सेल्फी विद रावण
ऋषियों ने अनुभव किया है कि इस ब्रह्मांड में एक दिव्य नाद बराबर केन्द्रित हो रहा है। उस नाद में सभी स्वर एवं सभी भाव समाए हुए हैं नाद में, संगीत में प्राणियों के अंदर भाव संवेदना जगाने की क्षमता है। जीवन की संवेदनाएँ सूख जाने पर जीवन नीरस हो जाता है, संवेदनाएँ जाग जाएँ तो मनुष्य और मनुष्य के बीच, मनुष्य और भगवान के बीच दिव्य आदान प्रदान शुरू हो जाता है। यही नाद शिव के डमरू से सर्वप्रथम निकला था जिसे संस्कृत साहित्य में माहेश्वर सूत्र कहा गया। संस्कृत का सम्पूर्ण व्याकरण इन्हीं सूत्रों पर आधारित है। तथा संस्कृत के सर्वप्रथम आचार्य पाणिनि ने इन सूत्रों को आधार बनाकर अष्टाध्यायी की रचना की। पाणिनि ने अपने ग्रंथ में उदम्बरायण और शाक्तायन नामक आचार्यों का जिक्र भी किया है।
किन्तु इनके कोई भी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होने के कारण पाणिनि को ही संस्कृत का प्रथम व्याकरणाचार्य कहा जाता है। खैर संस्कृत के हमारे देश में कई प्रकांड पंडित हुए हैं। जिनमें से एक ऋषि विश्रवा तथा कैकसी माता की ब्राह्मणी संतान रावण भी थे। शांडिल्य गोत्र में उत्पन्न रावण के बारे में कहा जाता है कि वे प्रकांड पंडित थे तथा चारों वेदों के ज्ञाता भी। दशानन कहे जाने वाले रावण को लंका देश के राजा होने के कारण लंकेश या लंकाधिपति भी कहा जाता है। देश के कई हिस्सों में इस प्रकांड पंडित के पुतले को फूंका नहीं जाता। अपितु उसका तर्पण अथवा श्राद्ध किया जाता है।
विश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण का जन्म हुआ। पुराणों एवं मिथकों के अनुसार राक्षसों के वंश को बढ़ाने के लिए ही कैकसी ने विश्रवा से विवाह किया था। रावण ऋषि-मुनियों के कुल से थे। उनके प्रपितामह यानी परदादा जी जो संसार के रचियता भी कहे जाते हैं। जिन्हें दुनिया ब्रह्मा के नाम से जानती है, के पुत्र महर्षि पुलस्त्य दादा थे और उनकी पत्नी हविर्भुवा दादी। खर, दूषण, कुम्भकर्ण, विभीषण, अहिरावण आदि रावण के सगे भ्राता थे। और भाई कुबेर तथा शूर्पनखा, कुम्भिनी आदि उनके सौतेले भाई बंधु थे।
कुबेर को जो लंका विष्णु यानी संसार के पालनकर्ता ने दी थी उसे ही छीन कर रावण लंकाधिपति कहलाया। दूसरी एक कथा यह भी प्रचलित है कि रावण ने एक बार भगवान शिव के साथ छल किया और उस छल में उन्होंने दक्षिणा स्वरूप शिव से सोने का महल माँग लिया। आगे चलकर माँ पार्वती ने शिव से सोने के महल की माँग की तो कुबेर से एक सोने के महल का निर्माण करवाया। रावण इस महल पर मोहित हो गया और उसे हासिल करने की तिकडम बैठाने लगा। रावण ने एक योजना बनाई और उस योजना में उसने ब्राह्मण का वेश धारण किया और शिव के समक्ष प्रकट हुआ। शिव उस ब्रामण को पहचान नहीं पाए और सोने की लंका को दक्षिणा में रावण को भेंट कर दी। रावण को विचार हुआ कि यह महल को माँ पार्वती की इच्छा पर बना है। उनके बिना कैसा महल ? तब रावण ने शिव से पार्वती को ही माँग लिया। शिव बैठे भोले बाबा, भोले भंडारी उन्होंने यह माँग भी पूरी कर दी।
आज का सिनेमाई गाना माँग में भरो की तर्ज पर। शिव ने पार्वती से कहा की त्रेतायुग में वे वानर के रूप में वहाँ आएंगे और सम्पूर्ण लंका को भस्म कर पार्वती को वहाँ से छुड़ा लेंगे। रावण का साम्राज्य इतना विस्तृत था की उसकी कल्पना भी सम्भव नहीं। इस तरह के कई अन्य प्रसंग और भी हैं। जिनमें सुंबा और बाली द्वीप को जीतते हुए अंगद्वीप, मलय द्वीप, वराह द्वीप, शंख द्वीप आदि कई द्वीपों पर उसने अपना परचम लहराया। रावणैला गुफा, रावण का महल अशोक वाटिका, रावण के विमान और चार एयरपोर्ट क्रमश: उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा, वारियापोला आदि। रावण का झरना रावण का तकरीबन 7 हजार 90 साल पुराना शव जिसे नासा ने भी पुष्टि प्रदान की है। रामसेतु आदि ऐसे कई चिन्ह खोज और अनुसंधान तथा अनेक रिसर्च तथा शोधों से प्राप्त हुए हैं कि जिनको देखने के बाद इन मिथकों पर यकीन करना लाजमी हो जाता है।
रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मन्त्र का बनना। राम और उनके भाईयों के अलावा राजा दशरथ की एक शांता नाम की पुत्री। शेषनाग के अवतार राम के भ्राता लक्ष्मण जिन्हें गुदाकेश के नाम से भी जाना जाता है। पिनाक नाम धनुष की प्रत्यंचा केवल मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हाथों चढ़ाई जाना। रावण का एक उच्च कोटि के विद्वान होने के साथ-साथउत्कृष्ट वीणा वादक होना तथा नासा द्वारा भी इन सबकी पुष्टि हमारी आस्था को और चरमोत्कर्ष के शिखर पर पहुँचा देती है।
किन्तु भक्ति के इसी चरमोत्कर्ष में क्या हमने कभी सोचा है कि आज के समय में हम कितना अधिक दिखावा करते हैं। भक्ति के नाम पर रावण के पुतलों में विस्फोटक पदार्थ डालकर उसे जलाना और मनोरंजन करके घर लौट आना ही अब हमारा मूल केंद्र रह गया है। रावण ने जिस तांडव स्त्रोत की रचना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की उसे फिल्मों में मनोरंजन के रूप में इस्तेमाल करके दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाना ही हमारा मकसद रह गया है। वर्तमान में हमारे आस-पास इतने रावण मौजूद हैं कि हर रोज यदि दशहरा बनाया जाए और एक दिन पुतले को फूंकने के बजाए उन्हें फूंका जाए तो यह धरती पुन: राम का सतयुग बन सकती है। और सत युगे चंडी, द्वापरे द्रौपदी की संकल्पना फिर से साकार हो सकती है।
वैसे किसी ने ठीक ही कहा है छोटी सोच और पैर की मोच आदमी को कभी आगे नहीं बढ़ने देती। आज हमें जरूरत है अपनी सोच को बड़ा करने की और पैर की मोच उस अच्छी सोच के चलते स्वत: ठीक होती चली जाएगी। क्योंकि मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है। रावण भी इसीलिए पूजनीय है, वन्दनीय है। मिथकों में रामायण के एक प्रसंग है। जब राम रावण का युद्ध होता है और रावण मारा जाता है तब राम लक्ष्मण से कहते हैं कि जाओ लक्ष्मण और रावण से दिव्य ज्ञान प्राप्त करो। इसलिए महान हुतात्माओं को सदैव अच्छे रूपों में याद किया जाता रहना चाहिए। दशहरे की आप सभी को शुभकामनाएँ। बुराई पर अच्छाई की जीत का यह त्यौहार हम सभी के लिए मंगलकारी हो।