चिन्तन

करो ना (कोरोना)

 

 

  • नन्दलाल सिंह 

 

मनुष्य जीवन में पैदा होना सबसे बड़ा उपहार है। पर वहीं दरिद्रता सबसे बड़ा अभिशाप भी। और इसी अभिशाप से मुक्ति के लिए मनुष्य न जाने कितने प्रयास करता है। दूर देशों   की यात्राएं और तरह-तरह के जोखिम उठाता है।

पर सबसे अधिक दुखद स्थिति  तब होती है जब किसी भी समाज में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं। घर परिवार समाज में उदासीनता और नकारात्मकता का वातावरण बन जाता है तथा अधिकांश युवा पीढ़ी हताशा और निराशा में असामयिक तत्वों के हाथों के खिलौने बन जाता है। और (empty mind is devil’s workshop) खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह कहावत शत प्रतिशत सच है। क्योंकि जिन जगहों पर बेरोजगारी अधिक है वहां क्राइम रेट भी अधिक है। फिर घर परिवार समाज में विघटन बढ़ता है और एक बीमार समाज के हम अंग बन जाते है। उस समाज में जहां बेरोजगारी अधिक है ऊर्जा विशेषकर युवा ऊर्जा नकारात्मक दिशा की और अग्रसर हो जाती है।

WHO Declared Coronavirus An Epidemic

पिछले कई वर्षों से लगातार कम हो रही सरकारी नौकरियां, मंदी की मार झेल रही प्राइवेट सेक्टर में हो रही छँटनियाँ ……और अब कोरोना महामारी का आतंक, लॉक डाउन …..!

महामारी से तो उबर जाएंगे लेकिन आर्थिक महामारी का क्या होगा ?

भारत की 40 प्रतिसत आबादी दैनिक और मासिक आय पर किसी तरह जीवन यापन करती है उनकी क्या स्तिथि होगी …..?

कौन विचार करेगा ??

केरल की राज्य सरकार दो महीने का पेंशन अग्रिम, एक महीने का राशन और सेनिटाइजर अपने राज्य के नागरिकों को उलब्ध करा रही है …..लेकिन शेष राज्यों के लोगों का क्या ….??कोरोना पर इस सीएम ने ऐसा राहत पैकेज ...

आज़ादी के पहले हम ऐसी ही स्थिति में थे, अंग्रेजों की लुटेरी सरकार, बहुत अधिक टैक्स /लगान की मार /सूदखोरों के आतंक और अलप संसाधनों के बीच भी हमने हिम्मत नहीं हारी ,सकारात्मक सोच ऊर्जा के साथ आज़ादी पाई, विकास के रास्ते खुले ….लेकिन तीब्रता से बढ़ती जनसंख्या, छै छै युद्ध, बेईमानी के डी एन ए ने जनता का, विकास का धन चुराकर  निजी विकास तो किया लेकिन समाज पिछड़ गया ।

पुनः एक महामारी हमें स्वास्थ्य ही नहीं आर्थिक स्थिति से भी कमजोर करने को कटिबद्ध है ….लेकिन हमारे संकल्प और जिजीविषा से बड़ी और मजबूत नहीं है ।

हम सकारात्मक और रचनात्मक रह कर इस स्थिति से भी निश्चित ही उबरेंगे :

घर की सफाई ,सजावट, किचेन की सफाई, बाथरूम की सफाई, कपड़ों की सफाई, पढाई के किताबों को पढ़ाई के जमाने के बाद छुए नहीं …पुनः उनसे दोस्ती और जीवन की नई शुरुआत कर …हमें फिर फिरसे उगना है फीनिक्स की तरह ।

तब जब हम विचार शक्ति से मजबूत होंगे …..!

विचार शक्ति से मजबूत तब होंगें जब हम अपने सड़ियल सोच से मुक्त होकर ….उन्हें भी कूड़ा रूप में फेंक कर ,सम्पूर्ण जीवन पर विचार करते …..पुनर्नवा होंगें …!

नन्दलाल सिंह

9167474049

गोरेगाँव पश्चिम, मुम्बई -400104

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी

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