वास्तव में स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा जी के जीवन का एकमात्र लक्ष्य वृक्षों को बचाकर, पर्यावरण की रक्षा करना था, हाँलाकि अपने प्रारंभिक जीवन में वे राजनीति में भी अपना कैरियर आजमा चुके थे, लेकिन 9 जनवरी 1927 में टिहरी में जन्मे स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा जी श्रीमती विमला बहुगुणा जी से 1956 में शादी के पवित्र बंधन में बंधते ही राजनीति को सदा के लिए तिलांजलि देकर, पूर्णरूपेण अपना जीवन पर्यावरण को, पेड़ों को बचाने तथा अन्य अनेक बुराइयों को इस दुनिया से उखाड़ फेंकने को कृत संकल्पित हो गये, अपने इस पवित्र और पुनीत संकल्प को उन्होंने जीवनपर्यंत पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से निभाया।
अपनी शादी के तुरन्त बाद ही उन्होंने 1956 में अपनी पत्नी श्रीमती विमला बहुगुणा जी व अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर अपने मातृ जिले टिहरी-गढ़वाल में पर्यावरण संरक्षण के कार्यों को विधिवत व पुरजोर तरीके से करने के लिए ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ नामक एक आश्रम की स्थापना किये, सबसे पहले वे अपनी जन्मभूमि टिहरी और उसके आसपास के क्षेत्रों में ही शराब जैसी बुराई को समाप्त करने का बीड़ा उठाया, इस पुनीत कार्य में उन्हें काफी सफलता भी मिली, परन्तु 1960 के दशक में उन्होंने अपने आन्दोलन की धारा प्रमुख रूप से पेड़ों और जंगलों की सुरक्षा पर केन्द्रित कर दिया।
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वे पर्वतीय क्षेत्र की ही एक कर्मठ महिला गौरा देवी और अन्य कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व जुझारू युवाओं व छात्रों की मदद से वहाँ के जंगलों में अवैध या सरकारी संरक्षण में लकड़ी काटनेवाले ठेकेदारों व भूमाफियाओं के खिलाफ ‘चिपको आन्दोलन’ के रूप में एक बहुत ही सशक्त व मानवीय विरोध या अवरोधक के रूप में चट्टान की तरह डट गये, 26 मार्च 1974 को स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा जी व श्रीमती गौरा देवी के नेतृत्व में उस पर्वतांचल के हजारों युवक और युवतियों का समूह ‘वहाँ के सैकड़ों पेड़ों से, पहले हमें काटो, फिर जंगल को काटो’, नारे के तहत चिपक गये, मजबूर होकर उस समय जंगल काटनेवाले ठेकेदारों व भूमॉफियाओं को पीछे हट जाना पड़ा था।
वे 1981 से 1983 के समय में पर्यावरण जनजागृति के तहत कश्मीर से लेकर कोहिमा तक लगभग 5000 किलोमीटर की दूरी को, बीच में पड़नेवाले गाँव के लोगों को पर्यावरण बचाने से क्या-लाभ है, जंगल और पेड़ों की इस जीवजगत के लिए क्या उपयोगिता है आदि-आदि बातों को समझाते और जागरूक करते हुए पैदल यात्रा की, दुनियाभर में स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा जी की इस कार्य की भूरि-2 प्रशंसा हुई, उन्होंने तत्कालीन भारत की प्रधानमंत्री स्वर्गीया इंदिरा गांधी से मुलाकात करके हिमालयी पेड़ों और जंगलों को 15 साल तक न कटने देने का आदेश केन्द्र द्वारा पारित करवा लेने में सफल रहे।
उन्होंने अपने जिले टिहरी के राजशाही के गरीबों के शोषण के खिलाफ सशक्त विरोध किया, जिससे उन्हें कई बार जेल तक भी जाना पड़ा, भविष्य में टिहरी बाँध बनने से पर्यावरण को होनेवाली अकथ्य क्षति का पूर्वानुमान लगाकर वे इस प्रोजेक्ट का शुरू से ही पुरजोर विरोध करते रहे हैं, इसके विरोध में अपने सिर को मुंड़वाने से लेकर उनके द्वारा 84 दिन तक आमरण अनशन करने आदि कार्य भी शामिल है!
वे हिमालय जैसे भूगर्भीय संवेदनशील इलाके में होटलों और लग्जरी टूरिज्म के सख्त विरोधी थे, लेकिन सत्ता के कर्णधारों, ब्यूरोक्रेट्स और ठेकेदारों की भ्रष्टत्रयी ने टिहरी बाँध के निर्माण को अनवरत जारी रखा और अंततः उसे बना ही दिया, दुःख इस बात का है कि स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा जी का स्वयं का घर भी टिहरी जलाशय में सदा के लिए समा गया! लेकिन स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा जी इस देश के युवाओं में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने में काफी हद तक सफल रहे।
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उन्होंने जीवनपर्यंत पर्यावरण को बचाने के लिए अनवरत अनशन, आन्दोलन, पदयात्रा आदि अकथनीय कष्टकारी परन्तु सत्य के मार्ग पर चलकर भारत और दुनिया के असंख्य युवक, युवतियों, छात्रों व जागरूक नागरिकों के लिए एक प्रेरणास्रोत बने रहे। उनके द्वारा किये गये इन सद् कार्यों से इस देश और दुनिया के अन्य देशों की सरकारों और संस्थानों ने उन्हें विभिन्न अलंकरणों से सम्मानित व विभूषित किया, उदाहरणार्थ भारत की सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से, अमेरिका की एक संस्था फ्रेंड्स ऑफ नेचर पदक से और स्वीडन सरकार ने उन्हें राइट लाइवलीहुड के पदक से सम्मानित किया।
ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी, पर्यावरण और प्रकृति के सचेतक मनीषी के देहावसान पर उन्हें इस पूरे देश के पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्ध और चिंतित करोड़ों नागरिकों की विनम्र, हार्दिक, अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
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निर्मल कुमार शर्मा
लेखक गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण से सम्बद्ध हैं तथा पत्र-पत्रिकाओं में सशक्त व निष्पृह लेखन करते हैं। सम्पर्क +919910629632, nirmalkumarsharma3@gmail.com

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