सिनेमा

मैं आपको कभी हारने नहीं दूंगी

 

अधिकतर लड़कियाँ अपने माता-पिता, गाँव, समाज और देश को हारने नहीं देतीं। बशर्ते उन्हें अवसर मिले। ऐसी ही एक बेटी हैं गुंजन सक्सेना। ‘शौर्य चक्र’ से सम्मानित भारत की पहली एयरफोर्स अधिकारी ने कारगिल युद्ध (1999) में अपनी हिम्मत, साहस और निडरता का लोहा मनवाया था। गुंजन सक्सेना ने सन् 2004 तक भारतीय वायुसेना में सेवाएँ देकर, इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा लिया है। गुंजन सक्सेना के जीवन पर आधारित फ़िल्म ‘गुंजन सक्सेना:द कारगिल गर्ल’ शरण शर्मा के निर्देशन में 12 अगस्त 2020 को रिलीज़ हुई। पटकथा लेखक निखिल मलहोत्रा और शरण शर्मा हैं। मुख्य भूमिका श्रीदेवी की बेटी जाहन्वी कपूर (जिन्होंने ‘धड़क’ 2018 फ़िल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया था) की है। ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल’ जाहन्वी कपूर की दूसरी फ़िल्म है।

  फ़िल्म की शुरुआत लखनऊ में रहने वाले मध्यवर्गीय परिवार से होती है। गुंजन बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति की थीं। घर में पिता भारतीय सेना में कर्नल थे वहीँ गुंजन का सपना शुरू से ही पायलट बनने का था। लेकिन पायलट बनने के लिए एक ट्रेनिंग लेना होता था और जिसमे बहुत सारे पैसों की जरूरत थी। उसी वक़्त भारतीय वायुसेना से भी पायलट के लिए रिक्तियाँ आई थी और पिताजी की सलाह के बाद उन्होंने इस ओर अपना रुख किया। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। उस समय वायुसेना में महिलाओं की संख्या न के बराबर थी। गुंजन ने हार नहीं मानीं और स्नातक करने के बाद वायुसेना में भर्ती हो गयीं। इस संघर्ष में पिता से सर्वाधिक सहयोग मिला। फ़िल्म में गुंजन के पिता उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहते हैं, “जो लोग हिम्मत का साथ नहीं छोड़ते किस्मत कभी उनका साथ नहीं छोड़ती।”Gunjan Saxena The Kargil Girl Review By Pankaj Shukla Janhvi ...

 पिता का हमेशा प्रोत्साहित करना और बेटे-बेटी को एक समान देखना पितृसत्तात्मक समाज को सीख देता है। फ़िल्म में भारतीय वायुसेना की बारीकियों और कठिन ट्रेनिंग को भी बख़ूबी दिखाया गया है। जब वायुसेना में महिलाएँ नहीं जाती थीं तो उनके सामने आने वाली समस्याएँ और चुनौतियों को भी दिखाने की कोशिश की गयी है। उपर्युक्त बात को फ़िल्म के इस संवाद से समझ सकते हैं, “मिला नहीं क्योंकि लेडीस टॉयलेट है ही नहीं क्योंकि यह जगह लेडीस के लिए बनी ही नहीं है।” लेकिन वर्तमान में भारतीय वायुसेना में महिलाओं की भागीदारी और सुविधाओं बढ़ोतरी हुई है।

       राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत इस फ़िल्म में वायुसेना के कठोर नियम-कानूनों को भी दिखाया गया है। “डिफेंस में कमज़ोरी के लिए कोई जगह नहीं है।” इस कथन को सुनने के बाद ‘फ़ैशन’ (2008) फ़िल्म याद आती है। ‘फ़ैशन’ फ़िल्म में मेघना (प्रियंका चोपड़ा) से उसकी मित्र कहती है, “तुम इस मॉडलिंग वर्ल्ड को जानती हो यहां किसी कमजोरी के लिए कोई जगह नहीं है।” दोनों कथनों पर विचार करें तो निष्कर्षत: यह कह सकते हैं कि भारतीय सेना, हिन्दी सिनेमा (मॉडलिंग), शिक्षण और खेल आदि सभी क्षेत्रों में कमज़ोरी के लिए कोई स्थान नहीं। प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री को धैर्य, साहस और समझ के साथ आगे बढ़ना होगा। ‘गुंजन सक्सेना:द कारगिल गर्ल’ फ़िल्म भी यही संदेश देना चाहती है। 21वीं सदी के हिन्दी सिनेमा में महिला सशक्तीकरण और जीवनी आधारित फ़िल्मों पर जोर रहा है, जिसमें मैरीकॉम, लक्ष्मी, राजी, मणिकर्णिका, छपाक, पंगा और शकुंतला देवी आदि फ़िल्मों का नाम ले सकते हैं।

           ‘गुंजन सक्सेना:द कारगिल गर्ल’ फ़िल्म में पिता की भूमिका पंकज त्रिपाठी ने निभाई है। पंकज त्रिपाठी इस फ़िल्म के सबसे सशक्त किरदार हैं। शानदार अभिनय उनकी विशेषता है। इससे पहले वे निल बटे सन्नाटा, न्यूटन, स्त्री, सुपर 30 जैसी शानदार फ़िल्मों में अभिनय कर चुके हैं। ‘पिंक’ फ़िल्म के माध्यम से विलेन के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले अंगद बेदी ने इस फ़िल्म में गुंजन सक्सेना के भाई की भूमिका निभाई है। विनीत कुमार सिंह का अभिनय कौशल और भाषा-शैली लोगों के मन में भारतीयता और वायुसेना के प्रति आकर्षण पैदा करती है। विनीत कुमार सिंह की अभिनय कला को मुक्काबाज़, ‘सांड़ की आंख’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में भी ख़ूब सराहा गया था।

            अब बात आती है मुख्य किरदार जाहन्वी कपूर की। पहली फ़िल्म ‘धड़क’ की तुलना में इस फ़िल्म में उन्होंने काफ़ी मेहनत और लगन से काम किया है। इसके बावजूद डायलॉग में उत्साह की कमी और किरदार में मध्यवर्गीय परिवार की झलक के अभाव से दर्शकों को अधिक प्रभावित नहीं कर पाई हैं। अभिनय की अपेक्षा पटकथा, संवाद और संगीत अधिक मजबूत है। अरिजीत सिंह की आवाज़ में ‘तू सारे जहां से प्यारी मेरे भारत की बेटी’ गीत ने फ़िल्म में जान डालने का काम किया है। ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल’ फ़िल्म महिला सशक्तीकरण, लिंगभेद,  सपनों के प्रति लगन, वायुसेना में महिला भागीदारी और पितृसत्तात्मक सोच आदि सभी विषयों पर सोचने को विवश करती है। गुंजन सक्सेना के जीवन को देखकर फ़रहत ज़ाहिद की यह पंक्तियाँ याद आती हैं,

‘औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ

इक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सब से लड़ी हूँ’

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सोनम तोमर

लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय (हिन्दी विभाग) में शोधार्थी हैं। सम्पर्क tomarsonam888@gmail.com
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