सिनेमा

भेदभाव से जंग: ‘द’ सिक्स ट्रिपल एट

 

नस्लवाद, लैंगिक भेदभाव और हिंसा पर आधारित इस फ़िल्म का आरम्भ मैरी मैक्लियोड बेथ्युन के सन्देश के साथ होता है- हम चाहते हैं कि आप यह जानें कि हम चाहते हैं हमें अमेरिकी लोकतन्त्र का एक हिस्सा माना जाए, न कि उससे अलग कुछ…” (‘सेन पीएत्रियो इटली, दिसम्बर 1943’) बीसवीं सदी के शुरूआती दशक में महिला और अश्वेत नागरिकों के अधिकार के लिए आन्दोलनकारी, मानवाधिकारी व शिक्षिका के रूप में मैरी मैक्लियोड बेथ्युन’ को याद किया जाता है। 1935 न्यूयार्क में उन्होंने नेशनल काउन्सिल ऑफ़ नीग्रो विमेन की स्थापना की, जिसमे 28 विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों को साथ लेकर अश्वेत महिला और उनके समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने का काम किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अश्वेत महिलाओं को महिला सेना कोर में अधिकारी के रूप में नियुक्ति करने की मंजूरी दी गयी थी। उन्होंने अश्वेत लड़कियों के लिए स्कूल खोला जो आज फ्लोरिडा के डेटोना में बेथ्युन कुकमैन विश्वविद्यालय है। इस भूमिका के बाद फ़िल्म का उद्देश्य समझ आ सकता है। मीडिया क्वीन सुप्रसिद्ध अभिनेत्री ओपरा विन्फ्रे एक दृश्य में मैरी मैक्लियोड बेथ्युन की भूमिका में नज़र आती हैं। केविन एम. हायमल की पुस्तक फाइटिंग अ टू-फ्रंट वार पर आधारित अंगेजी फ़िल्म ‘द सिक्स ट्रिपल एट फ़िल्म द्वितीय विश्व युद्ध में सेवा देने वाली ‘सभी अश्वेत महिला सेना कोर बटालियन’ को श्रद्धांजलि है। टायलर पेरी के निर्देशन में हेड कमांडिंग ऑफिसर चैरिटी एडम्स की भूमिका में केरी वाशिंगटन में दमदार काम किया है, वे आपके भीतर वही ज़ज्बा पैदा करती है, जिसके कारण ‘द सिक्स ट्रिपल एट’ बटालियन अपने साथ भेदभाव होने के बावजूद भी, अपने संघर्ष और सफलता को रेखांकित करती है।

द्वितीय विश्वयुद्ध का दृश्य ‘जवानो आगे बढ़ो’ के जोश के साथ बँदूकें, गोलियाँ, बमबारी, गाजर-मूली की तरह सैनिक मर-कट रहे हैं, हवाई जहाज से हमले हो रहे हैं, एक फाइटर विमान नीचे गिरता है, उसमें से सैनिक की लाश बाहर निकालते हुए जेब से खून से सनी चिट्ठी दिखाई देती है, उस चिट्ठी को पोस्टल बैग में डाल दिया जाता है। फिर पृष्ठभूमि से शिकायतों, उलाहनों, चिन्ताओं के साथ प्रेमी, पति, पुत्रों या पिताओं को याद करते हुए आवाज़ें – “बिली, तुम्हारी फिक्र होती है, मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूँ… तुमने अब तक कोई खत क्यों नहीं भेजा… तुमने लेटर का जवाब क्यों नहीं दिया… तुम जल्दी से वापस आ जाओ… मैं तुमको बहुत खत लिखती हूं तुम जवाब क्यों नहीं देते… प्यारे विलियम कम बैक सून… क्या सब कुछ ठीक है…? साल से ऊपर हो चुका है तुम्हारा खत नहीं आया… डियर डैडी आपकी बहुत याद आती है…मिशेल जल्दी से घर वापस आओ मैं तुम्हारे वापस आने की कामना करती हूं…” ख़तों को पहुँचाना सेना की प्राथमिकता नहीं है, इसलिए बोरियों में अनगिनत ख़त ट्रकों में भरएक गोदाम में ठूँस दिए जाते हैं। बैकग्राउंड में ‘रुला देने वाला वायलिन’ बज रहा है। ये ख़त-संदेश एक दूसरे क्यों न पहुँच पाए? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इन ख़तों को मंजिल मिलेगी? कैसे? कौन पहुँचायेगा? युद्ध की त्रासदी में परिवार के ख़त संबल होते हैं जो उन्हें नहीं मिल रहे थे। ख़तों को वे बार-बार पढ़ते हैं, उनका मनोबल बढ़ता है। 1945 की जंग जिताने में ‘द सिक्स ट्रिपल ऐट’ अहम हिस्सा बनने वाली हैं, कैसे? ख़तों का पहाड़ जो लगभग दस महीनों से रुका हुआ था उन्हें 6 महीने में पहुँचाना है। बटालियन ‘सिक्स ट्रिपल ऐट’ ने 17 मिलियंस ख़त 90 से भी कम दिन में सैनिकों तक पहुँचाये।

ब्लूमफील्ड पैन्सिल्वेनिया 1942, कॉलेज का दृश्य जिसमें एक श्वेत लड़का बेसब्री से अश्वेत लड़की का इंतज़ार कर रहा है, कई अश्वेत लड़कियों की हिकारत भरी नज़रों का सामना करते हुए अश्वेत लीना आगे बढ़ रही है कि एक श्वेत लड़की लगभग चिल्लाते हुए लड़के को चेतावनी देती है ‘डेविड अब्राहम तुम्हें ऐसी वैसी (मतलब ब्लैक) लड़कियों के साथ घूमना फिरना बंद कर देना चाहिए’। लड़का जवाब देता है मेरी कैथरीन जबान संभाल कर बात करो’। फिर वह लड़का जर्मन भाषा में उसे कुछ कहता है और अश्वेत लड़की भागकर लगभग कूदते हुए कार पर चढ़ जाती है, तेज़ स्पीड पर कार चलाते हुए, बैकग्राउंड में वही खून भरी चिट्ठी नजर आ रही है यानी यह वही सैनिक लड़का, जो मारा गया। पर्दे के पीछे लीना की माँ दोनों को साथ देखकर प्रसन्न तो है लेकिन वह इस सच्चाई से वाकिफ़ है कि वह श्वेत लड़का यहूदी है जिसके साथ अश्वेत लड़की का सम्बन्ध कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता। एक पार्टी में उसकी माँ लड़के को स्पष्ट कहती है कि- ‘अगर तुम्हें मेरी बेटी पसंद है तो एक मर्द की तरह मेरे घर आकर मेरे परिवार से इज्जत से उसका हाथ माँगो!’ लड़का कहता है जी, मैं जंग से लौट कर आऊँगा तो सबसे पहले यही काम करूँगा।’ पार्टी में हिटलर की हैवानियत पर बातें हो रही हैं तो दूसरी ओर कैथरीन लीना से कहती है– ‘चलो अच्छा है तुम्हें अपनी औकात पता लग गई’ यानी किसी को रंग की वजह से किसी को भी नीचा दिखाना कौन सी इंसानियत है? पार्टी में हिटलर के जिन यातना शिविरों की बात हो रही है उसके समानांतर ही अश्वेतों के प्रति श्वेतों का क्रूर व्यवहार दिखाना ही फ़िल्म का उद्देश्य है।

युद्ध में गये सैनिक की एक माँ, जो दो साल से अपने सैनिक बेटों की खबर न मिल पाने के लिए चिन्ता में है। दो दिन से प्रेसिडेंट फ्रेंक्लिन रूज़वेल्ट के घर के बाहर खड़ी है, तब उनकी पत्नी एलेनोर उससे कारण पूछती है वो कहती है मैं वेस्ट वर्जीनिया से हूँ, कोयले की खान में मेरे पति काम करते हैं, हम मामूली लोग हैं। रूजवेल्ट कहतीं हैं ‘मामूली कोई नहीं होता सब ख़ास है’। अपने दोनों बेटों की तस्वीर दिखाकर बताती है कि युद्ध के कारण पूरे देश के हालात बदतर हो चुके हैं “न खत पहुँच रहे हैं न खतों के जवाब पहुँच रहे हैं, मिल रहे हैं।” जबकि सैनिकों के उत्साहवर्धन के लिए संदेशों का पहुँचाना ज़रूरी है। एलेनोर रूज़वेल्ट,संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रथम महिला जो मैरी मैक्लियोड बेथ्युन की मित्र है, वे राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी.रूजवेल्ट को ख़तों के सम्बन्ध में जानकारी देती हैं, और सूचना देती हैं कि सेना में अश्वेत महिला डाक बटालियन बेहतरीन ढंग से अपना काम कर रही हैं जबकि वहाँ का जनरल, उनसे ये काम वापस ले लेना चाहता है।

युद्ध में डेविड अब्राहम के मारे जाने की खबर के बाद लीना ग्रेजुएशन के बाद वह सेना में भर्ती होने का फैसला लेती है क्योंकि उसे हिटलर से लड़ना है। टीवी में एक खबर आ रही – ‘हजारों लड़कियां जिन्हें आर्मी से ट्रेनिंग और अनुशासन मिला है, वे फिलहाल देश की सेवा के लिए जंग मौजूद है लेकिन देश को और लोगों की भी जरूरत है हर तरह की महिलाएं, सेल्स गर्ल हाउस,वाइफ कारखाने में काम करने वाली लाइब्रेरियन। उन्हें अब देशभक्ति की सेवा का मौका दिया जा रहा है “आर्मी उन्हें उनकी काबलियत के मुताबिक काम देगी प्रश्न है कि क्या श्वेत फौजी अधिकारी अश्वेत वे भी महिलाओं को उनकी प्रतिभा अनुरूप काम देंगें? माँ को लगता है कि हम जैसी अश्वेत औरतों के लिए सेना में कोई जगह नहीं है, हम सिर्फ नौकरानियां बन सकती है। लीना को मृत प्रेमी डेविड अब्राहम समझा रहा है कि तुम यहाँ हर काम कर सकती हो और अपनी पढ़ाई भी पढ़ाई कर सकती हो। उसकी माँ और नानी चिन्ता में है, तो नानी समझाती है कि इन्हें यूरोप तक न जाने दिया जाएगा वो जल्द ही लौट आएगी! एक दृश्य में जब लीना हार रही होती है तो डेविड उससे पूछता है कि तुम्हें कौन याद आ रहा है तो वह  बजाय हिटलर के कैथरीन का नाम लेती है यानी उनका वास्तविक संघर्ष हिटलर से नहीं नस्लवादी क्रूर कट्टर मानसिकता से है।

फ़ौज में होने वाले भेदभाव के संकेत सबसे पहले ट्रेन में ही मिल जाते हैं जब एक ऑफिसर गोरी लड़कियों को अलग डिब्बे में ले जाता है और अश्वेत को वापस बैठने का आदेश देता है, एक लड़की से पूछने पर तुम नहीं आओगी, वह जवाब देती है आप जिन लड़कियों को अलग कर रहे हैं वह व्हाइट औरतें हैं और मैं व्हाइट औरत नहीं हूं मैं एक नीग्रो हूँ।’ एक अश्वेत विद्रोही लड़की जॉनी बैल का संवाद इस नस्लवाद पर टिप्पणी करता है- ‘शायद हमने मेसन डिक्शन लाइन पार कर ली है, साउथ में स्वागत है लोगों को अलग करना तो यहां के खून में है’। एक लड़की अपने अनुभव बताती हैं कि उन दोनों बहनों तथा चार और लड़कियों को सिर्फ नीग्रों होने की वजह से सेलेक्ट नहीं किया गया फिर ‘हमने मैरी मेक्लियोड बेथूयन को खत लिखा जो नीग्रो महिलाओं की नेशनल कौंसिल ऑफ़ नीग्रो वूमेनस की हेड है प्रेसिडेंट के ब्लैक कैबिनेट में है एलेनोर रूज़वेल्ट की खास है’। अपने को गँवार कहे जाने पर जॉनी उस लड़की को ‘मुलाटो’ कहकर चिढ़ाती है। ‘मुलाटो’यानी काँसे के से रंग की त्वचा, जब माता-पिता में एक श्वेत हो दूसरा अश्वेत। यह शब्द पुर्तगाली और स्पैनिश भाषा से लिया है।

आर्मी में, फोर्ट ओगल थोरपे जॉर्जिया 1944, सभी अश्वेत एक अलग ट्रक में पहुँची हैं। भेदभाव का दूसरा अनुभव, जब आर्मी ऑफिसर अभद्रता से उन्हें नीचे उतरने का आदेश देता है विद्रोही  जॉनी कहती है- ‘मतलब, मैं घर से निकलकर आर्मी आई कि कुछ सुकून मिलेगा लेकिन यहाँ भी वही सब झेलना होगा’ ! तब बाकी नीग्रो सैनिक ही उन्हें उतारते हैं। फ़ौज में तुम्हें छिछोरी हरकतें नहीं करनी चाहिए का वह दृढ़ता से जवाब देती है ‘तुम क्या कोई पादरी हो’ … मैं कुएँ से निकल के दूसरी खाई में आ गई हूं? क्योंकि उसका पति उसे बहुत मारता था इसलिए यहाँ आई लेकिन इस भेदभाव से चिढ़ कर वह कहती हैमुझे उस देश की सेवा नहीं करनी जहाँ हमें कचरा समझा जाता है’। दूसरी लड़कियों से कहती है जैसे तुम्हें सिखाया गया है तुम वैसी ही रहो, मैं तो ऐसे ही रहूंगी जॉनी बैल का कहना है कि वैसे भी सिवाय कॉटन मिल, गोरों की नौकरानी बनने के सिवा कोई काम ही नहीं मिलता जॉनी में मुक्ति की आकांक्षा का चरम रूप तब दिखाई देता है जब वह अपने स्तनों पर हाथ रखते हए उनके नाम लेते हुए कहती है ‘ये है मारथा ये है मैरी और इन्हें घुटन हो रही है’!

अब उनकी हेड कमांडिंग ऑफिसर चैरिटी एडम्स जो मानती है हमारी जंग नीग्रो होने के साथ शुरू हो जाती है । वो निर्देश दे रही है सीधी कमर बहुत ज़रूरी है, चलते हुए हमेशा सिर ऊँचा होना चाहिए…’ जॉनी को देखते हुए कहती है इन ड्रेसों को व्हाइट नाजुक औरतों के लिए बनाया गया था न कि नीग्रो के लिए… मैं मानती हूं कि तुम सबको सुई धागा का इस्तेमाल करना आता होगा… यह आर्मी है और तुम सब औरतें हो… नीग्रोस भी… तुम्हें व्हाइट सिपहियों जितनी साहूलियतनहीं मिलगी न हो कोई मौका दिया जाएगा बल्कि तुम पर बेहतर होने का बोझ है… तुम सिर्फ अमेरिका को रिप्रेजेंट नहीं कर रहे बल्कि अमेरिका की नीग्रोस महिलाओं की भी  नुमांयदगी कर रही हो… यहां हमेशा फोटोग्राफर रहेंगे जो चाहेंगे तुम्हारी निंदा करें क्योंकि वे नहीं चाहते कि तुम यहाँ पर रहो… हम कामयाब ना हो…हमें खुद को साबित करना है।आपसी रंजिश यहाँ बर्दाश्त नहीं किया जाएंगे न ही बर्दाश्त की जाएगी बेइज्जती…. जिन्हें बचपन से ही जिंदा रहने की लड़ाई करनी पड़ी हो ऐसे लोग चाहिए जिन्हें संघर्ष की आदत हो’। युद्ध का अर्थ पुरुष उसमें भी वाइट श्रेष्ट हैं स्त्रियों को लेकर पूर्वाग्रह कि वे कैसे युद्ध करेगी मैंने आज तक कोई समझदार नीग्रो नहीं देखा। उसे सुनना पड़ा है रंग और औकात के हिसाब से बात करो। इसलिए उन्हें पोस्ट का काम दिया गया चैरिटी एडम्स के कहने पर ‘साले! व्हाइट मर्द! उसकी साथी कहती है ‘नीग्रो भी ऐसे ही होते हैं। इसके लिए उन्हें छह महीने दिये है ताकि दयालु दिखे। अपने से जूनियर लेकिन वाइट होने के कारण उसे खुद कहना पड़ता है ‘मैं कैप्टन हूं और तुम मुझे सेल्यूट करोगे’। शिकायत करने पर जनरल कहता है यहां हम सब सिपाहियों के एक से हक है यह बहुत छोटी बातें हैं भूल जाइए’। उसे गर्व है कि मेरे सिपाहियों से अच्छा कोई मार्च नहीं कर सकता। लेकन सुनने को मिलता है तुमने ठीक से काम नहीं किया मैं यहाँ एक वाइट कमांडर को लेकर आऊंगा तो वह कहती है ‘मेरी लाश से गुजर कर’ ‘मेरा बटालियन दिन रात मेहनत कर रहा है, वो भी इतने बुरे हालात में, मेरे सिपाही यहाँ अन्याय सहते हैं,  आपने मेरे दो सिपाहियों के अंतिम संस्कार के लिए आर्डर तक पास नहीं किये, मैं जानती हूँ ये एक जंग है लेकिन हमारी जंग नीग्रो होने के साथ ही शुरू हो जाती है सभी लड़कियां उसके सम्मान में ताली बजाती हैं वह दृश्य सच में रोंगटे खड़े करने वाला है अंत में सभी वाइट सैनिक भी उन्हें सैल्यूट करते हैं।

‘सिक्स ट्रिपल एट’ अश्वेत बटालियन ने हर क्षेत्र में जंग लड़ी और सफल रहीं लेकिन सम्मान जिसकी वे हकदार रही, सिर्फ रंग के कारण उन्हें नहीं मिल पाया। फिल्म के अंत में रियल लीना डेरीकोट (जो आज 100 वर्ष की हो चुकी हैं) ख़त पढ़ते हुए इसका जिक्र करती है, उनके अच्छे काम के लिए उन्हें आगे फ्रांस भेजा गया लेकिन एक बात का दुःख रहा कि हमारे इस काम को किसी ने पहचाना नहीं, शुक्रिया नहीं कहा टिकेट टेप परेड में भी शामिल नहीं किया गया हमारी मेहनत और शिद्दत से की गई सेवा को कोई पहचान नहीं मिली हाँ, हमें योरोप में ज्यादा सम्मान मिला, अब जाकर लोगों के बीच हमें हमारी पहचान मिली है हमारे काम के लिए हमें ‘कोंग्रेशनल गोल्ड मैडल’ मिला पृष्ठभूमि में उन लड़कियों की मैडल के साथ फोटो और एक्चुअल फुटेज मार्च करते हुए जो रोमांचित करती है। फिल्म हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि फ़िल्म देखते हुए हमारे सामने भारत में होने वाले जातिगत भेदभाव के दृश्य अनायास सामने आ जाते हैं। मैरी मैक्लियोड बेथ्युन के संघर्ष के समकक्ष मुझे सावित्रीबाई फुले नजर आती हैं। जाति, धर्म-सम्प्रदाय प्रेम को पनपने ही नहीं देते चाहते, वह व्यक्तिगत हो अथवा सामाजिक! कार्यस्थल पर, विशेषकर महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव से भी हम खुद को जोड़ पाते हैं लेकिन किसी जाति-विशेष में जन्म लेने भर से कैसे जन्म के साथ ही संघर्ष आरम्भ हो जाते हैं इस पर फिल्म बड़ी सूक्ष्मता और गहनता से विचार करने का अवसर देती है

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रक्षा गीता

लेखिका कालिंदी महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) के हिन्दी विभाग में सहायक आचार्य हैं। सम्पर्क +919311192384, rakshageeta14@gmail.com
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