- अरुण कुमार पासवान
लगभग सवा महीने तक सात चरणों में लोकसभा चुनाव 2019 सम्पन्न हो गया। कैसा रहा चुनाव, यह एक गम्भीर सोच का मुद्दा है। चुनाव-आयोग कुछ कहता है, विपक्षी पार्टियाँ कुछ कहती हैं, सरकार कुछ कहती है, आमलोग कुछ-कुछ कहते हैं, मीडिया तरह-तरह की बात कहती है। कौन सही कहता है, इसका फैसला करने की हैसियत इस देश में कोई नहीं रखता; क्योंकि सही और सत्य का अर्थ बदल चुका है। अब हर बोलने वाले का कोई न कोई उद्देश्य होता है। हर बात पूछने वाले, सुनने वाले और उसके प्रभाव, परिणाम को ध्यान में रखकर बोली जाती है। इस देश के लोग चाहे जैसे भी हों, चालाक अवश्य हो चुके हैं। और ढीठ तो इतने कि दूसरों के लिए अपशब्द का सरेआम प्रयोग कर, दूसरों को बुरा बोलने वाले बताते रहते हैं।
अब भला-बुरा बताने की बात तो क्या कहिए! इस बार चुनाव-आयोग ने कई नेताओं को बुरा कहा, कई नेताओं ने पलट कर जवाब दिया। किसी ने चुनाव आयोग को सत्ताधारी-दल के एक विंग का नाम दिया तो कई नेताओं को चुनाव आयोग ने 36 घंटे,72 घंटे अपने परिवार के साथ गुजारने की सलाह दी, उनके मानसिक संतुलन को पुनर्स्थापित करने के लिए। पर जिन्हें परिवार के बीच की घुटन बर्दाश्त नहीं उन्हें तो भजन ही करना पड़ा। फिर भी कई लोग दल हित में बदनाम होने से नहीं चूके, भले ही उन्हें दल ने दिल से क्षमा न करने की घोषणा की हो, पर वे जानते हैं कि मन और दिल अलग अलग होते हैं, फिर दल की भी अपनी मजबूरी है। हाँ चुनाव आयोग ने कई नेताओं को क्लीन चिट भी प्रदान किए, तो ऐसे नेताओं के विरोधियों ने ज़ोर देकर कहा कि चिट क्लीन नहीं था, अदृश्य भाषा में कुछ लिखा था उस पर, जो नई सरकार बनने के बाद पढ़ा जा सकेगा। और बेचारी मिस ई वी एम, इसके चरित्र पर तो इतने कीचड़ उछले कि कोई और मिस होती तो आत्महत्या कर लेती। हाँ पर जब तक उसे आयोग और सत्ता का पूर्ण विश्वास प्राप्त है तब तक वो इन कीचड़ों को धूल की तरह झाड़ती रहेगी।
खैर,चुनाव समाप्त हो चुके हैं। चुनाव-आयोग को ऐसा दावा करने में कोई कठिनाई नहीं है कि उसने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के अपने दायित्व का शत-प्रतिशत पालन किया है और इतने बड़े राष्ट्र के इतने बड़े पर्व को पूर्ण पवित्रता से सम्पन्न कराया है। अब उसका अन्तिम भाग 23 मई को सम्पन्न हो जाएगा, जब लोगों के सामने दूध का दूध और पानी का पानी प्रदर्शित होगा। लेकिन उससे पहले भविष्यवेत्ता मीडिया ने अपने सर्वेक्षण प्रस्तुत कर दिए हैं और आमलोगों से लेकर राजनीतिक दलों को गपशप का मुद्दा दे दिया है। सरकारी दल सहित सभी चैनल के सर्वेक्षण जहाँ भारतीय जनता पार्टी को फिर से सत्तासीन कर रहे हैं, वहीं विपक्ष ताबड़तोड़ मेलजोल करके अपनी उम्मीदों के प्रदर्शन में व्यस्त है। कुछ समीक्षक सर्वेक्षण के विपरीत बोल रहे हैं, तो कोई कह रहा है कि सर्वेक्षण में लोगों ने सच नहीं कहा है, क्योंकि लोग माहौल और अपनी सुरक्षा को ध्यान में रख कर जवाब देते हैं। जो भी हो, मोदी जी गुफ़ा में गए तो किसी विद्वान को स्वामी विवेकानंद के समुद्री चट्टान पर चिंतन की बात याद आई और किसी ने कहा पराजय के दर्द को दबा रहे हैं। अब जिसे जो कहना है कहे हम तो कुछ भी नहीं कहेंगे। हम भी किसी से कम चालाक नहीं हैं। चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद ही मुँह खोलेंगे। गुप्त मतदान किया है, किसी का प्रचार भी नहीं किया है। जो दल जीतेगा समझ लीजियेगा मैं ने उसे ही वोट दिया था। फिलहाल रहस्य ही रहने दीजिए। मैं भी देखता हूँ आप भी देखिए कि 23 मई को ऊँट किस करवट बैठता है।
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चुनाव का परम ज्ञान
नुपुर अशोकMay 20, 2019डोनेट करें
जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
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