मानव कम्प्यूटर ‘शकुंतला देवी’
‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ और ‘मानव कम्प्यूटर’ जैसी उपलब्धियों से नवाज़ी गयी शकुंतला देवी का जन्म 1929 में बेंगलुरु (कर्नाटक) में हुआ था। आर्थिक तंगी और बेरोज़गार पिता के कारण उन्हें औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त न हो सकी। गरीब ब्राह्मण परिवार के रोजगार का साधन बनी, शकुंतला ने पाँच वर्ष की उम्र में ही अपनी प्रतिभा को साबित कर दिया था। उनके जीवन पर आधारित फ़िल्म ‘शकुंतला देवी’ ‘अमेज़न प्राइम वीडियो’ (हिन्दी सिनेमा का नया ओटीटी प्लेटफॉर्म) 31 जुलाई 2020 को रिलीज़ हुई है।
फ़िल्म के निर्देशक और लेखक अनु मेनन है। यह फ़िल्म तमाम सामाजिक और परम्परागत मिथकों को तोड़ने का काम करती है, जैसे महिलाएँ गणित में कमजोर होती हैं, वे कला-क्षेत्र और घरेलू कार्य ही अच्छे से कर सकती हैं, गणित केवल लड़कों का प्रिय विषय है आदि। शकुंतला देवी का किरदार विद्या बालन ने फ़िल्म में जवानी से लेकर प्रौढ़ावस्था तक का सफर बख़ूबी डूबकर निभाया है।
फ़िल्म में तीन पीढ़ियों का संघर्ष दिखाया गया है। शकुंतला की माँ जब शकुंतला से कहती है, ‘जब तू माँ बनेगी तब तुझे पता चलेगा’ यही बात शकुंतला अपनी बेटी अनुपमा (सान्या मल्होत्रा) को भी कहती है। दरअसल यह आत्मसंघर्ष माँ और औरत के बीच फर्क का है। फ़िल्म के इस कथन से इसकी पुष्टि होती है, ‘मैंने अपनी माँ को शायद हमेशा माँ के रूप में ही देखा एक महिला के तौर पर समझने की कोशिश नहीं की’।
जिस कारण पीढ़ी-दर-पीढ़ी माँ बेटी के सम्बन्धों में कड़वाहट पैदा होती है। शकुंतला माँ होने के साथ एक स्वतन्त्र औरत व आज़ाद जीवन जीने की इच्छुक है। वह कहती है, ‘जब मैं स्टेज पर होती हूँ, मुझे लोगों के चेहरे देखना अच्छा लगता है, जब वो हैरानी से चोटी और साड़ी के साथ औरत को मैथ्स सॉल्व करते देखते हैं।’ स्टेज पर जाकर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना यह कहना ‘आई एम करेक्ट’ उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है।
पारितोष (जीशु सेनगुप्ता) से शादी के बाद कुछ समय सब अच्छा चलता है। लेकिन कुछ समय बाद उसे अपने सपनों की याद आती है। जिम्मेदारियों से बन्धे होने के कारण वह ख़ुद को समय नहीं दे पाती। वह एक दिन दोबारा अपने प्रतियोगिता आधारित ‘मैथ्स-शो’ करने का निर्णय लेती है। जीवन की भाग-दौड़ में व्यस्त शकुंतला भूल जाती है कि वह औरत होने के साथ माँ भी है। एक दिन पति से बात करने पर जब उसे पता चलता है कि उसकी बेटी ने पहला शब्द ‘पापा’ बोला है। वह अपनी बेटी को खोने के डर से घबराकर घर वापस आ जाती है। पति से सहमति न बन पाने के कारण बेटी को लेकर लन्दन चली जाती है।
शायद यह उसकी एक भूल भी थी क्योंकि उस दिन के बाद बेटी अनुपमा पिता के बिना ख़ुश नहीं रह पाती है। ऐसा लगता है अनुपमा की पूरे जीवन का संचालन शकुंतला अपने अनुसार करती है, जो अनुपमा को बिल्कुल पसन्द नहीं। इसी कारण वह अपनी माँ से नाराज़ रहती है और शादी के बाद भी माँ नहीं बनना चाहती। फ़िल्म के दौरान मन्नू भंडारी की सुप्रसिद्ध कहानी ‘त्रिशंकु’ याद आती है। ‘त्रिशंकु’ कहानी में तीन पीढ़ियों के मध्य परम्परा और आधुनिकता का द्वंद्व है। कहानी में तनु माँ से कहती है, ‘ममी तुम भी कमाल करती हो, अपनी जिन्दगी को लेकर भी तुम सपने देखो और मेरी जिन्दगी के सपने भी तुम ही देख डालो, कुछ सपने मेरे लिए भी तो छोड़ दो।’
फ़िल्म के माध्यम से एक सशक्त स्त्री एवं एकाकी माँ के जीवन को बख़ूबी पर्दे पर उतारा गया है। साथ ही रूढ़िवादी, परम्परागत सामाजिक धारणाओं पर प्रहार भी किया है। फ़िल्म में कुछ मुद्दों का जिक्र तो किया गया है। लेकिन उनके विस्तार से बचा गया है, जैसे शकुंतला देवी का राजनीतिक जीवन व उसमें मिली हार को स्पष्टता से नहीं दिखाया गया है। सम्पूर्णता में कहे तो ‘शकुंतला देवी’ फ़िल्म महिला सशक्तिकरण की ओर अच्छा कदम साबित होगी।
दंगल, बधाई हो, पटाखा और फोटोग्राफ जैसी फ़िल्मों में शानदार अभिनय कर चुकी सान्या मल्होत्रा (अनुपमा) की जोड़ी अमित साध (अजय) दर्शकों पर अच्छा प्रभाव डालती है। सुनिधि की आवाज़ में “इंग्लैंड की रानी कोई भी हो, दुनिया की रानी हिंदुस्तानी” जैसे संगीत द्वारा भारत को विश्व पटल पर पहुँचाने का काम भी किया है। हाल ही में आयी ‘रसभरी’ वेब सीरीज देखने के बाद लोगों के मन में सिने जगत और शिक्षिका का जो रूप सामने आया था, ‘शकुंतला देवी’ फ़िल्म उस छवि को तोड़कर एक स्वतन्त्र, निर्भीक और विद्वान महिला के जीवन को रेखांकित करती है।
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