
पं. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के जन्मदिवस पर विशेष – पवन कुमार गर्ग
*उसने कहा था*
हिंदी की प्रसिद्ध कहानियों में से सर्वाधिक प्रसिद्ध कहानी है उसने कहा था ।
विशेष रुप से यह कहानी मानवीय संवेदना के एक गहन कोने में ठोह पाती है । लेखक का क्या उद्देश्य क्या रहा, मात्र इसके आधार पर इस कहानी की समीक्षा नहीं की जा सकती है । कहानी का मुख्य पात्र लहना सिंह है जो प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सेना ( अंग्रेजो के अधीन भारत की ) में सिख राइफल में जमादार है । अन्य पात्र सूबेदार हजारा सिंह, सूबेदारनी , बोधा सिंह , वजीरा सिंह आदि । सूबेदारनी लहना सिंह के बचपन की स्मृति में सुखद अनुभव है जिसे एक कड़वाहट रूप में उसने भुला दिया था । लेकिन यह संबंध उस समय वापस उठ खड़ा हो जाता है जब लहना सिंह युद्ध में जाते समय सूबेदार के घर होकर जाता है और सूबेदारनी उसे पहचान जाती है । सूबेदारनी का लहनासिंह को पहचानने का प्रमुख कारण यही रहा की सूबेदार लहना सिंह की हर बात सूबेदारनी को बताते थे । सूबेदार जब लहना सिंह को कहता है कि सूबेदारनी उसे जानती है तो उसे अचंभा होता है । यह कहानी गहरी स्मृतियों को साथ लेकर चलती है सूबेदारनी तेरी कुड़माई और धत्त वाली बात से लहनासिंह जी स्मृतियों को कुरेद कर उसे जीवंत बनाती है । यह बात सोचनीय है कि आठ वर्ष की बालिका और बारह वर्ष का बालक यौवनावस्था के प्रेम से अनभिज्ञ हो लेकिन उनमें बालपन के प्रेम की गहराई अवश्य है । दोनों ही उस समय शादी का मतलब नहीं जानते थे, लेकिन अपने माता-पिता के साथ से यह तो अनुमान लगा सकते थे कि शादी होने पर आदमी और औरत एक साथ एक ही घर में रहने लगते हैं । कहानी की गहराई में बालपन के प्रेम के बीज है , जो पच्चीस वर्ष बाद फिर से सक्रिय हो गए हैं । बालपन के प्रेम की गहराई वास्तव में अधिक होती है कुछ समीक्षकों का मानना है कि दोनो ही आठ वर्ष व बारह वर्ष की उम्र में विवाह का मतलब नहीं समझते थे, तब तो कुड़माई वाली बात का कोई औचित्य नहीं । उन्हें यह भी विचार करना चाहिए कि तत्कालीन समय में बाल विवाह की प्रथा थी तो इसका सहज ज्ञान आना कोई विशेष बात नहीं थी । यह ज्ञान पति-पत्नी के रिश्ते से परिचित कराता था । लहना सिंह का बार-बार कुड़माई के बारे में पूछना बालिका का धत्त कहना इसमें बाल स्वाभाविक वाचालता और बाल मनोविज्ञान दिखाई पड़ता है ।
लहनासिंह की प्रत्युत्पन्नमतित्व एवं साहस उसे नायक बनाता है । आठ वर्षीय बालिका को बारह वर्ष का बालक अपनी सूझ-बूझ और साहस से बिगड़े घोड़े से बचाता है । वही आठ वर्ष की बालिका पच्चीस वर्ष बाद सूबेदारनी लहनासिंह की बहादुरी से परिचित है और अपने ख़सम व पुत्र की जान की रक्षा का वचन लहना सिंह से मांगती है । लहनासिंह उसके वचन की रक्षा इसलिए नहीं करता है कि वह बचपन की सहचरी के प्रेम में बंधा था, बल्कि इसलिए भी करता है कि उसे करनी चाहिए । यह उसके व्यक्तित्व की स्वाभाविक विशेषता है ।
लहनासिंह की कहानी में सुबेदारनी आना घनानंद के जीवन में सुजान की तरह है । यदि सुजान से घनानंद का संबंध न होता तो वे कृष्ण भक्त कवि होते हैं, उसी प्रकार लहना सिंह का संबंध सूबेदारनी से न होता तो लहना सिंह एक साहसी वीर सैनिक मात्र होता । लेकिन सूबेदारनी के प्रसंग ने लहना सिंह को उदात्त प्रेमी बना दिया । कहानी में युद्ध समस्या के रूप मे आता है, जो भारतीयों द्वारा अंग्रेजों की तरफ से जर्मनी के खिलाफ लड़ा जा रहा था । लहना सिंह और वजीरा सिंह की बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनमे देश भक्ति का पूर्ण भाव तो नही है लेकिन उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा मे कोई कमी न थी । एक जगह लहनासिंह कहता है कि “मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाए । फिर सात जर्मनों को अकेला मार कर न लौटू तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो ।” सूबेदारनी भी तीमियों की घाघरा पलटन की बात करती है । देशभक्ति के भाव पर नमक हलाली और कर्तव्यनिष्ठा का भाव अधिक प्रभावी है । इस आधार पर इस कहानी की तुलना पूर्णता देशभक्ति के रूप में नहीं की जा सकती है बल्कि भारतीयों की सच्ची निष्ठा इसमें मौजूद है ।
कहानी की भाषा सिख राइफल के जवानों की है जो स्वाभाविक रूप से पंजाबी मिश्रित है कहीं-कहीं अंग्रेजी शब्द रिलीफ, हेनरी मार्टिन (बंदूक की कंपनी का नाम ) आदि आए हैं जो स्वाभाविक है । गुलेरी जी अमृतसर के एक मोहल्ले और बेल्जियम की युद्ध भूमि के परिवेश का यथार्थ चित्रण करते हैं । इस चित्रण में कोई तारतम्यता टूटी नहीं है । इस तरह कहा जा सकता है कि उसने कहा था कहानी एक पूर्णतः प्रेम कहानी है साथ ही इसमें युद्ध का चित्रण करके कहानी की रोचकता को बढ़ाया गया है यह कहानी हिंदी की कालजयी कहानियों में से एक है और हमेशा बनी रहेगी ।
शोधार्थी
पवन कुमार गर्ग
झंझोला (भीलवाड़ा) राजस्थान ।
9799414989, pavankumarg80@gmail.com