आश्रम
सिनेमा

बेबस, लाचार, बदनाम ‘आश्रम’ में सुकून से जाइये

 

{Featured in IMDb Critics Reviews}

 

कहानियाँ दो तरह की होती हैं एक वो जो हम लोगों को सुनाते हैं और एक वो जो लोग सुनना चाहते हैं। ‘आश्रम’ वेब सीरीज का भले यह एक संवाद मात्र हो लेकिन है शाश्वत सत्य के समान ही। आश्रम वेब सीरीज एम एक्स प्लेयर की ही नहीं उन तमाम ओटीटी प्लेटफ़ार्मस के सामने सबसे चर्चित वेब सीरीज बन चुकी है। और एम एक्स प्लेयर ने सालों पहले बाबा राम रहीम के नाम पर यह जो कहानी परोसी है उसमें भले ही साफ और सीधे तौर पर बाबा राम रहीम का जिक्र न हुआ हो लेकिन इस देश की सिने प्रिय जनता जागरूक भी है। कहना गलत न होगा।

इस आश्रम वेब सीरीज के तीसरे सीजन को ‘एक बदनाम आश्रम’ का नाम दिया गया है। यह केवल मात्र बाबाओं और आश्रमों के नाम पर एक मात्र हमारे देश की कहानी नहीं कहती बल्कि यह ऐसे कई फर्जी और बदनाम आश्रमों को भी उसी सिनेमाई अदालत में एक साथ कटघरे में खड़ा करती है, जो इस तरह के कर्म उफ्फ़ सॉरी कुकर्म कर रहे हैं।

एक मोंटी नाम का आदमी जिसका ससुर बाबा मनसुख का भक्त है और ये बाबा मनसुख सीरीज में पवित्र आत्मा के तौर पर बस एक जगह संवाद के तौर पर बताया गया है। उस मोंटी का ससुर उसे बाबा मनसुख के आश्रम में ले आता है उसके बाद शुरू होता है खेल। एक आम टैक्सी ड्राईवर जिसकी महत्वकांक्षा हमेशा कुछ बड़ा बनने और उसी दिशा में सोचने की है। वह उठते, जागते हर पल बस अपने सपनों को किसी तरह पूरा करने के बारे में सोचता है। फिर बन जाता है एक दिन स्वघोषित बाबा निराला।

बाबा निराला का कहना है लोगों को सीरीज में कि ‘मैं जो बोलूँ वो कानून, जो मैं स्थापित करूँ वो नियम और विधान।’ लेकिन इसी नियम, विधान को बनाते बनाते कब वह इतना ताकतवर और रसूख वाला बन गया उसे खुद नहीं मालूम। उल्टे धन्धे करना तो उसकी आदत में पहले से शुमार है अब वह बाबा बनने के साथ ही लोगों की सम्पति जबरन इस तरह अपने नाम करवा लेता है कि लोग खुद देशभर के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी उसे खूब धन दौलत दे जाते हैं।

लेकिन कहते हैं न एक गलती और सब आपका रसूख मिट्टी। बस छल, प्रपंच से गढ़े गए इस स्वर्ग रूपी महल बदनाम महल में हजारों लोग बेबस और लाचार हैं। फिर होती है कुछ ऐसी घटनाएं  दरअसल घटनाएं और विस्मित करने वाले सीन इस सीरीज के मसाले बनाते बनाते समय इस कदर घोट-घोट कर मिलाए गए हैं कि आप भी इसके चंगुल में फंसते चले जाते हैं।

हालांकि सीरीज का जब पहला सीजन आया था तो बहुतेरे लोगों ने इस सीरीज को देखने और इस पर रिव्यू लिखने को कहा लेकिन एक ही एपिसोड देखकर आगे देखने का मन नहीं किया। फिर इस बार न जाने क्या सूझी की तीनों सीजन एक साथ देख डाले।

‘आश्रम’ वेब सीरीज के पहले दो सीजन की कहानी और प्रेजेंटेशन जितना लुभावना, सुहावना और आकर्षित करने वाला था उतना ही इसके तीसरे सीजन ने कहीं न कहीं कई सारी कसक बाकी छोड़ डाली। कहानी के नाम पर सीरीज कई जगह बे वजह घसीटी हुई नजर आती है। कई जगहों पर कास्टिंग के मामले में भी निराशा हाथ लगती है तो कई जगहों पर एक्टिंग की बारीकियों की कमी नजर आती है।

अवतार ले रहे बाबा के सीन को जिस तरह से ड्रामेटाइज किया गया वह बचकाना और बेहद हल्का काम नजर आता है। वी एफ एक्स के मामले में यहीं नहीं दो-एक जगहों पर यह सीरीज फिसलती नजर आती है। लेकिन कोर्ट के सीन देखते हुए पहली बार किसी सीरीज, फिल्म में सुकून देह लगता है। लीड किरदारों के नाम पर इस सीरीज ने ‘बॉबी देओल’ के सिनेमाई करियर को जो ऊंचाइयां प्रदान की है उसके लिए ‘बॉबी देओल’ की जितनी तारीफें की जाएं कम पड़ेंगी। उनके अलावा सीरीज में किसी और को देखने पर शायद इस देश-दुनियाँ सीरीज को नकार देती। ‘ईशा गुप्ता’ सुंदर लगती हैं उससे कहीं ज्यादा उनके सैक्सी डांस मूव्स प्रभावित करते हैं। पम्मी पहलवान के रूप में ‘अदिति सुधीर पोहानकर’ पीड़ित लड़की के रूप में अपने किरदार को जम कर जीती नजर आती है।

भोपा बने ‘चन्दन रॉय सान्याल’ इंस्पेक्टर उजागर सिंह  के रूप में ‘दर्शन कुमार’ प्रभावित करते हैं। ऐसे ही अनुप्रिया गोयनका, त्रिधा चौधरी, राजीव सिद्धार्थ, सचिन श्राफ आदि तमाम लोग उम्दा अभिनय करते नजर आते हैं लेकिन कुछ-कुछ सहयोगी कलाकारों के हल्के अभिनय के चलते सीरीज में कमियां भी नजर आती हैं।

कलाकारों की लम्बी फेहरिस्त वाली इस सीरीज के न जाने और कितने सीजन इसकी अपार सफलता के बाद बनाने के निर्देशक प्रकाश झा की टीम ने सोचे होंगे। लेकिन कम से कम भी इस सीरीज के अभी दो सीजन और बनने बाकी हैं इतना तो तय है। ओटीटी प्लेटफ़ार्मस की भीड़ में जो बहुधा कचरा परोसा जा रहा है उन सबके लिए यह सीरीज एक चुनौती है कि साफ सुथरी कहानी के साथ भी दर्शकों का मनोरजंन भरपूर किया जा सकता है। जरूरत है तो इसी तरह की कहानियों को तलाश करने की, उन्हें कायदे से लिखने की।

पहले दो सीजन में ‘कुलदीप रुहिल’ ने जो स्क्रीन प्ले और डायलॉग लिख कर जो जादू ओटीटी के पर्दे पर रचा था, लगता है उन्हें इस बार यह मौका कायदे से मिल नहीं पाया या उनकी जगह दूसरों से यह काम करवाया गया। यही वजह है कि सीरीज देखते समय उनका नाम न आना इस सम्भावना को और पुख्ता करता है। सीरीज में ‘जप नाम’ गाने को किसी एंथम सोंग्स की तरह रचा, बुना गया है, जो सुनने में कर्ण प्रिय लगता है बाकी के गाने, गीत-संगीत, बैकग्राउंड स्कोर, डायरेक्शन, मेकअप, ड्रेसअप, सिंक साउंड का इस्तेमाल, सीरीज में नजर आने वाली तमाम देश भर की लोकेशन और खूबसूरत दृश्य इस सीरीज को सुकून से देखने के लायक तो बनाते ही हैं।

तिस पर पहले दो सीजन देख कर इस सीरीज के मेकर्स तथा तमाम अभिनय करने वालों के कायल हो चुके इस सीरीज के प्रेमियों के लिए किसी भी तरह के रिव्यू, आलोचना, प्रशन्सा जैसी बातें बेबुनियादी होंगीं और वे बेसब्री से इस सीरीज के चौथे सीजन का इंतजार करने में लग गए होंगे। तीन सीजन आ जाने के बाद इस सीरीज की कहानी के कई पत्ते अब जब खुल चुके हैं तो दर्शकों को इंतजार अवश्य होगा कि आगे की कहानी वे जिस तरह सोच रहे हैं वैसी ही दिखाई जायेगी। लेकिन बतौर समीक्षक मैं दावे से कह सकता हूँ कि इस सीरीज की कमान सम्भाले हुए इसके मुखिया यदि सही फैसला और राह पकड़ें तो निश्चित तौर पर चौथे सीजन में अवश्य कुछ बड़ा और बेहतर ट्विस्ट भी देखने को मिल सकता है। तब तक इसके तीसरे सीजन का सूकून व इत्मिनान से लुफ्त उठाइये और एक बार फिर से जरा इस आश्रम में होकर आइये। तब तक मैं भी आपको यहीं मिलूँगा जप नाम!

अपनी रेटिंग – 3 स्टार

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लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com

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