महामारी और भारतीय समुद्री मछुवारे
प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर समुदायों का विभिन्न आपदाओं से रूबरू होने का अनुभव काफी पुराना रहा है। इन आपदाओं ने समुदायों को भारी मात्रा में क्षति पहुँचाई है जिसकी भरपाई करना इनके लिए लगभग नामुमकिन रहा है। अगर हम भारत के दस राज्यों तथा दो द्वीप समूहों में बसे समुद्री मछुवारों की बात करें तो प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानव जनित समस्याओं से वो अक्सर दो चार होते रहे हैं। अमूमन हर साल मछुवारे विभिन्न चक्रवातों से तबाह होते हैं। उनके जीवन-यापन के संसाधनों के अतिरिक्त बसावटों का उजड़ जाना अब मानो आम बात हो गयी है। ऊपर से बढ़ते प्रदूषण तथा ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते जलस्तर तथा कटते-डूबते किनारे प्रत्यक्ष रूप से इनके अस्तित्व पर खतरा बने हुए हैं। बहरहाल, वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में आज हम भारतीय समुद्री मछुवारों की बात करेंगे।
विकराल रूप धर चुके इस वैश्विक महामारी के मद्देनज़र पाँच हफ़्तों के लॉकडाउन में हम देश के विभिन्न महानगरों में मजदूरों की त्रासदी देख चुके हैं। भूख और बेकारी से त्रस्त बड़ी संख्या में मजदूर घर वापस जाने के लिए व्याकुल हैं। सोशल मीडिया पर अनेकों वीडियो तथा न्यूज़ रिपोर्टों की मानें तो मजदूर किसी भी कीमत पर घर जाना चाहते हैं क्योंकि जहाँ वे फँसे हैं वहाँ भोजन और पैसों की भारी किल्लत आ पड़ी है।
घर जाने की तड़प आनंद विहार, सूरत, बांद्रा आदि जगहों पर पिछले दिनों भारी संख्या में जमा हुए मजदूरों की भीड़ से समझा जा सकता है। ठीक ऐसी स्थिति देश के विभिन्न छोटे-बड़े मत्स्यन बन्दरगाहों-अवतरण स्थलों की है जहाँ लाखों की संख्या में मछुवारे तथा मत्स्य कामगार फँसे हुए हैं। चूँकि हमारे पास मत्स्य कामगारों की संख्या से सम्बन्धित कोई ठोस आधिकारिक आंकड़े नहीं है फिर भी यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूरे भारत में इनकी संख्या लाखों में है।
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यहाँ भारी संख्या में फँसे वे लोग हैं जो लॉकडाउन की घोषणा के ठीक पहले समुद्र में मछली पकड़ने गये थे तथा घोषणा होने के बाद तट पर पहुँचे। तब तक सभी मार्गों से आवागमन पर रोक लग चुकी थी। तमाम बन्दरगाह, विपणन केन्द्र तथा तटीय शहरों में तालाबंदी लागू हो चुकी थी तथा आवागमन के सभी साधन बन्द हो चुके थे।
यह स्थिति भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों की है जहाँ छोटे तथा बड़े पैमाने के मछुवारे मत्स्य संग्रहण (harvest) के परम्परागत व्यवसाय से जुड़े हैं। जहाँ छोटे पैमाने के मछुवारे अपनी छोटी नौकाओं से तटों के समीप हर रोज कुछ किलो मछलियाँ पकड़ कर जीवन यापन करते हैं वहीं बड़े पैमाने के मछुवारे बड़ी नौकाओं तथा ट्रॉलरों में दस बीस मजदूरों के साथ लम्बे समय तक समुद्र में रहकर अधिक मात्रा में मछली पकड़ते हैं। इन मजदूरों में अधिकांश गैर मछुवारा समुदाय के लोग होते हैं जो देश के विभिन्न राज्यों (जैसे मध्य प्रदेश, झारखण्ड, बिहार तथा आदिवासी क्षेत्र के लोग) से तटों पर काम करने आते हैं तथा धीरे-धीरे नावों पर काम करने में निपुण हो जाते हैं। काम के नजरिये से देखें तो ये प्रवासी मजदूर मछुवारे की श्रेणी में ही हैं। आज दोनों पैमानों के मछुवारों की स्थिति चिंताजनक हो चुकी है।
बड़े पैमाने के मछुवारे फँसे होने के कारण भोजन पानी तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कठिन परिस्थितियों में हैं। अभी गुजरात के तट से दो प्रवासी मछुवारों के मरने की खबर आई जो आंध्र प्रदेश के थे तथा वेरावल में फँसे थे तथा भारी मानसिक दबाव में थे। अवतरण स्थलों (फ़िश लैंडिंग सेंटर) पर रहने की समुचित व्यवस्था तथा पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण हजारों की संख्या में ये लोग नौकाओं पर रहने को मजबूर हैं जिसमें साधनों का भारी अभाव है।
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जो कुछ भी झोपड़ियाँ हैं वो भी पहले आए मजदूरों के द्वारा कब्जे में ले ली गयी हैं। नौकाओं पर बने छोटे से डब्बानुमा कोठरी (जहाँ से इंजन को चलाया जाता है) एक मात्र जगह है जहाँ इस भारी गर्मी में मजदूरों को आश्रय मिलता है। एक-दो लोग के लिए पर्याप्त इस तंग जगह में दस पन्द्रह लोगों के ठूसे रहने से फिजिकल डिस्टेंशिंग की बात करना बेमानी है। इसके फलस्वरूप स्वास्थ्य आधारित समस्याओं के उत्त्पन्न होने के खतरे हैं। कहने को तो विभिन्न संगठनों के द्वारा इन फँसे हुए मजदूरों को कच्चे राशन, पानी, दवाईयाँ आदि मुहैया करवाई जा रही है परन्तु भारी संख्या में होने के कारण पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान कर पाना असंभव लगता है।
वहीं छोटे पैमाने के मछुवारों का जीवन-यापन भी पूरी तरह से ठप्प हो चुका है। संग्रहण के लिए जाने से पूर्व वांछित संसाधन उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। जो थोड़ा बहुत संग्रहण कर भी रहे हैं उसका घरेलू उपयोग हो रहा है तथा बिक्री नहीं हो पा रही है। महिलाएँ (मछुवारिनें) जो इस पैमाने की मात्स्यिकी में बड़ी भूमिका अदाकरती हैं तथा उत्पादों को आस-पास के गावों तथा बाज़ारों में बेचने का काम करती हैं, वह भी लॉकडाउन के कारण नहीं हो पा रहा है। स्थानीय सप्लाई-चेन टूट चुका है जिससे इन परिवारों में नकदी का संकट गंभीर हो चुका है। पहले से ही कर्ज में दबे इस समुदाय के लोगों में आर्थिक स्थिति भयावह होती नज़र आ रही है।
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समग्र रूप से देखें तो लॉकडाउन में उत्पादन-माँग-आपूर्ति की प्रक्रिया ही क्षतिग्रस्त हो गयी है। ना ही उत्पादन हो रहा हैं और ना ही बिक्री। बड़े मछुवारे अपने नौकाओं पर काम करने वाले कामगारों को मजदूरी देने में सक्षम नहीं हैं।
हालाँकि 10 अप्रैल को केन्द्र सरकार द्वारा मात्स्यिकी तथा इससे सम्बन्धित क्षेत्रों को लॉकडाउन से राहत दी गयी है। फिर भी तमाम जरूरत की चीजें जैसे जाल, रस्सियाँ, ईंधन, बर्फ, मजदूर, यातायात आदि पर्याप्त रूप में उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। इसके साथ ही सोशल मीडिया द्वारा समाज में फैलाए अफवाहों की वजह से फ़िलहाल मांसाहार के प्रति रूझान कम हो गया है। विदित हो कि महामारी के शुरूआती दिनों से ही हमारा पॉल्ट्री सेक्टर का चौपट होना शुरू हो चुका था। सम्बन्धित विभागों तथा केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा अपील करने के बावजूद भी लोग पॉल्ट्री उत्पादों से किनारा करने लगे थे जिससे लाखों किसानों को जबरदस्त घाटे का शिकार होना पड़ा। ठीक इसी प्रकार के अनुभव मात्स्यिकी के क्षेत्र में भी हो रहे हैं। जो लोग इच्छुक हैं भी उन्हें लॉकडाउन की वजह से उत्पाद उपलब्ध नहीं हो पा रहा। बहरहाल, इसका सीधा प्रभाव मछुवारों पर पड़ रहा है।
समुद्र मात्स्यिकी उत्पादन में शीर्ष राज्य गुजरात की बात करें तो यहाँ भारी संख्या में प्रवासी मजदूर फँसे हैं जो देश के विभिन्न राज्यों से हैं। जहाँ तक कि मात्स्यिकी संग्रहण की बात है तो इसकी अनुमति तो दी गयी है परन्तु सभी फँसे हुए मछुवारे अभी समुद्र में जा नहीं सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो सरकार अभी हर नौका पर तीन लोगों को जाने की अनुमति दे रही है जो बड़ी नौकाओं द्वारा मछली पकड़ने के दृष्टिकोण से पर्याप्त नहीं है।
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ऐसी परिस्थिति के ठीक बाद हर साल होने वाले 61 दिनों का फिशिंग बैन जो भारत के पूर्वी तट पर 15 अप्रैल से (14 जून तक) शुरू हो चुका है तथा पश्चिमी तट पर 1 जून से (31 जुलाई तक) शुरू होने वाला है, इन समुदायों को और भी ज्यादा लाचार बना देगा। दो महीनों का लम्बा समय बिना रोजगार के बीतेगा जिससे जीवन-यापन की गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी। वर्तमान के चालीस दिन के लॉकडाउन तथा दो महीनों के बैन के बाद काम शुरू करने के लिए तथा नौकाओं की मरम्मत के लिए इनके पैसे ही नहीं होंगे। इस प्रकार पहले से कर्ज में डूबे मछुवारों के ऊपर अतिरिक्त कर्ज आएगा।
भारतीय समुद्री मछुवारों की अगुवाई करने वाली “नेशनल फ़िशवर्कर्स फोरम“ ने केन्द्र सरकार से मछुवारों के लिए विशेष राहत पैकेज की माँग की है। फोरम ने राशन तथा ईंधन के अतिरिक्त तीन महीनों तक प्रत्येक मछुवा परिवार के लिए दस हज़ार रूपए प्रतिमाह की माँग की है। साथ ही विभिन्न राज्यों में मछुवारे बैन के दौरान मछली पकड़ने की अनुमति भी माँग रहे हैं। हालाँकि अभी तक केन्द्र सरकार द्वारा किसी विशेष पैकज की घोषणा नहीं की गई है। अतःयह स्पष्ट है कि कोरोना महामारी मात्र स्वास्थ्य समस्या नहीं है अपितु रोजगार तथा जीवन-यापन को लेकर गंभीर समस्या पैदा कर रहा है। ऐसी स्थिति में जाहिर है यह विभिन्न सामाजिक समस्याओं को जन्म देगा।
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