आज़ादी का अमृत काल
रामायण में एक प्रसंग है जब सीता जी को वन में छोड़ने के बाद अयोध्या वासियों के मन में गुस्सा होता है। तब गुरु वशिष्ठ राजा श्री राम से कहते हैं कि राजा का धर्म है कि समय-समय पर वह किसी उत्सवधर्मिता का आयोजन करता रहे। इससे जनता का ध्यान शासन की ओर से बंटा रहता है और राजा सुविधापूर्ण कार्य करता रहता है।
मोदी सरकार ने पिछले 8 साल समन्दर मंथन किया है। उस मन्थन में से अमृत निकाला है और इस आज़ादी पर्व पर वह अमृत जनता को परोसा जा रहा है। देश की वित्त मंत्री से जब संसद पूछती है कि देश की वित्तीय स्थिति कैसी है तब वह कहती हैं कि वित्तिय स्थिति के बिगड़ने के आरोप राजनीतिक है इसलिए मैं जवाब भी राजनीतिक दूंगी और वह आंकड़े रखने से बचती नज़र आती हैं। संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले ब्लूमबर्ग एक प्रायोजित लेख जारी करता है जिसमे जिक्र है कि भारत मे मंदी आने की संभावना जीरो प्रतिशत है। वित्त मंत्री जी उसी लेख का जिक्र बार-बार संसद में करती हैं।ब्लूमबर्ग और वित्र मंत्री जी ने मंदी न आने का कोई तर्क कोई आंकड़े अपने बयान को पुख्ता करने के लिए नही दिए। ये गजब है कि देश की वित्तमंत्री को अपने आंकड़ों से ज्यादा ब्लूमबर्ग पर विश्वास है। दरअसल भारत सरकार अमृत काल आंकड़ों से नही आंकती।
देश की पिछले 8 साल की बेरोजगारी दर भयावह तरीके से बढ़ी है। पिछली सरकारों ने अर्थव्यवस्था को एक शेप दी। उस शेप की अपनी स्ट्रेंथ है जो नोटबन्दी और जीएसटी और लॉक्डाउन के आत्मघाती शॉट झेल गयी। लेकिन इतनी चोट के बाद वित्त मंत्री और भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था को मरहम लगानी थी जबकि मोदी सरकार किसी मरहम के बारे जानती ही नही। परिणाम यह कि अर्थव्यवस्था जल्द ही आर्थिक पैकेज मांगने वाली है और सरकार के हाथ पहले से खड़े हैं। विदेशी कर्ज बेतहाशा बढा है, भारतीय मुद्रा बेतहाशा गिरी है। मुद्रा गिरने से जो महंगाई बढ़ी उसका कोई निवारण नही सोचा गया। स्विस बैंक से आप पैसा लाने वाले थे जबकि आपकी ही छत्रछाया में अरबो रुपिया स्विस पहुंच गया। महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, धार्मिक उन्माद, असुरक्षाबोध तेजी से बढ़े हैं। बिजनेस करने का माहौल और सुविधा तेज़ी से खराब हुए हैं। कुपोषण इंडेक्स, हंगर इंडेक्स, हैप्पीनेस इंडेक्स लड़खड़ाये हुए हैं। गरीबी रेखा से नीचे जाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। किसान को महंगाई के वावजूद कुछ हाथ नही लग रहा। सब, कुछ ही हाथों में सिमटता जा रहा है। देश की संस्थाओं की स्वायत्तता ठेंगें पर है। भाजपा और सत्ता के करीबी मित्र अमीर हुए हैं और भक्त समझते हैं कि भाजपा ही देश है, भाजपा के मित्र ही देश हैं।
भाजपा सरकार ने आठ साल जहर बोया और अमृत मिलने का दावा कर रहे हैं। विश्व भर के तथाकथित राष्ट्रवादी समुदाय इवेंट मैनेजमेंट के पक्के खिलाडी होते हैं, वे दिन रात राजनीति सोचते हैं और राजनीति की आँख से ही देश को देखते हैं। वे हर बड़े पल को भुना लेना चाहते हैं। आज़ादी में तथाकथित राष्ट्रवादियों की कोई भूमिका नहीं होती, देश के निर्माण में उनका कोई योगदान नहीं होता लेकिन वे ऐसा दर्शाते हैं कि देश और आज़ादी के सच्चे पहरेदार वे ही हैं।
देश का यह आर्थिक आपातकाल है। विश्व भर की अर्थव्यवस्थाएं जहाँ महंगाई से लड़ने की तयारी में हैं वहीँ भारत सरकार जीएसटी बढाकर ज्यादा से ज्यादा टैक्स इकठा करने की फ़िराक में है। यह कदम बताता है कि एक तरफ मुद्रा सस्ती होने से जनता की खरीद शक्ति कम हो रही है दूसरी और सरकार ने अनन्य चीजों पर टैक्स लगा दिए हैं। खाज में कोढ़ का काम इस सरकार ने यह किया है कि महंगाई कम करने की बजाय उन्होंने महंगाई बढ़ा कर टैक्स संग्रहण का काम किया है। आपको यदि यह सब अमृत लगता है तो जरूर ही यह आज़ादी का अमृत काल होगा। आपको सिर्फ आठ साल में सामान दोगुने तिगुने से ज्यादा कीमत में मिल रहा और देश की आर्थिक गति बैकफुट पर है तो यकीनन ही यह अमृत काल होगा।
देशभर में शहर-शहर कांग्रेसी विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। देश भर की सड़कों पर प्रोटेस्ट मार्च निकल रहा है। कांग्रेस के बड़े से बड़े दिग्गज सड़कों पर हैं। इसमें मुख्यमंत्री हैं, सांसद हैं, विधायक हैं, कांग्रेस के बड़े से बड़े पदाधिकारी हैं। सरकार पर ‘लोकतंत्र की हत्या’ के आरोप लगाए जा रहे हैं। आज दिग्गज नेताओं के अलावा बड़ी तादाद में कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे हैं। “भारत जोड़ो तिरंगा यात्रा” पूरे देश भर में कांग्रेस निकाल रही है।
अब याद कीजिए कि कांग्रेस कब जनहित से जुड़े किसी मुद्दे पर इतनी ताकत से सड़क पर उतरी थी। शायद ही याद आए। कांग्रेस स्वतंत्र भारत के अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है, फिर भी जनहित के किसी मुद्दे पर पार्टी ने कभी सड़कों पर इस तरह अपनी ताकत नहीं झोंकी है। लेकिन सवाल जब गांधी परिवार का हो, भले ही कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा हो, कांग्रेस उतरेगी। पूरी ताकत से उतरेगी। परिवारवाद के लिहाज से आलोचक गांधी परिवार को कांग्रेस की मौजूदा दुर्गति के लिए जिम्मेदार ठहरा सकते हैं, लेकिन परिवार पार्टी के लिए मजबूरी भी है। इससे इनकार नहीं कर सकते कि आज यह परिवार ही है जो कांग्रेस को बांधे रखा है नहीं तो न जाने कब की पार्टी बिखर चुकी होती। गांधी परिवार के लिए कांग्रेसियों में जूनून कोई नई बात नहीं है। इस जुनून में समर्पण भी है, चाटुकारिता भी है, महत्वाकांक्षाएं भी हैं, ध्यान खींचने के लिए ड्रामा भी है…। कभी कोई कांग्रेसी गांधी परिवार के लिए खुदकुशी करने का हाई वोल्टेज ड्रामा कर देता है तो कभी कोई प्लेन ही हाईजैक कर लेता है।
भाजपा-कांग्रेस ने देश की आजादी की 75वी वर्षगांठ पर आयोजित “हर घर तिरंगा यात्रा” एवं “भारत जोड़ो तिरंगा यात्रा” के माध्यम से देश के आम जन के मन में ये तेरा तिरंगा, ये मेरा तिरंगा वाली भावनाओं का बीज अंकुरित करने का काम किया है। जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व देश को शर्मसार करने वाला काम है। तिरंगा अभियान से उपजी विसंगतियों पर सरकार को ध्यान देना होगा।
आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत भारत सरकार ने देश के 20 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस मकसद को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज संहिता में बदलाव किए गए हैं ताकि इतनी बड़ी तादाद में तिरंगा सबको उपलब्ध करवाया जा सके। पूरी सरकारी मशीनरी जब इस काम में लगी है तो लक्ष्य तो पूरा हो ही जाएगा। लेकिन अच्छा होता अगर इस आपाधापी में उपजी विसंगतियों पर भी सरकार का ध्यान जाता।
सोशल मीडिया पर किसी स्कूल का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक अध्यापक छोटे-छोटे बच्चों से तिरंगे के लिए 15-15 रुपए लाने की बात कर रहा है। वे बच्चे जिनके मां-बाप पांच रुपए भी बड़ी मुश्किल से दे पाते होंगे, वे 15 रुपए कहां से और कैसे लेकर आएंगे। अध्यापक इस बात से बेपरवाह नज़र आता है और इससे भी कि सरकारी भाषा में कही जा रही बात को मासूम बच्चे कितना समझ पा रहे होंगे।
इसी तरह की एक ख़बर और है कि फरीदाबाद में एक राशन दुकान संचालक ने झंडा खरीदे बिना राशन न देने का एक संदेश व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजा है। उसने लिखा है कि उसकी दुकान से जुड़े सभी राशन कार्ड धारक 20 रुपए लेकर डिपो पर झंडा लेने पहुंचें। ऐसा न करने वालों को अगस्त महीने का गेहूं नहीं दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि जिले की लगभग 7 सौ राशन दुकानों को खाद्य आपूर्ति विभाग ने झंडा वितरण केंद्र बनाया गया है और हर दुकान को डेढ़-दो सौ झंडे अग्रिम भुगतान पर दिए गए हैं।
ख़बर यह भी है कि रेल कर्मियों के अगस्त के वेतन से 38 रुपए तिरंगे के वास्ते काट लिए जाएंगे। कई बैंक कर्मचारियों ने भी शिकायत की है कि उनकी तनख़्वाह से 50-50 रुपए तिरंगे के नाम पर उनसे बिना पूछे काट लिए गए हैं। रेल कर्मियों ने तो इस कटौती पर मज़ेदार सवाल उठाया है। उनका कहना है कि जब भाजपा के दफ़्तर से तिरंगा 20 रुपए में बेचा जा रहा है, तो उनकी तनख्वाह से लगभग दोगुनी राशि क्यों वसूली जा रही है। रेल कर्मियों के संगठन ने इस वसूली पर ऐतराज़ जताया है।
माना कि 15, 20, 38 या 50 रुपए की रकम बहुत मामूली है, लेकिन वसूली का यह तरीका ठीक नहीं है। वसूली के मनमाने तरीकों से कुछ दिक्कतें भी पैदा हो सकती हैं। मान लीजिए कि कोई सरकारी या बैंक कर्मचारी इस कटौती के बाद राशन लेने जाए और वहां फिर उससे तिरंगा लेने पर ही राशन मिलने की बात कही जाए, तो वह क्या करेगा! सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले ग़रीब बच्चों के मां-बाप क्या करेंगे!
आख़िरी बात- सरकार को पूरी पारदर्शिता के साथ बताना चाहिए कि वेतन कटौती से जो राशि इकठ्ठा की जा रही है, वह कुल कितनी होगी और कहां खर्च की जाएगी। जब आयकर चुकाने वाले मुट्ठी भर लोग कह सकते हैं कि उनके टैक्स का पैसा किसानों की कर्ज माफ़ी या लोगों को मुफ़्त चीज़ें बांटने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, तो सरकारी मुलाजिम भी तो जानें कि उनकी तनख्वाह का हिस्सा- जो ज़रा सा ही क्यों न हो, किस काम में लगने वाला है।
आज हम बात करते हैं सरकार की, सारा दोष किसी भी परेशानी का सरकार पर डाला जाता है। गान्धीजी को शायद अनुमान था इस बात का। तभी तो उन्होंने कहा था, “स्वराज्य का अर्थ है आत्मनिर्भर होना। यदि अपना शाषण होने के बाद भी हम हर छोटी समस्या के लिये सरकार का मुँह ताकना शुरू कर दें तो उस स्वराज्य का कोई मतलब नही रह जायेगा।”
खैर आप अमृत काल की उत्सवधर्मिता में खोये रहिये, राजा का धर्म है उत्सवधर्मिता में आपको घुमाये रखे। जरुरी सवाल कोई और कर लेगा, आप अमृत का रसपान कीजिए। घर-घर जश्न मनाइए।