विधान सभा चुनाव निकट देख, बढी सियासी हलचल
ऐसा माना जाता है कि देश की सियासी धड़कन का केन्द्र बिन्दु उत्तर प्रदेश है। राजनीति के ‘पंडितों’ का यह भी मानना है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति देश की राजनीति की दिशा और दशा निर्धारित करती है। विधान सभा 2022 के चुनाव पर एक बार फिर से राजनीतिक दलों की निगाह है। सो, इन दिनों उतर प्रदेश में एक बार फिर सियासी हलचल तेज है। केन्द्र और प्रदेश की सत्तासीन पार्टी भाजपा ने अभी से अपने कील- काँटे दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। उधर, सूबे के प्रमुख सियासी दलों की भी सक्रियता बढी है। पिछले तीन साल से सुस्त पडी काँग्रेस ने संगठन में व्यापक फेर बदल किया है। बसपा की भी इस बार सोशल इंजीनियरिंग बदली- बदली नजर आ रही है।
देश में चर्चा का विषय बन चुका किसान आन्दोलन, जहाँ विपक्षी दलों के लिए बड़ा मुद्दा बना है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा सरकार इसे कमजोर करने की कोशिश में जुट गयी है। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से लेकर राज्य के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ तक हताश विपक्षी दलों का ‘सियासी-खेल’ की इसे संज्ञा दे रहे हैं। काँग्रेस प्रमुख राहुल गाँधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी किसान बिल अधिनियम को देश के किसानों के लिए अहितकारी बताते हुए बिल को वापस लेने की माँग लगातार कर रहे हैं।
16 फरवरी को बहराइच जिले के चितौरा में महाराज सुहेलदेव के स्मारक स्थल की आधार शिला रखने के कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ यहाँ आए थे। इस दौरान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से जन समूह को सम्बोधित करते हुए कहा, कृषि कानून को लेकर देश भर में भ्रम फैलाया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कुछ लोग नहीं चाहते कि देश के किसानों की आमदनी बढ़े। गौरतलब है कि कृषि कानून लागू करने के बारे में जहाँ एक तरफ प्रधान मन्त्री ने सफाई देने की कोशिश की, वहीं दूसरी तरफ दलित और पिछड़े वर्ग को साधने की भी भरपूर कोशिश की। भाजपा के इन बड़े नेताओं के भाषण में सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर, महाराजा सुहेलदेव प्रमुखता से छाए रहे।
पिछड़ी और दलित जातियों के महापुरूषों की उपेक्षा का आरोप और भाजपा द्वारा प्राथमिकता दिये जाने की बात कहकर एक अलग तरह का माहौल बनाने के अलावा सहानुभूति बटोरने का भी प्रयास किया। सरदार पटेल का जिक्र करते हुए प्रधान मन्त्री मोदी ने कहा कि देश की पांच सौ से ज्यादा रियासतों को जोड़ने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ सामाजिक स्तर पर न्याय नहीं किया गया। देश को संविधान देने वाले बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को भी कुछ लोगों ने राजनीतिक हित के रूप में प्रयोग करके छोड़ दिया। आज भारत से लेकर इंग्लैंड तक डॉ. भीमराव अम्बेडकर से जुड़े स्थानों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है।
यह भी पढ़ें – राजनीतिक विश्लेषक!
देश की सबसे बड़ी प्रतिमा का ‘स्टैच्यू आफ यूनिटी’ सरदार पटेल की है। प्रधानमन्त्री मोदी महाराजा सुहेलदेव की वीरता का बखान करना नहीं भूले। कहा, चौरी- चौरा के वीर सपूतों की तरह ही महाराजा सुहेलदेव के साथ भी लगातार जिस तरह उपेक्षा का व्यवहार किया गया, वह भूलने लायक नहीं है। 16 फरवरी से ही राज्य के हर जिले में महाराजा सुहेलदेव की जयंती को भव्य रूप से मनाने की शुरुआत हो चुकी है। पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने पिछड़ी जातियों में प्रभावी तरीके से सेंध लगाकर 43 फीसदी वोट बैंक के जरिए उत्तर प्रदेश में बेहतर कामयाबी की मिशाल कायम की। समाजवादी पार्टी (सपा) वाई एम समीकरण यानि मुस्लिम-यादव की जाति के वोटरों को भी ठीक से नहीं साध सकी। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के हाथ से भी अनुसूचित बिरादरी वाले उसके परम्परागत वोटर खिसक गये थे। फलस्वरूप, कई बार प्रदेश की सत्ता में काबिज रह चुकी सपा और बसपा की ‘सियासी चूलें’ हिल गयीं, उधर काँग्रेस का भी चुनावी प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा।
अब, जबकि आगामी विधान सभा चुनाव का समय साल भर से भी कम रह गया है, ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने एक बार फिर तेजी से समीकरण टटोलना शुरू कर दिया है। अमेठी की सांसद व भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने अमेठी में राहुल गाँधी को घेरने के बहाने काँग्रेस पर जोरदार हमला बोला है। राहुल गाँधी ने किसान कानून बनाये जाने पर मोदी को किसान विरोधी बताया। उधर, 22 फरवरी को ईरानी ने कहा कि कृषि और किसानों के शुभ चिंतक बनने की नौटंकी करने के बजाय राहुल गाँधी सम्राट साइकिल की जमीन वापस लौटायें।
फरवरी महीने के आखिरी सप्ताह में प्रयागराज में आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दुत्व को धार देने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर काँग्रेस नेता व पार्टी की महा सचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा ने हाथ में रूद्राक्ष की बडी माला लपेट कर संगम में डुबकी लगाई। उनके संगम स्नान के भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। यह महज संयोग भर नहीं है कि दो दिन बाद ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने संगम नगरी पहुँच कर ब्राह्मण कार्ड खेलने की भरपूर कोशिश की। प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए पूर्व मुख्य मन्त्री अखिलेश यादव ने कहा कि सपा ब्राह्मणों को साथ लेकर चलना चाहती है। यह भी दावा किया कि उनका सम्मान केवल सपा में ही सुरक्षित है। पूर्व में चुनाव लड़ चुके सपा नेता टीएन सिंह तर्क देते हैं कि सपा ब्राह्मणों को इस बार ज्यादा तवज्जो देगी।
यह भी पढ़ें – इंसाफ की गुहार लगाती पीड़िता
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पहले ब्राह्मणों का परम्परागत वोट काँग्रेस के साथ कई दशक तक रहा। बाद में यहाँ के समीकरण इस कदर बदले कि ‘ तिलक तराजू और तलवार’ के नारे को माफ कर ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रम्हा विष्णु महेश है’ पंडित शंख बजायेगा, बसपा को जितायेगा’ का नारा सियासी फिजाओं में गूंजने लगा। ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग बसपा के साथ चला गया। दलित, ब्राह्मण, मुसलमान के गठजोड़ का दांव चलकर बसपा ने मजबूती के साथ सत्ता हासिल किया था, पर यह समीकरण ज्यादा समय तक नहीं टिक सका। मोदी लहर की जबरदस्त आँधी ने पिछले लोक सभा और विधान सभा चुनावों में जातीय समीकरण को ध्वस्त किया था। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग उपेक्षा महसूस कर भाजपा से नाराज है। सपा इसी का फ़ायदा उठाकर भाजपा को कमजोर करने की फिराक में है।
उधर, भाजपा एक बड़ा दांव खेल रही है। भाजपा ने राम जन्म भूमि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए समर्पण धनराशि इकट्ठा करने के बहाने हिन्दुत्व को धार देना शुरू कर दिया है। भाजपा, आरएसएस कार्यकर्ताओं की टोलियाँ घर-घर सम्पर्क कर उत्तर प्रदेश में राम मंदिर के बहाने हिन्दुत्व की लहर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के भीतर जातिगत वोटरों की ‘संभावना’ तेजी से तलाशी जा रही हैं। बसपा संगठन से जुड़े जिया लाल गौतम के मुताबिक, पार्टी नए सिरे से कार्य कर रही है। एक-एक विधान सभा क्षेत्र पर बसपा प्रमुख की निगाह है। आँकड़ों को इकट्ठा कर उस पर कार्य हो रहा है, जल्द ही पार्टी निर्णय ले लेगी।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में एक बार फिर वोट बैंक पर राजनीतिक दलों की निगाह गड़ गयी है, और यह भी कि सियासी समीकरण को साधने और वोटों के गुणा-गणित के गेम प्लान की शुरुआत हो चुकी है, जो दिनों दिन तेज होती जा रही है।