खुले आसमान की देवी माता शिकारी और वनरक्षक फ़िल्म
वनरक्षक फ़िल्म की समीक्षा/रिव्यू आपने सबलोग पर पढ़ लिया होगा। नहीं पढ़ा तो पढ़ लीजिएगा। फ़िल्म वन में फॉरेस्ट गार्ड की नौकरी करने वाले एक शख्स चिरंजीलाल की कहानी कहती है। बल्कि उससे भी ज्यादा उसके माध्यम से वनों की बेहताशा हो रही कटाई मानव अस्तित्व के बढ़ रहे खतरे की ओर हमारा ध्यान दिलाती है। इतनी फिल्में देख चुका हूं आजतक नहीं महसूस हुआ कि कोई भी फ़िल्म दोबारा देखूं। लेकिन यह फ़िल्म दिल में बस गयी है। इसे बनाने वाले निर्देशक के लिए जितनी हो सके तालियां बजाओ। फ़िल्म में कमी है मानता हूं लेकिन जो यह हमें देना चाहती है वह इस तरह देती है, इस तरह पाठ पढ़ाती है, इस तरह हमारे जेहन पर कब्जा जमा लेती है कि आप सम्पूर्ण मानव जाति को धिक्कारने लगते हैं।
फ़िल्म में हिमाचल के बड़े प्रसिद्ध सिंगर कम गायक ज्यादा हंसराज रघुवंशी का गाया गाना ‘जय माँ शिकारी’ जिसे सम्भवतः भजन कहना उचित होगा। फ़िल्म में यह गाने के रूप में है इसलिए इसे आप गाना कहिए मैं भजन ही कहूँगा। वह इस कदर आपको दीवाना बनाता है कि आप उसके भक्ति रस में गोते लगाने लगते हैं।
हंसराज रघुवंशी का गाया गाना आपका दिल जीतता ही नहीं बल्कि आपको झूमने पर मजबूर कर देता है। जब यह गाना रिलीज होगा तो यह कई रिकॉर्ड तोड़ेगा और माँ शिकारी का आशीर्वाद हर भक्त पर बरसेगा। हालांकि एक गाने के सहारे फ़िल्म अच्छी या बुरी नहीं होती, हाँ हिट जरूर हो सकती है लेकिन यह एक अपवाद ही कहिए कि वनरक्षक हिट फिल्म नहीं है। वैसे भी हिट फिल्म किसे चाहिए। मुझे कम बजट में बेहतर बनी फिल्में ज्यादा अपनी और आकर्षित करती हैं।
कौन है ये शिकारी माता और क्या सम्बन्ध है फ़िल्म से इसका क्यों जोड़ा गया यह गाना जानना चाहेंगे! चलो बता देते हैं एक खुले आसमान में बना मंदिर जिसके चारों और खूब मोटी बर्फ की चादर बिछी रहती है लेकिन क्या मजाल सारी तरफ बर्फ से ढका हुआ यह इलाका माता रानी के मंदिर पर चढ़ सके। है न चमत्कार। ऐसा कैसे हो सकता है चारों तरफ बर्फ हो सिर्फ माता के मंदिर पर बर्फ न गिरे। तो देखिए जी हिंदुस्तान में ऐसे कई छोटे-बड़े मंदिर हैं जिनकी प्रसिद्धि और उनके चमत्कार दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं।
हिमाचल प्रदेश के करसोग क्षेत्र की जंजैहली घाटी में स्थापित मंदिर के बारे में कहा जाता है कि पांडवों को मिले वनवास के समय से यह मंदिर मौजूद है। प्रकृति की सुंदरता से भरीपूरी इस घाटी में बना माता का मंदिर ग्यारह हजार (11000) फीट तथा 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। देवदार के ऊंचे पेड़ों और घने जंगल के बीच में बसा यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इसका प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है। गर्मियों के दिनों में दर्शनों के लिए खुला रहता है लेकिन सर्दी के दिनों में बर्फ ज्यादा पडऩे के कारण कम संख्या में ही यहाँ लोग आ पाते हैं। इस मंदिर के ऊपर छत नही होना भी अपने आप में एक रहस्य ही बना हुआ है। है न कमाल जिस देवी के सिर पर छत नहीं वह सबको छत देती है और मुरादें पूरी करती हैं। हालांकि यह भी कहा जाता है कि कई बार मंदिर की छत बनाने का काम शुरू किया गया लेकिन हर बार इस मंदिर की छत नहीं बन पाई। सारी कोशिशें विफल रहीं। कोशिश नाकाम रही। मंदिर के ऊपर छत नहीं ठहर पाई। यह माता का ही चमत्कार है कि आज तक की गयी सारी कोशिशें भी शिकारी माता को छत प्रदान न कर सकीं और आज भी ये मंदिर छत के बिना ही है।
शिकारी देवी का मंदिर हिमाचल के मंडी में है पुरानी मान्यता है कि मार्कण्डेय ऋषि ने यहाँ सालों तक तपस्या की थी। उन्हीं की तपस्या से खुश होकर माँ दुर्गा अपने शक्ति के रूप में इस स्थान पर स्थापित हुईं। मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर बाद में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान तपस्या भी की। फिर पांडवों की तपस्या से खुश होकर माँ दुर्गा प्रकट हुईं और पांडवों को कौरवों के खिलाफ युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया। उसी समय पांडवों ने मंदिर का निर्माण किया लेकिन किसी वजह से इस मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो पाया। माँ की पत्थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद पांडव यहाँ से चले गये। यहाँ हर साल बर्फ तो खूब गिरती है मगर माँ के स्थान पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है। यह एक अद्भुत चमत्कार जैसा लगता है।
जिस जगह पर यह मंदिर स्थापित है, वह बहुत घने जंगल में स्थित है। अत्यधिक जंगल होने के कारण यहाँ जंगली जीव-जन्तु भी बहुत हैं। जब पांडव अज्ञातवास के दौरान शिकार खेलने के लिए यहाँ पहुंचे तो माता शिकारी देवी ने उन्हें दर्शन दिये। इसके बाद पांडवों ने माता का मंदिर बनाया और इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ा। पांडवों ने शक्ति रूप में विध्यमान माता की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर माता ने उन्हें महाभारत के युद्ध में कौरवों से विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। पांडवों यहाँ से जाते वक्त माँ के मंदिर का निर्माण किया परन्तु यह कोई भी जानता कि आखिर इस मंदिर की छत का निर्माण पांडवों द्वारा क्यों नहीं किया गया।
दूसरा चमत्कार यह है कि जब सर्दियों में बर्फ गिरती है तो मंदिर के आसपास ही गिरती है लेकिन माँ की मूर्ति के ऊपर बर्फ टिक नहीं पाती और पिघल जाती है और माँ की मूर्ति के आसपास बर्फ का ढेर लग जाता है। प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक जो भी श्रद्धालु माँ के दरबार में आकर मन्नत माँगता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बता दें कि निचले क्षेत्रों में इस समय भीषण गर्मी पड़ रही है, वहीं इस मंदिर का तापमान हमेशा 10 डिग्री सैल्सियस के आसपास ही रहता है और यहाँ आकर श्रद्धालु अपने आप को गौरवशाली महसूस करते हैं।
हिमाचल के मंडी जिले की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित माँ शिकारी देवी अपने मंदिर में छत सहन नहीं करती है। माता शिकारी देवी खुले आसमान के नीचे विराजमान रहने में खुश रहती हैं। बारिश हो, आंधी हो, तूफान हो, माँ खुले आसमान के नीचे रहना ही पसंद करती हैं। रोचक पहलू तो यह है कि माता की पिंडियों पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है।
मूलतः हिमाचल के मंडी जिले में रहने वाले फ़िल्म वनरक्षक के निर्देशक पवन कुमार शर्मा ने फ़िल्म में इस गाने को रखने के पीछे का उद्देश्य बताया कि – यह मंदिर भी उसी क्षेत्र में है। हिमाचल को कुल्लू, मनाली, शिमला के नाम से जाना जाता है लेकिन हिमाचल के इस खूबसूरत क्षेत्र में जहाँ आज भी पर्यटक नहीं पहुंच पाते आसानी से, कारण वहाँ पहुंचने के साधनों में कमी और उस क्षेत्र का विस्तार न होना है। जिसकी वजह से वहाँ की सुंदरता और महानता जिसे देव भूमि भी कहा जाता है।
अब काफी सालों से सिनेमा क्षेत्र में काम कर रहा हूँ करीबन चार-पांच दशकों से जो मैं कर रहा हूँ उसी से महसूस हुआ कि कुछ वापस लौटाना है जहाँ से मैं आया हूँ। वहाँ का मेरे पर एक कर्ज है। तो मैं उन स्थानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाईलाइट करके दिखाना चाहता था। फ़िल्म उसका माध्यम है। शिकारी माता पर आज तक कोई गाना नहीं बना है। यह पहला गाना माता को हमारी फ़िल्म के माध्यम से समर्पित है। इस गाने के लिए मुझे हंसराज रघुवंशी मिल गये। जिन्होंने हमेशा शिव के गाने ज्यादा गाए हैं। वे विश्व प्रसिद्ध हस्ती हैं। वे हिमाचल या भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब सुने जाते हैं।
माँ शिकारी की आराधना फ़िल्म के माध्यम से उस गीत को जोड़ते हुए दिखाना मेरा मकसद था। जब फ़िल्म में नायक माफियाओं का मुकाबला करने जाता है तो वह कहता है अपने साथी से कि मुझ पर माँ शिकारी का आशीर्वाद है। वे शिकारी माता की आराधना भी करते हैं। एक तरफ हंसराज रघुवंशी वहाँ जगराता कर रहे हैं। दूसरी तरफ वह फारेस्ट गार्ड जंगल माफियाओं के साथ जूझता है। आज तक न जाने कितने फारेस्ट गार्ड अपने प्राण माफियाओं से लड़ते हुए गंवा चुके हैं।
हालांकि सेना को आधार बनाकर खूब फिल्में बनी हैं लेकिन फारेस्ट गार्ड जिसके पास कोई हथियार नहीं होता वह जंगली जानवरों से भी लड़ता है। माफियाओं से लड़ता है। स्थानीय लोगों से लड़ता है। तो उन फारेस्ट गार्ड की ट्रेजेडी दिखाना था। जिन्हें कभी कोई महत्व नही मिलता मुद्दा ग्लोबल वार्मिंग जरूर है फ़िल्म में लेकिन उसके साथ-साथ फारेस्ट गार्ड उसमें अहम है।
माता शिकारी देवी के दरबार में प्रवेश की बात करें तो हिमाचल प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु देवी के दरबार शीश नवाने दूर-दूर से पहुंचते हैं। बर्फबारी के दौरान माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों पर प्रशासन प्रतिबन्ध लगाता है। मगर, माता के अनेक भक्त भयंकर बर्फबारी में भी देवी से आशीर्वाद लेने के लिए शिकारी देवी के दरबार पहुंच जाते हैं। जहाँ माता शिकारी का निवास है उसके आस-पास तीन चार सौ मीटर तक कोई पेड़-पौधा नहीं है।
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पुराने जमाने में लोग शिकार करने के लिए इस घने जंगल में आया करते थे और पहाड़ की चोटी पर जहाँ माता का मंदिर है, वहाँ से जंगल में शिकार का जायजा लेते थे। कभी-कभी मन्दिर में जाकर माँ को प्रणाम करते और आग्रह करते कि आज कोई अच्छा शिकार हाथ लगे, कई बार शिकारियों की मुराद भी पूरी हो जाती थी, तब तक यहाँ का नाम शिकारी नहीं था, लोग अक्सर शिकार की तलाश में आते रहते थे, तो यह स्थान शिकारगाह में ही तब्दील हो गया, शिकार वाला जंगल होने के कारण, लोगों ने इसे शिकारी कहना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यहाँ स्थापित दुर्गा माँ भी शिकारी माता के नाम से जानी जाने लगी और प्रसिद्ध हो गयी।
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