सामयिक

लॉक डाउन

 

  • क्या होता है लॉकडाउन?
  • लॉकडाउन एक इमर्जेंसी व्यवस्था होती है। अगर किसी क्षेत्र में लॉकडाउन हो जाता है तो उस क्षेत्र के लोगों को घरों से निकलने की अनुमति नहीं होती है। जीवन के लिए आवश्यक चीजों के लिए ही बाहर निकलने की अनुमति होती है। अगर किसी को दवा या अनाज की जरूरत है तो बाहर जा सकता है या फिर अस्पताल और बैंक के काम के लिए अनुमति मिल सकती है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के काम से भी बाहर निकलने की अनुमति मिल सकती है।
  • किन देशों में है लॉकडाउन?
  • चीन, डेनमार्क, अल सलवाडोर, फ्रांस, आयरलैंड, इटली, न्यूजीलैंड, पोलैंड और स्पेन में लॉकडाउन जैसी स्थिति है। चूंकि चीन में ही सबसे पहले कोरोनावायरस संक्रमण का मामला सामने आया था, इसलिए सबसे पहले वहां लॉकडाउन किया गया। इटली में मामला गंभीर होने के बाद वहां के प्रधानमंत्री ने पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया। उसके बाद स्पेन और फ्रांस ने भी कोरोना संक्रमण रोकने के लिए यही कदम उठाया।

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जनता कर्फ्यू अभूतपूर्व रूप से सफल रहा, ये संतोष की बात है। इस कर्फ्यू को आगे और बढ़ाने की ज़रूरत है नहीं तो करोना हम पर भारी पड़ सकता है। इस स्थिति में आम जनता को भारी मदद की ज़रूरत होगी। फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने अपने MPLAD ( Members of Parliament Local Area Development) का एक करोड़ रूपया कश्मीर में कोरोना से लड़ने के लिए दिया है। दो एक सांसदों ने इनका अनुसरण भी किया है लेकिन सभी सांसदों से ऐसी ही उम्मीद की जानी चाहिए। अगर देश का हर सांसद अपने-अपने क्षेत्र में पचास लाख से भी शुरुआत कर दे तो कितनी मदद हो सकती है सोचिए। आख़िर ये पैसा उनके अपने क्षेत्र में ही ख़र्च होना है।

ज़रूरी है कि जो लोग रोज़ कमाने वाले हैं उन्हें सरकार द्वारा ज़रूरत की चीज़ें घर पहुँचा दी जाएँ। कोरोना जाँच की सुविधा बढ़े और इलाज़ को विस्तारित किया जाए। निजी अस्पतालों में कोरोना की जांच और ईलाज को आम जनता के लिए मुफ्त किया जाए और उसका सारा खर्च अंबानी अडानी टाटा बिड़ला जैसे उद्योगपतियों पर डाली जाए। आख़िर देश की अधिकांश परिसंपत्ति और पूंजी उन्हीं के हाथों में क़ैद है। फिल्मी हस्तियों और क्रिकेट खिलाड़ियों को भी मदद के लिए आगे आना चाहिए। जिस जनता ने उन्हें पलकों पे बिठाया था आज वही जनता उनकी तरफ़ उम्मीद भरी निगाहों से देख रही हैं।Image result for corona se mout

याद रखिएगा। हम सभी एक ही नाव पर सवार हैं। चिंताजनक है कि आज एक दिन में ही तीन मौतें हुईं हैं जिनमें एक बिहार से भी है। हम ख़ुश्क़िस्मत हैं कि कोरोना हमारे देश में थोड़ा लेट आया जिससे हमें दूसरे देशों से सबक़ सीखने को मिल रहा है। सरकार थोड़ा देर से जागी लेकिन जाग चुकी है। दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तराखंड में 31 मार्च तक लॉक डाउन और केंद्र द्वारा रेलगाडियों पर रोक बहुत बड़ा साकारात्मक क़दम है। लेकिन अफ़सोसनाक है कि अभी तक भारत ने 15000 के क़रीब ही सैंपल टेस्ट किए हैं जबकि कनाडा ने अब तक 66,000 टेस्ट किए हैं। दक्षिण कोरिया एक दिन में 15 से 20 हज़ार सैंपल टेस्ट करने की क्षमता पर पहुंच गया है।

कोरोना वायरस के कारण आर्थिक संकट गहराने लगा है। कुछ ही दिनों में कंपनियां डूबने के कगार पर पहुंच जाएंगी। लाखों करोड़ों लोगों की नौकरियां जा सकती हैं। इसे देखते हुए दुनिया की कई सरकारों ने अपने पैकेज के एलान कर दिए हैं। ब्रिटेन ने घोषणा की है कि जितने भी ब्रिटिश वर्कर हैं उनकी अस्सी फीसदी सैलरी सरकार देगी। अमरीका ने अपने नागरिकों के हाथ में 1000 डॉलर देने का प्लान बनाया है। जर्मनी ने अपने यहां की कंपनियों को बचाने के लिए एक अरब यूरो के पैकेज का एलान किया है।

स्पेन के प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि कंपनियों और उनके कर्मचारियों को बचाने के लिए 200 अरब यूरो का पैकेज दिया जा रहा है। पुर्तगाल सरकार 10 बिलियन यूरो का पैकेज लेकर आई है। कनाडा में 83 बिलियन डालर के पैकेज का एलान किया गया है। जबकि हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने एलान किया है कि वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है जो एक्शन प्लान बनाएगी। यानी अभी प्लान बनेगा। भारत कितना पीछे चल रहा है, आप ख़ुद अंदाज़ा लगा सकते हैं। जनता ने आज मुकम्मल बंदी करते हुए सरकार का भरपूर समर्थन किया है इसलिए सरकार को भी चाहिए कि जितना जल्दी हो सके आर्थिक सहायता घोषित करते हुए आम जनता को राहत पहुंचाए।

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अब्दुल ग़फ़्फ़ार

लेखक कहानीकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं, तथा लेखन के कार्य में लगभग 20 वर्षों से सक्रिय हैं। सम्पर्क +919122437788, gaffar607@gmail.com
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