सामयिक

मई दिवस : दुनिया भर के मेहनतकशों का अजेय संघर्ष

 

मई माह की पहली तारीख, औद्योगिक क्षेत्रों में इसे मई दिवस के नाम से जाना जाता है। शिकागो के हे मार्केट चौराहे पर 1 मई से 4 मई 1886 के चार दिनों में घटी घटनाएं खासतौर से 1890 से दुनिया भर की मेहनतकश जनता द्वारा हर वर्ष मनाए जाने वाले मई दिवस का आधार बनी हुई हैं। वह संघर्ष, जिससे `मई दिवस´ का जन्म हुआ, अमेरिका में, 1884 में, `काम के घण्टे आठ करो´ आन्दोलन से शुरू हुआ। शिकागो शहर के हे मार्केट चौराहे पर उनकी रोज सभाएं होती थीं। ऐसी ही एक सभा में 3 मई को पुलिस ने बिना उकसावे के अभूतपूर्व दमन किया। उसमें 6 मजदूर मारे गए।

इसके विरोध में 4 मई को हुई सभा में पुलिस और इसके विरोध में 4 मई को हुई सभा में पुलिस और मालिकों के एजेंट ने बम फिंकवाए एक सार्जेंट व 4 मजदूर मारे गए। इस घटना को आधार बनाकर रचे गए झूठे मुकदमे को भी अदालत में साबित नहीं किया जा सका। इसके बावजूद 4 जुझारू मजदूर नेताओं अल्बर्ट पार्संस, आगस्ट स्पाइस, एडोल्फ फिशर तथा जॉर्ज एंगेल को 11 नवंबर 1887 को फांसी और 3 नेताओं को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गयी।

छह वर्ष बाद उम्र कैद पाए तीनों नेताओं को रिहा कर दिया गया। इस रिहाई आदेश को जारी करते हुए मेयर ने कबूल किया कि यह सजा ही गलत थी। जिस जूरी ने फैसला सुनाया उसने पूर्वाग्रह के आधार पर ऐसा किया था। जिस तरह शिकागो प्रसंग आधुनिक इतिहास में पूंजी का मजदूर वर्ग पर एक सुसंगठित राजनीतिक हमला है उसी तरह मई दिवस दुनिया भर के मेहनतकशों का प्रत्युत्तर है। हालाँकि इससे एक पीढ़ी पहले भी एक राष्ट्रीय श्रम संगठन, `नेशनल लेबर यूनियन´ ने, जिसने एक जुझारू सांगठनिक केन्द्र के रूप में विकसित होने की आशा जगाई थी, छोटे कार्य दिवस का प्रश्न उठाया था और इस पर एक आन्दोलन खड़ा करने का प्रस्ताव रखा था।

गृहयुद्ध के पहले साल (1861-62) ने कुछ राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों का लोप होते देखा। ये युद्ध शुरू होने के ठीक पहले बनी थीं। इनमें `मोल्डर्स यूनियन´, `मेकिनिस्ट्स और ब्लैकस्मिथस यूनियन´ प्रमुख थीं। लेकिन आने वाले कुछ सालों में कई स्थानीय श्रमिक संगठनों का राष्ट्रीय स्तर पर एकीकरण भी हुआ। इन यूनियनों को एक राष्ट्रीय संघ की जरूरत साफ दिखाई देने लगी। 20 अगस्त, 1866 को `नेशनल लेबर यूनियन´ बनाने वाली तीन ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधि बाल्टीमोर में मिले।

राष्ट्रीय संगठन के निर्माण के लिए जो आन्दोलन चला था उसका नेतृत्व विलियम एच. सिल्विस ने किया था। वह पुनर्गठित `मोल्डर्स यूनियन´ का नेता था। सिल्विस हालाँकि एक नौजवान आदमी था लेकिन उस समय के श्रमिक आन्दोलनों में उसकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। सिल्विस का प्रथम कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के नेताओं से भी सम्पर्क था जो लन्दन में थे। उसने `नेशनल लेबर यूनियन´ को इण्टरनेशनल की जनरल काउंसिल से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रेरित किया और उसमें मदद भी की।

1866 में `नेशनल लेबर यूनियन´ के स्थापना समारोह में यह प्रतिज्ञा ली गयी: “इस देश के श्रमिकों को पूँजीवादी गुलामी से मुक्त करने के लिए, वर्तमान समय की पहली और सबसे बड़ी जरूरत यह है कि अमेरिका के सभी राज्यों में आठ घण्टे के कार्य दिवस को सामान्य कार्य दिवस बनाने का कानून पास कराया जाए। जब तक यह लक्ष्य पूरा नहीं होता, तब तक हम अपनी पूरी शक्ति से संघर्ष करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हैं।”

इसी समारोह में कार्य दिवस को आठ घण्टे करने का कानून बनाने की माँग के साथ ही स्वतंत्र राजनीतिक गतिविधियों के अधिकार की माँग को उठाना भी बहुमत से पारित हुआ। साथ ही यह तय हुआ कि इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए “ऐसे व्यक्तियों का चुनाव किया जाए जो औद्योगिक वर्गों के हितों को प्रोत्साहित करने और प्रस्तुत करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हों।” `आठ-घण्टा दस्तों´ (आठ घण्टे के कार्य दिवस की माँग के लिए बने मज़दूर संगठन) का यह निर्माण `नेशनल लेबर यूनियन´ द्वारा किए गए आन्दोलन का ही परिणाम था। और `नेशनल लेबर यूनियन´ की इन गतिविधियों के ही परिणामस्वरूप कई राज्य सरकारों ने आठ घण्टे के कार्य दिवस का कानून पास करना स्वीकार कर लिया था। अमेरिकी कांग्रेस ने ठीक वैसा ही कानून 1868 में पारित कर दिया।

यह भी पढ़ें – कोरोना काल में विस्थापित मज़दूरों के बच्चे

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शैलेन्द्र चौहान

लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं। सम्पर्क +917838897877, shailendrachauhan@hotmail.com
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