उत्तरप्रदेशराजनीति

बसपा में घमासान: दुर्बल हाथी, कमजोर चिग्घाड़

 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का सिक्का चलता था। राजनीति के गलियारों में अक्सर लोगों को यह कहते सुना जाता था कि बसपा के सहयोग बगैर यूपी की सत्ता दूर की कौड़ी है। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का लोहा अच्छे – अच्छों ने माना। कभी पंद्रह – पचासी, अगड़ा — पिछड़ा का  गणित तो कभी दलित – मुस्लिम गठजोड़। बाबा हम शर्मिन्दा हैं, बाभन ठाकुर जिन्दा हैं …तिलक तराजू और तलवार सरीखे नारे से कभी घोर दुश्मन बन चुके ब्राह्मण – ठाकुर करीब डेढ़ दशक बाद ही ‘हाथी नहीं गणेश है… हाथी चढ़कर आएगा, ब्राह्मण शंख बजाएगा’ का नारा लगाते बसपा के साथ एकजुट हुए, खासकर ब्राह्मणों ने पूर्ण बहुमत से बसपा को सत्ता सौंप दी। बहरहाल, कभी यूपी में मजबूत दल के रूप में पहचानी जाने वाली बसपा में इन दिनों एक बार फिर से घमासान जारी है।

पार्टी के प्रमुख नेता लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को पार्टी सुप्रीमो मायावती ने एक झटके में दल से बाहर निकाल फेंका। अचानक पार्टी सुप्रीमो मायावती की इस कठोर कार्रवाई ने बसपा में भूचाल ला दिया है। लालजी वर्मा और राम अचल राजभर की पहचान पार्टी की अगली पंक्ति के कद्दावर नेता के रूप में होती रही है। लालजी  विधान मंडल दल के नेता और राजभर पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष व वर्तमान में दल के राष्ट्रीय महासचिव रहे। खास बात यह है कि पिछले विधान सभा चुनाव में बसपा के 19 विधायक जीतकर आए थे। निष्कासन और पार्टी छोड़ने का सिलसिला पिछले साढ़े चार साल इस कदर चला कि वर्तमान में बसपा के पास कुल सात विधायक बचे हैं। खबर यह भी आ रही है कि इसी बीच प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित आधे दर्जन जिले के जिलाध्यक्ष भी एक झटके में हटा दिए गये हैं। 

मोदी लहर के चलते 2014 में यूपी से एक भी लोक सभा सीट न निकाल पाने वाली बसपा ने पिछले 2019 के चुनाव में दस सीट पर जीत दर्ज करा ली। हालांकि, तब बसपा ने सपा के साथ चुनावी गठबंधन किया था। इस गठबंधन में सपा को नुकसान हुआ, जबकि बसपा दस सीट जीतकर फायदे में रही। इसी प्रकार 2017 में सम्पन्न हुए विधान सभा चुनाव में बसपा के 19 विधायक चुनाव जीतकर आए पर साढ़े चार साल के भीतर बसपा से निष्कासन और छोड़ने की घटनाएँ इस कदर बढ़ी कि बसपा केवल सात विधायक वाली पार्टी में अब सिमट कर रह गयी है। अंबेडकर नगर के उप चुनाव में एक सीट हारने पर इसके पास 18 विधायक रह गये थे।

धीरे धीरे नौ विधायक बसपा से निकाले जा चुके हैं। इसमें श्रावस्ती जिले के भिनगा के विधायक असलम राइनी, हापुड़ जिले के ढोलाना के विधायक असलम अली, प्रयागराज के प्रतापपुर के विधायक मुज्जतबा सिद्दीकी, प्रयागराज जिले के हंडिया के विधायक हाकिम लाल बिंद,  सीतापुर जिले के सिंघौली क्षेत्र के विधायक हर गोविंद भार्गव, जौनपुर जिले के मुंगरा बादशाहपुर की विधायक सुषमा पटेल, आजमगढ़ की सगड़ी क्षेत्र की विधायक वंदना सिंह, उन्नाव जिले के पुरवा के विधायक अनिल सिंह, हाथरस जिले के सादाबाद क्षेत्र के विधायक रामवीर उपाध्याय हैं। ये सब देखते ही देखते पार्टी से बाहर कर दिए गये। ‘सियासी पंडितों’ के बीच जो निहितार्थ निकाले जा रहे हैं, उनमें एक प्रमुख बात यह भी निकलकर बाहर आ रही है कि अभी हाल में सम्पन्न पंचायत चुनाव में बसपा का प्रदर्शन बहुत संतोष जनक नहीं रहा। अलबत्ता, सपा का प्रदर्शन बेहतर रहा। पंचायत चुनाव में बेहतर जनादेश आने से सपा में उत्साह बढ़ा है।

विधान सभा 2022 के चुनाव के मद्देनजर सभी दलों में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। सो, उत्तर प्रदेश की राजनीति में आयाराम – गयाराम का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो चुका है। राजनीति के क्षेत्र में चर्चा तेज है कि बसपा के कद्दावर नेता लालजी वर्मा और राम अचल राजभर कमजोर होती बसपा को बाय – बाय बोल मजबूत दिखने वाली सपा का दामन पकड़ने की तैयारी में थे। चर्चा यह भी है कि बसपा के दोनों नेता लालजी वर्मा और राम अचल राजभर पिछले पंद्रह दिनों से सपा के प्रमुख नेताओं के संपर्क में चल रहे थे। पार्टी अध्यक्ष मायावती ने पुष्टि होने के बाद बसपा छोड़ने के पहले ही दोनों को पार्टी से निकाल बाहर फेंक दिया। बहरहाल, इसे चुनावी तैयारियों के मद्देनजर दांव – पेंच का एक हिस्सा भी माना जा रहा है।

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शिवा शंकर पाण्डेय

लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और नेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट आथर एंड मीडिया के प्रदेश महामंत्री हैं। +918840338705, shivas_pandey@rediffmail.com
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