सच में, काँग्रेस मर गयी है!
देश में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के आधार पर मुख्यधारा का मीडिया यह स्थापित करने पर लगा है कि काँग्रेस पूरी तरह साफ हो गयी है और राष्ट्रीय स्तर पर एकमात्र पार्टी भाजपा ही बची है, जबकि चुनाव आयोग के आंकड़े कुछ अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। इस तस्वीर के हिसाब से काँग्रेस ने पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य चार राज्यों में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई है।
अब, आंकड़ों के संदर्भ में स्थिति को देखिए। काँग्रेस ने केरल में 21 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि उसका वोट प्रतिशत 25 से अधिक है। यहाँ माकपा को भी लगभग इतने ही वोट मिले हैं, लेकिन उसकी सीटें 62 हैं। इस राज्य में भाजपा को कोई सीट नहीं मिली, जबकि मीडिया शुरू से ही यह दिखा रहा था कि भाजपा केरल में मुख्य मुकाबले की पार्टी है। हालाँकि, यह उल्लेखनीय है कि भाजपा को 11 फीसद से अधिक वोट मिले हैं।
तमिलनाडु में काँग्रेस ने अपनी उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन किया है। यहाँ पार्टी ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ कर 18 सीटें जीती हैं और लगभग 4.3 फीसद वोट प्राप्त किये हैं। इसकी तुलना में भाजपा को केवल 4 सीटें मिली हैं और वोटों में उसकी हिस्सेदारी 2.6 प्रतिशत रही है। टीवी चैनलों और अखबारों में तमिलनाडु से सटे पुडुचेरी में भाजपा की सरकार बनने का प्रचार किया जा रहा है। जबकि, यहाँ भाजपा को 30 में से केवल 6 सीट मिली हैं और वह जीतने वाले गठबन्धन का हिस्सा है। ठीक उसी तरह से जैसे कि तमिलनाडु में काँग्रेस जीतने वाले गठबन्धन का हिस्सा है। इस राज्य में काँग्रेस को महज 2 सीट मिल पाई, लेकिन उसे भाजपा की तुलना में 2 प्रतिशत अधिक वोट मिले हैं। यहाँ भाजपा को 13.7 और काँग्रेस को 15.7 फीसद वोट हासिल हुए हैं। केरल और पुड्डुचेरी में काँग्रेस अपने वोट प्रतिशत को सीटों में नहीं बदल पायी।
मुख्यधारा के मीडिया में सत्ता समर्थक पत्रकारों का समूह इस बात का बढ़-चढ़कर ऐलान कर रहा है कि आसाम से काँग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया है। जहाँ तक सीटों की संख्या की बात है तो बीजेपी को काँग्रेस की तुलना में लगभग दोगुनी सीट हासिल हुई हैं, लेकिन दोनों के वोट प्रतिशत में मात्र 3.5 फीसद का अंतर है। यहाँ भाजपा को 33.2 और काँग्रेस को 29.7 फीसद वोट मिले हैं। यहाँ भी काँग्रेस अपने वोटों को सीटों में बदलने में नाकाम रही।
गौरतलब है कि आसाम और केरल में काँग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है, जबकि भाजपा आसाम में सबसे बड़ी पार्टी और पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल बनी है। ध्यान रहे कि इन पांचों में से भाजपा की किसी भी राज्य में अपने बल पर पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनी है। अलबत्ता, पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि काग्रेस की स्थिति यहाँ खराब रही है। हालाँकि, पिछले लोकसभा चुनाव की सीटों और मत प्रतिशत से तुलना करें तो पश्चिम बंगाल में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है। यानी हमारे पास स्थितियों के आंकलन के दो पैमाने हैं।
अब इन सारे आंकड़ों को एक व्यापक परिदृश्य में देखिए तो कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि काँग्रेस पार्टी पूरे देश से खत्म हो गयी है और राष्ट्रीय स्तर पर केवल भाजपा ही बची हुई है, लेकिन मुख्यधारा के मीडिया का स्वर काँग्रेस के प्रति बेहद आलोचनात्मक और भाजपा के प्रति काफी हद तक सकारात्मक है। इन पाँच राज्यों के चुनाव के साथ-साथ कई राज्यों में लोकसभा और विधानसभाओं के उपचुनाव भी संपन्न हुए। लोकसभा की 4 सीटों में से एक सीट भाजपा को, एक काँग्रेस को, एक की काँग्रेस सहयोगी मुस्लिम लीग को और एक वाईएसआर काँग्रेस को मिली है। जबकि विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को 6 और काँग्रेस को 5 सीटें हासिल हुई हैं।
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इन आंकड़ों को निष्पक्ष रूप से देखें तो राष्ट्रीय स्तर पर यदि कोई पार्टी भाजपा के सामने खड़ी है तो वह काँग्रेस ही है। यहाँ एक और संदर्भ में तुलना की जा सकती है। वह ये कि विगत लोकसभा चुनाव में इन पाँच राज्यों में काँग्रेस को मिले वोटों की संख्या में कोई बहुत बड़ा नकारात्मक अंतर नहीं आया है, जबकि भाजपा के वोटों की कुल संख्या में कमी दर्ज की गयी है। चूंकि मुख्यधारा के मीडिया पर सत्ताधारी पार्टी का एक व्यापक वैचारिक और आर्थिक दबाव है इसलिए वह चाहे-अनचाहे भाजपा नेताओं के रणनीतिक कौशल और काँग्रेस नेताओं की विफलताओं पर विशेष रूप से फोकस करता है और यह प्रवृत्ति केवल अभी पैदा हुई हो, ऐसा नहीं है। इस प्रवृत्ति को वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में काँग्रेस के पक्ष में भी वैसा ही देखा जाता था जैसा कि आज यह भाजपा के पक्ष में दिखती है।
इन चुनावों में देश के मुख्य अखबारों और टीवी चैनलों (विशेष रूप से हिन्दी अखबार और चैनल) पर भाजपा और उसके दिग्गज नेताओं को जितना स्थान मिला है, विपक्ष के नेताओं को सम्भवतः उसका आधा भी नहीं मिला है। इसलिए आम पाठकों और दर्शकों को भी ऐसा लगता है कि वास्तव में देश में केवल भाजपा का ही फैलाव हो रहा है और अन्य सभी पार्टियां, विशेष रूप से काँग्रेस निरन्तर सिकुड़ रही है। जबकि, भारत के निर्वाचन आयोग के विगत वर्षों के चुनावी आंकड़े इस बात की तस्दीक नहीं करते।
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