मालदीव का बदलता रुख
मालदीव दक्षिण एशिया एवं हिन्द महासागर के भौगोलिक क्षेत्र में अवस्थित भारत का एक महत्त्वपूर्ण पडो़सी देश है। अपनी संवेदनशील भौगोलिक स्थिति के कारण मालदीव भारत के लिए भू-राजनीतिक एवं भू-सामरिक दृष्टिकोण से उल्लेखनीय स्थान रखता है। सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में भारत-मालदीव के बहुआयामी सम्बन्धों की ऐतिहासिकता काफी प्राचीन है।
भारत अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी सकारात्मक एवं शांतिप्रिय विदेश नीति के लिए सुविख्यात है। विशेषकर अपने पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाना भारतीय विदेश नीति की चिरस्थायी परम्परा रही है। सन् 1965 में मालदीव की स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत ने मालदीव को मान्यता देते हुए कूटनीतिक सम्बन्धों की स्थापना की। सन् 1988 में भारत ने “ऑपरेशन कैक्ट्स” के द्वारा तत्कालीन राष्ट्रपति मामुन अब्दुल गयूम के खिलाफ तख्तापलट की साज़िश को नाकाम कर दिया था। इसके पश्चात् भारत-मालदीव द्विपक्षीय सम्बन्धों में और मजबूती आयी।
पिछले दशक में मालदीव में चीन के प्रभाव में वृद्धि हुई है। यह भारत के लिए भू-राजनीतिक एवं भू-सामरिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण है। मालदीव ने चीन के साथ सन् 2014 में मुक्त व्यापार समझौता किया। इसके पश्चात् मालदीव-चीन आर्थिक सम्बन्धों में भी प्रगाढ़ता आयी। अभी जनवरी 2024 में भारत-मालदीव सम्बन्धों में कूटनीतिक तनाव के बीच मालदीव एवं चीन ने बीस समझौतों पर हस्ताक्षर किये। मालदीव एवं चीन ने अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को ‘व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी’ के स्तर तक बढ़ाकर परस्पर सामरिक प्रगाढ़ता का परिचय दिया। इन घटनाओं के मद्देनजर निश्चित तौर पर भारत को अब सतर्क रहने की जरूरत है। भारत के सामरिक चिंतन समूह को अपने पड़ोसी देशों में होने वाली भारत-विरोधी घटनाओं पर पैनी नजर बनाकर रखने की जरूरत है।
भारत हमेशा से अपने पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण एवं सकारात्मक सम्बन्धों का पक्षधर रहा है। परन्तु हमारे पड़ोसी देशों में कुछ राजनीतिक ताकतें हमेशा से भारत-विरोध की राजनीति को संपोषित करती रही हैं। हालिया समय में मालदीव में ‘इण्डिया आउट’ मुहिम को भी हम इस कड़ी में देख सकते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘विश्वमित्र’, वैश्विक सहिष्णुता एवं साझा समृद्धि के आदर्श गुणों से पुष्पित-पल्लवित भारतीय विदेश नीति के लिए निश्चित रूप से यह एक आश्चर्यजनक चुनौती है। भारत को काफी धैर्य के साथ बहुआयामी रणनीति के द्वारा अपने पड़ोसी देशों में भारत-विरोध की राजनीति से निपटना होगा।
मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद के नेतृत्व में पहली लोकतान्त्रिक सरकार का गठन वर्ष 2008 में हुआ था। मोहम्मद नाशीद के कार्यकाल में भारत-मालदीव द्विपक्षीय सम्बन्धों में काफी प्रगाढ़ता आयी। उनके कार्यकाल में मालदीव की विदेश नीति में भारत के पक्ष में एक स्पष्ट सकारात्मक झुकाव था। सन् 2012 में मालदीव की विपक्षी पार्टियों ने मालदीव में भारत की मजबूत उपस्थिति का पुरजोर विरोध किया। इसके पश्चात् मोहम्मद नाशिद ने 2012 में इस्तीफा दे दिया। मालदीव के द्वितीय लोकतान्त्रिक चुनाव के पश्चात् सन् 2013 में अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व में नयी सरकार का गठन हुआ। आगामी वर्षों में नयी सरकार ने भारत के खिलाफ नफरत की राजनीति को प्रश्रय दिया। इस सरकार ने चीन के प्रति झुकाव वाली विदेश नीति अपनाकर चीन के साथ आर्थिक, रणनीतिक एवं सामरिक प्रगाढ़ता में गुणात्मक वृद्धि की।
मालदीव के तीसरे लोकतान्त्रिक चुनाव के पश्चात् सन् 2018 में श्री इब्राहिम सोलिह के नेतृत्व में नयी सरकार का गठन हुआ। इस सरकार के द्वारा ‘इण्डिया फर्स्ट’ विदेश नीति की शुरुआत कर फिर से द्विपक्षीय सम्बन्धों में सकारात्मक सुधार किया गया। श्री सोलिह ने राष्ट्रपति बनने के बाद दिसंबर 2018 में अपनी पहली राजकीय यात्रा के गंतव्य स्थान के तौर पर भारत को चुना। इससे भारत-मालदीव द्विपक्षीय सम्बन्धों में सकारात्मकता एवं परस्पर भागीदारी के नये विश्वसनीय दौर की शुरुआत की उम्मीद जगी। परन्तु भारत-मालदीव की बढ़ती हुई पारस्परिक दोस्ती भारत-विरोध की राजनीति करने वाली मालदीव की राजनीतिक ताकतों को रास नहीं आयी। अक्टूबर 2020 में विपक्षी गठबंधन ने ‘इण्डिया आउट’ अभियान की शुरुआत कर भारत के खिलाफ नफरत की राजनीति को फिर से शुरू किया। राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के नवम्बर 2023 में सत्ता में आने के बाद भारत-विरोधी राजनीति को और बल मिला।
भारत ने मालदीव में बदलते हुए घटनाक्रम के मद्देनजर धैर्यपूर्ण कूटनीति के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धों को सुधारने की दिशा में सकारात्मक प्रयास किया। शुरुआती तनाव के बाद मार्च 2024 में मालदीव के राष्ट्रपति श्री मुइज्जू ने भारत को एक महत्त्वपूर्ण करीबी दोस्त बता कर उससे कर्ज में छूट देने की गुहार लगायी। वर्तमान समय में मालदीव की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है। मालदीव की अर्थव्यवस्था ज्यादातर पर्यटन के क्षेत्र से आने वाले आय पर निर्भर है। विगत वर्षों में मालदीव का पर्यटन क्षेत्र भी काफी चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है। मालदीव की अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से ‘कर्ज के जाल’ में फँस गयी है। वर्ष 2024 में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने मालदीव को “ऋण-संकट” की चेतावनी देते हुए सकारात्मक आर्थिक सुधार लागू करने की सलाह दी है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने मालदीव को राजस्व बढ़ाने, खर्च कम करने, बाह्य कर्ज सीमित करने के साथ-साथ विशेषकर चीनी निवेश एवं कर्ज से सावधान रहने की सलाह दी है।
निश्चित तौर पर मालदीव की आंतरिक राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल का दौर आगामी भविष्य में आ सकता है। भारत की खुफिया एजेंसियों एवं विदेश मन्त्रालय को मालदीव के घटनाक्रम पर लगातार नजर बनाये रखनी चाहिए। मालदीव में कट्टरपन्थी इस्लामिक ताकतें भारत के साथ प्रगाढ़ रिश्ते नहीं चाहती हैं। ऐसी ताकतें अगस्त 2024 में बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद ‘इण्डिया आउट’ अभियान को और धार देने की नापाक कोशिश कर सकती है।
हर संकट अपने साथ एक सकारात्मक अवसर भी लेकर आता है। मालदीव का आसन्न आर्थिक संकट भी उसके लिए एक सकारात्मक अवसर ले कर आया है। मालदीव को भारत-विरोधी राजनीति पर अंकुश लगाना चाहिए। मालदीव को अपनी आर्थिक समस्याओं से उबरने के लिए भारत से सकारात्मक मदद लेनी चाहिए। मालदीव को अपनी आर्थिक सेहत सुधारने के लिए चीन से आने वाली शोषणकारी निवेशों को सीमित करना चाहिए।
भारत को भी हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में सक्रिय अन्य भू-राजनीतिक ताकतों जैसे-अमेरिका, फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया एवं जापान के साथ मिलकर मालदीव की अर्थव्यवस्था के विविधीकरण के दूरगामी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम करना चाहिए। अल्पकालिक लक्ष्य के तौर पर भारत को मालदीव के लिए अपने क्वाड सहयोगी देशों के साथ मिलकर एक आर्थिक बेलआउट पैकेज पर काम करना चाहिए। भू-सामरिक एवं भू-रणनीतिक दृष्टिकोण से मालदीव के अन्दर इस क्वाड-प्रेरित बेलआउट पैकेज की रणनीति से हम चीन के प्रभाव को प्रति-संतुलित कर सकते हैं। भारत जापान के ‘पार्टनरशिप फॉर क्वालिटी इंफ्रास्ट्रक्चर’ प्रोग्राम के अधीन भी मालदीव में अवसंरचना विकास एवं निवेश को सुदृढ़ कर सकता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में अवस्थित मालदीव की बेहतरी के लिए भारत, जापान एवं अन्य क्वाड देश प्राकृतिक भागीदार हो सकते हैं।
भारत ऐतिहासिक रूप से मालदीव की आर्थिक एवं सामुदायिक विकास योजनाओं में एक अग्रणी साझेदार रहा है। अभी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में भारत और मालदीव को इस साझेदारी को और सशक्त बनाने की जरूरत है। भारत और मालदीव ने सन् 1981 में एक व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस समझौते के तहत् भारत मालदीव को आवश्यक वस्तुओं का निर्यात करता है। भारतीय स्टेट बैंक सन् 1974 से अपने ऋण सहायता कार्यक्रम के तहत मालदीव के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता रहा है। स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया ने मालदीव के पर्यटन क्षेत्र से जुड़ी अवसंरचना जैसे- द्वीप रिसॉर्ट्स आदि के निर्माण में भारत के अन्य व्यावसायिक समूहों के साथ एक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
मालदीव सार्क संगठन का भी एक महत्त्वपूर्ण सदस्य देश है। भारत एवं मालदीव के बीच सकारात्मक एवं रचनात्मक सम्बन्ध पूरे दक्षिण एशिया एवं हिन्द महासागर क्षेत्र की सुरक्षा एवं स्थायित्व के लिए अत्यन्त आवश्यक है। सार्क संगठन के भीतर भी मालदीव और भारत को अपने बीच सहयोग एवं सामंजस्य को सुदृढ़ करना चाहिए। मालदीव अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन विशेषकर समुद्री जल स्तर की वृद्धि से उत्पन्न होने वाले आसन्न संकट से काफी चिंतित है। यह अन्य द्वीपीय देशों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक सहयोग का आकांक्षी है। भारत को भी विभिन्न क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे पर मालदीव के साथ सृजनात्मक सहयोग करना चाहिए।
हाल में अगस्त 2024 में श्रीलंका में आयोजित कोलम्बो सुरक्षा सम्मेलन में भारत, मालदीव, मॉरीशस एवं श्रीलंका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने हिस्सा लिया। इन देशों ने कोलम्बो सुरक्षा सम्मेलन के सचिवालय की स्थापना के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। यह क्षेत्रीय मंच समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एवं साइबर सुरक्षा आदि मुद्दों से सम्बन्धित है। हिन्द महासागर क्षेत्र में इस क्षेत्रीय मंच पर भारत को मालदीव से रचनात्मक सहयोग प्राप्त हुआ है। यह हिन्द महासागर क्षेत्र में सुरक्षा, स्थायित्व एवं साझी समृद्धि के लक्ष्य को समर्पित भारत-मालदीव सहयोग की असीम संभावनाओं को रेखांकित करता है।