देव नाथ पाठक
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Dec- 2020 -8 Decemberव्यंग्य
साउथ एशियन थुक्कम फजीहत!
(भाग एक) यह लेख हमारे कुछ अजीबोग़रीब आदतों और हरकतों के बारे में है। इसमें थोड़े तर्क-वितर्क, थोड़ा हास्य-विनोद, और थोड़ा सा समाजशात्रीय दृष्टिकोण पिरोकर हमारी एक विशेष आदत पर विमर्श की कोशिश की गयी है। एक बड़े हीं मानवीय…
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Nov- 2020 -18 Novemberबिहार
बात बकलेल बिहार की
चाहे अमरीकी चुनाव हो या बिहार का, एक बात ध्रुव है- चुनावी समीक्षा पर्याप्त नहीं लगते। अख़बारों में पढ़ें या टेलीविज़न पर देखें, चुनावी समीक्षा पर परीक्षा का बोध भारी हो जाता है। कौन कितना जानता है, किसके पास…
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Jun- 2020 -18 Juneसामयिक
भारत के बीमार समाज में मृत्यु का मखौल
जैसी मौत वैसा समाज! या ऐसे भी कह सकते हैं, जिस प्रकार का समाज उसी प्रकार की मृत्यु। नॉर्बर्ट इलियास, बौद्रिलार और ज़िग्मन्ट बाउमैन जैसे अनेक आधुनिक समाज के चिन्तकों नें इस विषय पर काफी कुछ लिखा। इसी सहज और साधारण…
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May- 2020 -28 Mayसमाज
समाजशास्त्र के परे हैं समाज और लौट रहे लोग
ये लेख एक अतिश्योक्तिपूर्ण लगने वाली धारणा के साथ शुरू करूँ। भारत का समाजशास्त्र बीमार है, और ये विफल है लौट रहे लोगों को समझने में। सम्भवतः अंचलों में स्थित समाजशास्त्र के विद्यार्थी समझ पाएँ क्योंकि महानगरों में तो…
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20 Mayसामयिक
लौटते हुए लोग : कौन हैं और कहाँ जा रहे हैं!
बहुत चिन्ताएँ सुनी जा रही है लोक डाउन के दौरान, लौटते हुए लोगों यानि माइग्रेंट वर्कर्स के बारे में। भाव विह्वल करने वाली तस्वीरें भी दिखाई पड़ी हैं, और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की ख़बरें भी लगातार आ रही हैं। ऐसे में एक साधारण सा…
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