सिनेमा

क्या सोच बदलने में कामयाब हो पाएगी ‘ब्रीड’

 

साल 2020 में ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लयेर पर एक शॉर्ट फ़िल्म रिलीज हुई ‘खुशियां अधूरे आँचल की’ जिसे अब यूटयूब पर भी देखा जा सकता है। फ़िल्म की कहानी अच्छी लिखी, गढ़ी गई। कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो न तो आदमी है और न ही औरत। लेकिन उसके भीतर ममता है उसी ममता के चलते वह जब औरतों को देखती है अपने बच्चों को दूध पिलाते हुए, तो उसके दिल में भी टीस उठती है। वह अपने बेजान स्तनों से किसी बच्चे को दूध पिला रही है। वह ऐसा महसूस करती है कि सच में उसके स्तनों से बच्चे के लिए अमृतमयी सफ़ेद बूंदों का स्त्राव हो रहा है और बच्चा दूध पी रहा है। लेकिन तभी काफी कुछ घटता है और उसकी पिटाई कर दी जाती है।

कहानी तो आपको इस 20 मिनट की फ़िल्म में बढ़िया नजर आएगी। वहीं कैमरे भी बेहतरीन एवं उच्च स्तर के इस्तेमाल हुए लगते हैं लेकिन उन्हें ठीक से कैमरामैन अपने कैमरे में दर्शा नहीं पाया ऐसा महसूस होता है। ऐसी ही कुछ एक कमियां एक्टिंग व कहानी की सिनेमेटोग्राफी सम्बन्धी में भी देखने को मिलती हैं।

लेकिन जब उद्देश्य अच्छा हो, सोच तथा विचारों से लेखक, निर्देशक समृद्ध हो तो ऐसी कमियां नजर अंदाज कर देनी चाहिए। निर्देशन के मामले में ‘खुशियां अधूरे आँचल की’ फ़िल्म में बॉबी का निर्देशन भले कुछ कच्चा लग रहा हो लेकिन उनकी आने वाली एक बड़ी फिल्म ‘ब्रीड’ की कहानी का काफी कुछ हिस्सा उनके जीवन की सच्ची घटनाओं से भी जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। ‘ब्रीड’ का ट्रेलर लॉन्च हो चुका है तथा इसे यूटयूब पर अंग्रेजी में ‘Breed’ ट्रेलर लिखकर खोजा जा सकता है। ट्रेलर से साफ नजर आता है कि फ़िल्म की कहानी एक बार फिर से एलजीबीटी समुदाय, समाज के इर्द-गिर्द बुनी गई है।

‘खुशियां अधूरे आँचल की’ फ़िल्म से निर्देशन के क्षेत्र में उतरने वाली बॉबी कुमार ने इससे पहले ‘अग्निपथ’ तथा ‘जोधा अकबर’ जैसी बड़ी फिल्मों में अभिनय करके अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। ‘ब्रीड’ फ़िल्म की कहानी उन्होंने खुद लिखी तथा उसमें एलजीबीटी पात्र का किरदार भी खुद निभाया है। इस फ़िल्म में ‘जावेद अली’ की आवाज में ‘आज मैं नाचूंगी’ सुनने में सबसे प्यारा गाना लगता है। वहीं ‘ऋचा शर्मा’ की आवाज में ‘रंग नहीं है’, ‘जसपिंदर नरूला’ की आवाज में ‘मौला अली अली’, ‘सुनिधि चौहान’ की आवाज में ‘आधी सी रात’ गाने रिलीज कर दिए गए हैं तथा फ़िल्म भी जल्द ही रिलीज को तैयार है।

इसी मौके पर बॉबी कुमार से कुछ बातचीत हुई और उनकी दोनों फिल्मों तथा उनके जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों को मैंने उनसे जानकर इसे लेख के रूप में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।

प्रश्न – आप अपनी फिल्म ‘खुशियां अधूरे आँचल की’ और ‘ब्रीड’ के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

उत्तर – मेरा मकसद यही संदेश देना था पूरे भारतवासियों को कि मैं एलजीबीटी समाज से ताल्लुक रखती हूं। लिहाजा मेरे जैसे व्यक्तित्व की तरह अगर कोई बच्चा पैदा होता है, जिसमें औरत के गुण नजर आते हैं तो उसे अपने घर से बाहर न निकालें। उनको समाज, परिवार से दूर न रखें। वही प्यार और सम्मान उन्हें दे जो और बच्चों को देते हैं। इस फ़िल्म को देखकर लोगों के मन में अगर यह भाव जागृत हो कि वही शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण चीजें उसे देंगे जो दूसरे बच्चों को देते हैं तो वे हमारा सहारा बनेगें। वे भी अच्छा जीवन जी सकेंगे।

मेरे जैसे या एलजीबीटी बच्चों को भी घरों में प्यार और सम्मान से रखें उन्हें जिंदगी जीने का मकसद सिखाएं बताएं ताकि वे बच्चे लोगों के बीच जाकर बिखरने से बच जाएं। उन्हें बाहर जाकर नए-नए रिश्ते ढूंढने पड़ते हैं जिससे वे बच सकेंगे। मां, बहन, भाई को जब वे बाहर ढूंढने चलते हैं तो उन्हें कोई नहीं मिल पाता, वे बिखर जाते हैं। तो कुलमिलाकर यही संदेश देना है कि उन्हें पराया न समझें, अपना प्यार सम्मान दें तो वे भी आपका नाम रोशन करेंगे।

प्रश्न – एलजीबीटी कम्युनिटी को लेकर हर किसी के मन में एक छुपी हुई जिज्ञासा रहती है। आप इस कम्युनिटी में रहते हुए आपने समाज के भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं? क्या फिल्मों के माध्यम से लोगों की सोच बदल पाएगी कभी?

उत्तर – बिल्कुल सही इस समाज और कम्युनिटी से जुड़े लोगों के हाव-भाव थोड़े अलग नज़र आते हैं तो ऐसे लोगों के बीच वे मजाक का पात्र बन जाते हैं। लोग जानने की कोशिश करते हैं कि ये क्या है? तो लोगों की जिज्ञासा बढ़ी ही रहती है इस कम्युनिटी के लोगों के लिए। थोड़ा सा भी कहीं हाव भाव में परिवर्तन नजर आया, चाल ढाल या बोली में परिवर्तन आया तो लोग जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह है क्या चीज़ या बला है। मैं बस समाज में यही बदलाव लाना चाहती हूं कि जब एक चाय वाले का लड़का (मेरे पिताजी चाय की दुकान पर थे) लोगों के जूठे बर्तन साफ किया करता था तो इस दौरान मैंने बहुत सारी चीजों को झेला है।

मेरे शरीर में जो थोड़े बहुत भी महिलाओं वाले गुण या हार्मोन थे उसकी वजह से गालियां भी सुननी पड़ीं, कटाक्ष झेले, तीखी आलोचनाएं भी हुई और अब जाकर समय बदला है डायरेक्टर, प्रोड्यूसर बनी हूं तो लगता है जैसे अब समय बदल गया है हमारी सोच बदल रही है लेकिन अगर अभी भी अगर सोच नहीं बदली तो हम बहुत पीछे रह जाएंगे। समानता का अधिकार सबको मिलना चाहिए खासकर जो बच्चे महिला गुण वाले होते हैं उन्हें, अपनी मां का प्यार मिलना चाहिए।

मैं मानती हूं मेरी फिल्म से जरूर एक बदलाव आएगा ‘खुशियां अधूरी आंचल की’ फिल्म के बाद भी मैंने लोगों में परिवर्तन आते हुए देखे हैं और फिर ब्रीड से एक बड़ा परिवर्तन आने वाला है। यह मील का पत्थर साबित होगी। जो सिनेमा मैं लेकर आ रही हूं वैसा सिनेमा बहुत ही कम लोग लेकर आते हैं। मैं श्याम बेनेगल की फिल्मों से बहुत प्रेरित हूं और उनकी सोच के दायरे से भी। मैं रियलिस्टिक चीजों पर बहुत विश्वास कर पाती हूं। इंसान को हमेशा रियलिस्टिक होकर जीना चाहिए, बनावटी जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता है। ब्रीड से भी बदलाव आएगा बाकी दर्शकों का प्यार और दुआएं भी इसे जरूर मिलेंगी।

प्रश्न – क्या ब्रीड में आपके अपने जीवन से जुड़ी हुई कोई घटना दर्शक देख पाएंगे? कोई एक विशेष घटना जिसने आपकी सोच को बदला और आप सिनेमा के क्षेत्र में आईं वो घटना क्या थी?

उत्तर – बिल्कुल देख पाएंगे मेरे जीवन की ऐसी घटनाओं का जिक्र इस फ़िल्म (ब्रीड) में है। फिल्म में जब मेरे अपने परिवार वालों ने मुझे छक्का, हिजड़ा कहा था तो उस वाकये का भी जिक्र है। तब मैं बहुत दुखी हुई थी क्योंकि उस वक्त तक मेरी कोई पहचान नहीं थी और लोग ऐसा कुछ जानना नहीं चाहते थे मेरे बारे में। उन्हें यह नहीं पता था कि यह ऐसा कुछ कर जाएगा जो असंभव सी चीजें हैं। इस कम्युनिटी में आज अपने खुद के बलबूते डायरेक्टर , प्रोड्यूसर बन जाएगा। 20 साल का एक सफरनामा पूरा कर लेगा। अब जाकर लोगों की नजरें बदली हैं। दायरा बदला है। जी…जी करके बोलते हैं वही लोग पहले जो छक्का, हिजड़ा, गे पता नहीं क्या-क्या बोलते थे। तो अब उनके मुंह से बॉबी जी… बॉबी जी संबोधित होता है।

फिल्म लाइन के जो लोग प्यार, सम्मान देते हैं मेरे काम और मेरी एक्टिंग के बलबूते पर तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बहुत सी ऐसी चीज है जो परिवार से नहीं मिल पाईं इसी वजह से। फिल्म में एक खास बात जो फिल्म में दिखाने की कोशिश हमने नहीं कि वह ये कि छिछोरापन या वल्गैरिटी। दरअसल वह वाकया मेरी जिंदगी से ही जुड़ा है, जब मेरी मां ने अपनी ही पैदाइश पर शक किया कि मैंने क्या पैदा कर दिया लड़की या लड़का। तो उस दिन पहली बार मैं जीते जी मर गई थी। अपनी मां के सामने निर्वस्त्र हो गई थी और अपनी आंखें बंद कर ली थी। क्योंकि इंसान जब जन्म लेता है और जब मरता है तो दोनों ही समय वह नंगा होता है, तो मैंने सोचा मेरी जिंदगी तो यहीं खत्म है।

जब मेरी पैदाइश ही मुझ पर शक कर रही है कि मैंने क्या पैदा किया। उन्हें बहुत बाद में समझ आया कि मेरे अंदर एक औरत है। उसे भी बहुत दुख होता था लेकिन वह अपने अंतिम समय तक मेरे पास रही। मैं उन पांच कंधों से बेहतर हूं जिनके होने के बाद भी मां-बाप का सहारा मुझे ही बनना पड़ा। मेरे नॉर्मल भाई-बहन होने के बाद भी मां-बाप मेरे हिस्से आए। मुझे गर्व है अपने जेंडर पर कि मैं जैसी भी हूं उन सब से बेहतर हूं। समाज में एक सोच बदलने मैं जा रही हूं लोग मेरा उदाहरण देने लगे हैं। मुझे गर्व है कि आने वाली पीढ़ी को मुझसे या मेरी कम्युनिटी वालों से उन्हें बहुत लाभ होगा। मिथकों की माने तो दुर्योधन को अपनी मां के सामने अपने लिंग को छुपाकर नंगा खड़ा होना पड़ा और वही उसकी मौत का कारण भी बना। तो मां के सामने कोई कभी निर्वस्त्र नहीं होता। जो बच्चा बड़ा होकर निर्वस्त्र हो जाता है तो मैं समझती हूं कि वह मर ही गया है। बीमार हो, कुछ हो तब की बात अलग है। ना कोई मां ऐसा चाहेगी कि कभी कि उस यौनावस्था में उसे (अपने बच्चे को) नंगा देखे, लेकिन मैं उस वक्त जीते जी मर चुकी थी

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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