अंतरराष्ट्रीयचर्चा में

केन्या द्वारा भेजी मदद सहर्ष स्वीकारे भारत, दान की नियत देखी जाती है कीमत नहीं !

 

 “केन्या की कॉफी दुनिया की 5 सबसे बेहतरीन कॉफी में से एक है? एसिडिटी और फ्लेवर के लिए ये दुनिया भर में विख्यात है।”

सोशल मीडिया में कुछ दिनों पहले जब से अफ़्रीकी देश केन्या ने कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से जूझते भारत को मदद भेजी है, तभी से कुछ लोग लगातार ये कहते हुए हंगामा मचा रहे हैं कि एक छोटे से देश से भारत को मदद की जरूरत पड़ गयी। GDP के मामले में भारत से 30 गुना छोटे केन्या ने अगर मदद में कुछ भेजा है तो उसकी दरियादिली का स्वागत करने की बजाए लोग भारत को दोष दे रहे हैं। ज्ञात हो कि केन्या ने स्वेच्छा से ये मदद भेजी है, भारत ने उससे माँगी नहीं थी।

सोशल मीडिया पर लोगों ने भारत की तुलना बांग्लादेश से करते हुए कहा कि केन्या से भारत को मदद की जरूरत पड़ गयी है, ये बड़े ही शर्म की बात है। सबसे पहले जानने वाली बात ये है कि केन्या ने भारत को असल में भेजा क्या है। असल में हिन्द महासागर के किनारे पूर्वी अफ्रीका में बसे इस देश ने भारत के लिए 12 टन खाद्य सामग्री भेजी है। इसमें चाय-कॉफी और मूँगफली शामिल हैं।

ऐसे में कुछ लोगों द्वारा ये नैरेटिव बनाना कि ‘अब केन्या जैसे देश से भारत को मदद की जरूरत पड़ गयी’ का आशय न सिर्फ भारत को बदनाम करना है, बल्कि केन्या जैसे एक गरीब देश की दरियादिली को गाली देना भी है।

आइए, एक कहानी से शुरू करते हैं। जब बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले सचिन तेंदुलकर के सबसे बड़े फैन सुधीर कुमार गौतम हर साल उन्हें लीची देने जाते हैं, तो क्या हम ये मान लें कि सचिन जैसे करोड़पति पूर्व क्रिकेटर को एक साधारण व्यक्ति से मदद की जरूरत पड़ गयी? 

क्या 1100 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक सचिन तेंदुलकर के पास इतना रुपया नहीं है कि वो लीची खरीद सकें? लेकिन, वो अपने फैन द्वारा हर साल ले जाने वाले गिफ्ट को स्वीकार करते हैं, ये न सिर्फ उनका बड़प्पन है बल्कि सुधीर कुमार गौतम का उनके प्रति प्यार भी है। इसी तरह केन्या ने अपने दिल में भारत के लिए प्यार को दर्शाते हुए ये मदद भेजी है और भारत ने इसे स्वीकार करते हुए अपना बड़प्पन दिखाया है।

केन्या की दरियादिली को समझने के लिए भी एक और कहानी सुनिए। केन्या में एक मसाई जनजातीय समुदाय है, जिनकी आबादी 20 लाख के आसपास है। ये तब की बात है, जब अमेरिका में ट्विन टॉवर्स पर हमला हुआ था। ये वो गरीब समुदाय है, जिसने गगनचुंबी इमारतों में रहना तो दूर, कइयों ने इसे देखा तक नहीं होगा। आज से 20 साल पहले तो स्थिति और भी खराब थी। केन्या के इस जनजातीय समूह के लिए अकिशिआ के पेड़ और जिराफ़ ही सबसे लम्बी चीजें हुआ करती थीं।

अमेरिका में 9/11 के हमले में वहाँ के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को नुकसान पहुँचाया था, जिसमें करीब 3000 लोग मारे गये थे और इससे कई गुना अधिक घायल हुए थे। इस कहानी में एक किमेली नाइयोमह नाम के एक मसाई शख्स हैं, जो किसी तरह पढ़ाई के लिए अमेरिका तक जाने में कामयाब रहे थे। वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने पाया कि दूर न्यूयॉर्क में क्या हुआ था, इस बारे में वहाँ के लोगों को कुछ पता ही नहीं था।

किसी-किसी को खबरों से कुछ पता चल जरूर था, लेकिन तब भी वो इस घटना कि भयानकता से अनजान थे। रेडियो से जो भी जानकारी मिली, उन्होंने इकट्ठी कर ली। कुछ मसाई जनजातीय समूह के लोगों के घरों में कुछ ही दिनों पहले बिजली आई थी, तो उन्होंने टीवी पर इस घटना को देखा। उनके बीच आज भी मौखिक रूप से ही घटनाओं के बारे में जानने की आदत है, इसीलिए किमेली ने उन्हें अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए घटना के बारे में सब कुछ कह सुनाया।

धीरे-धीरे 9/11 और इसकी भयवाहता को लेकर एक कान से दूसरे कान ये खबर फैली और समुदाय के बीच एक उदासी सी छा गयी, क्योंकि वो दूर देश में हुई इस घटना के बारे में जान कर स्तब्ध थे। बस वो इस बात से संतुष्ट थे कि उनके बीच का व्यक्ति किसी तरह बिना नुकसान के अमेरिका से निकल आया। वो कुछ करना चाहते थे, पीड़ितों के लिए। उन्होंने एक बैठक बुलाई। घास के एक मैदान में मसाई जनजाति की सभा लगी।

उस सभा में उन्होंने अपने जानवर भी लाए थे। मसाई जनजाति के लोग जानवरों को पवित्र मानते हैं और उनसे प्यार करते हैं। उसी सभा में उन्होंने घोषणा की कि अमेरिका को उनकी तरफ से 14 गायें दी जाएँगी। ‘मा’ शब्द का उद्घोष करते हुए मसाई जमा हुए और जानवरों को पूरे रीति-रिवाज के बाद अमेरिका को दान दिया गया। तब नैरोबी में अमेरिका के उप-उच्चायुक्त विलियम ब्रांकिक भी वहाँ मौजूद थे।

विलियम ब्रांकिक को वहाँ पहुँचने के लिए मसाई माराय गेम प्रिजर्व के लिए उड़ान भरनी पड़ी और फिर वहाँ से कच्चे-पक्के रास्तों से 2 घंटे ड्राइव भी करना पड़ा। वहाँ उन्हें भी समारोह का हिस्सा बनाया गया। मसाई बुजुर्गों ने एक रस्सी उनके हाथ में थमा दी, जो एक साँड से बँधी हुई थी। उन्होंने मसाई जनजाति को इस मदद के लिए धन्यवाद दिया। गायों को अमेरिका ले जाना कठिन था, इसीलिए उन्हें बेच कर उन्होंने अमेरिका में मसाई आभूषण ले जाने की घोषणा की।

क्या अमेरिका के पास गायों या कुछ रुपयों की कमी हो गयी थी जो उसने अपने उप-उच्चायुक्त को इतनी दूर भेज कर इस समारोह का हिस्सा बनाया? इसके लिए हमें अमेरिका की तारीफ करनी चाहिए क्योंकि उसने जनजातीय समूह के प्यार को स्वीकार किया और उनके दान का मान रखा। इसके लिए हमें केन्या और उसके लोगों को धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने आपदा के बारे में जान कर जो हो सका और जो समझ आया, अपनी तरफ से उसे पूरे जी-जान से किया।

नाइयोमह इस पूरे प्रकरण में मसाई लोगों का अमेरिका से सम्पर्क कराने में काम आए थे। उन्होंने ही उच्चायुक्त के दफ्तर से सम्पर्क किया था। उनके लिए गायें जीवन का हिस्सा रही हैं, केंद्र में रही हैं, इसीलिए उन्होंने अपनी तरफ से अपनी सबसे कीमती उपहार अमेरिका को मदद के रूप में दिया। गायों को नाम दिया जाता है। उनकी पूजा की जाती है। उनसे बातें की जाती हैं। रीति-रिवाजों में हिस्सा बनाया जाता है।

ठीक इसी तरह, आज जब केन्या ने ये कहते हुए मदद भेजी है कि उनके चाय-कॉफी से कठिन समय में लगातार काम में लगे भारत के मेडिकल कर्मचारी और डॉक्टर जब केन्या की चाय-कॉफी पियेंगे, तो तरोताजा महसूस करेंगे और उन्हें कुछ आराम मिलेगा – तो ये उनके प्यार को सम्मान देने का वक़्त है। क्या आपको पता है कि केन्या की कॉफी दुनिया की 5 सबसे बेहतरीन कॉफी में से एक है? एसिडिटी और फ्लेवर के लिए ये दुनिया भर में विख्यात है।

इसीलिए, ये कहना कि केन्या ने प्यार से मदद भेज दी तो भारत भिखमँगा हो गया है, बिल्कुल ही गलत है। गिरोह विशेष को समझना चाहिए कि रुपये के आधार पर ही केवल ये नहीं तय किया जाता कि कौन किसकी मदद कर सकता है, कभी-कभी ये किसी के लिए दिल में मान-सम्मान की मात्रा के आधार पर तय होता है। आज हमें केन्या का उसके प्यार के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए, वरना साल में 3.42 लाख मीट्रिक टन कॉफी का उत्पादन होता है।

भारत के बारे में एक और बात जानने लायक है कि इसने दुनिया के देशों के समक्ष हाथ फैलाना बंद कर दिया है और पिछले दो दशकों से इसने विभिन्न आपदाओं के समय किसी देश से मुफ़्त में कुछ नहीं माँगा। उलटे भारत ने पिछले साल अमेरिका को भारी मात्रा में दवाओं की खेप भेजी थी। भारत ने केन्या को भी वैक्सीन दी थी। केन्या में भारत की वैक्सीन सप्लाई रुकने के बाद टीकाकरण ही बंद हो गया था।

गाँव में कोई आपदा आने पर लोग परस्पर सहयोग नहीं करते ये एक-दूसरे की सहायता नहीं करते हैं? क्या दुनिया के देशों के बीच परस्पर सहयोग की ये भावना गायब हो जानी चाहिए, गिरोह विशेष ऐसा चाहता है? गायों की रक्षा के लिए शेर तक से लड़ जाने वाले मसाई जब उन्हीं गायों को अमेरिका को दान में देते हैं, तो इससे अमेरिका का मान घट तो नहीं जाता? ठीक इसी तरह, केन्या के प्यार को स्वीकार करने से भारत कंगाल नहीं हो गया।

भारत में इस अफ्रीकी देश के उच्चायुक्त विली बेट ने बयान जारी कर कहा कि हम इस मुश्किल दौर में भारत के साथ खड़े हैं। कोविड 19 महामारी के दौर में केन्या की सरकार इस दान के माध्यम से यह संदेश देना चाहती है कि हम भारत के लोगों के साथ एकजुटता के साथ खड़े हैं। इस 12 टन खाद्य सामग्री को सरकार के सुपुर्द कर नई दिल्ली से महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई पहुंचे विली बेट ने कहा कि यह दान उन लोगों को दिया जाएगा जो लोग कोरोना वारियर के तौर पर दूसरों की जान बचाने के लिए घंटों तक मुस्तैदी से काम कर रहे हैं।

वहीं इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी ने केन्या द्वारा भारत को इस दान के प्रति आभार व्यक्त किया है। सोसायटी के महाराष्ट्र शाखा के उपाध्यक्ष होमी खुसरो खान ने इस दान पर कहा कि ये दान उस सहानुभूति का प्रतीक है जो केन्या के लोगों के दिलों में भारत के लोगों के लिए है। यह दान हमें एक बार फिर से आश्वस्त करता है कि केन्या हमारे लिए हर विकट परिस्थितियों में मजबूती से खड़ा है।

मालूम हो कि 16 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने यह फैसला लिया था कि दुनिया भर में अपनी मजबूत एवं आत्मनिर्भर छवि बनाने के लिए अब भारत किसी भी दूसरे देशों से कोई दान, मदद या पैसा नहीं लेगा। लेकिन मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार के इस फैसले को बदल दिया है। अब छोटे छोटे देशों से भी भारत को मदद और दान मिल रही है। जब नेपाल जैसे देश से मदद के हाथ हाथ बढ़ाए जा सकते हैं जिसकी अर्थव्यवस्था भारत पर निर्भर रहती है तो केन्या की मदद पर इतना हंगामा क्यों?

केन्या में पैदा हुए थे दिल्ली के पहले सीएम

दिल्ली विधानसभा का चुनाव अक्तूबर 1951 में हुआ। परिणाम आने पर कांग्रेस विधायकों ने तत्कालीन वरिष्ठ नेता लाला देशबंधु गुप्ता को अपना नेता चुना, लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले एक हादसे में उनका निधन हो गया। इसके बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री बनाया गया। अपने समकालीनों में कनिष्ठ होने के बावजूद वह फरवरी 1955 तक मुख्यमंत्री रहे।

उस समय जनसंघ से जुड़े धर्मवीर शर्मा ने बताया कि चौधरी ब्रह्म प्रकाश तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पसंद थे। वह अपनी जुबान के पक्के थे। आम लोगों के साथ वह बसों में सफर किया करते थे और रास्ते पर चलते-चलते ही लोगों शिकायतों का निपटारा करवा देते थे। दिलचस्प यह कि बाद में वह चार बार दिल्ली से सांसद रहे, लेकिन उन्होंने अपने रहन-सहन में कोई बदलाव नहीं किया। चौधरी ब्रह्म प्रकाश की शार्गिदी में दिल्ली के कांग्रेस नेताओं की पूरी पौध तैयार हुई। कांग्रेस के एचके एल भगत, जगदीश टाइटलर, ब्रज मोहन, सज्जन कुमार और रामबाबू शर्मा जैसे कई नेताओं को उनका पिता तुल्य अभिभावकत्व मिला।

दिल्ली का नैरोबी की तर्ज पर करना चाहते थे विकास

अपने कार्यकाल में चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने दिल्ली के विकास की नींव रखी। सहकारिता कमेटियों का गठन किया। केन्या से लगाव की वजह से वह दिल्ली शहर का विकास नैरोबी शहर की तर्ज पर करना चाहते थे। असल में उनका जन्म केन्या में हुआ था। 16 साल की उम्र में वह माता-पिता संग दिल्ली आए थे। उनके जीवन में केन्या के परिवेश का काफी प्रभाव रहा।  चौधरी ब्रह्म प्रकाश 1980 के दशक में लोकदल से जुड़े। केंद्र की तत्कालीन चौधरी चरण सिंह की सरकार में वह केंद्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री भी रहे। 1993 में उनका निधन हो गया।

केन्या का मजाक बनाने वाले लोगो को यह भी जान लेना चाहिए

केन्या की अर्थयव्यवस्था मूल रूप से कृषि आधारित है। यह पूर्वी अफ्रीका का सबसे विकसित देश है। जो मुख्य रूप से चाय और कॉफी के उत्पादन में अग्रणी है। इसने पिछले दो दशकों से लगातार पांच प्रतिशत के हिसाब से विकासदर को पाया है। साल 1895 से 1963 के बीच यह देश ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था। यहां की कुल संपत्ति का बहुत बड़ा भाग चंद लोगों के पास सीमित है। जबकि अधिकांश आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है।

कभी भारत की तरह ब्रिटिश उपनिवेश रहे केन्या 1963 में आजाद होकर स्वतंत्र राष्ट्र बना। आजादी के लगभग 55 साल बाद भी इस देश में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई साफ दिखती है। यहां जो अमीर हैं वह खूब अमीर हैं जबकि जो गरीब हैं वह अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं। इस देश में भारत जैसे मध्यमवर्गीय लोगों की संख्या बेहद कम है। केन्या की सकल राष्ट्रीय आय 3 लाख करोड़ रुपये है। केन्या की जीडीपी विकास दर हर साल 5.8 फीसदी की दर से बढ़ रही है। जबकि मुद्रास्फीति की दर 4.28 के आस पास है।

“आज हमारी कल तुम्हारी,
देखा लोगन बारी-बारी।”

जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती है जो सबके जीवन में होती है। जैसे मुसीबतों का सामना, इंसान की मृत्यु, बीमार पड़ना, महामारियों से लड़ना, ऐसे अवसरों पर बड़े बुजुर्ग इस कहावत को कहते हुए हमारे आने वाली नई पीढ़ी को समझाते नजर आते हैं। तो हमारा भी फर्ज बनता है कि उनकी इन बातों को हवा मे न उड़ाए। दान की हुई चीज की नियत देखी जाती है कीमत नहीं, 12 टन अनाज को सहर्ष स्वीकार करिये। दान नहीं, दानी का हृदय देखिए और अपने निकम्मे प्रधान सेवक को कोसिए जो ये दिन ला चुका है।

“मैं केन्या के भारत के लोगों के प्रति इस प्रेम के लिए कृतज्ञ भाव से धन्यवाद देते हुए  उनका अभिनंदन करता हूँ।”

.

Show More

राजकुमार सिंह

लेखक उत्तराखण्ड से स्वतन्त्र पत्रकार हैं। सम्पर्क +919719833873, rajkumarsinghbgr@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x