उत्तराखंडसमाज

Soulify : कुछ नया करके देखो

 

दुनिया में हर किसी का मुख्यतः एक ही सपना होता है। पैदा होने के बाद पारम्परिक शिक्षा ग्रहण करते हुए बड़ा होना और फिर अच्छी नौकरी प्राप्त कर समाज में यश प्राप्ति करते हुए आगे बढ़ना। अंत में अपने परिवार के लिए बहुत सा धन छोड़ इस दुनिया से चले जाना।

क्या हम अपने ही समाज के बने इसी ढांचे पर ढल गये हैं जहाँ उपभोक्ता संस्कृति ही जीवन में सफलता का पैमाना है। हम मीडिया के माध्यम से समाज के सबसे अमीर लोगों को देख उनके जैसा बनने के सपने बुनते-बुनते अपना जीवन निकाल देते हैं और हम जो वास्तव में हैं उसे कहीं खो देते हैं।

Soulify.org.in यह सिर्फ़ खुद को खोजने वाली वाली वेबसाइट नही है, यह कहानी है ऐसे परिवार की जिसने खुद को समझा और अपना एक अलग रास्ता चुना।

Soulify दम्पति

स्मृति राज का जन्म पटना निवासी जयंत प्रसाद साह और कंचन माला के घर में हुआ। पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर जयंत प्रसाद ने अपनी बेटी को बचपन से ही कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षा दी जिसकी वजह से स्मृति ने बचपन से ही बड़े सपने देखने शुरू कर दिए थे। यही सपने बड़े होने पर उन्हें मुंबई खींच कर ले गये। वहीं सिद्धार्थ मस्केरी का जन्म मुंबई में ही हुआ था और उनके पिता प्रमोद मस्केरी बैंक ऑफ इंडिया में और माता शर्दिनी ‘किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल एल्फिंस्टोन, मुंबई’ की एक पुरस्कार विजेता नर्स थी। सिद्धार्थ का बचपन अपने पिता की नौकरी की वजह से लंदन और हाँगकांग जैसे शहरों में गुजरा फिर वापस उनका परिवार मुंबई आ गया। सिद्धार्थ को शुरू से ही कहानी लिखना पसन्द था पर उनके माता-पिता को यह पसन्द नही था इसलिए सिद्धार्थ ने पढ़ाई के लिए माइक्रोबायोलॉजी को चुना पर वह खुद ही एनिमेशन सीखने लगे और उसे पढ़ाते भी थे। स्मृति ने भी ग्राफिक डिजाइन की पढ़ाई के लिए मुंबई स्थित सी-डैक को चुना।

इस बीच ही सिद्धार्थ और स्मृति की एक पारस्परिक मित्र ने स्मृति का परिचय सिद्धार्थ से कराया ताकि खुद से एनिमेशन सीख और पढ़ा रहे सिद्धार्थ से स्मृति कुछ नया सीख सके। इस बीच सिद्धार्थ सी-डैक में पढ़ाने लगे और स्मृति वेब डिजाइनिंग का काम करने लगी। स्मृति और सिद्धार्थ उत्साही स्वभाव के थे और हमेशा ही कुछ नया करना चाहते थे। किसी जगह नौकरी के बजाए इन दोनों को उद्यमिता पर ज्यादा भरोसा था। अपनी इसी समानता की वज़ह से दोनो करीब आते गये और लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे।

स्मृति के घरवाले इस रिश्ते के खिलाफ नही थे पर सिद्धार्थ के घर में उस समय मुंबई में मीडिया द्वारा बिहारियों को लेकर बनाई गई नकारात्मक छवि की वजह से इस रिश्ते को लेकर डर था। साल 2002 में अपनी माँ की मृत्यु के बाद 2003 में सिद्धार्थ दिवाली के दौरान जनरल टिकट पर स्मृति के घरवालों से मिलने मुंबई से बिहार पहुंचे थे। वर्ष 2004 में विश्व सामाजिक मंच की चौथी बैठक मुंबई में हुई थी।  मुख्य तौर पर ट्रेड यूनियन, ग़ैर सरकारी संगठनों और वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं वाले इस विश्व सामाजिक मंच के पीछे की सोच आर्थिक वैश्वीकरण का विरोध करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय मंच की है।

विश्व समाजिक मंच मुंबई 2004- फ़ोटो साभार  yachana.org

स्मृति हमेशा से यह सोचती थी कि हम उपभोगवादी समाज में रहते हैं और हमेशा अपना फायदा-नुकसान देखते रहते हैं। समाज में महंगे ब्रांडेड कपड़े पहनना, अच्छा खाना खाते दूसरे को दिखाना, हम सब समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए यह कार्य क्यों करते हैं। कभी-कभी उन्हें लगता था कि वह गलत हैं और समाज सही है। विश्व सामाजिक मंच में जाकर उन्हें लगा कि वह सही हैं और उनकी सोच की तरह सोचने वाले दुनिया में और लोग भी हैं। वहाँ उनकी मुलाकात मंजुल भारद्वाज से हुई। “थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार “थिएटर आफ रेलेवेंस” के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं। स्मृति ने वहाँ मंजुल के चाइल्ड थियेटर वर्कशॉप को देखा, यह उनके लिए कुछ नया सीखने और खुद को खोजने का अवसर था।

स्मृति सोचती थी कि हम जो शिक्षा अपने बच्चों को दे रहे हैं उसमें व्यक्तित्व निर्माण की जगह कहाँ है। हमारे बच्चे ऐसे बच्चों के साथ क्यों बड़े नही होते जो आम बच्चों से अलग हैं। क्यों ऐसे बच्चे जो चल नही सकते, देख नही सकते उन्हें और आम बच्चों को बचपन से ही अलग- अलग रखा जाता है, उन्हें समाज क्यों छुपाने की कोशिश करता है। स्मृति ने कमाठीपुरा में नाटक का मंचन किया जहाँ एड्स जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त बच्चे रहते हैं। उन्होंने ‘पॉपुलेशन फर्स्ट‘ नाम की संस्था द्वारा कन्या भ्रूण हत्या पर चलाई जा रही मुहिम के अंतर्गत मुंबई के मशहुर ‘टाटा थियेटर’ पर नाटक का मंचन किया।

जैसे गांधी जी ने राजा हरिश्चंद्र का नाटक देख कर सत्य और अहिंसा पर चलने की प्रेरणा ली थी, ठीक वैसे ही स्मृति भी अपने नाटकों के माध्यम से अपने दिखावे के मुखोटे उतार लोगों को प्रेरणा देना चाहती थी। यह नाटक का काम चल तो रहा था पर इससे आजीविका नही होती थी और घरवालों के दबाब में फिर स्मृति ने एडवरटाइजिंग, पब्लिकेशन का काम किया और मुंबई की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में खो गई। धीरे-धीरे उन्हें यह महसूस होने लगा कि वह फिर मुखोटे में जीने लगी हैं और खुद से ज्यादा झूठ नही बोल सकती।

इस बीच सिद्धार्थ कला से जुड़े बहुत से प्रतिष्ठित संस्थानों में काम कर रहे थे। वह बॉलीवुड के मशहूर फ़िल्म निर्माता और निर्देशक सुभाष घई के विश्व प्रसिद्ध फ़िल्म संस्थान ‘व्हिस्टलिंग वुड्स इंटरनेशनल’ में पढ़ाते थे। उन्होंने मुंबई के ऐतिहासिक फ़ेमस स्टूडियो और वैभव स्टूडियो के साथ भी काम किया। वह बॉलीवुड फ़िल्म ‘तारे ज़मीन पर’ और ‘मस्ती एक्सप्रेस’ के साथ जुड़े थे। उनकी एनिमेटेड सीरीज़ ‘एनको द एस्किमो-ए किड्स’ कार्टून नेटवर्क यूएसए के बैनर तले निर्माणाधीन है। जिसमें वह ‘एमी’ मनोनीत लेखक माइक ब्लम के साथ सह निर्माता हैं। उन्हें साल 2012 में अपनी कहानी ‘द पिकल कार एडवेंचर’ को ‘एनेसी फेस्टिवल‘ में साझा करने के लिए फ्रेंच एम्बेसी द्वारा प्रायोजित किया गया था।

सिद्धार्थ को पटना स्थित बिहार संग्रहालय बनाने वाली टीम में भी जगह मिली।  यह संग्रहालय पूरी दुनिया में भारतीय कला के सबसे समृद्ध संग्रह में से एक के विश्व स्तरीय प्रदर्शन का अनुभव करने के लिए एक जगह है। स्मृति की तरह ही अच्छी जगह काम करने और ऊंचा वेतन पाने के बाद भी सिद्धार्थ अपनी नौकरियों से संतुष्ट नही थे क्योंकि उनका सपना अपनी कहानी पर काम करने का था।दिसम्बर 2006 में स्मृति की नानी के मंत्रों के बीच दोनों की कोर्ट में शादी हुई और सिद्धार्थ के पिता की जिद पर बाद में मुंबई में ही शादी का रिसेप्शन दिया गया।

स्मृति और अद्वैत

6 अगस्त 2009 में स्मृति और सिद्धार्थ के पुत्र अद्वैत का जन्म हुआ। यहाँ से यह दम्पति सोचने लगा कि उन्हें अपने बेटे की छवि एक लड़के और लड़की से दूर एक इंसान के रूप में बनानी है। उन दोनों में अब राजनीतिक और सामाजिक सोच की जगह आध्यात्मिक सोच बढ़ने लगी। मस्केरी दम्पत्ति ने अद्वैत को ‘वाल्डोर्फ प्रणाली’ की शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया। यहाँ पर स्मृति का थिएटर वाला अनुभव काम कर रहा था। उन्हें यह लगता था कि जब बच्चा बड़ा होने लगता है तो हम उसे जबर्दस्ती पेन पकड़ा देते हैं और हम उसके विकास के अनुक्रम को जबर्दस्ती प्रभावित करने लगते हैं।वाल्डोर्फ प्रणाली के जनक रुडोल्फ स्टीनर का मानना ​​था कि बच्चों के विकास में कुत्रिम रूप से तेजी लाने की आवश्यकता नही है, बच्चे को नया कौशल सीखने के लिए समय चाहिए।

अद्वैत ने मुंबई के प्रतिष्ठित इनोदय और कैम्ब्रिज स्कूलों में अपनी शिक्षा ग्रहण की पर इस बीच उसका स्वास्थ्य भी ख़राब रहने लगा। मस्केरी दम्पत्ति को यह लगने लगा था कि हर स्कूली संस्थान का उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना ही होता है। स्कूलों से यह बोला जाता कि आपका बच्चा पिछड़ रहा है पर वह अद्वैत को स्कूलों के मानदंडों पर नही तोलते थे। वह इस बात को लेकर जागरूक थे कि अद्वैत की समझ घर में ही शिक्षा देने पर कितनी विकसित हो रही है। वह अद्वैत की किसी भी इच्छा को दबाते नही थे, वह चाहता तो कमीज़ के बटन लगाता था, बर्तन धोता था, कपड़े समेटता, सब्जी काटता और छह साल का होते किचन के सारे काम करने लगा था। मस्केरी दम्पत्ति अद्वैत पर प्रयोग करते हुए उसे खुद को खोजने का अवसर दे रहे थे।

मस्केरी दम्पत्ति अद्वैत को किसी स्कूल में न भेजकर घर पर ही पढ़ाना चाहते थे पर अपने परिवारों के दबाव की वज़ह से ऐसा नही कर पाते थे। साल 2017 में मस्केरी परिवार दिल्ली के साकेत स्थित एक पॉश इलाके में शिफ्ट हो गये। सिद्धार्थ दिल्ली में बैंडिट क्वीन, मकबूल जैसी मशहूर फिल्मों के निर्देशक बॉबी बेदी के गुरुद्वारे से जुड़े एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। यह समय मस्केरी दम्पत्ति के जीवन का सबसे बुरा समय था। उनको लगने लगा था कि वह एक मशीन की तरह जीवन जी रहे हैं, अद्वैत का काम करने एक बाई घर आती थी जो उसे सुबह स्कूल भेजती और फिर वह वापस लौटने पर गृहकार्य में ही व्यस्त रहता। दम्पति सुबह ही अपने काम पर निकल जाते थे। दिन भर एक दूसरे से दूर रह उनके बीच परिवार जैसा कुछ नही था। इस वजह से उन्हें एक घुटन सी महसूस होने लगी थी और उनके वैवाहिक जीवन में भी तनाव आने लगा था।

यह पूरी प्रक्रिया वर्तमान में हर परिवार के साथ होती है, हर दम्पति का अब मशीनी जीवन हो गया है जहाँ भावनाओं के लिए कोई जगह नही रह जाती पर मस्केरी दम्पति ने इसे समझा और वह उस चक्र से अलग हटना चाहते थे जहाँ पूरी दुनिया जीने लगी है, जिसमें पैदा होना, पढ़ना, डिग्री लेना, बच्चे पैदा करना ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। उन्होंने निर्णय लिया कि वह इस चक्र को तोड़ेंगे। मस्केरी दम्पति ने इसके लिए एक प्रयोग किया और अपने घर के एक कमरे को समुदाय के लिए खोल दिया। वह कमरा उन्होंने एक मंच के रूप में ऐसे लोगों के लिए खोल दिया जो अपना हुनर दूसरों के साथ बांटना चाहते थे। ऐसे लोगों में रचनात्मक प्रकार के लोग होते थे जिसमें बड़े और बूढ़े सब समान थे क्योंकि सीखने की कोई उम्र नही होती।

मस्केरी दम्पति के दिल्ली स्थित घर में Soulify की कार्यशाला

जैसे हम अपने कमरे को किराए पर देने के लिए ओएलएक्स जैसी वेबसाइट का प्रयोग करते हैं वैसे ही मस्केरी परिवार ने अपना कमरा निःस्वार्थ भाव से जरूरतमन्दों की मदद के लिए बनाए गये एक फेसबुक पेज दरिया दिल की दुकान पर साझा किया था। अब उनके इस कमरे पर नए नए प्रयोग होने लगे थे। वहाँ डॉक्टर, इंजीनियर, बैंकिंग, लेखन हर क्षेत्र से जुड़े लोग अपने अनुभव साझा करने आने लगे। वहीं बॉबी बेदी के गुरुद्वारे वाले प्रोजेक्ट पर काम करते हुए सिद्धार्थ ने गुरुनानक देव जी के बारे में समझा कि उन्होंने घूम-घूम कर कैसे ज्ञान अर्जित किया और उस ज्ञान को वह कैसे लोगों के बीच बांटते चले गये।

मस्केरी दम्पति को अब खुद को समझने का मौका मिला कि उनकी भाषा कितनी मशीनी हो गई है वह सिर्फ अपने काम में इस्तेमाल होने वाली भाषा बोलते हैं जिसमें न दिल को छूने वाली गर्माहट होती है और न ही रिश्तों को बांधने वाली कोई डोर। उन्हें दुनिया की सच्चाई को समझने का मौका मिला कि हम सब उपभोगता वाद के पीछे अंधे होकर भाग रहे हैं। जो जितना ज्यादा पैसा, बड़ा घर, महंगे सामान जोड़ेगा समाज और उसके खुद के परिवार में उसकी उतनी ही अधिक इज्ज़त होगी।

सिद्धार्थ ने पच्चीस सौ रुपए महीने से कमाना शुरू किया और उस समय वह डेढ़ लाख रुपए महीना कमा रहे थे पर लोन, घर के खर्चे पर सारा कमाया चला जाता था, उन्हें ऐसा लगता था कि वह शीशम के बेड पर लेटे तो हैं पर वहाँ उन्हें नींद नही है। अब उन्होंने निर्णय लिया कि वह अब अपने दिल की सुनेंगे और यहीं से Soulify.org.in की नींव पड़ी।

soulify परिवार का कारवां

मंजुल भारद्वाज ने साल 1992 में  द एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउंडेशन की स्थापना की थी जो थिएटर आफ रेलेवेंस के सिद्धांत पर आधारित है। उसके 25 साल पूरे होने पर स्मृति ने अपने जन्मदिन 17 मई 2017 पर, दिल्ली के मुक्तधारा और ‘अलायन्स फ्रांसौयज़’ सभागृह में ‘थियटर आफ रेलेवंस नाट्य उत्सव’ के अंतर्गत तीन नाटकों के मंचन के आयोजन का निर्णय लिया।

अनहद नाद- अनहर्रड साउंड्स आफ यूनिवर्स, गर्भ, न्याय के भंवर में भंवरी। इन तीनों नाटकों के रचयिता मंजुल भारद्वाज हैं।

इसके साथ ही मस्केरी दम्पत्ति ने ‘क्रिएटर एन्विज़निंग फॉर्म’ का आयोजन भी किया जहाँ जीवन में कुछ अलग करने की चाह रखने वाले लोग भी आएं, उसमें राजनीतिक, कला, लेखन जैसे किसी भी क्षेत्र के लोग शामिल हो सकते थे। इसी आयोजन के बीच सिद्धार्थ की मंजुल भारद्वाज से पुनः मुलाकात हुई।

मंजुल ने सिद्धार्थ से पूछा कि तुम्हारे जीवन जीने की दृष्टि क्या है?

सिद्धार्थ बोले कि मैंने अपनी मां को वादा किया था कि वह ऑस्कर जीतेंगे और वही उनके जीवन की सबसे बड़ी सफलता होगी। मंजुल ने सिद्धार्थ को बताया कि आप एक लक्ष्य लेकर चल रहे हैं पर आपकी जीवन दृष्टि तो है ही नही। 26 सितम्बर 2017 को मंजुल की यह बात सुनकर सिद्धार्थ अंदर तक हिल गये और उन्हें रात भर नींद नही आई। सुबह उठते ही उन्होंने मंजुल से कहा कि वह लोगों को कहानियां सुनकर और सुनाकर खुशियां बांटना चाहते हैं और यही उनके जीवन का दर्शन है। मंजुल ने सिद्धार्थ से बोला कि तुमने यह सन्तों वाली बात कही है।

किस्मत सिद्धार्थ के लिए आगे के रास्ते खोल रही थी। अगले दिन उनके ऑफिस पहुंचते ही बॉबी बेदी ने उनसे कहा कि गुरुद्वारे पर फ़िल्म वाले प्रोजेक्ट के फंड रुक गये हैं और हमें यह काम रोकना होगा। सिद्धार्थ ने ऑफिस से नीचे आकर स्मृति को फोन किया और बोला कि हमारे मन की बात हो गई है। बह्मांड हमसे जो चाहता है वह हो रहा है। ऊपर वाले ने पेड़ की डाल काट कर बोला है उड़ो और वापस इस घोसले में कभी मत आना और न ही किसी दूसरे पेड़ पर जाना।

वापस ऑफिस जाकर सिद्धार्थ ने बॉबी को धन्यवाद ईमेल लिखा। उन्होंने लिखा कि बॉबी आपने मेरे लिए जो भी किया वह मेरे पिताजी ने भी कभी मेरे लिए नही किया, उन्होंने मुझे हमेशा बचाया ही पर आपने मुझ पर विश्वास किया कि मैं उड़ सकता हूं। ऊपरवाले ने आपको मेरी उड़ान के लिए एक ज़रिया बनने के लिए चुना है। इन सब के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

दिल की आवाज़ सुनने पर हमारे आगे के रास्ते खुद ही खुलने लगते हैं वैसे ही सिद्धार्थ के साथ हुआ। प्रोजेक्ट छोड़ते ही उन्हें अपने प्रोजेक्ट्स के लिए पार्टनर मिल गये जो उनके एनिमेशन को डेवलप कर आगे बेचने के लिए तैयार थे। एक एजुकेशन कम्पनी ने उन्हें हफ़्ते में तीन दिन अपने स्टूडियो में क्रिएटिव डायरेक्शन और ट्रेनिंग देने के लिए अस्सी हज़ार रुपए ऑफर किए।

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन अहमदाबाद के छात्र और सिद्धार्थ

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन अहमदाबाद ने अपने छात्रों को थ्री डी एनिमेशन के ज़रिए कहानी सुनाने के लिए सिद्धार्थ को अहमदाबाद बुलाया। मस्केरी परिवार जनवरी 2018 को अपनी कार में Soulify का बैनर लगा कर दिल्ली से अहमदाबाद चल दिया।

सिद्धार्थ के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन अहमदाबाद के सफ़र पर  एक किताब ‘आई एम पॉसिबल‘ भी छपी है।

इस यात्रा के बाद वह लोग दिल्ली में अपने घर पर हर रविवार Soulify- Creators connect नाम से कहानी सुनने सुनाने का एक सत्र रखने लगे। इसके बाद Soulify परिवार ने पूरी धरती को ही अपना घर मानते हुए पूरी दुनिया में अपनी कहानी सुनने सुनाने और खुशियां बांटने का निर्णय लिया।

soulify.org.in के द्वारा यह परिवार कहानी कहने के माध्यम से लोगों को उनके अपने दिल की आवाज़ तक पहुंचाते हैं। इसमें वह ‘थिएटर आफ रेलेवंस’ की प्रकिया द्वारा लोगों के मुखोटे को उतार जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। यह वही मुखोटा होता है जो उन्होंने समाज के सामने खुद को भुलने के बाद लगाया होता है। इस प्रक्रिया में सहभागी खुद के सृजनात्मक, रचनात्मक और कलात्मक अभिव्यक्तियों द्वारा अपने आयामों को गढ़ने की दृष्टि निर्माण करते हैं। जैसे जो लोग सालों से शारीरिक जड़ता में हैं , स्वाभाविक है कि वह मानसिक और भावनात्मक तनाव से जूझ रहे हों। उन्हें नाट्यशाला द्वारा अपनी जड़ता को आत्मचेतना की ओर बढ़ने की संभावनाओं से मुलाकात करवाई जाती है। सहभागी नाचना, गाना, लिखना, नाटक का मंचन करने के आनंद में बखूबी खुद को निखारते हैं। नाटक का मुख्य उद्देश्य रूढ़िवादिता तोड़ जीवन को खुल कर जीना होता है।

प्रकृति से हमारे रिश्तों के बारे में बात की जाती है जैसे प्रकृति में सब बराबर हैं और उससे छेड़छाड़ करने का परिणाम हम सब भुगतेंगे। स्मृति नाटकों के माध्यम से मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन लाने के साथ उनके दिलों की दबी आवाज़ को बाहर निकालती हैं। सिद्धार्थ अपने फ़िल्म लेखन के अनुभवों का प्रयोग करते हैं। वह लोगों को यह बताते हैं कि कहानी कैसे लिखी जाती है। उनका मानना है कि हर किसी में कोई न कोई गुण अवश्य होते हैं जो वह किसी और के साथ बांट सकता है। 

कहानी लिखने के तरीके को समझाने के लिए सिद्धार्थ ने ‘कहानी के सात रंग’ नाम से एक टूल बनाया है। जिसके अनुसार कहानी वह होती है जो लोगों को प्रभावित करे, यह कोई घटना हो सकती है जो लिखने वाले का अपना अनुभव होगा। लोग कहानी के पात्रों से प्रभावित होंगे जिसकी अपनी सीमाएं भी होंगी।  कहानी में उतार चढ़ाव होने चाहिए। कहानी का नायक जब कोई सपना देखता है तभी कहानी बननी शुरू होती है। हम हमेशा कहानी के खलनायक से नफ़रत करते हैं और खुद को एक पीड़ित के रूप में देखते हैं जबकि हमें उस खलनायक को धन्यवाद कहना चाहिए कि उसकी वज़ह से हमने खुद को समझा और मज़बूत किया। हम भी किसी की कहानी में खलनायक हो सकते हैं जो कहीं न कहीं उसका रास्ता रोक रहे होते हैं। यह प्रक्रिया खलनायकों के प्रति प्रतिभागियों के दिल में दया की भावना पैदा करती है।

‘कहानी के सात रंग’ मुख्य रूप से हमारा जीवन जीने का तरीका ही है। नायक की कहानी उसके वातावरण और उसको मिलने वाले सहयोग के अनुसार अलग-अलग हो जाती हैं। अगर हम अपने जीवन के सभी रंगों को समझ लें तो खुद को भी समझ जाएंगे। अद्वैत भी soulify.org.in में अहम भूमिका निभाते हैं। मस्केरी दम्पत्ति के इस सफर में जब कुछ बातें जटिल हो जाती हैं तो अद्वैत के पास उनका सीधा और सरल रास्ता होता है। अद्वैत की रुचि एरोनॉटिक्स में है जिसके लिए उन्होंने मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में ‘एम्बरी रिडल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी अमरीका’ से ऑनलाइन कोर्स भी कर लिया है।

Soulify परिवार की यह यात्रा गांधी जी की किताब ‘एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ से बहुत अधिक प्रभावित है जिसमें वह गांधी जी की तरह ही आत्म-जागरूकता विकसित करने के लिए प्रयोग करते जा रहे हैं।अपने इस सफ़र में मस्केरी दम्पति ने अब तक बहुत कुछ सीखा और सिखाया है।

रामगढ़ में कार्यशाला

उन्होंने अरबिंदो आश्रम स्कूल, नई दिल्ली में बच्चों के साथ वोकेशनल ट्रेनिंग में थिएटर का आयोजन किया। उत्तराखंड स्थित रामगढ़ के एक विद्यालय में अपनी कार्यशाला आयोजित करने के बाद सिद्धार्थ ने उस पर ‘हमारा रामगढ़’ नाम से एक किताब भी लिखी है। उन्होंने मेघालय स्थित ‘बेथानी सोसाइटी‘ में अपने मिशन को साझा किया और तिरना गांव में कार्यशाला आयोजित की। बेथानी सोसाइटी शिक्षा और पर्यावरण के अनुकूल आजीविका के माध्यम से दिव्यांगों के लिए अवसर पैदा करती है। Soulify परिवार अपनी इस यात्रा के दौरान ‘पीपल्स एक्शन ग्रुप फ़ॉर इंक्लूशन एंड राइट्स‘ पागीर से भी मिला। पागीर लद्दाख में दिव्यांग जनों के अधिकारों की वकालत करता है।

लद्दाख में ही Soulify परिवार की मुलाकात सोनम वांगचुक से हुई। सोनम एक इंजीनियर, अन्वेषक और शिक्षा सुधारक हैं, वह साल 1988 में बने स्टूडेंट्स एजुकेशनल एन्ड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सेकमोल) के संस्थापक निदेशक भी हैं। सेकमोल की स्थापना लद्दाख के शिक्षा तंत्र में सुधार लाने के लिए की गई थी। सेकमोल में भी Soulify की कथाकारिता पर कार्यशाला का आयोजन हुआ।

सेकमोल से ही निकले स्टांज़िन दोरज़ाई से मिलकर भी मस्केरी परिवार को काफ़ी कुछ सीखने और समझने का मौका मिला। स्टांज़िन अपनी वृतचित्र ‘द शिफ़र्ड्स ऑफ द ग्लेशियर‘ के लिए कई राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड जीत चुके हैं। लेह की जेल में भी Soulify ने कैदियों के साथ एक कार्यशाला का आयोजन किया था।

लेह जेल में मस्केरी दम्पति

वह अपने आप में अनोखी राजस्थान की मशहूर ‘स्वराज यूनिवर्सिटी‘ भी गये, यह यूनिवर्सिटी आत्म निर्देशन में सीखने पर ज़ोर देती है। वहाँ उन्होंने अपनी कार्यशाला का आयोजन किया।

इस यात्रा की शुरुआत करने के लिए मस्केरी परिवार ने अपनी आर्थिक जरूरतों को कम किया। पुणे का अपना एक फ़्लैट बेच अस्सी प्रतिशत लोन खत्म किया और दूसरे फ़्लैट के दस हज़ार किराए से उनका काम चल जाता है। उनके हर पड़ाव पर कोई अगर उनके रहने, खाने और गाड़ी के तेल का ख़र्च देना चाहता है तो वह खुशी से उसे रख लेते हैं। देश के अलग-अलग कोनों पर जाने पर इस परिवार को हर जगह अलग मौसम भी मिलता है जिसकी वजह से इनका स्वास्थ्य भी खराब रहता था पर अब वह बदलते मौसम की आदत और अपने खान-पान में सुखद बदलाव ला रहे हैं।

देहरादून में Soulify परिवार

soulify.org.in के सफर में मेरी मुलाकात इस अद्भुत दम्पत्ति से देहरादून में हुई थी और अब कोरोना की इस दूसरी लहर में यह परिवार जयप्रकाश नारायण के सहयोगी और सर्वोदय के अध्यक्ष रहे वरिष्ठ गांधीवादी अमरनाथ भाई के साथ हिमाचल प्रदेश के पालमपुर नगर में हैं और वहाँ दिन भर खेती करने के बाद रात सुकून से सोते हुए भी उनका सफर दुनिया को खोजते हुए चलता जा रहा है।

ऐसे नाटक देखने और कहानी सुनने से अपने भविष्य की उम्मीदें खो चुके अनाथ बच्चों, जेल में बंद कैदियों और कोरोना की वजह से अवसाद में जी रहे लोगों के चेहरे पर मुस्कान और अपने भविष्य को लेकर सकारात्मकता तो आ ही सकती है।

.

Show More

हिमांशु जोशी

लेखक उत्तराखण्ड से हैं और पत्रकारिता के शोध छात्र हैं। सम्पर्क +919720897941, himanshu28may@gmail.com
5 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x