sablog.in डेस्क
आने वाले दिनों में हरियाणा की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है. जिस तरह से इंडियन नेशनल लोकदल में पारिवारिक लड़ाई देखने को मिल रही है, उससे ये साफ है कि पार्टी और परिवार के लिए आने वाले दिन बहुत सकून भरे नहीं होने वाले हैं. पार्टी का यूथ दुष्यंत और दिग्विजय के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है जबकि विधायकों ने चुप्पी साध रखी है. हालांकि 3 विधायकों ने दुष्यंत का मंच शेयर करने का मन बना लिया है. नागेंद्र भड़ाना पहले ही बीजेपी के साथ गलबहियां करते देखे जा चुके हैं.
हरियाणा के मुख्यमंत्री इसे पारिवारिक लड़ाई तो बताते हैं, लेकिन लोकतंत्र और सत्ता की चाहत में इस तरह की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हैं. सरकार के मंत्री भी अपने हिसाब से इस घटना की व्याख्या करते देखे जा रहे हैं. अनिल विज हों, कर्ण देव कंबोज हों, विपुल गोयल हों या किसी का भी नाम ले लीजिए. हर किसी को इनेलो का टूटना हितकर लग रहा है. जितने मुंह हैं, उतनी बातें हैं.
पार्टी की मजबूरी भी है कि जो 3 विधायक दुष्यंत के साथ खड़े दिख रहे हैं, पार्टी उन्हें निकाल नहीं सकती. निकाले जाने पर पार्टी के हाथ से नेता विपक्ष का पद जाता रहेगा, जो फिलवक्त में पार्टी के लिए किसी भी तरह से फायदे का सौदा नहीं होगा. ऐसे में सवाल उठता है कि NIT से विधायक नागेंद्र भड़ाना चुने जाने के बाद से ही बीजेपी की गोद में जा बैठे थे, उन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई, जबकि गोहाना रैली में नारेबाजी को अनुशासनहीनता बताकर दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से निकाल दिया गया?
डबवाली से विधायक नैना चौटाला ने दो दिन पहले ही हरी चुनरी चौपाल में सांसद बेटे दुष्यंत चौटाला के पक्ष में नारेबाजी को सुनकर इसे परवान चढ़ाने का हौसला भी पार्टी की महिला वर्कर्स को दिया था. आंसू भरी आंखो से चुनौती भी दी थी और शाबासी भी.
हालांकि ओपी चौटाला के छोटे बेटे और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अभय चौटाला इस पूरे प्रकरण पर कुछ भी कहने से बचते दिखाई दे रहे हैं. संगठन से जुड़े किसी भी सवाल के लिए वे प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा और पार्टी सुप्रीमो ओपी चौटाला से सवाल करने को कहते हैं. लेकिन पारिवारिक घमासान की वजह से चुनावी साल में इनेलो संकट में पड़ती दिखाई दे रही है. नजरें 5 तारीख को प्रदेश महासचिव और दुष्यंत-दिग्विजय के पिता अजय चौटाला के पैरोल पर बाहर आने पर टिकी हैं. वे आते हैं तो पार्टी की आंतरिक राजनीति किस करवट बैठती है, ये देखना अहम होगा.
इस बीच पार्टी से जुड़े लोग और हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वाले भी सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कमेंट्स कर रहे हैं.
व्हाट्सएप के एक ग्रुप में दिनेश देशवाल लिखते हैं-
दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चौटाला को इनेलो से निष्कासित करने का फैसला कई सवाल खड़े करता है-
जिस प्रकार से जनता द्वारा लगाए गए नारे के लिए इन दोनों भाइयों को जिम्मेदार ठहरा कर तुरंत फैसला लेते हुए पार्टी से निष्कासित किया गया उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इन्होंने कोई बहुत बड़ा घिनौना अपराध किया हो.
लेकिन लगता है कि अभय चौटाला ने जिस तरह से ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जेल जाने के बाद इनेलो में अपनी लॉबिंग की थी. वह ओम प्रकाश चौटाला के वश से बाहर चली गई थी. ओम प्रकाश चौटाला अभय चौटाला के सामने असहाय से नजर आ रहे हैं। इसलिए उन्होंने अभय चौटाला को उसकी औकात बताने के लिए सोची समझी रणनीति के तहत दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को पार्टी से बाहर कर दिया.
ताकि जनता की नजर में अभय चौटाला विलेन बन जाए और दुष्यंत व दिग्विजय हीरो बन जाए. जब जनता अभय चौटाला को सिरे से नकार देगी तो ओम प्रकाश चौटाला अपना आशीर्वाद दुष्यंत चौटाला को दें इसमें कोई अचंभा नहीं होगा.
अपनी इस रणनीति में इनेलो अभी तक कामयाब होती दिख रही है क्योंकि जिस प्रकार से इनेलो के पदाधिकारी ओम प्रकाश चौटाला के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं और लगातार इस्तीफा दे रहे हैं उससे निश्चित तौर पर इनेलो कमजोर होगी, यह एहसास अभय चौटाला को करवाना आसान रहेगा. मुझे लगता है कि यह पहला अवसर है जब इतने बड़े स्तर पर इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के फैसले को उसके ही कार्यकर्ता और पदाधिकारी गलत ठहराने की हिम्मत कर रहे हैं.