झारखंड

भाजपा के बाबूलाल

 

  • विवेक आर्यन

 

नई सरकार के बनते ही झारखण्ड की राजनीति का नया अध्याय शुरू हो गया है| राज्य के पहले मुख्यमन्त्री बाबूलाल मराण्डी का 14 साल बाद भाजपा में वापस आने को बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जो सच भी है| यह बदलाव दो मायनों में बड़ा है| एक तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी ने राज्य में नेतृत्व बदलने का निर्णय लिया है| दूसरा कि बाबूलाल ने अपनी ही बनाई पार्टी का अस्तित्व खत्म हो जाने की शर्त पर ऐसा किया है| झाविमो के अन्य दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में जा रहे हैं| झारखण्ड विकास मोर्चा के हजारों कार्यकर्ताओं में से जो भाजपा में नहीं जाना चाहते, उनका क्या होगा पता नहीं, लेकिन बाबूलाल के घर वापसी से भाजपा के साथ बाबूलाल का भी राजनीतिक सफर आसान जरूर हो गया है|
राजनीतिक जानकार इन चर्चाओं पर मुहर लगाते हैं कि बाबूलाल के भाजपा में शामिल होने का खाका विधानसभा चुनाव के पहले ही तैयार हो गया था| भले ही बाबूलाल इसे नकारते रहे हों, लेकिन हेमंत की तमाम कोशिशों के बाद भी उनका गठबंधन में शामिल नहीं होना और अलग चुनाव लड़कर भाजपा को फायदा पहुंचाने का प्रयास इसी तरफ इशारा करते हैं| यह अलग बात है कि इसमें बाबूलाल या भाजपा को सफलता हाथ नहीं लगी|

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बाबूलाल के भाजपा में शामिल होने से पहले झाविमो के अन्दर कई ऐसे बदलाव हुए, जिसने विलय का रास्ता आसान किया| झाविमो की कार्यकारिणी को भंग कर नई कार्यकारिणी का गठन आनन-फानन में किया गया, जिसमें बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को सिर्फ सदस्य पद मिला| पहले की कार्यकारिणी में दोनों सचिव पद पर थे| दोनों झाविमो के भाजपा में विलय के खिलाफ थे और बागी हो गए| बाबूलाल ने दोनो को पार्टी से निष्कासित भी कर दिया गया| देखने में तो यह एक कार्रवाई की तरह लगता है, लेकिन असल में बाबूलाल ने बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को कांग्रेस में जाने के लिए रास्ता बनाया| बाबूलाल जानते थे कि प्रदीप और बंधु को भाजपा स्वीकार नहीं करेगी। यह भी सोच समझकर उठाया गया कदम था।  बाबूलाल मराण्डी ने बयान दिया था कि बंधु तिर्की और प्रदीप यादव अपने स्तर से निर्णय लेकर किसी भी पार्टी में जाने के लिए स्वतन्त्र हैं|

चुनाव के पहले भी इसपर चर्चाएँ गर्म थी कि अन्दर ही अन्दर बाबूलाल को भाजपा का समर्थन प्राप्त है| वरना 81 सीटों पर चुनाव लड़ने की न तो झाविमो को जरूरत थी और न ही उनके पास इतने पैसे थे| बता दें कि झाविमो को छोड़कर दूसरी कोई पार्टी 81 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी| झारखण्ड की राजनीति के करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि यदि झाविमो, आजसू और भाजपा की सीटें  मिलाकर 41 तक पहुंच पाती, तो निश्चित तौर पर भाजपा सरकार का नेतृत्व बाबूलाल ही करते और वे ही मुख्यमन्त्री भी होते|
तमाम चर्चाओं के बीच सबसे अहम बात यह है कि भाजपा और बाबूलाल एक दूसरे के लिए पूरक साबित हुए हैं| झारखण्ड की राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले बाबूलाल के लिए राह मुश्किल होने लगी थी| 2019 में वे अपने ही सीट से लोकसभा का चुनाव हार गए थे| विधानसभा चुनाव में भी बड़ी मुश्किल से तीन सीटें मिली| इधर भाजपा को भी एक मजबूत, प्रसिद्ध और आदिवासी चेहरे की तलाश थी| भाजपा के पास जो मजबूत आदिवासी चेहरा पहले से है, वह केंद्रीय नेतृत्व को पसन्द नहीं है, जिसके कई व्यक्तिगत कारण हैं| बहरहाल  वक्त का तकाजा यही था कि बाबूलाल भाजपा में शामिल हो जाएँ|Image result for बाबूलाल के भाजपा में शामिल हो
मराण्डी के घर वापसी के साथ कुछ चीजें साफ हो गईं हैं| एक तो अब राज्य की कमान बाबूलाल ही संभालेंगे, उन्हीं के हिसाब से चीजें तय होंगी और पार्टी के कई सीनियर नेता साइडलाइन हो जाएँगे| जानकारों की माने तो रघुवर के करीबियों पर भी गाज गिरेगी| यानि कि यदि भाजपा वापस सरकार में आती भी है तो मन्त्रिमण्डल का स्वरूप पिछली सरकार से बेहद अलग होगा| कई नेता जो अबतक साइडलाइन थे, वे मेनलाइन में आ सकते हैं| सम्भव है कि कुछ लोगों की पार्टी में एँट्री हो और कुछ लोग बाहर भी हों| कुछ नेताओं ने तो अभी से ही गाल फुलाना शुरू कर दिया है|
भाजपा में अर्जुन मुंडा की भूमिका को लेकर भी चर्चाएँ हो रही है| पार्टी के सीनियर नेता होने के साथ-साथ वह मुख्यमन्त्री पद के लिए प्रबल दावेदार भी हैं| लेकिन भाजपा आलाकमान ने उन्हें केंद्र में मन्त्री पद देकर मुख्यमन्त्री की कुर्सी से दूर रखा है| अर्जुन मुंडा को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि मन, वचन और कर्म से अर्जुन मुंडा झामुमो की राजनीति के करीब बैठते हैं| लेकिन हेमंत के नेतृत्व में उनका झामुमो में जाना उचित नहीं होगा| उनके पास कोई और विकल्प नहीं है, इसलिए वे भाजपा में बने हुए हैं| अब देखना यह होगा कि बाबूलाल मराण्डी के आगमन के बाद अर्जुन मुंडा की भूमिका भाजपा में क्या होती है| हालांकि मुंडा ने मराण्डी के घर वापसी पर अपनी खुशी जाहिर की है|
मुख्यमन्त्री रघुवर दास के साथ-साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्ष सहित कई पूर्व मंत्रियों के चुनाव हार जाने के बाद विपक्ष में भी भाजपा मजबूत नहीं नजर आ रही थी| लेकिन बाबूलाल मराण्डी के आने के बाद भाजपा विपक्ष का दायित्व मजबूती से निभा सकेगी| भाजपा की ओर से मिली सूचनाओं से पता चलता है कि बाबूलाल मराण्डी अगले 1 साल तक पूरे राज्य का भ्रमण करेंगे| नए कार्यकर्ताओं को जोड़ने के साथ-साथ लोगों के बीच भी भाजपा को लेकर मजबूत संदेश देने को प्रयास करेंगे| हेमंत को घेरने के साथ-साथ पूरा फोकस इस बात रहेगा कि लोगों के बीच भाजपा को लेकर विश्वास को फिर से जगाया जाए|

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मराण्डी का भाजपा में आना स्वाभाविक भी था और राजनीतिक दृष्टिकोण से जरूरी भी| यह चर्चा पहले भी कई बार जोरों पर रही जिसे बाबूलाल मराण्डी ने ही मजबूती के साथ नकार दिया था| बाबूलाल मराण्डी ने यहां तक कह दिया था कि वह कुतुबमीनार से कूदना पसन्द करेंगे लेकिन भाजपा में आना नहीं| लेकिन इन बातों को दोहराना राजनीतिक नासमझी मानी जाएगी, क्योंकि राजनीति में सब कुछ वक्त तय करता है और बाबूलाल मराण्डी का भाजपा में आना काफी सोच समझ कर लिया गया फैसला है|
लेकिन इसके साथ अहम सवाल यह भी उठता है कि बाबूलाल मराण्डी के भाजपा में आने के बाद क्या भाजपा की राजनीति में कोई बदलाव आएगा? इस विधानसभा चुनाव में खुद प्रधानमन्त्री मोदी के भाषण के साथ-साथ तमाम मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के बयान चुनाव को सांप्रदायिक रंग दे रहे थे| भाजपा के स्टार प्रचारक रघुवर दास की किसी भी उपलब्धि को गिनाने में नाकाम थे और मोदी व केंद्र की योजनाओं के आधार पर लोगों से वोट मांग रहे थे| यह शायद पहली बार था जब गृह मन्त्री अमित शाह लोगों से यह अपील कर रहे थे कि वे 50-50 लोगों को फोन कर भाजपा को वोट देने के लिए कहें|
सवाल यह भी है कि क्या मराण्डी के आने पर यह चीजें बदल जाएँगी| कुछ लोगों के बीच भाजपा की आदिवासी विरोधी छवि भी बनी है| क्या उसे बाबूलाल मराण्डी हटा सकेंगे और राज्य की जनता के बीच भाजपा और भाजपा के विचारों को लेकर दोबारा विश्वास भर सकेंगे? घर वापसी के पहले ही बाबूलाल मराण्डी भाजपा के तमाम योजनाओं का समर्थन करने लगे थे, यह स्वाभाविक भी है| लेकिन बाबूलाल मराण्डी जब इस राज्य की जनता के पास जा रहे होंगे तो उन्हें जरूर देखना चाहिए कि यहां की जनता भाजपा के स्वरूप और राजनीतिक विचारों में क्या बदलाव देखना चाहती है| देखना है कि जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए वह अपनी पार्टी के लिए कौन सा रास्ता अख्तियार करेंगे|

लेखक पत्रकारिता के छात्र और दैनिक जागरण के संवाददाता रहे हैं|

सम्पर्क- +919162455346, aryan.vivek97@gmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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