कोरोना आपदा के सामने ऊँट के मुँह में जीरा है राहत पैकेज
24 मार्च को प्रधानमन्त्री ने जिस प्रकार हमेशा की तरह बिना किसी ख़ास तैयारी के रात 8 बजे अचानक समग्र देशबंदी की घोषणा की, उससे देशभर में अफरा-तफरी का माहौल पैदा होना स्वाभाविक था। इसके कारण 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन थाली-कटोरा बजाने वाले प्रधानमन्त्री के बहुसंख्यक अंध भक्त भी ठगे से रह गए। जो सर्वहारा वर्ग एक सीमा तक धार्मिक राष्ट्रवाद से पगलाया हुआ था, वह भी अब कामबंदी के कारण देशबंदी को अंगूठा दिखाते हुए घर वापसी के लिए सड़कों पर उतर आया है। रेल और सड़क यातायात पर रोक लगा दिए जाने के बाद भी बड़े शहरों और महानगरों से मजदूर भूखे-प्यासे ही अपने-अपने राज्यों की ओर निकल पड़े हैं। पटरी से उतर चुकी देश की अर्थव्यवस्था के बीच भूखे-बेरोजगार लोगों के रेले सड़कों पर अपने पैरों के निशान छोड़ते देखे जा सकते हैं। कोरोना महामारी से पैदा संकट के साथ-साथ छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्गों के साथ घर वापसी करते कामगार वर्ग के स्त्री-पुरुषों की इस त्रासदी ने राष्ट्र के विवेक को एक झटके से जगा सा दिया है। कोरोना से निपटने में केन्द्र सरकार की उजागर होती असफलता और आसन्न आर्थिक संकट के साथ आई कामगार वर्ग की बदहाली से लोगों का ध्यान हटाने के लिए दूरदर्शन पर रामायण का पुन: प्रसारण का दांव भी उलटा पड़ता लग रहा है। इस संदर्भ में केंद्रीय मन्त्री जावड़ेकर को तीखी आलोचना झेलनी पड़ी है। सोशल साइटों पर कोरोना को लेकर की जा रही दक्षिणपंथी राजनीति के खिलाफ आम आदमी का फूटता गुस्सा भी ध्यातव्य है।
कोरोना के संकट के कारण अंदर ही अंदर देश में सुलगते जन आक्रोश को भांप कर देश की ढहती अर्थव्यवस्था के नीचे कराह रहे आम आदमी को राहत पहुँचाने के लिए देशबंदी की घोषणा के दो दिन बाद 26 मार्च को केंद्रीय वित्त मन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा करनी पड़ी जिसे प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण योजना का नाम दिया गया। इस राहत पैकेज में गरीबों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और अक्षम लोगों के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण की बात है। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के मार्फत जरूरतमंदों के लिए मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति का प्रावधान किया गया है। छोटे उद्यमों में काम करने वाले अल्पवेतनभोगी कामगारों के लिए भी कुछ आर्थिक राहत दी गयी है। किन्तु एक तो ये तमाम प्रावधान अपेक्षा से बहुत कम हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका ने कोरोना महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में 2 खरब डॉलर का राहत पैकेज घोषित किया है जो कि वहाँ की आबादी के अनुसार प्रति व्यक्ति 6042 डॉलर है जबकि हमारे राहत पैकेज में एक व्यक्ति को 19 डॉलर ही मिलने वाले हैं। और दूसरे वित्त मन्त्री ने यह नहीं बताया है कि इस पैकेज के लिए पैसा कहाँ से जुटाया जाएगा। इसके कारण ऐसी आशंकाएँ पैदा हो गयी हैं कि बजट में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए जो आबंटन पहले ही किया जा चुका है, उसका ही पुन: संयोजन करते हुए, उसमें ही काट-छाँट करते हुए इस राहत पैकेज के लिए पैसों का जुगाड़ किया जाएगा।
27 मार्च के टेलीग्राफ अख़बार में प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण योजना के विभिन्न मदों का जिस प्रकार सिलसिलेवार ढंग से मूल्यांकन किया गया है, उससे यह राहत पैकेज कोरोना और कोरोना के साथ आए आर्थिक संकट से जूझ रहे आम आदमी की उम्मीदों पर तुषारापात करने वाला साबित होता है। अख़बार का विश्लेषण बताता है कि यह राहत पैकेज कोई बहुत बड़ी राहत लेकर नहीं आने वाला है। टेलेग्राफ का यह आंकलन अनूदित रूप में यहाँ देखा जा सकता है :
यह राहत एक बड़ा सौदा क्यों नहीं है
गुरुवार 26 मार्च को नई दिल्ली में केंद्रीय वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमन द्वारा घोषित राहत पैकेज – प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण योजना की मुख्य विशेषताँ और इसके आंकड़ों के पीछे के घटक नीचे दिए गए हैं :
राहत योजना में उठाए गए कदम | लाभक लोग | होने वाला फायदा | लागत व्यय और यह क्यों एक बड़ा सौदा नहीं है |
स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बीमा सुरक्षा | कोविड – 19 से लड़ने वाले 22 लाख चिकित्सक और सहायक चिकित्साकर्मी | प्रत्येक स्वास्थ्यकर्मी के लिए 50 लाख की बीमा सुरक्षा | सरकार की मंशा इस योजना के तहत 11000 करोड़ खर्च करने की है। यह निश्चय ही राहत देने वाला कदम है किन्तु व्यय इस पर निर्भर करेगा कि कितने लोग वायरस से संक्रमित होते हैं। वास्तविक लाभक तो वह बीमा कंपनी है जो बीमा किश्त से मुनाफा कमाएगी।
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मुफ्त दाल-चावल | 80 करोड़ गरीब लोग
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5 सदस्यों वाला बीपीएल परिवार आमतौर पर 35 कि.ग्रा. चावल या गेहूँ प्रति महीने पाता है; लाभक को तीन महीनों तक उसके हिस्से का दुगना प्रदान किया जाएगा; प्रत्येक परिवार को 1 कि.ग्रा. दाल भी दी जाएगी | यह राहत पहुँचाने में 45,000 करोड़ की लागत अनुमानित है। यह अधिकांशत: अवधारणात्मक है। देश के पास अन्न का सुरक्षित भंडार 75.3 मिलियन टन है जो अब तक का सबसे बड़ा संग्रह है। अगले खरीद के मौसम की शुरुआत से पहले नये अनाज के लिए सरकार को जगह बनाने की जरूरत है। अगर वे इसे नहीं बांटते हैं तो पुराना अनाज गोदामों में ही सड़ेगा। जिस अनाज भंडार के लिए पहले ही भुगतान किया जा चुका है, यह पैकेज उस भुगतान का मुद्रीकरण मात्र है।
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प्रधानमन्त्री किसान योजना विषयक फायदा
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8.7 करोड़ किसान | प्रत्येक लाभक अप्रैल की शुरुआत में पहली किश्त के रूप में 2000 रुपये प्राप्त करेगा; यह योजना प्रत्येक किसान को सालाना 6000 रुपये भुगतान करने का लक्ष्य लेकर चलती है। | यह फायदा देने में 16,000 करोड़ रुपयों की लागत अनुमानित है। किन्तु इस योजना के लिए पहले ही बजट आबंटित हो चुका है। बात सिर्फ यही है कि पहली किश्त का भुगतान जल्दी किया जा रहा है। |
जनधन खाता धारक महिलाओं को नकदी हस्तांतरण | 20.40 करोड़ महिलाएँ इसके दायरे में आनी हैं | तीन तहीनों के लिए 500 रुपये प्रतिमाह का अनुग्रह | इस फायदे में 31,000 करोड़ रुपयों का खर्च अनुमानित है। संभव है कि पैसा दूसरी कल्याणकारी योजनाओं से लिया जाए।
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उज्जवल सोजना अंतर्गत मुफ्त गैस सिलेंडर | 8 करोड़ गरीब परिवार | यह फायदा तीन महीनों के लिए ही है | 13,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया जाना। किन्तु यह कहना कठिन है कि यह कितना प्रभावी होगा; समग्र देशबंदी की सिथति में यह कहना कठिन है कि क्या एलपीजी उत्पादक अपना उत्पादन बढ़ाने में सक्षम होंगे।
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संगठित क्षेत्र के अल्प वेतनभोगी | 100 से कम कामगारों वाला व्यवसाय जिसमें 90 प्रतिशत लोग 15,000 रुपये प्रतिमाह से कम पाते हों | नियोक्त और कर्मचारी के पीएफ अंशदान सरकार के द्वारा दिये जाना; तीन महीनों के लिए प्रत्येक कर्मचारी उसे दिये जाने वाले मासिक वेतन का 24% अपने पीएफ खाते में पाएगा | 5,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया जा रहा है। इस पर कोई स्पष्टता नहीं है कि कंपनियों का चयन कैसे किया जाएगा; यह भी स्पष्ट नहीं है कि केन्द्र के पास क्या कर्मचारियों के वेतन विषयक आंकडें हैं भी या नहीं।
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निर्धन वरिष्ठ नागरिक, महिलाएँ और शारीरिक रूप से अक्षम लोग | 3 करोड़ लाभक | प्रत्येक लाभक 1,000 रुपये प्राप्त करेगा। इस राशि का भुगतान दो किश्तों में किया जाएगा। | 3,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है; यह पैसा कहाँ से आएगा, इसे लेकर कोई विवरण नहीं है।
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मनरेगा योजना | 13.62 करोड़ ग्रामीण कामगार | 202 रुपये प्रतिमाह से 20 रुपये की मजदूरी में बढ़ोतरी; यह राहत एक साल में 2,000 रुपये अतिरिक्त प्रदान करेगी। यह योजना साल में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है। | 5,600 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है; कोई तत्काल फायदा संभवत: नहीं; मनरेगा का भुगतान सिर्फ किए गए काम के बदले किया जाता है और वह भी कुछ अंतराल के साथ किया जाता है। समग्र काबंदी की स्थिति में क्या कामगारों को कोई भी नया काम दिया जाएगा ॽ
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स्व-सहायता समूह | महिलाओं द्वारा संचालित 63 लाख स्व सहायता समूह | गैर जमानती ऋण देने की सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गयी है | 19,300 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया जा रहा है। यह पैसा संभवत: पहले से अस्तित्ववान कल्याणकारी योजनाओं से लिया जाएगा; लाभकों के चयन में भेदभाव संभव है।
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ईपीएफ निकालने का लाभ | 4 करोड़ कामगार | 75 % भविष्य निधि राशि अथवा तीन महीने की तन्ख्वाह में से जो भी कम हो, उसकी निकासी की अनुमति
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केन्द्र की जेब से कोई वास्तविक धनराशी नहीं जाने वाली; कामगार अपने ही खातों से निकालने वाले हैं। |
निर्माणकार्य में जुटे कामगारों के लिए निधि | 3.5 करोड़ कामगार | कल्याणकारी निधि कनाई गयी है; आधारभूत वित्तीय निधि की घोषणा नहीं की गयी; राज्य सरकारें इन कामगारों को सहायता पहुँचाने के लिए निधि से पैसा निकालने में सक्षम होंगी
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31,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है। इस योजना के अंतर्गत राज्य जिन शर्तों के तहत निधि का इस्तेमाल करेंगे, उनका कोई विवरण नहीं है।
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जिला खनिज निधि* | लाभकों का परिगणन नहीं | कोविड – 19 की जाँच कराने और रोगियों के उपचार व्यय के लिए राज्य इस निधि से पैसे निकाल सकते हैं | आधारभूत निधि का कोई आंकलन नहीं; निकासी की शर्तों का विवरण अपेक्षित है। |
कोविड -19 महामारी के फैलाव को रोकने के साथ-साथ इस महामारी से प्रभावित लोगों के इलाज के संदर्भ में चिकित्सकीय परीक्षण, जाँच की पूरक और अतिरिक्त सुविधाओं और दूसरी आवश्यकताओं के लिए जिला खनिज निधि के तहत उपलब्ध निधियों का इस्तेमाल करने के लिए राज्य सरकारों से कहा जाएगा। यद्यपि कुछ भी स्पष्टत: नहीं कहा गया किन्तु ऐसा लगता है कि राज्यों के पास इस तरह की निधि पहले से ही अस्तित्व में है।
वास्तव में बजट आबंटन की दृष्टि से तो इस राहत पैकेज के कुछ ख़ास मायने नहीं है किन्तु 21 दिनों की घरबंदी के कारण विपत्तिग्रस्त हाशिये के लोगों की त्रासदी को कुछ हल्का करने वाले पहले कदम के रूप में अवश्य इसे देखा जा सकता है। इसका महत्व इस दृष्टि से भी कोई लगा सकता है कि इसमें कोरोना के साथ आई आर्थिक सुनामी से प्रभावित लगभग सभी वर्गों को कुछ न कुछ राहत पहुँचाने की किंचित चेष्टा तो की ही गयी है। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में चूहों और कीड़-मकोड़ों से बर्बाद होने वाले अनाज को जरूरतमंदों में वितरित किया जाना भूख के खिलाफ जरूरी कदम के रूप में देखा जा सकता है। कामकाज बन्द हो जाने के कारण अपने अस्तित्व के लिए जूझते छोटे व्यावसासिक उद्यमों को दी गयी पीएफ विषयक आर्थिक राहत से नियोक्त और कर्मचारी, दोनों कुछ सांस तो जरूर ले पाएंगे।
किन्तु सरकार की यह राहत कुछ देर से उठाया गया बहुत छोटा कदम ही कही जाएगी। वास्तव में ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की चिंता समुचित राहत पैकेज देने की बजाए राहत पैकेज को इस चालू वित्तीय बजट की सीमा में ही रखने की ज्यादा है। वह बेरोजगार हो चुके कामगारों और हाशिये के लोगों की तुलना में संभावित राजकोषीय घाटे को लेकर ज्यादा फिक्रमंद है। अथवा ऐसा भी हो सकता है कि उसने कॉरपोरेट क्षेत्र और मध्यवर्ग को विशेष राहत देने के लिए अपनी तिजोरी बचाकर रखी हो।
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